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برخاست. نمیدانم باید به ساخته ساخت یا به نساخته سوخت، یا به سوختی ساخت یا ز سوختی ساخته شد. به میان شاهراهی باید نشسته در انتظار حوادث بود، یا در کوچهها و دالانهای تنگ، ایستاده به جستجوی حوادث. باید نشسته بود و اندیشید یا ایستاده عبور کرد و نیندیشید.
و نوشت؟ یا ننوشت؟ و اگر نوشت از چه؟ اگر نوشت کوچک را نوشت، یا بزرگ را، یا کوچک را میان بزرگ، یا بزرگی میان کوچک را؟ نمی دانم باید بود و نوشت یا نوشت و بود شد؟ نیست را نوشت یا نوشت و هست کرد؟ نمیدانم اصلا باید نوشت، یا گذشت و نوشته شد؟ نه، واقعا نمیدانم.
ولی با این حال فرقی هم نمیکند. آخر داستان زندگیی هر ورق همان است: یادگاریی قلم. دیگر هر کسی با خودش که ورق باشد یا قلم. من خواستهام که قلم باشم.
کلمات نیز مانند خود ما هم تاریخچه دارند و هم شجره نامه. گاه سال ها و سال ها میان شعرا و نویسندگان دست به دست می شوند تا عمرشان به سر آید و با احترام بازنشسته شان کنند یا بهتر بگویم قربانیشان کنند به پای زایش هنری. در این میان بعضی کلمات کهنسال به سمبول های زبانی تبدیل می شوند و دراصل به حافظه ی اجتماعی و تاریخی ی یک جامعه می پیوندند. اغلب این سمبول ها در بطن خود نماینده ی یک فلسفه یا نگاه یا یک مفهوم دقیق هستند. می توان گفت اینها نگرش جاافتاده ای را خلاصه می کنند و از این رو بسیار به کار شاعران می آیند. اینگونه سمبول ها شاعر را از توضیحات اضافی خلاص می کند و درعین حال راهی میان او و فضای فلسفییی مورد نظرش به وجود می آورد. ازاین طریق شاعر می تواند لایه های معنایی شعر خود را به نگرش های کلی تری پیوند بزند و از تاریخچه ی مفهومی ی اینگونه کلمات برای بیان خویش استفاده کند.
یکی از این کلمات کهنسال که مدتی مرا به خود مشغول کرده، کلمه ی آینه است که می توان آن را یکی از مهمترین کلمات در شعر کهن فارسی، به خصوص شعر عرفانی، به حساب آورد. آینه به عنوان عنصر منعکس کننده ی حقیقت درعرفان به سمبولی برای توضیح رابطه ی خالق و مخلوق تبدیل شده است. شاعران عرفانی، مانند مولانا و عطار، به طور مکرر دل را که در عرفان عضو درک کننده ی دانش شهودی است، به آینه تشبیه کرده اند. آینه ای که هرگاه صیقل خورد و شفاف شد، می تواند صاحب دل را در خود منعکس کند. تصویری که از این انعکاس به دست می آید، در اصل من حقیقی ی عارف است که به نوعی تجلیی از خداست. پس من حقیقی تصویر مجازیی از خداست که آفریننده و حقیقت مطلق است و خود آفریده، تصویر مجازیی از من حقیقی است. عارف در آینه ی صیقل خورده ی دل خود، منشأ تصویر مجازیی خویش را که من است می بیند و من خود تصویر مجازیی از خداست. پس عارف در آن آینه به طور غیر مستقیم با خالق رو به رو می شود و آن لحظه، لحظه ی کشف حقیقت و فناست. این رابطه به بهترین وجه در منطق الطیر عطار توضیح داده شده؛ هنگامی که سی مرغ با سیمرغ که درست مثل آنها و انعکاس آنها و در اصل منشأ تصویر آن هاست، مقابل می شوند.
غیر از عنصر انعکاس، چیز دیگری که به آینه اهمیت سمبولیک می دهد، مسئله ی زنگارزدایی است. آینه های فلزی برای شفاف شدن نیاز به صیقل دارند. شاعران عرفانی مراحل دشوار طریقت را به زنگارزدایی ی آینه ی دل تشبیه می کنند. آینه ی دل -که به ذات پتانسیل انعکاس را داراست- پس از صیقل به فعل، منعکس کننده می شود و حقیقت را به عارف می نمایاند.
در مورد اهمیت کلمه ی آینه در شعر عرفانیی دیروز سخن بسیار رفته، ولی آنچه اینجا می خواهم به آن اشاره کنم، نقش آینه در شعر نوی امروز است- به طور خاص در شعر احمد شاملو. از نظر من شاملو در چند شعر کلمه ی آینه را از شعر عرفانی به عاریه می گیرد ولی از آن در حوزه ی عقاید غیر عرفانی ی خودش استفاده می کند. من به طور خاص به دو شعر ماهی و باغ آینه اشاره می کنم و به نقش ظریفی که آینه در این دو شعر در توضیح نگاه شاملو به عشق و حقیقت ایفا می کند.
در شعر ماهی کلمه ی آینه در بخش های دوم و چهارم به طور مکرر ظاهر می شود. در بند دوم می گوید:
آه، ای یقین گم شده، ای ماهی ی گریز
در برکه های آینه لغزیده تو به تو!
من آبگیر صافی ام، اینک! به سحر عشق،
از برکه های آینه راهی به من بجو!
شاملو از ترکیب دقیق برکه های آینه برای توصیف خانه ی ماهی ی یقین استفاده می کند. او در برکه های آینه به دنبال یقیتن می گردد و می گوید که اکنون خود نیز با جادوی عشق چون آبگیر صافی، زلال شده است. این آبگیر صافی که خود دارای خصوصیت آینه گون انعکاس است، به آینه ی وجود شاعر اشاره می کند که با عشق صیقل خورده و اکنون می تواند پذیرای حقیقت و یقین باشد. یقین در برکه های آینه، که می تواند اشاره ای به خرد جهانی یا دل جهانی باشد، وجود دارد و تنها به دلی زنگارزدوده راه پیدا می کند. در بخش پایانی ی این شعر، یقین به شکل زنی با آینه ای در دست وارد می شود:
آمد شبی برهنه ام از در
چو روح آب
در سینه اش دو ماهی و در دستش آینه
گیسوی خیس او خزه بو، چون خزه به هم
من بانگ بر کشیدم از آستان یأس:
-، آه، ای یقین یافته، بازت نمی نهم!،
در اینجا برخورد شاعر با خود در آینه ای که در برابرش ظاهر می شود، بی شباهت با برخورد عارف با من خویش در آینه ی دل نیست. آینه ای که با عشق صیقل یافته و اکنون حقیقت را می نمایاند. جمله ی پایانی ی شعر، لحظه ی کشف حقیقت را با بانگ پر شور و شعفی توصیف می کند. استفاده از آینه در این شعر بی مورد نیست و شباهت نگاه شاملو با عرفان بسیار جالب توجه است. ولی آنچه که شاملو را عارف نمی کند، تعریف متفاوت او از کلمه ی کلیدی ی عشق است. پیش از توضیح بیشتر می خواهم در اینجا به چند سطر پایانی ی شعر باغ آینه اشاره کنم:
چراغی در دست، چراغی در دلم.
زنگار روحم را صیقل می زنم.
آینه ای در برابر آینه ات می گذارم
تا با تو
ابدیتی بسازم.
دو آینه ای که در برابر هم قرار می گیرند، تصویر یکدیگر را تا بی نهایت یا ابدیت در خود منعکس می کنند. تصویری که در هر یک از این آینه ها می افتد، نه تنها تصویر آینه ی دیگری است که در برابرش قرار گرفته، بلکه تصویر خود آینه در آن آینه ی دیگر هم هست. پس هر آینه، هم خود را و هم آینه ی دیگر را در خود منعکس می کند. شاعر زنگار روحش را صیقل می زند و سپس آینه ی زلال خود را در برابر آینه ی زلال دیگری قرار می دهد و در این میان ابدیتی می سازد. این تعریف شاملو از عشق زمینی یا عشق آدم به آدم است. او خدا را از معادله حذف می کند و آینه ی دل خویش را به جای آن که مانند عارف به سوی خدا بگشاید، به سوی معشوق زمینی می گشاید.
حال به بند آخر شعر ماهی بازمی گردم. آینه در دست برهنه ای است، زلال چون روح آب، که با گیسوی خزه بو از برکه های آینه آمده است. اینجا باز شاعر آینه را به دست معشوق زمینی می دهد. عشق در شعر ماهی، نه عشق به خدا، که عشق به انسان دیگری است. شاملو زنگار آینه ی دل خویش را نه با عشق به خدا، بلکه با عشق به معشوق زمینی ی خویش، می زداید و سپس آن را در برابر آینه ی معشوق قرار می دهد. تقابل دو آینه یعنی تجلی ی من و تجلی ی معشوق زمینی در هر آینه. شاملو این تقابل را لحظه ی تکامل عشق و روشن کننده ی حقیقت می داند. او عناصر عشق عارفانه را قرض می گیرد تا عشق زمینی ی خویش را به همان اندازه روشن کننده و کامل جلوه دهد. محور اصلی ی این تناسب استفاده از کلمه ی آینه است.
زیرکی ی شاملو در استفاده ی به جا از کلمه ی جاافتاده ای مانند آینه، لایه های معنایی ی شعراو را به شعر کهن فارسی، به خصوص حافظ وعطار، پیوند می زند. او از این کلمات برای بیان عقاید مشابه ولی نه یکسان خویش استفاده می کند و به نظر من زیبایی ی کار درست در همین جاست.
..... بی صبرانه می کوشد تا به حقیقت وجود خود و دنیایش پی ببرد... گاه دچار توهم میشود....وجود خود را سوال می کند... به دیده ها شک میکند و نا دیدهها را مینگرد.... ابدیت را می خواهد... هستی را زاده ی نیستی می پندارد و نیستی را زاده ی هستی... عدم را می جوید... بارها و بارها همان سوال آشنا را می پرسد و هزاران دنیای نو می آفریند....آفرینش و آفریننده... انسان زاده ی واژهای کوتاه و بی کران است....انسان زاده ی چراهاست... آرزوی کمال...
متاسفانه هرگاه سخن از فلسفهی سیاسی وعلوم سیاسی به میان میآید ناخوداگاه این دو گرایش نظری را هم معنای سیاست می پنداریم. گرچه فلسفهی سیاسی وعلوم سیاسی با دنیای سیاست ارتباطی تنگاتنگ دارند اما یکی دانستنشان با سیاست صحیح نیست. همان گونه که از نامش آشکار است علم سیاست یا علوم سیاسی برای تحلیل مسائل سیاسی- اجتماعی از روش علمی () استفاده می کنند. این گرایش نظری که روشی نو پا و جدید برای درک مسائل سیاسی- اجتماعی است و با تکیه برتجربه و آمار به تحقیق درمورد مسائلی چون فقر و توسعه، توسعهی پایدار ()، روابط بین الملل و جهانی شدن ()، تاثیرصورتهای مختلف حکومتی برجامعه، قوانین بین المللی، استقلال و سلطه و ناسیونالیسم، جنگ وصلح و حقوق بشر می پردازد.
فلسفه ی سیاسی گرد پرسش ها یی چون ارتباط فرد با جا معه، صور حکومت، دولت، سیاست، قدرت و طبیعت قدرت، قانون و قانونمندی می گردد. قبل ازآن که دربارهی هدف و چگونگیی برخورد فلسفه ی سیاسی یا پرسش هایی از این قبیل صحبت شود، لازم است راجع به مکان و زمان پیدایش این گونه حکمت توضیحی مختصرداده شود. فلسفه ی سیاسی درغرب زاده شد و هیچ گاه مورد عنایت و توجه خاص اندیشمندان جهان شرق واقع نشد. ازمیان اندیشمندان جهان شرق تنها فارابی مفصلا به فلسفه ی سیاسی پرداخت و ابن سینا به نوشتن چند جزوهی کوتاه در این باب اکتفا کرد. دلایل عدم توجه به فلسفه ی سیاسی در شرق بسیارند و این چند سطر مجال بررسی آن عوامل را نخواهند داد. فلسفه ی سیاسی در یونان باستان و به هنگام برخورد گونه های مختلف حکومتی ی دولت- شهرها ی (-) یونان به عنوان حکمتی مستقل شناخته شد. پرینس اثر مکیاولی، مهمترین و تاثیر گذارترین کتاب فلسفه ی سیاسی است که مقام سیاست را بالاتر از اخلاق و هر چیز دیگر دانسته است.
از جمهور افلاطون تا سیاست ارسطو، از شهر خدای آگوستین تا پرینس مکیاولی، از لاک تا مارکس و هگل... از دوره ی قدیم تا دوره ی میانه، و از دوره ی میانی تا دوره ی جدید اندیشه ی سیاسی در تکاپو است تا راهی به مقصودش بجوید. مقصود فلسفه سیاسی رهنمون کردن انسان و در اکثر مواقع جوامع بشری به سوی سعادتمندی ست. فیلسوفان و اندیشمندان سیاسیی جهان غرب و شرق کلید این معما را نخست در ادراک فطرت و طبیعت انسان می یابند و سپس به نگارگری مدینه ی فاضله ای که دارای انطباق و هارمونی با طبیعت انسان است می پردازند. هنگامی که اندیشمند مبانی ی فکری ی خود را بنا می کند، با بینش فلسفی منطقی ی خود مدینه ی فاضله و چگونگی ی دستیابی به آن را با مخاطب در میان می گذارد. نکته ای ظریف که در فلسفه ی سیاسی دارای اهمیت فراوان و غیر قابل کتمان می باشد چگونگی ی سیر فکری از مبدأ به مقصد است. در انتخاب مبانی ی فکری (مبدأ) به نظر می رسد فیلسوفان از قید و بندهای گوناگون تا حدود زیادی آزادند و و پی ریزی ی شالوده ی ساختمان اندیشه یشان بیشتر پیرو سلیقه است. اما نتیجه ی سیرشان (مقصد) در دنیای اندیشه تابع توانستن است نه خواستن. مثلا اگر مابعدالطبیعه را ملاک جستجوی حقیقت هستی و طبیعت انسانی قرار دهیم، طبیعتن راهکرد و دستاودر این کنکاش نیز تحت تأثیر مستقیم پیش فرض ها قرار می گیرد. اما اگردر زیربنای این جستجو اصول ماتریالیسم را جایگزین مابعدالطبیعه کنیم، به اجبار نتیجهی حاصله با دستاورد متاثر از دید متا فیزیکال یکسان نخواهد بود. بینش و جهان بینی ی فیلسوفان دوره ی میانه ضامن مقبولی برای این مدعا است که به خوبی تاثیر انتخاب مبانی ی فکری بر نتایج حاصله را نشان می دهد. فیلسوفان دوره ی میانه هم زمان با اقتدار دین مسیحیت میزیستند. در نتیجه از بین بردن تناقضات بین فلسفه و دین مهمترین مشغلهی ذهنیی فلسفه ی سیاسی در این دوره شد. دردورهی میانی بسیاری از اندیشمندان غرب کوشیدند تا پلی از آ تن به بیت المقدس پی بریزند. پلی که عقلانیت و وحی، فلسفه و دیانت را به طور مشترک و هم زمان به یکدیگر متصل کند. فیلسوفان دوره ی میانه با توجه به عقاید مسیحیی خود چاره ی وصال و حقیقت را تا حدودی خارج از حیطه ی عقلانی تصور کرده اند و وحی الهی را کلید این معما دانسته اند. به همین دلیل فلسفه ی سیاسیی ایده ال آنها نیز محتاج به ارتباط با قدرتی ماورای انسان بود. در فلسفه ی سیاسیی این هنگامه، اخلاق جایگاه برترین را یافت و بر خلاف دوران یونان مأبی، نظر تابع تجربه شد. رابطه ی انسان با خدا به ارتباطی مخصوص و دو طرفه تبدیل شد و انسان جایگاهی فراتر از دیگر مخلوقات یافت. مراد از این مثال اینم بود که انتخاب سلیقه یی مبانیی اندیشه و تأثیر مستقیمش بر روند فکری و طراحی مدینه ی فاضله درفلسفه ی سیاسی نمایان شود.
آنچه به اجمال گفته شد، گر چه تعریفی شتابان از فلسفه ی سیاسی است و صلاحیت و قابلیت ژرفانگریی فلسفی را ندارد، اما در دل خود حقیقتی نهفته را حامل است. گر چه درطول تاریخ فلسفه ی سیاسی به سیاست به عنوان وسیله ای برای دستیابی به سعادت نگاه شده است، امروزیان سیاست را نماد سیاهی و آلتی در اختیار سیاست پیشگان می پندارند که هر روز از فضائل فطری بشر دورتر میشود. اما فلسفه ی سیاسی چون گذشته، در جستجوی حقیقت انسانی ست و مقصودش همان مقصود ازلی. سیاست عملی است ولی فلسفهی سیاسی وعلوم سیاسی، نظری. فلسفهی سیاسی وعلوم سیاسی انسانی اند، چرا که سرچشمهشان اندیشیدن برای بهبود جهان و انسان است. و سیاست.... گویند: پدر و مادرندارد!
انتخابات استان انتاریو، مثل هر انتخابات دیگری در امریکای شمالی، شامل مقداری وعده و وعید بود، مقداری انتقاد و به مضحکه کشیدن رقیب، سفرهای نمایشی به مدارس و خانه های سالمندان و شرکت در میزگردهای مختلف.
در این انتخابات هم مثل هر انتخابات دیگری در امریکای شمالی، رقبا با تکیه بر ناکامیهای حزب حاکم به وی تاختند، جدا از اینکه این ناکامیها بلای آسمانی باشد مثل سارز، یا بلای زمینی باشد مثل قطع برق.
در این انتخابات هم مثل هر انتخابات دیگری در کشورهای صنعتی، نصف مردم اصلا کوچکترین علاقهای به موضوع نشان ندادند و نصف دیگر آنقدر علاقه مند نبودند که پای صندوقهای رای بروند. جوانان هم گفتند سیاستمداران بهترین دروغگویانی هستند که میشناسیم.
در این انتخابات هم مثل هر انتخابات دیگری در این طرفها، به جای شعارهای کلی در باب آزادی و استقلال و دموکراسی و مهار فساد اقتصادی، به شعارهای جزئی در باب افزایش بودجه آموزش و بهداشت و فراهم کردن کار برای مهاجرین و اینکه مالیات کم میشود یا ثابت میماند، سیاست نامزدها در قبال نرخ بیمه ماشین و قول آسفالت کردن جادهها، پرداخته شد.
در این انتخابات هم رسانهها مقداری آگهی گرفتند، مقداری محاسبه و مصاحبه کردند، مقداری تحلیل کردند و مقداری پیش بینی و جمع بندی. یکی از کاندیداها میپرسید تا به حال مانیکور کرده ای یا نه و یکی دیگر میپرسید تو هم سگتان را میبری گردش یا نه.
در این انتخابات هم خانوادههای دور و نزدیک نامزدها، عکس آنها را روی تابلوهای چوبی کوتاه جلوی چمن خانه کاشتند و از رنگ نارنجی ()، سبز (حزب سبزها)، قرمز (لیبرالها) و آبی (محافظه کارها) میشد فهمید توزیع فامیلیی احزاب در سطح شهر چگونه است.
در این انتخابات هم بعد از برگزاری، رئیس حزب حاکم شکست خورده سخنرانیی خداحافظی کرد و گفت که مردم تغییر را انتخاب کردهاند و وی به این درخواست احترام میگذارد و تن می دهد (این جمله همان قدر که اینجا کلیشهای است، برای جهان سومیها معنی دارد).
در این انتخابات هم جشن پیروزی در دفتر مرکزیی حزب پیروز (لیبرالها) برگزار شد و در حد یک شوی تلویزیونی، رهبر حزب برنده ضمن سلام و علیک و روبوسی با سیصد، چهارصد نفر از فک و فامیل و رفقا، از همه به خاطر حمایتشان تشکر کرد و خانوم بچهها هم پشت سرش روی سن صف کشیدند و بقیه برایشان هورا کشیدند.
در این انتخابات هم فکر میکنی که در آن سوی دنیا کسی اعتقاد ندارد که حکومتها برای رای مردم ارزش قائل میشوند (هر چند نادیده گرفتن آن روز به روز سختتر میشود) و در این سو هم سیستم و برنامهریزیهای دراز مدت جدیتر از آن است که بخواهی به همهی وعدههای نامزدها دل خوش کنی و دست آخر با این سوال باقی میمانی که واقعا رای مردم در تعیین سرنوشتشان چقدر تاثیر دارد؟
در جلسههای ایرانیهای دانشگاه تورنتو گاهی مواقع حضور یک دانشجوی آمریکایی جلب توجه میکند. اسمش چاد لینگ وود است و در دنور کلرادو به دنیا آمده است. لیسانسش را در خبرنگاری و فوق لیسانیش را در اسلامشناسی گرفته است و اکنون مشغول گذراندن دوره دکترای زبان فارسی و تاریخ ایران از دانشکده خاورمیانهشناسی دانشگاه تورنتو است. چاد تابستانی که گذشت سفری داشت به ایران. این گفتوگو را به بهانه این سفر با او ترتیب دادهایم. اگر چه چاد فارسی هم صحبت میکند ترجیح دادیم گفتوگو را به انگلیسی انجام دهیم تا مبادا نکتهای از قلم بیفتد. آن چه پیش رو دارید ترجمه این گفتگوست. ما ایرانیها وقتی به اینجا (آمریکا و اروپا) میآییم یک چیزی که برایمان خیلی جالب و مهم است سطح آگاهی مردم از کشورمان ایران است. به نظر تو مردم اینجا از ایران چه تصوری دارند، اصلا چقدر آگاهی دارند و این دید و شناخت را از کجا پیدا کردند؟ اگر در مورد شناخت مردم عادی میپرسید، خب البته شکی نیست که یک آمریکایی معمولی و حتی بهتر از آن، درباره ایران و گذشته آن و مهمتر از همه واقعیتهایی که ایرانیها قبل و بعد از انقلاب ۵۷ با آن روبرو بودند، خیلی کم میداند. تصویر ایران در مطبوعات و فرهنگ عمومی خیلی یک سویه است و اگرصادق باشیم بسیار منفی. نسل من در حالی در آمریکا بزرگ شد که با ایران بیشتر هنگام اشغال سفارت آمریکا و ماجرای گروگانگیری آشنا شد. کسانی مثل من، ایران را اولین بار شبها در اخبار شناختیم، وقتی تلویزیون، آمریکاییهایی را نشان میداد که چشمانشان را بسته بودند و یا موقعی که تقویمی را نشان میدادند که تعداد روزهایی که از گروگانگیری گذشته بود به نمایش میگذاشت. یک همچنین تصاویری یک وجهه کاملا منفی از کل ایران نزد آمریکاییها نشان میداد. یادم هست هیچ وقت در اخبار صحبتی از این که چرا مردم ایران علیه حکومت شاه انقلاب کردند نمیشد. من اگر اشتباه نکنم شاه توسط گروههای سکولار و مذهبی، هر دو، برانداخته شد. به جای آن ما هر روز میخواندیم و میشنیدیم که رادیکالهای اسلامی، مسلمانان افراطی یا شبه نظامیان مسلمان قدرت را از شاه گرفتند. شاهی که به ما گفته شده بود دوست آمریکاست. برای یک آمریکایی معمولی همین چیزها کافی بود که خونش را به جوش بیاورد. یک نسلی از آمریکاییها اولین بار کلمه اسلام و اسلامی را از طریق انقلاب ایران شنیدند که یک حس نفرت و دشمنی را با خودش به همراه داشت. بعد از آن هم خبرهای رسانههای آمریکا درباره ایران بیشتر مربوط به وقایع سالهای ۱۹۸۰ مانند ایران-کنترا، جنگ ایران و عراق، سخنرانیهای آیتالله خمینی، گروگانگیری و عملیاتهای انتحاری در لبنان و... بود. برای همین، میشود گفت برای یک آمریکایی معمولی در کانزاس که بیشتر اوقات کار میکند و فرصتی برای مطالعه درباره ایران ندارد متاسفانه تصویر ایران چیزی بیشتر از خشونت و افراطگرایی نبود. به طور طبیعی آن زمان و حتی الان هم توجه چندانی به فرهنگ و هنر و دین ایران نمیشود. آیا من فکر میکنم یک روزی برسد که آمریکاییها حافظ را بیشتر از خمینی بشناسند؟ نه، فکر نمیکنم. ولی این به این معنی نیست که ما نتوانیم جامعه انگلیسیزبان را با شعر و ادبیات ایران آشنا کنیم. تا اندازهای به همین دلیل است که من سعی میکنم اشعار فارسی را مطالعه و ترجمه کنم. اگر شاید اولین تجربه آدمها با ایران چیزی مثل خواندن یک شعر از مولوی یا حافظ بود، تصویر دیگری از ایران در ذهنشان نقش میبست. یک کم لطفا برای ما از سفرت به ایران بگو. از طرف کجا به ایران رفتی؟ چقدر به اهدافی که میخواستی رسیدی؟ سفر من به ایران از طرف موسسه آمریکایی مطالعات ایرانی که مجموعهای است از استادان دانشگاههای آمریکا و اروپا که در زمینه مسایل ایران صاحبنظر هستند، برنامهریزی شده بود. از فعالیتهای این موسسه انتشار مجله مطالعات ایرانی و برگزاری کنفرانسهای گوناگون درباره ایران با حضور استادان، محققان، تاریخدانان و هنرمندان است. بورسی که هزینه سفر من را تامین کرده بود، هر سال از طرف این موسسه به دانشجویان تحصیلات تکمیلیای داده میشود که بخواهند زبان فارسی یاد بگیرند و یا تحقیقی درباره مسایل ایران انجام دهند. این موسسه با موسسه دهخدا در ایران که بخشی از دانشگاه تهران است همکاری نزدیکی دارد. پنج روز هفته صبحها من و بقیه دانشجویان آمریکایی در کلاس فشرده زبان فارسی در موسسه دهخدا شرکت میکردیم. بعدازظهرها هم گاهی ما را به بازدیدهای علمی از مکانهای مختلف مانند موزهها میبردند یا خودمان به کنابخانه میرفتیم و مطالعه و تحقیق میکردیم. هدف از این دوره آن طور که من برداشت کردم کاملا علمی بود و اصلا سیاسی نبود. بدین مفهوم که موسسه هیچ تلاشی برای این که تنها بخش خاصی از ایران را به ما نشان دهد نمیکرد. کار مهمی که موسسه دهخدا برای ما کرد ارتباط برقرار کردن ما با کسانی چون کتابدارها و موزهدارها بود تا دسترسی ما به منابع تحقیقی راحتتر شود. بعنوان یک آمریکایی که به ایران سفر کردی، ایران چقدر از آن چیزی که فکر میکردی متفاوت بود؟ چقدر شبیه آن چیزی بود که در ذهنت بود؟ مردم ایران را چطور دیدی؟ بعد از صحبت با یک ایرانی که در هواپیما در صندلی کنار من نشسته بود، به این احساس رسیدم که سفرم به ایران بدون هر گونه اضطراب و ترسی خواهد بود. این فرد احتمالا وقتی دید که من اندکی نگران به نظر میرسم شروع کرد تعریف کردن از داستانهای جالبی که در سفرهایش بعنوان یک تاجر ایرانی برایش پیش آمده بود تا شاید بتواند مرا آرام کند. در ایران، صبر و سخاوت کسانی که من دیدم با کلمات قابل بیان نیست. هر زمان هر کمکی چه آدرس گرفتن چه سفارش غذا دادن و یا هر چیز دیگر داشتم همه با کمال میل کمک میکردند. یک بار من به شیراز رفته بودم. از هواپیما که پیاده شدم مستقیم به سمت مقبره حافظ رفتم. در راه در حال قدم زدن بودم که چند تا دانشجوی مهندسی مرا دیدند و به من گفتند که اگر بخواهم میتوانم با آنها بروم. وقتی به مقبره حافظ رسیدیم، همه نشستیم و شعرهای مورد علاقهمان از دیوان حافظ را خواندیم. بعد به اصرار آنها به خانهشان برای شام رفتم. این طور شد که من با یک خانواده که اسم پسرشان عباس بود آشنا شدم و چند روزی را در خانه آنها ماندم. در آن چند روز عباس به دانشگاه نرفت و مرا به تخت جمشید، مقبره سعدی، باغهای داخل و خارج شیراز برد و مهمتر از همه برای من کلی از زندگی و افکارش صحبت کرد. در تهران هم من فرصت خوبی پیدا کردم و با چند جوان زرنگ و پرانرژی آشنا شدم که باعث شد بیشتر به رسم و رسوم ایرانی علاقهمند شوم. از همه جالبتر وقتی بود که با آنها به دو عروسی دعوت شدم که کلی هم با بقیه رقصیدم! بعد هم در خیابانهای تهران با ماشین به دنبال ماشین عروس و داماد افتادیم و همینطور بوق میزدیم و آوازهای ایرانی میخواندیم. موقع مکالمات جدیتر با آن بچهها، آنها برایم از ناامیدیشان به وضعیت سیاسی، اجنماعی و اقتصادی کشور صحبت میکردند. ناامیدی خیلی زیاد بود. یکی که مهندس کامپیوتر بود برایم میگفت که چطور حاضر است حتی در پیتزافروشی در کانادا کار کند اگر این تنها راهی باشد که بتواند با همسرش از ایران خارج شود. از آنجا که علاقه من بیشتر شعر و ادبیات بود ترجیح میدادم در تجزیه و تحلیل مسایل ایران زیادهروی نکنم و بیشتر به این فکر کنم که چطور میشود اوضاع را بهتر کرد. یک روز من یک منظرهای دیدم که برای همیشه بعنوان استعارهای برای تلاش خستگیناپذیر و ازخودگذشتگی ایرانیان برای پیشرفت کشور در یادم باقی خواهد ماند. در خیابان ولیعصر سوار بر اتوبوس بودم. یک کارگررا دیدم که در وسط خیابان ایستاده بود و داشت آسفالتهای خیابان را میکند. کفش بسیار نامناسبی برای این کار به پا داشت و کلا ایمنی را اصلا رعایت نکرده بود. دیدن زحمت کشیدن او برای تعمیر خیابان بدون این که اندکی به سلامتی خودش توجه کند، برای من تجسم آن چیزی بود که آن روزها از خیلیها میشنیدم. راه آینده ایران معلوم نیست. ولی بسیارند کسانی که خطر میکنند و از هیچ اقدامی برای بهبود اوضاع دریغ نمیکنند. رسم و رسوم ایرانی هیچ شباهتی به آن چه که در کشورهای دیگر دیده بودم نداشت. سیستم پیچیده و کمی ملالآور تعارف باعث میشد که خیلی مواقع از حیرت فقط سرم را بخارانم. گاهی یک مکالمه برایم مثل رقص بالهای بود که افراد با نوک پنجه به طرف آدم میآمدند که صریح چیزی بگویند ولی دست آخر با کنایه منظورشان را میرساندند. دستکم برای من، در اخلاق و رفتار ایرانیها، حتی در غذا خوردن و لباس پوشیدن و خلاصه در همه چیز یک زیرکی خاصی بود که در هیچ جای دیگری ندیده بودم. این که ایرانیها خیلی موقعها بدون این که اصلا حرفی بزنند منظورشان را میرسانند و یا این که فقط از طریق یکی دو کلمه که خیلی به دقت انتخاب شده کلی حرف میزنند یک پدیدهای بود که من در هیچ جای دیگری ندیده بودم. در این باره قبلا شنیده بودم ولی فقط وقتی به ایران رفتم کامل آن را حس کردم. در مورد اوضاع سیاسی اجتماعی ایران چه فکر میکنی؟ بدون شک، یک خواست همگانی در ایران برای تغییر وجود دارد. این موضوع را البته آنها که در خارج از ایران هستند به خوبی فهمیدهاند ولی فکر نمیکنم آنها که در ایران هستند و کاری از دستشان ساخته است واقعا درک کردهباشند که مردم چه میخواهند. جدای از این موضوع که قبول کنیم دخالت رهبران دینی در سیاست یک اشتباه بزرگ هست یا نه، آن چه برای من آزاردهنده بود، ترسی بود که حس میکردم در میان ایرانیان وجود دارد. شاید به این خاطر بود که من یک خارجی بودم اما به هر حال وقتی در خیابان راه میرفتم یا در پارک قدم میزدم یا حتی پای تلفن صحبت میکردم، همیشه یک احساس ترس و نگرانی در میان مردم میدیدم. شاید به خاطر نبود اطمینان به آینده کشور بود. شاید هم یک احساس خیالی یا واقعی بود که همه کس و همه جا توسط حکومت کنترل میشود. من کاملا این احساس را پیدا کردم که افراد تنها در خلوت خانهشان احساس راحتی میکنند که از نارضایتیشان از وضع موجود بگویند. من نمیخواهم سطحینگری کنم. منظورم این است که ما میتوانیم در مورد تمایل مردم به تغییر چیزهایی مثل ولایت فقیه، یا نقش روشنفکران دینی یا خیلی چیزهای دیگر بحث کنیم. اما همه اینها یک نکته مهمی را کم دارد. متاسفانه مردم هم خستهاند و هم ترسیده. کسانی که من با آنها صحبت کردم همه نظرات خیلی عالی داشتند درباره این که مثلا چگونه سیستم حکومتی ایران باید عوض شود. اما اگر آنها نتوانند در این موارد در خارج از چهار دیوار خانهشان آشکار و علنی صحبت کنند، پس این تغییرات چگونه میخواهد آغاز شود؟ قصد داری دوباره به ایران سفر کنی؟ البته، من خیلی دوست دارم دوباره به ایران برگردم. این که چه موقع این اتفاق میافتد معلوم نیست. شاید سال بعد شاید هم دو سال دیگر. یکی برای ادامه تحقیقاتم و یکی هم خب وجه شخصی ماجراست که چون ایران رفتن را دوست دارم. اگر چه هر چه مربوط به کار باشد به نوعی مربوط به زندگی شخصی هم هست و برعکس. بر من با خواندن شعرهای فارسی چیزهایی آشکار میشود که بدون آن ممکن نیست. برای تجربه چنین چیزی کجا بهتر از خود همان جایی که این شعرها متولد شده؟ میخواهم بدانم به دوستان آمریکاییت درباره ایران چه میگویی؟ اگر بخواهی ایرانیها را برایشان توصیف کنی چه چیزی میگویی؟ من به آمریکاییها درباره ایرانیها چه میگویم؟ اگر هیچ چیزی در این همه سال از درس خواندن یاد نگرفتهباشم، باید اقرار کنم که این را یاد گرفتهام که هیچ وقت هیچ موردی را به جمع تعمیم ندهم و کلیشهسازی هم نکنم. البته این به این مفهوم نیست که نظرات و احساسی که از تجربه و مشاهداتم پیدا کردم را انکار کنم. این سفر به من فرصت تجربه چیزهایی را داد که شاید هرگز بدون آن فراهم نمیشد. برای همین تا جایی که میشد سعی کردم از فرهنگ ایرانی یاد بگیرم. من در این سفر خودم را در یک فرهنگی غرق کردم که کاملا برای یک آمریکایی بیگانه است. نه به این خاطر که آمریکاییها نمیتوانند آن را بفهمند بلکه به این دلیل که هیچگاه این فرصت برایشان فراهم نشده است. خیلیها میگویند که ایرانیها و آمریکاییها از بعضی لحاظ خیلی شبیه همدیگر هستند و این البته نتیجه تراژیک سیاستی است که این دو کشور را از هم دور نگاه داشته است. رفتن من به ایران من را به این نتیجه رساند که هر دو جامعه در تناقض زندگی میکنند. هر دو جامعه، در فرهنگشان بخشهایی دارند که به آنها اجازه میدهد دو چیز متفاوت و حتی متضاد نه تنها با هم زندگی کنند بلکه بر هم تاثیر مثبت هم بگذارند. طنز ماجرا هم اینجاست که شاید به همین دلیل رابطه سیاسی بین دو کشور غیرممکن به نظر میرسد. این که ایرانیها را چطور توصیف میکنم، فکر کنم من به دوستان آمریکاییم این را خواهم گفت که ایرانیها بسیار حساس و محترم هستند. گذشته ایران را حتما باید مدنظر داشت. یکی از دوستانم به تازگی از من پرسید که آیا ایران یک کشور پیشرفتهای است؟ من در جواب گفتم که بستگی به منظورش از پیشرفته دارد. مطمئنا ما در آمریکا آسمانخراشهایی داریم که هرگز مشابهش هم در ایران نیست. اما اگر منظور از پیشرفت درک بهتری از دنیا و طبیعت و بشر باشد، شاید بتوان گفت ایران یکی از پیشرفتهترین کشورهای دنیاست. چرا؟ به خاطر ادبیات و اشعارش. همه ایرانیان میتوانند دست کم یک شعر بخوانند که در آن پاسخ به فلسفیترین سوالهای زندگی نهفته است. این از نظر من پیشرفت است.
حالا مردی که از انتهای تمام داستانهای جنایی آغاز میشود
اثر انگشتانش
زیر لباسهای تو جا مانده است
آنجا که معمای اشکال هندسی
پیچیده میشود
باید جایی قاتل از خودم شروع می شد
از رج زدنی بیمعنا
و مشاورهیی که پزشک را جواب میکند
- او دچار توهم است،
توهمی مسهل
میگوید
چای آخر را که خورده است
لیوان را بوی سیگار و دندانهای زرد مرد گرفته بود
باید دوباره بنویسم
میدانم
به تمام شعرها روزی بر علیه خودم استناد میشود
اما من باید بنویسم
از آن روز
روزی که چاقویی تمام کلمات را درید
زخمی دهن گشود
-لبخندی کودکانه و شیطان بر لبان تو-
خون تو تمام کلمات را گرفت
و کلمات از تو شد
قاتل را شاید در سطرهای بعدی بتوانید بخوانید
اما من به این بازجوی سمج گفته بودم
گفته بودم که باید از مرجانها میپرسیدیم
آنها از راز دیوارهای آهک خبر دارند
از گورهای گروهی
و شاعرانی که هنوز
از شلیک دقیق واپسین گلوله مفتخرند
اما من به این بازجوی سمج گفته بودم
گفته بودم
که ما گول خوردهایم
آنجا که زمان دستکاری میشود
شاعر از احساس خدایی خود کیف میکند
گاهی فکر میکنم شعر
آن لحظهی بزرگ فراموشیست
که ما بیآینه از یاد میبریم
دستهایمان حتی
به سیب پستترین شاخه نرسیده است
شعر
آن لحظهی بزرگ است
که شاعر از احساس خدایی خود گول میخورد
اما باشد
دوباره مینویسم
از کجا باید؟
از انتهای تمام داستانهای جنایی؟
آنجا که خیابان را چشم بسته میگذرم
بیهراس تصادفی که اتفاق میافتد
هنوز
هر روز
همه روز
تصادفی بود
میدانم
اما قاتلی که همیشه آن روز سر قرار میآید
همان دختریست
که خطوط تمام دستها را بهم میریخت
و شبی
سرنوشت مرا
از انحنای کشیدهیی سر داد
که انتهایش را در دورترین اقیانوس گم کرده بود
کنار مرجانها و
آهکها
آنجا که خاطرات شلیکهای دقیق
در جمجمههای بیواژه تخم میگذاشت
باشد اقرار میکنم
اقرار میکنم که دوباره گند زدهام
ردپای قاتل در واژههای باران زده گم شد
و شعر
باز به جاهای باریک کشیده است
من بحثی مریض را با ثانیههای مرده آغاز کردهام
و شعر کلافه باز
از مردان هیز و شاعران حسود سر رفت
نباید این طور میشد
باید جایی کوچه دلقکهایش را جا گذاشته میپیچید
سماجت شکلکهای ذغالی
با امتداد دیوارها بیگانه میشدند
باید این معمای پیچیده
جایی در صراحت عریانیی تو حل میشد
اما ردپای قاتل
دوباره گم شده است
و جیغی که سراسر شب را گرفته است
وزن مریض شعرها را ول نمیکند
تعابیر را دور میزند
از دیوارها بالا میرود
-از واژههای سفت شده-
اما من چای آخر را تنها خوردهام
این را میتوانید از زیرسیگاری بپرسید
بیشک او ثانیهّهای تنها را شمرده است
یک
دو
سه
شعر هم گفته بودم آن شب
شاید یک
شاید دو
شاید سه
میدانم
به تمام شعرها روزی بر علیه خودم استناد میشود
اما من باز نوشتم
من گفته بودم
که دستهای من هیچ وقت به آن سوها نرسیده است
آخر پلی که وارونه میشود
هیچ وقت به آن سوها نمیرسد
باز میگردد
باز گشتهام به خودم
آنجا که شاعری دوباره شعرهای جویده میگوید
اقرار میکنم
ما گول خوردهایم
شما هیچ وقت قاتل را نمیخوانید
این یک دروغ موزون است
زیرا دختری که سکون دستهای بیفردا را
پر از تلاطم خطهای منحنی میکرد
روزی
از دستهای خط خطم
زیباترین شعرها را گرفته است
دختری که از ابتدای تمام داستانهای جنایی آغاز میشود
من چای آخر را تنها خوردهام
با بوی سیگار و
دندانهای زرد.
بابام گفت: دیگه کم کم باید بخاری ها رو روشن کنیم. هوا دوباره داره سرد می شه. پتو را روی پاهام انداختم و دستم را زیر چانه ام جا به جا کردم.. پس فردا این تمرینها را باید تحویل میدادم، پنجشنبه هم آن یکی گزارش آزمایشگاه را. - لعنت به من، لعنت به من که اومدم اینجا. یه روز به خودم میام، می بینم همه عزیزام اونور از دستم رفتن. لعنت به من. سرم را بیشتر توی کتاب بردم. - آخه اگه می موندیم تو اون خراب شده، آینده ی اینا چی میشد؟ نه پول داشتیم بفرستیمشون دانشگاه، نه اینکه وقتی شوهر میکردن و زن میخواستن میتونستیم از پسشون بر بیایم. خط های کتاب جلوی چشم هام محو می شدند. پشت صفحههای کتاب دو چشم تیلهای به من خیره شده بود که هیچ چیز نمی شد ازشان خواند. روی صندلیی چرخدار گذاشتندش و از لای میله ها ردش کردند. دیگر نه چشم های تیلهییاش را دیدم، نه رگهای دستش را که کلفت شده بود. دیگر بویش هم نمیآمد؛ بوی سیمان و خاک. گفته بودم: لعنت به من اگه گریه کنم. مادرم را دیدم که دویده بود جلوی پنجرهی گمرک، زانو زده بود و از زیر، به دری که چرخ را ازش هل داده بودند، نگاه میکرد. گفته بودم: لعنت به من اگه گریه کنم. دیگر معلوم نبود میدیدمش یا نه. انگار بدانی که دفعهی آخریست که کسی را می بینی. درست مثل وقتی که مرده را توی قبر می گذارند. - این راه برای ما که جوون هستیم سخته. چه برسه به این پیرمرد ۸۰ ساله. لعنت به من که اومدم اینجا. مادرم که از دوری ما دق کرد و مرد. حتی نرسیدم لحظهی آخر ببینمش. رفتم اونجا، خبر مرگش رو بهم دادن. - مگه مادر من از دوری من دیوونه نشد؟ آب مغزش خشک شد. دیوونه شد و وقتی هم که مرد حتی نتونستم برم خاکش کنم. جلویم یک عکس فسفولیپید بود و یک یون سدیم. دیگد صدایی نمیآمد. یاد مادرم افتادم که میگفت: اگه حداقل اینجا یه خواهر داشتم خیلی خوب می شد. حیف که خواهرام دست و پای زندگیی اینجا رو ندارن. سرعت ماشین هم زیاد و زیادتر میشد. نه میدانستم چه باید بهش بگویم. نه میتوانستم دهانم را باز کنم. اشکم در می آمد و به خودم گفته بودم: لعنت به من اگه گریه کنم. دوستم که تابستان رفته بود ایران می گفت که پدربزرگش را خانهی سالمندان گذاشته بودند. سکتهی مغزی کرده بود؛ نمی توانست حرف بزند، دست چپش هم فلج شده بود. دوستم میگفت: هر چی می شه فقط گریه می کنه. هر کی میاد، هر کی می ره. اون فقط گریه میکنه. لالی هم بد دردیست. تمام احساسات آدم تبدیل می شود به یک سری آ و اوی ناهنجار. دوباره چشمهای تیله ای جلوی چشمهام ظاهر شدند. کلاسهای تابستانی که تمام شده بود، دو روز برده بودمش تورنتو، خانهی خودم. برده بودمش جاهایی که فکر می کردم برایش جالب باشد. شبها هم بعد از شام از کتابهایی که جوانیش خوانده بود برایم تعریف میکرد. داستان امام حسین و امام علی. می گفت: بابا جان، من خیلی به تو زحمت دادم. اگه همهی نوه هام قدر تو دنیا رو بهم نشون داده بودن، اندازه ی ۱۵ سال دنیا گردی کرده بودم. لپهای استخوانیش را میبوسیدم و نمیدانستم چه جوابی بدهم. میگفتم: حاجی، دعا کن من دکتر بشم، پولدار بشم، میام می برمت تمام اروپا رو بهت نشون می دم. بادم می افتاد که امسال ۶ تا درس دارم و دو برابر همیشه باید درس بخوانم. اگر خیلی شانس می آوردم پنج سال دیگر دکتر می شدم. اگر زود کار گیر می آوردم و قرضها را هم زود میدادم، چند سال دیگر پولدار میشدم؟ می گفت: زنده باشی بابا جون. و با چشمهای تیلهییاش نگاهم می کرد. دیشب آخرین بار که بوسیدمش گفتم: حاجی، سال دیگه دوباره بیا. یا که من حتمن میام ایران. ایندفعه نوبت شماست منو بگردونی. گفت: به امید خدا. دو سال پیش هم همین موقع ها بود که اینجا بودند. با عزیزم. ولی دیگر عزیزم را ندیدم. گفتند آنقدر فشارش بالا رفته که رگهای مغزش ترکیده. با خودم میگفتم: مرگ یعنی چی؟ یعنی چی که کسی یه دفعه بمیره؟ پس وجودش چی می شه؟ فلسفه خوندم. بیشتر گیجم کرد.. آن شب برایش آهنگ سونات مهتاب بتهوون را گذاشته بودم. گفتم: حاجی آهنگ کلاسیک دوست داری؟ گفت: من همه چی دوست دارم جز ملا. بعد هم از جوانیش برایم تعریف کرد که چطور ده سالش بوده از دهات آمده تهران. چطور کارگری کرده و درس خوانده و برای مادرش توی ده گوسفند خریده. بعد هم گفت چطور سلطان، دختری که عاشقش بوده، را بهش ندادند. براش ویولونم را آوردم و گفتم چه جور دستش بگیرد. آرشه را ناشیانه روی سیمها میکشید و با انگشتهای کلفتش نتها را می گرفت. صدای تلویزیون را زیاد کرد و شروع کرد با آهنگ ریتم گرفتن. حتی حس کردم سعی دارد هم ساز بزند و هم برقصد. خسته که شد روی مبل نشست و گفت: اگه جوون بودم هم مزقون یاد می گرفتم، هم انگلیسی. گفتم: حاجی هنوز دیر نیست. باز هم با چشمهای تیلهییاش خیره ماند.، حالا حتمن تهران است. همه آمدهاند فرودگاه دنبالش. بعد هم می برندش خانه. چمدانها باز می شود و هر کسی سوغاتیهاش را بر میدارد. یگ روز پیشش هستند و بعد....دلم نمیخواهد بدانم بعدش چه کار می کند. صبح ها بلند می شود، میرود پارک قدم میزند. برای دخترهایش نان می گیرد و ناهار درست می کند. چرتی می زند. نمازش را بلند بلند می خواند و بعد هم هر چه تلویزیون نشان داد نگاه می کند تا شب. دلم نمی خواهد بدانم.
اوایل عکس هایش را به همه نشان می داد. به خصوص آن دو عکسی که فرید تویشان بود. یکی کنار تانک، تفنگ به دست و آن یکی روی خاکریز، نشسته در کنار یک آر پی جی ۷. عکس ها احساس خوبی بهش می دادند. از ژست خودش کنار تانک در حالی که تفنگ را رو به هوا در دست راستش گرفته بود خوشش می آمد. درست مثل فیلم های جنگی توی تلویزیون شده بود. لباس خاکی نیروی زمینی با فانوس قه پهنی که دو طرفش یک قمقمه و یک خشاب آویزان بود، روی تنش خیلی خوب نشسته بود. لبخند فرید جلوهی بیشتری به عکس می داد. همیشه فکر کرده بود فرید خیلی خوش تیپ است. دوستش داشت. با هم رفته بودند سربازی. با هم دیگر هم تصمیم گرفته بودند برای رفتن به جبهه داوطلب شوند. هم محلی بودند. هر وقت به عکس ها نگاه می کرد سال های دبیرستان به یادش می آمد، وقتی با فرید بیرون کتابخانه زیر آفتاب گرم اردیبهشت روی چمن پارک محل می نشستند و در حالی که انگشتش را لای کتابش نگه می داشت تا صفحه را گم نکند ساعت ها با هم از هر دری گپ میزدند. یادش می آمد که هیچ وقت با کتابخانه رفتن درس نمی خواندند و همیشه مجبور می شدند شب را تا صبح بیدار بمانند تا با یک نمرهی ناپلئونی قبول شوند. از این فکر خنده اش گرفت. با صدای بلند خندید. به همین خاطراز عکس روی خاکریز خوشش می آمد. جوری که با فرید روی خاکریز نشسته بودند روزهای پارک و نشستن روی چمن جلوی کتابخانه را به خاطرش می آورد. لوله گرد و یقر آر پی جی ۷ با دهانهی بزرگش احساس خوبی به او می داد. توی عکس دستش را روی لوله ی آر پی جی ۷ گذاشته بود. احساس قدرت و مردی بهش می داد گرچه حتی یک بار هم از آن استفاده نکرده بود.
اوایل عکس ها را به همه نشان می داد. خیلی عکس داشت. تا مدت کوتاهی پس از پایان جنگ دوران خوشی داشت. جزو آخرین دسته هایی بود که بعد از اتمام جنگ بر می گشتند. موقع بازگشت توی قطار احساس بزرگی و غرور می کرد. درست مثل قهرمان های فیلم های جنگی. دوربین های نامریی را تصور می کرد که از زوایا و با ژست های مختلف از او، با چهره ای خسته و لباس های خاکی و سر باند پیچی شده، فیلم می گرفتند. سرش باند پیچی نبود. سر و صورت و لباس هایش هم تمیز بودند. توی قرارگاه دزفول حمام حسابی کرده بودند. سناریوی مورد علاقه اش صحنهی پیاده شدن از قطار بود، در میان خیل جمعیتی که مشتاق و سر کشان، بعضی با چشمان گریان، به استقبال آمده بودند و او و همراهانش را مثل قهرمانان ملی در آغوش می کشیدند. توی فیلم های جنگی همیشه همینطور دیده بود. این سناریو را توی ذهنش تکرار کرده بود مخصوصن از زمانی که خبر دار شده بود قطعنامهی صلح امضا شده و به زودی برخواهند گشت. به ایستگاه که رسیده بودند دستههای پراکندهی هفت هشت نفری را دیده بود که هر کدام منتظر یک نفر بودند و بعد از انکه سربازشان را پیدا می کردند دوره اش می کردند و پس از چند دقیقه هر دسته ای به طرفی پراکنده میشد. خانوادهی خودش را دیده بود. چشمش اول دنبال خواهر کوچکش گشته بود. خواهرش را خیلی دوست داشت. پدرش نبود. هنوز با او قهر بود. از زمانی که برخلاف رای پدرش درسش را نا تمام گذاشته و برای جبهه داوطلب شده بود، دیگر با او حرف نزده بود.
آن روزها همه به دیدنش می آمدند - فامیل، دوستان، همه. عکس هایش را به همه نشان می داد. برای هر کدام داستانی داشت. برای زن ها داستان ساختن زیاد سخت نبود. کافی بود بگوید وزن تفنگش چهار کیلو و نیم بوده و مجبور بوده با آن بدود. ابروهایشان بالا می رفت و با نفس های کوتاه ناگهانی صدای نازکی تولید می کردند که حاکی از محبت و تعجب شان بود. از این احساسات زنانه خوشش می آمد. به او احساس گرمی می داد. بهترین شان زمانی بود که عمه ها و خاله هایش قربان صدقه اش می رفتند و نوازشش می کردند. احساس گرم و رضایت بخشی بود و دوست داشت آن را به هر قیمتی بیشتر و بیشتر تجربه کند. میان مردها فرق می کرد. از بمباران های انبوه می گفت و شلیک آر پی جی ۷ و رگبار آتشبار. مردها از این داستان ها زیاد شنیده و دیده بودند و زود اعتماد نفسش را از دست می داد. از این حالت خوشش نمی آمد. داستان هایش را می ساخت تا به قهرمان ذهنش جان دهد، تا او را باور کند و به بقیه بباوراند. حالا آن هم دیگر تفریحی نداشت. از داستان ساختن متنفر بود. از دروغ گفتن بیزار بود. حالش را به هم می زد.
یاد گرفته بود که همه به رسم وظیفه به دیدنش بیایند. دیدنی ها به زودی تمام شد و زندگی دوباره ادامه داشت. اگر در جنگ کشته شده بود حتما وظیفه شان را جدی تر میگرفتند. آرزو می کرد که کشته شده بود. آنوقت شهید بود -- قهرمان ملی. آنوقت همیشه توی ذهن مردم و خانواده اش می بود. برایش ختم می گرفتند، سوم و هفتم، چهلم، سالگرد می گرفتند. و بعد... بعد همه چیز تمام می شد. زندگی دوباره ادامه داشت. با اینحال شهرت نیست بودن را بیشتر از گمنامی وجود دوست داشت. به یاد فرید افتاد و پلاک سر کوچه: کوی شهید فرید کرمانی. هر روز موقعی که خواهر کوچکش را از مدرسه می آورد به پلاک سر کوچه نگاه می کرد. خاطره ی فرید در متن تنهای کوچه مثل هوای سنگین ظهر تابستان، نزدیک به سطح زمین، معلق بود. حتی خانه شان هم دیگر نبود. برادر بزرگ فرید سال ها بود که آمریکا بود. پدر و مادرش خانه شان را فروخته بودند و به زودی به همراه خواهرش به آنجا می رفتند. بچه های روزهای دبیرستان هم همه رفته بودند، ازدواج کرده بودند، شغل و پست داشتند، مهاجرت کرده بودند. فقط مانده بود او و فرید که روی پلاک سر کوچه بود و نامش تنها در کتابچه های مردمی تکرار می شد که به هم نشانی می دادند. فرید جزئی از نشانی شهر شده بود. آدرسشان را دوست داشت: کوی شهید فرید کرمانی پلاک ۷۹. اما هنوز دلخوشی هایی داشت. خواهر کوچکش بود. بردن و آوردن خواهر کوچکش به مدرسه بزرگترین دلخوشی اش بود. وقتی دست های کوچک و لطیفش را توی دستش می گرفت احساس منزهی به او دست می داد. دوست داشت توی راه به حرف های کودکانه اش گوش دهد. سر راه فرید هم بود. می توانست در حالی که دست خواهر کوچولویش را در دست دارد به اسم فرید نگاه کند و این برایش کافی بود. آرزو می کرد می توانست تا آخر عمر دست خواهر کوچکش را بگیرد و به مدرسه ببرد و توی راه به اسم فرید نگاه کند.
سرگرمی های دیگری هم داشت. دوست داشت مردم را نگاه کند. صبح ها بعد از رساندن خواهر کوچکش به مدرسه روی نیمکت ایستگاه اتوبوس یا دیوار سنگیی کوتاه پارک مینشست و مردم را تماشا می کرد. از وقتی برگشته بود همه چیز عوض شده بود. دخترها و پسرها خوشگل تر شده بودند و بی پروا تر، ماشین ها نو تر، مغازه ها پر زرق و برق تر، پر از اجناس رنگ وارنگ. با این که ۲۸ سال بیشتر نداشت احساس پیری می کرد. جوانترها شیک پوش بودند. فکر کرد از مد سر در نمی آورد. سلیقه اش را نداشت. از توان فکری اش خارج بود. اما دوست داشت روی دیوار سنگی کوتاه پارک بنشیند و دخترها و پسرهای شیک پوش را تماشا کند. می دانست که نمی خواهد و نمی تواند با دخترها و پسرهای شیک پوش، با سرنشین های ماشین های نو، با مردم توی مغازه های پر زرق و برق اختلاط کند. چیزی به او احساس بیگانه بودن می داد. فقط دوست داشت بنشیند و تماشایشان کند. چند ساعتی به این منوال می گذشت و آنوقت به خانه برمی گشت و توی اتاقش روی تخت رو به پنجره در آفتاب می نشست و صفحات کتاب جنگ های هفتصد سالهی ایران و روم را ورق می زد. کتاب را از یک حراجی دست دوم خریده بود و حتی اسم نویسندهاش را هم نمی دانست با آن که بارها چشمش به آن خورده بود. اما کتاب مورد علاقهاش بود. نوعی احساس حماسی به او می داد. مدت ها به تصور سرداران قهرمان روی اسب های آذین بسته می پرداخت تا بوی خوش غذای مادرش او را به خود می آورد.
امروز هم مثل همیشه خواهرش را به مدرسه برده بود، به فرید نگاه کرده بود، مردم شیک پوش و ماشین های نو را تماشا کرده بود و حالا که کتابش را روی زانویش داشت، کم کم بوی غذای مادرش به مشامش می رسید. کتاب را روی تخت بست و به آشپزخانه رفت. مادرش پشت به او پای دستشویی چیزی می شست. پشت میز نشست و تکه روزنامهی قدیمی را که زرد رنگ شده بود جلویش باز کرد، بی آن که آن را بخواند. مادرش دستش را با حوله خشک می کرد. از نیمهی صورتش معلوم بود که گریه می کرده. مادرش به سمت او چرخید. نگاهش را تند روی روزنامه انداخت. حوصله و طاقت دیدن دوبارهی اشک مادرش را نداشت. مادرش رو به روی او پشت میز نشست.
- می خام باهات حرف بزنم.
- راجع به چی؟
نگاهش هنوز روی روزنامه بود.
- راجع به چی؟ خودت می دونی راجع به چی. به من نگاه کن سعید. مگه تو مادرت و دوست نداری؟
- چرا سر و سامونی به زندگیت نمی دی؟
- سرو سامون...
نگاهش همچنان روی روزنامه بود.
- چرا دنبال کاری نمی ری؟ این همه کار برای رزمنده ها درست کردن. تو هم که داوطلب بودی. یا اقلا چرا از سهمیه ی رزمندگی استفاده نمی کنی و دانشگاه نمی ری؟ آخه کاری، درسی، چیزی مادر.
- تو می دونی من اهلش نیستم.
می خواست به مادرش بگوید که دلخوشی اش خواهر کوچکش است و فرید. میخواست به او بگوید که جز اینها هیچ چیز برایش مهم نیست. می خواست بگوید همین برایش تا آخر عمر کافی است. چیزی جلوی حرف زدنش را می گرفت. از گفتن عاجزبود.
- خوب اگر اهلش نیستی لا اقل بیا برات زن بگیریم و وایسا بغل دست بابات توی بازار. پدرت دیگه از دستت عصبانی نیست. غرورش اجازه نمی ده پیش تو بیاد. توقع داره تو بری پیشش و سر حرف و باز کنی. خودش چند وقت پیش از من می پرسید چرا سعید گاهی ماشین و بر نمی داره بیرون بره. باهاش کنار بیا تا اونم دستتو بگیره. برات دختر پروین خانوم و در نظر گرفتیم. خیلی دختر خوبیه. سعید یه کاری با زندگیت بکن.
می دانست پدرش پیشنهاد ماشین را نداده بود. می دانست مادرش سعی در نزدیک کردن او و پدرش داشت. می خواست به مادرش بگوید با ماشین یا بی ماشین، کار یا بی کاری برایش اهمیتی ندارد. می خواست به مادرش بگوید که هیچ احساسی به دختر پروین خانوم یا حتی دخترهای شیک پوش خیابان ندارد. می خواست به او بگوید که دوست دارد همه را تماشا کند اما نمی خواهد از خواهر کوچکش و فرید دور شود. حالا مادرش با صدای بلند گریه میکرد. از این حالت متنفر بود. از خودش متنفر بود. بلند شد و مادرش را بغل کرد.
- قول می دم مادر، قول میدم. تو رو خدا گریه نکن.
- قول می دی اقلا یه کاری با زندگیت بکنی؟ به خاطر من؟
- قول می دم.
مادرش لبخندی زد.
- برات ناهار بکشم؟
- نه. می رم مریم و از مدرسه بیارم.
توی راه مدرسه به فکر قولش بود. خوشحال بود که دیگر مجبور نیست گریه ی مادرش را ببیند، لا اقل برای یکی دو روز. می دانست که بارها و بارها قول خواهد داد. دلخوشی هایش را بیشتر دوست داشت. توی ذهنش می دانست که می خواهد برای همیشه خواهر کوچکش را به مدرسه ببرد و دستان کوچک و معصومش را توی دستش حس کند. می دانست که می خواهد به اسم فرید نگاه کند.
مقاومت در برابر حجاب: درس هایی از یک انقلاب (:) عنوان مقالهای است که در بخش هنر و فرهنگ اولین شماره مجله کانادایی به چاپ رسیده است. نویسنده این مقاله، خانم مارگارت آتوود ()، نویسنده و شاعر موفق کانادایی است. وی که ۶۴ سال سن دارد، در طول بیش از سی سال نویسندگیاش، جوایز و مدارک افتخاری زیادی را کسب کرده است که تازهترین آن، جایزه معتبر در سال ۲۰۰۰ برای رمان میباشد. استعداد شگرف او در به تصویر کشیدن مشکلات جهانی سبب شده که آثار او به بیش از سی زبان دنیا از جمله فارسی، ژاپنی و ترکی ترجمه شوند. علاقهمندان به آثار وی همچنین یک گروه بینالمللی متشکل از نخبگان، معلمان و دانشآموزان با نام وی تاسیس کردهاند.
خانم مارگارت آتوود در این مقاله بر آن است که به بررسی سه کتاب اخیر از سه نویسنده ی زن ایرانی بپردازد. اما برای آن که خواننده غربی بتواند فضای حاکم بر این سه کتاب را بهتر درک کند، در ابتدا به دو نکته به عنوان پیش زمینه میپردازد. نخست آن که جهان غرب هیچ گاه تصویر درستی از خاورمیانه در اختیار نداشته و همان اندک دانسته ها را نیز به مرور زمان از یاد برده است و تنها امروز پس از حادثه یازده سپتامبر، توجهش دوباره به خاورمیانه معطوف شده است. دیگر آن که از آنجایی که هر سه کتاب در فضای تاریخ ایرانی نوشته شدهاند، خواننده باید بداند که گرچه ایران بخشی از جهان اسلام است، اما از جهاتی با سایر کشورهای اسلامی متفاوت است. در این راستا، نویسنده نگاهی گذرا به تاریخ جهان اسلام از آن زمان که جهان اسلام مرکز تمدن جهان بود، تا بعدها که پیشرفت و مدرنیته در مقابله با سنت قلمداد شدند، میاندازد و در نهایت به مرور کوتاهی از تاریخ معاصر ایران از زمان به کار آمدن رژیم پهلوی تا ظهور خمینی میپردازد. پس از این دو مقدمه طولانی، به معرفی سه کتاب اخیر نویسندگان زن ایرانی میپردازد که همه درباره بازه تاریخی مشترکی - از حوالی انقلاب تا چند سال پس از انقلاب - نگاشته شده اند. پرسپولیس: حکایت یک کودکی (:) گرچه به ظاهر سرگذشت دختری از نوادگان آخرین شاه قاجار است که خود از جمله مبارزان علیه رژیم پهلوی بوده است، اما در حقیقت تصویری از زندگی یک خانواده در سالهای پیش و پس از انقلاب است. لولیتا خوانی در تهران: خاطرات در میان کتاب ها (:) نیز زندگینامه دختری است که پس از اتمام تحصیلات در رشته ادبیات غرب؛ برای تدریس به ایران برمی گردد. این تدریس بعدها در گروه های خصوصی در منزل وی دنبال می شود و ادبیات غرب در عمل مظهری از چند صدایی میشود که در جامعه تک آوای آن روز، وجود ندارد. گرمابه () داستان زندگی یک زن از خاندانی سیاسی است که به زندان می افتد، و در نهایت فرار میکند. داستان نگاه نزدیکی است از آنچه که در بند زنان زندان میگذشته است. به نظر نویسنده مقاله، هر سه کتاب حاوی نکات مشترکی درباره وضعیت زنان پس از انقلاب و برخورد غیر منطقی حاکمیت با روابط بین زن و مرد در جامعه است. نویسنده در نهایت به این برداشت کلی از سه کتاب می رسد که در ایران نیز، مانند برخی دیگر از کشورهای مسلمان و غیر مسلمان، مذهب دست آویزی است برای قدرت.
از انجمنها چه خبر...
گردهمایی وبلاگنویسان فارسیزبان تورنتو دراول اکتبر در رستوران برگزار شد.
انتخابات انجمن دانشجویان ایرانی دانشگاه تورنتو که قرار بود روز ۹ اکتبر برگزار شود به دلیل استقبال کم دانشجویان ایرانی دانشگاه به زمانی دیگر موکول شد.
کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو و جمعی از دانشجویان دانشگاه های تورنتو در دو نامه جداگانه (۱ و ۲) کسب جایزه صلح نوبل را به خانم شیرین عبادی تبریک گفتند.
از فیلم و تلویزیون چه خبر...
کانال تلویزیونی فیلم مستند ایران، پشت حجاب ساخته تری میشل کارگردان بلژیکی را در روز۶ اکتبر نمایش داد.
کانال تلویزیونی فیلم سینمایی بدون دخترم هرگز را درروز ۲۰ اکتبر پخش کرد.
فیلم سینمایی سکوت ساخته محسن مخملباف توسط کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو در این دانشگاه در روز۲۲ اکتبر به نمایش درآمد.
جعفر پناهی که امسال از او فیلم طلای سرخ در جشنواره فیلم تورنتو به نمایش درآمد در میزگردی در دانشگاه تورنتو در روز ۱۱ سپتامبر به سوالات دانشجویان پاسخ گفت. امسال، در جشنواره تورنتو از ایران چهار فیلم ابجد به کارگردانی ابوالفضل جلیلی، ساعت پنچ بعدازظهر به کارگردانی سمیرا مخملباف، طلای سرخ به کارگردانی جعفرپناهی و سکوت بین دو فکر به کارگردانی بابک پیامی حضور داشتند.
از سخنرانی چه خبر...
دکتر آذر نفیسی، استاد دانشگاه جان هاپکینز و نویسنده کتاب لولیتاخوانی در تهران در روز شنبه ۲۳ اکتبر به دعوت کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو برای دانشجویان سخنرانی کرد. وی که برای حضور در جشنواره نویسندگان به تورنتو دعوت شده بود در روز ۲۴ اکتبر نیز در به زبان انگلیسی صحبت کرد. در روز ۱۹ اکتبر در روزنامه تورنتواستار مقالهای درباره کتاب اخیرآذر نفیسی منتشر شد.
آقای مهرداد صمدزاده در سه جلسه درجلسات گروه نگاه درباره انقلاب مشروطه سخنرانی کرد. جلسات گروه نگاه هر دو هفته یک بار جمعه ها ساعت ۶: ۳۰ بعدازظهر برگزار میشود.
دکتر هوشنگ شهابی، استاد دانشگاه بوستون، در تورنتو درباره پوشش زنان و کلاه مردان در دوران رضاخان سخنرانی کرد. وی صحبتش را به زبان انگلیسی در دانشکده خاورمیانهشناسی و به زبان فارسی در جمع دانشجویان ایرانی ارایه کرد.
از سیاست چه خبر...
انتخابات نمایندگان مجلس ایالت انتاریو برگزار شد. در این دوره هیچ نامزد ایرانی حضور نداشت. تاکنون تنها دوبار در سال های گذشته دو ایرانی در این انتخابات از طرف احزاب نامزد شدند که هیچ کدام موفق به وارد شدن به مجلس نشدند.
یک گروه از نمایندگان مجلس کانادا به ریاست استاک ول دی، برای گفتوگو پیرامون مشکلات بین ایران و کانادا درباره مرگ زهرا کاظمی در روز ۱۹ اکنبر وارد ایران شدند و در یک دیدار دوروزه با مقامات ایرانی به صحبت پرداختند.
سفیر کانادا در ایران، که چهار ماه پیش در اعتراض به نحوه برخورد دولت ایران با مرگ زهرا کاظمی این کشور را ترک کرده بود، در اوایل ماه اکتبر به تهران بازگشت.
از آینده چه خبر...
بمناسبت صدمین سالگرد تولد صادق هدایت، برنامه ای (فایل) در روز یکشنبه ۲ نوامبر، با حضور دکتر هما کاتوزیان، دکتر رضا براهنی، دکتر نسرین رحیمیه و دکتر محمود توکلی در دانشگاه تورنتو، ساختمان، اتاق ۲۰۵ برگزار میشود. دانشکده خاورمیانهشناسی و کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو برگزارکنندگان این مراسم هستند.
در روز چهارشنبه ۱۲ نوامبر با عنوان از ساعت ۱۱: ۳۰ تا ۲ بعدازظهر برگزار میشود. این برنامه که با همکاری کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو برگزار میشود شامل نمایش پوسترهای مختلف و اجرای موسیقی، رقص و نمایشنامه خواهد بود. هدف اصلی این مراسم آشنایی دانشجویان غیرایرانی با فرهنگ وهنر ایرانی است.
در جلسات گروه نگاه، در روز ۷ نوامبر خانم سیمین فصیحی درباره تجدد بومی و انقلاب مشروطه و در روز ۲۱ نوامبر آقای دکترمحمد توکلی درباره کتابی که باعنوان تجدد بومی منتشر کردهاند صحبت خواهند کرد. جلسات گروه نگاه هر دو هفته یک بار جمعه ها ساعت ۶: ۳۰ بعدازظهر در اتاق ۴۴۲۲ ساختمان برگزار میشود.
نمایشگاهی از کاریکاتورهای آقای نیکآهنگ کوثر در اواخر ماه نوامبر در گالری آرتا در تورنتو برگزار میشود.
به هنگام مکالمه به زبان انگلیسی از کدام یک از دو واژهی فوق برای اطلاق به زبان فارسی استفاده میکنید؟ آیا برای انتخاب خود دلایل روشنی دارید؟
بدون شک کاربرد واژهیِ در دو دههی اخیر و به ویژه در چند سال گذشته رشد روزافزونی داشته است، چه در میان ایرانیان مقیم آمریکایِ شمالی و چه در میان غیر فارسی زبانان. اما زبان شناسان ایرانی مقیم آمریکایِ شمالی، بر حسب اطلاع نگارنده، به اتفاق واژهی را ترجیح می دهند. (یارشاطر [۱] ۱۹۹۲، قمیشی [۲] ۱۹۹۶، تلطف [۳] ۱۹۹۷). دلایل اصلییِ این انتخاب به زعم نگارنده به قرار زیر است:
کاربرد واژهی در متون غربی برای اطلاق به زبان فارسی قدمتی دیرینه دارد، به طوری که صورتهای قدیمیتر زبان فارسی یعنی فارسییِ باستان (تا حدود قرن سوم قبل از میلاد) و فارسییِ میانه (قرن سوم قبل از میلاد تا قرن نهم میلادی) به ترتیب و نام گرفتهاند. فارسییِ نوین که بیش از هزار سال عمر دارد زبان شاعران شهیری چون مولوی، خیام، حافظ و فردوسی است. زبان این بزرگان در متون انگلیسی از چند صد سال پیش به عنوان شناخته شده است. واژههای و برای اطلاق به ادبیات و شعر فارسی کاملا جا افتادهاند. با به کار بردن واژهی این زبان از پیشینهی تاریخیاش جدا میشود، گو این که زبانی است نوظهور [۴]. گذشته از این، زبان فارسی علاوه بر این که زبان رسمییِ کشور ایران است، یکی از زبانهای اصلییِ دو کشور دیگر منطقه یعنی افغانستان و تاجیکستان میباشد. اختیار سه واژهی متفاوت برای اطلاق به این سه گونهی زبانی، شنونده را دچار این باور غلط می کند که این سه، زبانهایی متفاوت هستند. در حالی که سخنوران این سه گونهی زبانی کلام یکدیگر را درک می کنند و به این لحاظ این از دیدگاه زبان شناسی اینها به عنوان سه گویش زبان فارسی شناخته شدهاند. فارسی () را برای اطلاق به زبان ایرانیان به کار میبرند و برای فارسی سخنوران افغان و تاجیک به ترتیب واژههای فارسییِ دَری () و فارسییِ تاجیکی () استفاده میشود.
این که یک کشور به لحاظ پیشینهی تاریخی نام یک زبان را به یدک می کشد پدیدهی غریبی نیست. به عنوان نمونه زبان انگلیسی زبان مردم انگلستان و همچنین مردم کشورهای امریکا، کانادا، استرالیا و... میباشد و یا اسپانیولی () زبان مردم اسپانیا، آرژانتین، کلمبیا و... میباشد. از طرف دیگر استفاده از واژههای متفاوت برای اطلاق به یک زبان در زبانهای مختلف امری عادی است. نمونهها بیشمارند! آیا تا به حال شنیدهاید که یک فرانسوی زبان به هنگام مکالمه به زبان انگلیسی، زبان مادریاش را (به جای) معرفی کند و یا یک آلمانی زبان، زباناش را (به جای) بنامد؟ چه تفاوتی بین زبان فارسی و این زبانها وجود دارد؟ چرا با به کار بردن واژهی این زبان را به یک زبان محلی تقلیل دهیم و پیشینهی تاریخیاش را منکر شویم؟
نکتهی آخر این که واژهی معادل انگلیسی ی واژه ی فارسی است: معادل فارس است که پسوند معادل پسوند صفتساز (یا نسبییِ) فارسی، -ی، به انتهای آن افزوده شده است [۵]. طبیعی است که به هنگام مکالمه به زبان انگلیسی ترجیح بر این است که از واژههای انگلیسی استفاده کنیم: برای کتاب، برای میز و برای فارسی.
۱- احسان یارشاطر، زبانی نوظهور، ایران شناسی، سال چهارم، شماره ۱، بهار ۱۹۹۲
۲- ژیلا قمیشی، مقدمه، مجلهی زبان شناسی کانادا، شماره ویژهی نحو زبانهای ایرانی، شماره ۴۶ (۱/۲) سال ۱۹۹۶
۳- کامران تلطف، یا، تارنمای ایرانیان، ۱۹۹۷
۴- اشاره به عنوان مقالهی احسان یارشاطر
۵- پیشینهی تاریخی پسوند نسبییِ -ی مورد نظر نمیباشد.
در تاریخ یکشنبه، ۲ نوامبر ۲۰۰۳، برنامهای ویژهی صادق هدایت توسط بخش تمدنهای خاورمیانه، تاریخ، گروه نگاه و کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو در دانشگاه تورنتو برگزار گردید.
شرکت کنندگان نه چندان زیادی در این برنامه حضور یافته بودند. شرکت کنندگانی که هر کدام عرض حال نسل ها و قشرهای مختلف جامعهی ایرانی خارج از کشور را در بر داشتند. به خصوص حضور چند فرد غیر ایرانی در این هم نشست بسیار غریب مینمود.
ولی در پس ذهن تکتک آنها تنها یک چیز بود: شناخت بیپایان صادق هدایت.
بیش از پنجاه سال از مرگ صادق هدایت، داستان نویس و خالق بوف کور میگذرد؛ و همچنان نبوغ، حساسیت و تیز بینی وی قابل بحث و تقدیر است.
سخنرانان این برنامه را خانم ها نسرین رحیمیه و مارتا سیمیدچیوا و همچنین آقایان محمد توکلی، هما کاتوزیان، مایکل بیرد و رضا براهنی تشکیل میدادند.
- گزاری بر خلاصهی برخی از صحبت سخنرانان:
در این برنامه تمرکز گفتار محمد توکلی - بخش تاریخ و تمدن های خاورمیانه، دانشگاه تورنتو - پیرامون شرایط تاریخی حاکم در ایران در سال های ۱۳۰۰ و ۱۳۱۰ ه. ش. که میتوانسته اند ذهنیات هدایت جوان را بنیاد کنند، میگردید. در آن دورهی تاریخی تلاش برای تجدید عظیم باستانی پسِ ذهن جمعیت روشنفکر ایرانی را اشغال کرده بود؛ و به این سبب زبان فارسی و نژاد ایرانی دو عنصر مهم برای ایرانیان بوده اند.
در آثار نخستین هدایت نیز این دلتنگی برای باز یافتن ایران باستان و نژاد پاک آریایی بدیهی است.
هما کاتوزیان - هیات شرق شناسی از دانشگاه آکسفورد - به نقش شخصیت زن در آثار هدایت گردید. در بیشتر آثار هدایت شخصیت زن تنها به دو صورت فرشته یا لکاته نمایان می شود. فرشته تصویر ماورای طبیعی زن کامل است؛ همچون زن اثیری در «بوف کور» که همیشه موجودی دست نیافتنی بوده است. در مقابل فرشته، لکاته نمونهی بارز زن بیوفا است که وجود فرشته را با وهمی باطل در کالبد می کشد و او را زمینی می کند. شخصیت مرد، مستاصل از دست نیافتن به فرشته و گرفتار لکاته، عاشق تصویر فرشته در خیالات خود می گردد. داستان هایی از قبیل عروسک پشت پرده، تجلی، صورتکها و در راس همه بوف کور، همگی چنین ذهنیتی از شخصیت زن در نگاه هدایت را تثبیت می کنند.
نسرین رحیمیه - ادبیات تطبیقی و انگلیسی از دانشگاه آکسفورد - در مورد ترجمه های آثار کافکا به فارسی توسط هدایت و همچنین تاثیر کافکا بر هدایت صحبت نمود. بدون شک با بررسی ترجمه های کافکا، و به خصوص پیام کافکا، بیشتر می توان شخص هدایت را شناخت. اهمیت آشنایی هدایت با آثار کافکا و مسحور گشتن وی به آثار کافکا در این است که هدایت با آشنایی و شناخت کافکا، مدرنیسم را وارد ادبیات ایران نمود.
از انجمنها چه خبر:
انتخابات انجمن دانشجویان ایرانی دانشگاه تورنتو در تاریخ ۱۳ نوامبر با حضور حدود ۸۰ تن از دانشجویان ایرانی برگزار شد. در این انتخابات افراد زیر انتخاب شدند.
دبیر: سینا آقایی
معاون دبیر: فرانک فرزاد
خزانهدار: الهام ذوالقدر
منشی: مهرآفرین حسینی
سخنگو: آرمیتا آذری
مشاور: اشکان مبینی، اردلان
مسوول تبلیغات: نیما نخعی، مهرنوش اعظم
مسوول ورزش: روزبه ترمهای، پوریا کنوزی
گردهمایییِ انجمن فارغ التحصیلان و اساتید دانشگاه صنعتی شریف (آریامهر سابق) شاخهی انتاریو در ۲۷ نوامبر در هتل شرایتون برگزار شد. گردهمایییِ سراسرییِ این انجمن در ماه اوت سال آینده در آلمان برگزار میشود.
هارت هاوس () و کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو در ۱۲ نوامبر برنامهای با عنوان رنگ های ایران () در هارت هاوس از ساعت ۱۱: ۳۰ تا ۲ بعدازظهر برگزار کردند. این برنامه شامل ناهار ۵ دلاری، اجرای موسیقی، رقص و آواز ایرانی و نمایش پوستر بود.
از فیلم و تلویزیون چه خبر:
کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو ۱۰ نوامبر فیلم پارتی ساختهی سامان مقدم و ۲۵ نوامبر فیلم قطعهی ناتمام ساختهی مازیار میری را در دانشگاه تورنتو به نمایش گذاشت.
انجمن دانشجویان ایرانییِ دانشگاه تورنتو در اولین فعالیت خود در سال جدید، فیلم نان، عشق و موتور ۱۰۰۰ ساختهی ابوالحسن داوودی را در دانشگاه تورنتو به نمایش گذاشت.
فیلم ۱۱، ۰۹، ۰۱ (یازده سپتامبر) از جمعه ۱۵ نوامبر در سینماهای کارلتون و هامبر به روی پرده رفت. یکی از یازده اپیزود این فیلم را سمیرا مخملباف کارگردانی کرده است.
از سخنرانی چه خبر:
در جلسات گروه نگاه، در روز ۷ نوامبر خانم دکتر فصیحی در مورد ارکان سه گانه مدرنیته در ایران ناصری و در روز ۲۱ نوامبر، آقای دکتر محمد توکلی پیرامون کتاب خود با عنوان تجدد بومی و بازاندیشییِ تاریخ صحبت کردند.
به همت کانون دانشجویان ایرانییِ دانشگاه رایرسون پروفسور فضل اللهِ رضا در روز ۱۲ نوامبر دربارهی هویت ملی و نگاه به شاهنامه در دانشگاه رایرسون به سخنرانی پرداخت.
سمپوزیوم صد سالگییِ صادق هدایت (فایل) در روز ۲ نوامبر از ساعت ۱ تا ۶ بعدازظهر به همت دانشکدهی خاورمیانه شناسی و تاریخ دانشگاه تورنتو و با همکارییِ کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو برگزار شد. در این برنامه دکتر محمد توکلی از دانشگاه تورنتو، دکتر نسرین رحیمیه از دانشگاه مک مستر، دکتر هما کاتوزیان از دانشگاه آکسفورد، دکتر مایکل برد از دانشگاه نورث داکوتا، دکتر مارتا سیمیتچویا از دانشگاه یورک و دکتر رضا براهنی از دانشگاه تورنتو سخنرانی داشتند.
به همت کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو دکتر هما کاتوزیان در روز شنبه ۱ نوامبر دربارهی لیبرالیسم در ایران و اروپا، خانم پروانه رادمرد در روز ۸ نوامبر درمورد هنر، سینا رحمانی در روز ۲۳ نوامبر در بارهی بازدید خود از اردوگاههای پناهندگان فلسطینی در لبنان و خانم صابره محمدکاشی در روز ۳۰ نوامبر درباره سینمای ایران برای دانشجویان دانشگاه تورنتو سخنرانی کردند.
از سیاست چه خبر:
کمسیون حقوق بشر سازمان ملل متحد در ژنو در ۲۱ نوامبر با تصویب قطعنامهای که پیشنویس آن توسط دولت کانادا نوشته شده بود، نقض حقوق بشر در جمهوری اسلامی ایران را محکوم کرد.
از آینده چه خبر:
در روزهای ۵ و ۱۹ دسامبر در جلسات گروه نگاه، خانم دکتر فصیحی سلسله سخنرانیهای خود را درباره وجوه سیاسی و فلسفی مدرنیته در دوران ناصری ادامه میدهند. این جلسات در دانشگاه تورنتو، ساختمان، اتاق ۴۴۲۲ برگزار میشود.
به همت کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو، دکتر عطا هودشتیان در روز ۶ دسامبر در دانشگاه تورنتو پیرامون مدرنیته، جهانی شدن و ایران سخنرانی خواهد کرد.
انجمن دانشجویان ایرانییِ دانشگاه تورنتو برنامهی سالانهی سفر اسکییِ خود را ۲۱ تا ۲۴ دسامبر برگزار میکند.
انجمن دانشجویان ایرانییِ دانشگاه تورنتو بر طبق سنت هر ساله با برگزاری مهمانی شب یلدا را جشن میگیرد.
هیچ وقت دلم نخواسته بود شراب بخورم. حتی وقتی همه میخوردند. حتی وقتی توی خوابگاه مهمانییِ پنیر و شراب داشتیم، که شاید شراب نخوردنم باعث شد هیچ وقت نروم.
هیچ وقت دلم نخواسته بود شراب بخورم. اصلا به نظرم حرام بودن یعنی همین. یعنی از ته دل باور داشته باشی که نباید بخوری، نخوری و نخواهی هم که بخوری. اگر قرار باشد که همهی فکر و ذکرت این باشد که حالا این شراب که حرام شده چه بوده، -که آدم این طوری کم هم ندیدهام، آدمهایی که شراب نمیخورند، اما همهی فکرشان این است که انواع و اقسام شراب کداماند- همان بهتر که حلال و حرام را ول کنی و امتحانش کنی. بعد هم بچسبی به زندگیت.
هیچ وقت دلم نخواسته بود شراب بخورم. فکر هم میکردم که اگر روزی دلم شراب بخواهد، حتما آن روز از زندگی خسته شدهام و خواستهام مست کنم، یا هوسباز شدهام و خواستهام این مزهی ممنوع را هم بچشم، یا لجباز شدهام و اصلا خواستهام که کار حرام بکنم. در تصورم هم نمیگنجید که جز اینها دلیلی باشد که مرا به خوردن شراب ترغیب کند.
هیچ وقت دلم نخواسته بود شراب بخورم، تا آن روز عصر، توی کلیسا.
حتی اولش که من سبد نان و دوستم ظرف شراب را بردیم و به کشیش دادیم، دلم شراب نخواست.
در تمام مدتی که کشیش توضیح میداد که مسیح شب آخر تکه نانی به دوستانش میدهد و میگوید که بخورند، و سپس شرابی و میگوید که بنوشند و آنگاه میگوید که نان جسم او است که فردا به دار آویخته میشود، و شراب خون او که فردا ریخته میشود، و با خوردن نان و شراب، گویی روحشان یکی میشود و صلح و صفا برقرار، باز هم دلم شراب نخواست.
اما وقتی همه به صف شدند تا تکهای نان از کشیش بگیرند و جرعهای شراب بنوشند، و هم زمان صدای دعایی آوازگونه برای یکی شدن روحها و صلح و صفا در کلیسا بلند بود، دلم شراب خواست: نه به خاطر مزهاش، که هنوز نمیدانم چیست. نه به خاطر مست شدنش، که نمیدانم و نمیخواهم بدانم که چه حسی دارد، و نه به خاطر لجبازی و صرف انجام یک فعل حرام.
نمیدانم، شاید برای آن که با تمام وجود احساس کردم که شراب در آن مکان و زمان نمادی بود از خواست همهمان به صلح و دوستی. همان خواست که شب قبلش در میلاد مهدییِ موعود در مسجد مسلمانان دیده بودم. همان خواست که منجر شد خبر اهدای جایزهی صلح نوبل به شیرین عبادی آن قدر در میان ایرانیان شادی بیافریند. همان خواست که همه از زن و مرد و سیاه و سفید و شرقی و غربی، مشترک دارند. همان خواست که خود میتواند بهترین بهانه برای صلح باشد.
شراب اما برای من هنوز هم حرام بود. نمیدانم چرا حتی نان را هم نگرفتم.
روی سنگی نشسته ام. ازآن دو مرد دو پرهیب انسانی، بدون زوایای مشخص می بینم. دو هیکل تیرهی بیحرکت که ایستاده پایین را نگاه میکنند. بر روی لبهی باریک صخرهای عظیم ایستادهاند. روی صخره برفی تازه باریده است. هر حرکت ردّی باقی میگذارد. ردّی از پشت صخره، جایی که از آن آمدهایم تا بر روی لبهای که در مه خوب دیده نمیشود. پایین صخره ارتفاع معلقی است و بعد شیبی تند که ابتدای دره است. هوا گرفته است. ازتاریک و روشن دره میفهمم که باید عصر شده باشد. دره میان مه و تاریکی پنهان شده است. جلو می روم تا به نزدیکی یکی از آن دو میرسم. جوان بلند قامتی است با کلاه بافتنی مشکی و عینکی تیره که به شکل دو بیضی کشیده است. لباس اسکی یک سره به رنگ سبز یشمی. مینشیند بوتهای آبی نفتیاش را داخل فیکسها محکم می کند. صدای تسمهها را که قیژ قیژ کنان میان فلز فیکس می لغزند و گیر می کنند، میشنوم. روی بُردش آفتاب در کویر شنی شعلهور میسوزد. صدای طبلها بلند میشود. جمعیت فریاد میکشد. گوشیها را داخل گوشها میگذارد، صدا قطع میشود. حرفی نمیزند. دستی هم تکان نمیدهد. بدنش را حرکت میدهد. به میانِِ فضا لیز میخورد. روی برف فرود میآید. وزنش را روی پاشنه و پنجهها جا به جا می کند. پیچ نمیزند. سر برد مستقیم به سمت دره است. سرعت میگیرد و ناپدید میشود. من شنیدهام مسیر دره پر از صخرههایی است که ناگهان قامت بلند میکنند و به آسمان میرسند. شنیدهام عصرهای تاریک مرد جوانی با سرعتی سرسام آور به سوی صخرهها میرود؛ آبشاری از برف به دنبالش. به صخرهای داخل میشود. سکوت. مسیر بُرد روی برف میماند.
مرد دوم پیپش را خاموش میکند. میان سال و حتی کمی پا به سن گذاشته است. به پایین خیره شده است. رو بر میگرداند. دفترچه یادداشت کوچکی را از جیب بغل کاپشن سفید و مشکی اش بیرون میآورد. زیر آستین دست راست چاک خورده است. خودکاری از وسط دفترچه در میآورد. خطی به سختی مینویسد. دفترچه را میبندد، روی سنگی میگذاردش. دستکشهای کهنهی قهوهایاش را دست میکند. کفشها را داخل فیکسها میکند به پاشنه فشار میآورد تا داخل فیکس جا بیافتند. روی چوبهایش پر از خطهای نازک سفید رنگ است که روی زمینهی قرمز چوبها دویدهاند. با سر به من اشارهای می کند به نشانهی رفتن. میپرد. با حفظ تعادل فرود میآید. کمی سر میخورد. سرعتش را میگیرد. شروع میکند به پیچ زدن. پیچهای بزرگ که دایرههای بزرگ ایجاد میکند. مدتی میکشد تا ناپدید شود. شنیدهام در مسیر دره گودالهایی است که در میان برف باز میشوند و کهکشانی را میبلعند. شنیدهام عصرهای تاریکِ رو به شب مردی نرم و موزون با اسکیهای قرمزش به داخل گودال میرود. برف موج میزند و گودال پوشیده میشود. دفترچه را میخوانم:
- درپاژ عزیزم، درپاژ.
تا نزدیک صبح اسکی میکنم. از دور خانههای ده پیداست. خسته روی نیمکت قهوهخانه مینشینم. چای میخواهم. غریبهای با چشمان درخشان دست بر شانهام میگذارد. آقا شما راهنمای دره هستید؟
از دورها
صدایم کرده
بارها
رهایم کرده...
ماندم و باز صدایم کرده
از پس سطرها
بر سر انگشتانم،
قطره قطره
نشانده
مرا بر ابر بیتی که قرارم هم نبود
رعدی از خطوط
قراری بر
ابر بیتی که قرارم هم نبود.
صدا، صدا
از پس آهها
شکافته لبم
به باشد هوسی،
شکفته از شکاف لبم
هر دمی
همیشه
هان بی نفسی.
نشانده مرا
از شتاب
روز،
شب
رها رها...
دیدهام آن گاه
در پس پلکهای هوا
من دستهای خود را،
رسته،
شسته خطوطشان
باران نورسی.
خلاصم کرده،
من،
نرفتم.
ماندم تا صدایم بکند باز.
از خود
برکشدم
به خود، حلقهای.
به تنم،
بتنم
پیلهای
از او
تنها...
بر بالای بلندترین برج شهر
محورهای مختصات خیابان را
در سه بعد
با رد نازکی از نگاه،
پاره، پاره،
دنبال کردم
تا نقطههای متحرک آدمها
و استوانههای ثابت درختچهها،
و طول عمودی را
دقیقهای یک بار
محک زدم،
تا ده دقیقه...
حس ارتفاع میان کتفهایم فرو رفت.
ده دقیقه...
پیش از آن پریده بودم،
ده دقیقه... نه...
ده ثانیه
تا پایین...
و محورهای مختصات دستها و پاهایم
بر هم عمود افتادند
و در یک آن
دو سوی خیابان را
با هم
جمع کردند.
سوال این بود. و نوشت، یا ننوشت. و اگر نوشت از چه. کوچک را نوشت، یا بزرگ را. یک سوال بود. و سالها دلها لغت لای کتاب، کتاب روی طاقچه، طاقچه توی اتاق، اتاق به اتاق خانه، خانه کتابخانه میشدند. و هنوز، و نوشت، یا ننوشت.
گفتم میخواهم بنویسم. گفتند چرا. ------ گفتم میخواهم بنویسم.
گفتند از چه. ------ گفتم میخواهم بنویسم. گفتند چه جور. ------
نه جور، نه چه، نه چرا. خندیدند که گفتم دیشب خیره، رقص ماهی روی زمین، وقتی از آب پرید را نوشتم. از بوی پرتقال رقصش گرفته بود. یا آن روز که خواستم یک صفحه بنویسم اگر. یا که خواستم همهی حرفها ژ شوند و روی سیم ویولون برقصند.
رقصان برایشان ژ شدم.
- ژای ژای همه ژا را گرفتهاند. ژوابها را میگویم. ژانم را میخواهند. بژه. پشت پنژره ژاله میریزد، روی گل ژله میشود. بژه. - *
پریدم. همه با هم خندیدند.
کلههاشان پر از فرمها، ساختارها و برنامهها به یک دهان وصل بود. گوششان را بریده بودند.
پشتشان را کردند. نگاهشان کردم که میرفتند. کلههاشان سنگین، از پشت به روی زمین کشیده میشد. صدای خنده شان جیغ نفرتآوری در باد، در گوشم جرقه میزد.
خندهام گرفت. از چشمشان که از حدقه در آمده روی زمین کشیده میشد. از کلههاشان که حباب بدنشان را به روی زمین میکشید.
دویدم. پریدم. رقصیدم. خندیدم. خندیدم. خندیدم.
ژِ ری () = خندیدم
* در این جمله حرفِ ژ جایگزین حرف ج شده است.
* شهر میسیساگا در ۳۰ کیلومترییِ شهر تورنتو واقع شده و جمعیت آن ۵۷۰، ۰۰۰ نفر میباشد.
پس از گذشت ۶ سال از دوم خرداد ۷۶ بسیاری بر این باورند که جنبش اصلاحات به بنبست رسیده و این جنبش اجتماعی هم، به سرنوشت تلخ دیگر جنبشهای آزادیخواه قرن گذشته دچار شده است. بدیهی است که در طول تاریخ چند هزار سالهی ایران، جنبشهای آزادیخواهانهی بسیاری در ایران ظهور کردهاند. اما آیا تا کنون از خود پرسیدهایم که از چه زمانی دموکراسی به عنوان اساسیترین خواست حرکتهای اجتماعییِ ایران مطرح شده است؟ برای پاسخ به این پرسش میبایست به نخستین سالهای قرن بیستم بازگردیم. در آن سالها ایران شاهد یکی از بزرگترین دگرگونیهای سیاسییِ تاریخ خود بود. جنبش اجتماعییِ مشروطهخواهی با خواستهایی برگرفته از اندیشهی دموکراسی، تحولی ژرف در ساختار سیاسی و فکرییِ جامعهیِ ایران پدید آورده بود. مظفرالدین شاه حکم مشروطه را امضا کرد و این دست خط شاهانه قرار بود که برگ تاریخ استبداد را نیز پایان دهد. اما دیری نگذشت که محمد علی شاه مجلس شورای ملی را به توپ بست و پس از آن دستاوردهای سیاسییِ جنبش مشروطیت در طوفان کودتاها و جنگهای قرن بیستم از میان رفت. آیا به راستی تنها یادگار نخستین جنبش دموکراسیخواه ایران تنها و تنها یک شکست سیاسی بود؟ به نظر من، ارزشمندترین یادگار این جنبش پدید آوردن جایگاهی ویژه برای اندیشهی دموکراسی در ساختار فکرییِ جامعهی ایران بود. با همان یادگار بود که دوم خرداد را آفریدیم و با آن پا به سدهای دیگر از تاریخ بشر گذاشتیم. تا به حال از خود پرسیدهایم که آیا توانستهایم در طول صد سالی که با اندیشهی دموکراسی آشنا شدهایم به درکی ریشهای و عمیق از این نظریه دست یابیم؟ اگر به چنین درکی نرسیده باشیم هرگز نمیتوانیم خواستهای دموکراتیک خود را به خوبی بشناسیم و حرکت به سوی خواستهای مبهم میتواند جامعهی ایران را بار دیگر اسیر حکومتهای خودکامه و غیر مسوول بکند. اکنون که در آستانهی ورود به بخشی نوین از تحولات سیاسی اجتماعییِ ایران قرار گرفتهایم، میبایست بزرگترین درگیریهای فکرییِ جامعهی خود را در رویارویی با اندیشهی دموکراسی بشناسیم و پاسخ پرسشهای خود را در آثار منتقدان و نظریهپردازان برجستهی دموکراسی بجوییم.
به عقیدهی من بزرگترین درگیرییِ فکرییِ جامعهی ایران در رویارویی با اندیشهی دموکراسی، شناخت و تعیین خط قرمز آزادی بوده است. در شمارهی آیندهی قاصدک قصد دارم با نگاهی شتابان اندیشههای جان لاک -یکی از بزرگترین نظریهپردازان دموکراسی- را دربارهی مرز بین آزادی و قانونمندی تحلیل کنم.
ژاپن با مردمان ریزنقشش کشور عجیبی است. آنها همیشه در تولید دوربینها، تلفنها، و کامپیوترهای کوچکتر پیش تاز بودهاند. جالب اینجاست که در عالم شعر و ادبیات همینگونه است. کوتاهی و خلاصهگویی از خصوصیات بارز شعر ژاپنی است. شعرای ژاپنی، به گونهای موجز از ناتوانی های ازلی ابدی انسان سخن میگویند.
شاید زنده بمانم و با حسرت بیندیشم به این لحظه،
لحظهای سخت غمین،
و یادش آورم با اشتیاق.
طبیعت در اشعار آنها حضوری چشمگیر دارد:
به چمنزارهای بهاری رفتم تا بنفشه گرد آورم،
چنان سرمست شدم که شبم سراسر آنجا گذشت.
عشق را به سادگی خود عشق ساده تصویر میکنند:
صدای زنگی به نشانهی وقت خواب
با اندیشهی او در سر چگونه توانم خفت؟
سه شکل از اشعار مختلف شعر ژاپنی هایکو، تانکا، و سنریو هستند. کتاب آوای جهیدن غوک مجموعهای از اشعاری است که در این سه گونه سروده شدهاند. این کتاب مجموعهی منتخب کمنظیری است از بهترین اشعار تاریخ ژاپن که توسط خانم زویا پیرزاد از زبان انگلیسی به فارسی برگردانده شده است. (نویسندهی رمان چراغها را من خاموش میکنم) این ترجمه، آدمی را به یاد ترجمههای احمد شاملو از هایکوهای ژاپنی و اشعار لورکا (کتاب همچون کوچهیی بیانتها) میاندازد. روی هم رفته آوای جهیدن غوک پنجرهای است به دنیای شعر سرزمین آفتاب.
مصاحبهای با مانی جمالی، ۲۲ساله، که همراه با پدر و مادرش بعد از ۹ سال زندگی در آمریکا از این کشور اخراج شده است. مانی تقریبا تمام زندگیش را در خارج از ایران گذرانده است. در این مصاحبه او درباره ی تجربهاش در برخورد با ایرانیهای آلمان، آمریکاو کانادا صحبت میکند.
لطفا خودتان را معرفی کنید و بگویید کی و کجا به دنیا آمدید و کجا بزرگ شدید؟
من در سال ۱۹۸۲ در تهران متولد شدم و تنها دو سال در آنجا زندگی کردم. سپس پدر و مادرم به آلمان نقل مکان کردند و ۹ سال در آنجا زندگی کردیم. پس از آن به آمریکا رفتیم و ۹ سال در آنجا ماندیم و اکنون هم که در کانادا هستیم.
چرا شما آلمان را ترک کردید و به آمریکا رفتید؟
پدرم فرصتهای شغلی بهتری در آمریکا میدید زیرا یک هنرمند بود. جنبش نئونازی هم عامل دیگری بود. مردم هرروز توسط آنها کشته میشدند. شرایط برای مهاجران، خصوصا ایرانیها و ترکها بسیار خطرناک بود.
آیا شما خودتان چیزی را تجربه کردید؟
یک بار. اما فیزیکی نبود. به من گفته شد که به کشورم برگردم. شما این جور چیزها را همیشه در اخبار میشنوید. مردم داشتند به خاطر آن هرروز کشته میشدند. روش آنها استفاده از کوکتول مولوتوف بود. بسیار خشن.
آیا یک جماعت قوی ایرانی در آلمان در آن زمان وجود داشت؟
جماعت ایرانی بزرگی در آلمان وجود داشت. اما خیلی متحد و منسجم نبود، برخلاف اینجا که تعداد زیادی نهاد ایرانی میبینید.
پس از آن به کجا رفتید؟
ما به مینیاپولیس در آمریکا رفتیم. در آنجا تقریبا دو سال و نیم زندگی کردیم و سپس به تگزاس رفتیم و شش سال و نیم آنجا بودیم. در مینیاپولیس من در مقطع راهنمایی تحصیل میکردم. هنگامی که به آمریکا آمدیم، نمیتوانستم به انگلیسی صحبت کنم. به مرور با نگاه کردن به تلویزیون و گذران وقت با دوستان، زبان را یاد گرفتم. در تگزاس، دبیرستان را تمام کردم و به دانشگاه رفتم.
درباره ی تگزاس بگویید. در ایران، وقتی راجع به تگزاس صحبت میشود، همه به بوش، گاوچرانها، و... فکر میکنند. آیا واقعا آنجا اینچنین است؟
نه، بعضی از مناطق اینچنین است. شهری که من از آن میآیم، آستین، واقعا اینچنین نیست. بیشتر یک شهر هیپی است. یک شهر هنری است که موسیقی زنده از سراسر دنیا هر روز در آن اتفاق میافتد. آنها گهگاه اراذل () دارند، ولی مانند بعضی دیگر از شهرهای تگزاس مانند دالاس یا هوستن نیست. دالاس خیلی با آستین فرق دارد. شهری بسیار سرمایهداری با تعداد زیادی شرکتهای تجاری است. اگر بعد از ساعت ۵ به مرکز شهر آستین بروید، هیچکس آنجا نیست. تمام مرکز شهر شرکتهای تجاری هستند و بنابراین کسی آنجا زندگی نمیکند. هیوستن شهر خیلی بزرگی است. و شهر خیلی کثیفی در آن ایالت است، مخصوصا از نظر آلودگی هوا.
آیا هیچ دوست ایرانی در تگزاس داشتید؟
من فقط یک دوست ایرانی داشتم که در حقیقت نیمی ایرانی و نیمی اسپانیایی بود. او همیشه دوست خوبی بود. ایرانیهای زیادی در آستین زندگی نمیکنند. آنها بیشتر در هوستن و دالاس هستند چرا که معمولا در کار تجارتند. نه، من دوستان ایرانی زیادی نداشتم. تمام دوستان من آمریکایی یا اسپانیایی بودند.
شما چگونه آلمان را ترک کردید؟
ما دوستی در آلمان داشتیم که ما را به مینیاپولیس برد. دوست دیگری هم ما را به تگزاس برد. مینیاپولیس جای بسیار سردی است، سردتر از اینجا. به علاوه از نظر وضعیت هنری چندان قابل توجه نیست. اما تگزاس شهر بسیار هنریتری است. ممکن است با تورنتو قابل مقایسه نباشد، ولی آستین به هر جهت شهر بزرگی نیست.
آیا شما یک هویت ایرانی در تگزاس داشتید؟ آیا مردم میدانستند که شما ایرانی هستید؟
نه، مردم همیشه مرا با جهودها یا اسپانیاییها اشتباه میگرفتند، بیشتر با اسپانیاییها. اسپانیاییهای زیادی آنجا وجود دارند. هیچکس نمیتوانست بگوید که من ایرانی هستم. من باید به آنها میگفتم. وقتی به آنها میگفتم که ایرانی هستم، میپرسیدند که یعنی چه. آنها در جغرافی چندان خوب نیستند. گاهی اوقات هم افرادی هستند که در برابر مردم خاورمیانه نژادپرست هستند، مخصوصا پس از یازده سپتامبر. بعد از یازده سپتامبر همه چیز متوجه ما شد. نگاههای بیشتری روی ما بود. مردم به من نگاه میکردند و میگفتند: هی، این پسر عرب یا از چنین جایی است مخصوصا به خاطر پلاک اسمم. من کار میکردم و هنگام کار پلاک اسم کاملم را داشتم. نام خانوادگی من جمال است، و بنابراین آنها فکر میکردند که من عرب هستم. من نگاهها و چیزهای اینگونهای را دریافت کردم. اما در مورد دوستانم، هیچوقت در آنها نژادپرستی ندیدم.
وضعیت مهاجرت شما در آمریکا چگونه بود؟ چه چیزی باعث شد که شما به کانادا بیایید؟
ما برای وضعیت پناهندگی در آمریکا هم از آلمان و هم از ایران تقاضا کردیم. در آلمان، ما مهاجر مقیم () بودیم. وقتی آنجا را ترک کردیم، آنها ما را خارج شده تلقی کردند و پرونده ما بسته شد. بنابراین ما نمیتوانستیم به آلمان برگردیم و به همین دلیل به کانادا آمدیم. بعد از ۱۱ سپتامبر، حکومت آمریکا شروع کرد به خلاص شدن از دست تقاضاهای کارت سبز. آنها تقاضای ما را رد کردند. یک روز، ما نامهای دریافت کردیم که میگفت باید آمریکا را ترک کنیم. ما دو انتخاب داشتیم، مکزیک یا کانادا. مکزیک بیشتر اسپانیایی بود، و بنابراین به اینجا آمدیم. ما نه سال در آمریکا بودیم و اصلا انتظار نداشتیم که این اتفاق برایمان بیفتد. مثل یک شوخی بود. وقتی من ابتدا نامه را دیدم، آن را جدی نگرفتم، چون فکر کردم که یک اشتباه است. ما سپس تلاش کردیم که دوباره تقاضای تجدید نظر کنیم، اما آن هم رد شد. آنها کمتر از یک ماه به ما فرصت دادند که آمریکا را ترک کنیم، که اصلا کافی نبود. ما باید خانهمان را میفروختیم و کلی کار دیگر. در نهایت، مجبور شدیم که کمی بیشتر بمانیم.
آیا میدانید که چه اتفاقی برای بقیه ایرانیها افتاد؟ بعضی از آنها حتی زندانی شدند.
فقط ایرانیها نبودند. عربها هم بودند، و حتی افرادی با نام خانوادگی عربی. من داستانهایی مانند ماجرای یک استاد دانشگاه را شنیدم. او در مقابل دانشجویان دستگیر شد، به خاطر مشکل احمقانهای در نام خانوادگیاش. مردم به غلط متهم به ارتباط با تروریسم میشدند. از جماعت ما در تگزاس، فقط ما بودیم که با این مساله مواجه شدیم. قبل از ترک آنجا، یک مهمانی بزرگ خداحافظی داشتیم. پدرم یک کنسرت بزرگ در یک مکان محلی داشت. جالب بود، اما در عین حال کمی ناراحتکننده. وقتی در جایی برای مدت طولانی زندگی میکنی، دیگر بخشی از جماعت آنجا هستی. بعد به ما گفتند که ما نمیتوانیم بمانیم، به خاطر نام خانوادگیمان! پدرم دوستی در کانادا داشت و او توصیه کرد که به اینجا بیاییم. کانادا یکی از بهترین کشورهای جهان است. اما از لحاظ جغرافیایی، اینجا بسیار سرد است. اما، شایعهسازی زیادی در رسانههای عمومی وجود ندارد، و این خوب است. تفاوت زیادی وجود دارد اگر شما اخبار کانادایی یا آمریکایی را گوش کنید. در اخبار آمریکایی، آنها تلاش میکنند که بگویند آمریکا یک قهرمان است، تا بتوانند هرآنچه که در عراق انجام میدهند و کارهای مشابه آن را توجیه کنند. هنگامی که ما به کانادا آمدیم، ارتباطات ما با آمریکا کاملا مهر و موم و بسته شد. ما دیگر کاری با آمریکا نداشتیم و بنابراین مساله بین ایران و کانادا بود. ما یک دادگاه حدود ۴ هفته پیش داشتیم و پیروز شدیم. ما اکنون پناهنده مقیم هستیم. چهار هفته قبل، ما هیچچیز نبودیم و هیچ وضعیتی نداشتیم. آنها میتوانستند ما را به ایران برگردانند. این وضعیت خطرناکی برای ما بود. فکر کنم اکنون باید حدود ۵ سال صبر کنیم تا شهروند اینجا شویم. ما اکنون در انتظار تقاضانامه هستیم. من واقعا میخواهم به دانشگاه بروم. باید صبر کنم تا آن برگه اقامت را بگیرم و این یک سال دیگر طول میکشد. بنابراین من ۲۲ ساله خواهم بود وقتی که دانشگاه را واقعا شروع میکنم.
آیا شما میتوانید اکنون به آمریکا سفر کنید؟
نه، من باید منتظر آن برگه ی اقامت باشم. من حتما زمانی که بتوانم به آمریکا سفر خواهم کرد. میخواهم به ایران هم بروم. از دو سالگی تاکنون آنجا نبودهام. من ایرانیهای زیادی را اینجا دیدم. اینجا دوستان ایرانی بیشتری دارم تا در تگزاس. آنها همیشه میگویند که من باید به ایران بروم. آنها میگویند که ایران جای خوبی است و آن طور نیست که رسانهها میگویند. البته مشکلات خودش را هم دارد. اما هر حکومتی مشکلات خودش را دارد. من ایرانی هستم و حتما باید کشورم را ببینم.
اگر اجازه داشتید که به آمریکا برگردید، آیا برمیگشتید؟
یک راست به آمریکا میرفتم! همه دوستانم آنجا هستند. به علاوه، تگزاس خیلی گرمتر است. اما اگر بخواهم منصف باشم، چیزی که در مورد کانادا خیلی دوست دارم این است که خیلی متنوع است. در تگزاس، مردم یا سفیدپوست هستند یا اسپانیایی. هروقت همه ی آن برگهها را بگیرم، اول به تگزاس میروم، بعد به ایران و بعد به آلمان. من چند دوست قدیمی در آلمان دارم، اگر هنوز مرا به خاطر داشته باشند. نه این که احساس کنم که به آنها یا حتی ایران تعلق دارم. راستش را بخواهید من نمیدانم که به کجا تعلق دارم.
ایرانیهای اینجا را چگونه میبینی؟
عالی. آنها مردم خیلی خوب و اجتماعی هستند. من ایرانیهای زیادی را در تگزاس میشناختم، اما هم سن من نبودند. آنها هم سن پدر و مادر من بودند. اکنون اینجا ایرانیهای زیادی را میشناسم که هم سن و سال من هستند. ما با هم به بار و کلاب میرویم و اوقات خوشی را میگذرانیم.
فرهنگ ایرانی در کانادا چقدر با آمریکا متفاوت است؟
در بعضی مسایل محیط جدیتری است. حالا اینجا اینجوری است و من هیچ اعتراضی به آن ندارم. آن قدرها هم متفاوت نیست، اگر درست به آن فکر کنید.
آیا هیچ وقت اتفاق افتاده که به خودت بگویی چرا آنها این یا آن کار را میکنند؟
بله، مواردی وجود دارد. خوب، مخصوصا وقتی به قرارگذاشتن () میرسد. من حدس میزنم که قرارگذاشتن چیز پذیرفته شدهای در فرهنگ ایرانی نیست، مثل دست یکدیگر را در انظار عمومی گرفتن. اما در فرهنگی که من در آن بزرگ شدهام، مردم از سن ۱۵ یا ۱۶ سالگی روابط جنسی دارند. وقتی به پس از کودکی میرسد، آن قدرها هم متفاوت نیست. اما اگر به ایرانیهای هم سن من نگاه کنید، آنها نسبت به زندگی خیلی جدیترند. آنها میخواهند تجارت کنند یا پزشک شوند. این دقیقا آن جیزی نیست که به آن عادت دارم. من عادت دارم که کاری را بکنم که خودم میخواهم انجام دهم، نه آنچه که پدر و مادرم و هم تیپهایم میخواهند. من میخواهم که نسبت به دانشگاه جدی باشم، اما همچنین میخواهم که از زندگیم لذت ببرم. من نمیخواهم که در اتاقم بنشینم و فقط درس بخوانم. در مورد مهمانیهای ایرانی، آنها مهمانیهای بیشتری از آمریکاییها دارند. من به این کلاب ایرانی در مرکز شهر رفتم. آنها عالی بودند، یک شب خوب. آنها واقعا دوست دارند که برقصند. همانطور که گفتم، تفاوتهای بیشتری وجود دارند، مخصوصا هنگام قرارگذاشتن. آمریکاییها واقعا اهمیت نمیدهند که بقیه مردم دربارهاش چه فکر میکنند. آنها در این موارد بیشتر آزادیخواه هستند. نکته دیگر این است که ایرانیها نمیخواهند محبت را در انظار عمومی نشان دهند. در مهمانیها، آنها واقعا نشان نمیدهند که یکدیگر را دوست دارند. بیشتر زنان ایرانی تا هنگام ازدواج صبر میکنند تا یک تماس واقعی با جنس مخالف داشته باشند. این چیزی نیست که من به آن عادت دارم. اما مساله ی مهمی نیست. یک اعصابخردی کوچک است. همچنین در مورد مردان ایرانی، به نظر من، آنها خیلی خشن هستند. آنها فکر میکنند که هرچه میگویند درست است. آنها بسیار به خود مطمئن هستند. این چیزی است که من واقعا دوست ندارم. من حدس میزنم که کل مردان خاورمیانه اینگونه هستند. اما نمیگویم همه چون معمولا منجر به کلیشهسازی میشود. در مورد قرارگذاشتن، شما با یک نفر قرار میگذارید، دوست ندارید، با کس دیگری قرار میگذارید. ایرانیها بسیار ایرادگیر هستند. ایرادگیر هستند که یک نفر را که واقعا دوست دارند پیدا کنند، و سپس با او ادامه دهند.
وقتی در آلمان و تگزاس بودم، واقعا چیزی راجع به فرهنگ ایرانی نمیدانستم. اصلا نمیتوانستم به زبان فارسی صحبت کنم. وقتی به آمریکا آمدم هم چیز زیادی نمیدانستم. از وقتی به کانادا آمدهام، زمان بیشتری را با خانواده و دوستان ایرانی میگذرانم و دوباره دارم زبان فارسی را یاد میگیرم. امیدوارم که بدون هیچ لهجهای بتوانم به طور روان صحبت کنم. وقتی جلوی دوستان ایرانیام به فارسی صحبت میکنم، لهجه دارم و مسخره به نظر میآید.
آیا میتوانید فارسی را بخوانید و بنویسید؟
من داشتم نوشتن را یاد میگرفتم. اما برای مدتی متوقفش کردم. خیلی مشغول کار هستم. در مقایسه با انگلیسی، خیلی مشکل است. تقریبا همه دوستانم اینجا ایرانی هستند. هنوز هیچ دوست کانادایی ندارم. که البته خوب است. دارم زبان را یاد میگیرم. خیلی خجالتآور است اگر اهل یک کشور باشید و زبان و فرهنگش را ندانید. پدر و مادرم در خانه فارسی صحبت میکنند. بنابراین تقریبا فارسی را کامل میفهمم، منظورم فارسی محاورهای است. وقتی پدر و مادرم به فارسی با من صحبت میکنند، سعی میکنم که به فارسی جواب دهم. اما عمدتا به آلمانی جواب میدهم. گاهی انگلیسی و گاهی فارسی هم میپرانم، یک چند فرهنگی بزرگ. برادرانم همیشه به انگلیسی جواب میدهند. آنها دارند همه ی زبان های دیگر را فراموش میکنند. این خیلی ناراحتکننده است. من سه برادر دارم و من تنها کسی هستم که به آلمانی جواب میدهم. فکر کنم من علاقه ی بیشتری از برادرانم دارم که زبان فارسی را یاد بگیرم و فرهنگش را درک کنم.
به نظر میرسد که شما برای سالها ارتباط زیادی با ایرانیها نداشتهاید و حالا دارید برمیگردید.
بله. در تورنتو، من تعداد زیادی دوست ایرانی دارم و باید با آنها به فارسی حرف بزنم. در آمریکا، من واقعا این قدر سر و کار نداشتم. من واقعا به فرهنگ اهمیتی نمیدادم. اکنون که اینجا هستم، فکر میکنم که یک ایرانی هستم و باید بدانم که از کجا میآیم. اما دوباره میگویم من فکر نمیکنم که کاملا ایرانی هستم. من نیمی آمریکایی، نیمی ایرانی، و نیمی آلمانی هستم! وقتی بحث خون باشد، البته که ایرانی هستم. اما آن مهم نیست. آنچه مهم است این است که چگونه احساس میکنید و فرهنگتان از کجا میآید. فرهنگ من بیشتر از آلمان و آمریکا است. فکر کنم که ترکیبی از همه ی آنها هستم.
وقتی که در تگزاس بودم جامعهشناسی و جرمشناسی میخواندم. من میخواهم آن را اینجا ادامه دهم. میخواهم به دانشگاه یورک یا تورنتو بروم. شنیدهام که یورک در جامعهشناسی قویتر است.
به موسیقی ایرانی هم گوش میدهید؟
نه. نه واقعا. میتوانم چند موسیقی ایرانی قدیم را تحمل کنم، چند موسیقی سنتی واقعا قدیمی. در مورد موسیقی پاپ ایرانی، واقعا دوستش ندارم. حدس میزنم خیلی پوشالی است. همیشه راجع به عشق است. همچنین خیلی یکنواخت است و چندان متنوع نیست. گوگوش خواننده ی محبوب من نیست. اگر در یک کلوپ رقص هستید، احتمالا خوب است که موسیقی پاپ ایرانی بشنوید. اما برای وقتی که در خانه نشستهام و سعی میکنم که فکر کنم، خوب نیست. سازهای ایرانی به نظرم خیلی جالب هستند. سهتار و سنتور خیلی زیبا هستند. پدرم واقعا در اجتماع تگزاس آدم بزرگی بود. او یکی از تنها موسیقیدانهای ایرانی در تگزاس بود. او در فستیوالهای موسیقی که در آن تنها ایرانی بود، مینواخت. مجلات درباره ی او به خوبی نقد کردند. امیدوارم که این کار را در اینجا هم بتواند انجام دهد.
چند دقیقه پیش که به تارنمای قاصدک سر زدم شمارنده عدد ۳۱۷۴ را نشان میداد. الان که دوباره سر زدم آن عدد شده بود ۳۱۷۵. یکی زیاد شده بود.
اصلا به این بابک باید بگویم این شمارندهی لامصب را بردارد. همهاش یا منم یا بقیهی بچههای نشریه. مدام به نشریه سرمیزنیم که ببینیم چند نفر نوشتههایمان را خواندهاند.
هر کس را میدیدم تبریک میگفت: «چه نشریهی قشنگی منتشر کردهاید!» وقتی میپرسیدم که از کدام مطلب نشریه بیشتر خوشش آمده، میگفت: «هنوز وقت نکردهام بخوانم. فعلا یک نگاه سرسری کردهام.» این عددی که شمارنده نشان میدهد، تعداد خوانندهها نیست. آن را فقط خدا میداند. این عدد چیز دیگری است.
یاد روزهای مدرسه افتادم. یادم میآید میگفتند که هنر باید متعهد باشد. نویسندگی نیز. میگفتند در دنیا کلی آدم گرسنه وجود دارد و ما باید با هنرمان، با نوشتههایمان شکم آنها را سیر کنیم. بعد که کمی بزرگتر شدم، فهمیدم چه مزخرفاتی به ما درس میدادند. اصلا هنر یعنی همین که یک سطل رنگ برداری و هر طور خواستی بپاشی روی دیوار. بعد هم دیوار را از جایش جدا کنی و ببری در یک موزه به نمایش بگذاری.
نویسندگی یعنی با قلم، نشد با گچ، نشد با تُف برداری هر چه دلت میخواهد روی چند برگ کاغذ سرگردان، نشد روی دیوار یا دست گچ گرفتهی دوستت بنویسی. خوشت نیامد پارهاش کنی و دور بیندازی. باز هم به هر جا دلت خواست.
چه کسی مطالبم را بخواند، چه نخواند، من مینویسم. گور پدر هر چه شمارنده. مینویسم چون دوست دارم.
از این لحظه هر چه بنویسم، فکر خواهید کرد که داستان مینویسم...
اگر بگویم «گردنبند آنی که عاشقش بودم بعد از چند سال، درست روزی که تصمیم گرفتم فراموشش کنم، اتفاقی گم شد و آن روز درست همان روزی بود که چند سال پیش گردنبند را به من داده بود»، خیال خواهید کرد که داستان کوچکی خلق کردهام. هرگز به ذهنتان هم نخواهد رسید که زندگی شاید درست همین باشد...
فکر خواهید کرد که من تمام اتفاقات را در ذهن خودم برنامهریزی کردهام؛ که فقط داستانها اتفاقات طراحی شدهاند، که زندگی چیزی جز یک اتفاق نیست. همین است که همهمان تند تند رنگ عوض میکنیم و بالا میآوریم. بیش از حد زور زدهایم...
مثل آن آدمهای وسواسی که برای تمیزی، بیش از حد زور میزنند: غبار را با وحشت از اثاث خانه میروبند و میخواهند همه چیز همان جا که بود، یا همان جا که فکر میکنند باید باشد، ساکن و تمیز باقی بماند. روی گذار زندگی درجا میزنند و میخواهند هر چیز را سفت سر جایش نگه دارند... ولی نویسنده منم. اگر تصمیم بگیرم که امروز کارد آشپزخانه کنار مستراح باشد که با آن «آدم» سیب را پوست بگیرد، کارد آشپزخانه کنار مستراح خواهد بود، هر چقدر هم که زن عصبی زور بزند که همه چیز سر جایش قرار بگیرد. عاقبت تب میکند، فشارش بالا میرود، توی سرش نبض میزند و روی خودش استفراغ میکند... ولی هر چه بنویسم خیال خواهد کرد که داستان مینویسم. به ذهنش هم نخواهد رسید که زندگی شاید درست همین باشد. که شاید بیش از حد زور زده است...
ولی شاید هم داستان مینویسم. شاید تا آن جا که «گردنبندش روزی که تصمیم گرفتم فراموشش کنم، گم شد»، واقعی باشد و انطباق آن با روزی که گردنبند را گرفتم، طراحی من. یا بر عکس. شما هرگز نخواهید دانست و همیشه به اشتباه خیال خواهید کرد که داستان مینویسم. شما همیشه همه چیز را با هم اشتباه خواهید گرفت. کورکورانه میان واقعیت و خیال گیج گیج خواهید خورد و در ظلمات محض، دست من را به جای شاخههای درخت و شاخههای درخت را به جای دست من خواهید چسبید. ولی یک چیز، یک فکر، هرگز به ذهنتان نخواهد رسید: که زندگی شاید درست همین باشد، که ما بیش از حد زور زدهایم و برای همین است که فشارمان بالا میرود، تب میکنیم و پشت سر هم بالا میآوریم...
خسته
شانه بر چارچوب در
نه بیرون و نه درون
هراسان هم از آمدن،
هم از رفتن
سرا پا تشنهی یک نشانه
که بیا، یا که برو
اگر رفت و نبودش مهربان دستی که بفشاردش دست،
وگر رفت و شکست آن ساده قلب کوچکش،
چه کند؟!
با که بگوید؟!
از زمان انقلاب مشروطه تا کنون، ایران شاهد شکلگیری جنبشهای اجتماعی متعددی برای دستیابی به دموکراسی بوده است. قرن بیست و یکم نیز در ایران با جنبش «دوم خرداد» آغاز گشت. جنبشی که هدفاش همانند اکثر حرکتهای اجتماعی سدهی پیشین، برقراری دموکراسی بود. هدفی که صد سال همواره با جامعهی ایران همراه بوده و دستیابی به آن به منزلهی رسیدن به آزادی تلقی شده است. در تاریخ بشر واژهی «آزادی» بسیارتکرار شده است و شاید پاسخ به این سوال که «آزادی چیست؟» بدیهی به نظر بیاید. اما واژهی آزادی در اصل به کلمهیی قراردادی بدل گشته که توضیح واحد و روشنی ندارد. واژهای که ذهن آدمی را به سوی مفهوم مشخصی رهمنون میکند ولی هرگز به آن مفهوم عینیت نمیبخشد. آن چه که به گنگی معنای «آزادی» دامن میزند جایگاه ویژهی مبحث آزادی در فرهنگ سیاسی، فلسفی و ادبی ایران و جهان است که باعث گستردگی تعاریف و برداشتهای گوناگون از مقولهی «آزادی» میشود. دیدگاه ها و مذاهب مختلف هر کدام تعریف خاص خود را از مفهوم آزادی دادهاند و پیوند دادن این تعاریف چندگانه، کاری دشوار به نظر میآید. برای مثال آنچه که مذاهبی چون اسلام و مسیحیت و یهودیت از مفهوم آزادی به دست میدهند، آزادیی است که در چهار چوب قوانین الهی محدود شده است. در حالی که «آزادی» در اندیشهی بسیاری از فلاسفهی قرون شانزده و هفده در اروپا معنایی کاملا متفاوت دارد. فیلسوفانی چون توماس هابس، جان لاک، نیکولو مکیاولی و ژان ژاک روسو مقولهی آزادی را در چهار چوب قراردادهای اجتماعی تعریف میکنند. در نگرش این گروه از فیلسوفان، آزادی انسان محدود به ارزش ها و قوانین اجتماعی است. اما اندیشهی دموکراسی «آزادی» را چگونه تعریف میکند؟
اندیشهی دموکراسی دارای تاریخچهی طولانیای در فلسفهی غرب است. پیاش در دولت شهرهای یونان باستان ریخته شد و از همان روزگار به عنوان یکی از مهمترین مبحثهای فلسفی و راهکردهای ادارهی امور اجتماعی و سیستم حکومتی درآمد. اما آنچه در این جا به آن می پردازم جایگاه آزادی در دموکراسیای است که آن را «دموکراسی نوین» میخوانم. «دموکراسی نوین» که متاثر از اندیشهی جان لاک است، برای نخستین بار پس از انقلاب آمریکا و در قانون اساسی ایالات متحده بازتاب پیدا کرد. بزرگ ترین هدف این گونه دموکراسی برقراری شرایطی است که حکومت اکثریت و حقوق اقلیت را از طریق تاسیس مجلس قانونگذاری و موسسهیی که قوانین تصویبی را اجرا میکند، مهیا میسازد. اما برای بازگشت به پرسش اساسیام دربارهی جایگاه و مفهوم مقولهی آزادی دراندیشهی دموکراسی با نگاهی شتابان به کتاب «» اثر جان لاک، نظریات وی را دربارهی مفهوم آزادی در «دموکراسی نوین» بیان میکنم.
جان لاک - فیلسوف انگلیسی قرن شانزده - در کتاب «» چگونگی رسیدن به دموکراسی را به تفصیل شرح داده است. وی تحلیل خود را با تشریح موقعیت انسان پیش از ورود به جامعه آغاز میکند. به عقیدهی لاک انسان فطرتا موجودی اجتماعی نیست و با اختیار و رضایت خود وارد جامعه میشود. انسان در صورت طبیعی «آزاد» است که برای بقای خود هرطور که صلاح دانست عمل کند. اما آزادی انسان در طبیعت محدود به «قانون طبیعت» است. «قانون طبیعت» قانونی است الهی که تنها هدف آن بقای زندگی انسان است و به انسان اجازه میدهد که با استفاده از کار خویش و منابع طبیعی موجود، وسایل بقای خود را فراهم سازد. علاوه بر این، «قانون طبیعت» برای انسان حق مالکیت نیز در نظر میگیرد. هر گاه انسان از بدن خویش که ملک مطلق اوست استفاده کرد و منابع خام طبیعی را برای بقای خویش متغیر ساخت، آن گاه وی بر آن منبع طبیعی «حق مالکیت» دارد. برای مثال اگر من زمین بایری را شخم زدم و در آن گندم کاشتم و حاصلش را برداشت کردم، آن گاه من بر گندم برداشت شده «حق مالکیت» دارم. یا اگر شما سیبی از یک درخت سیب چیدید، شما بر آن سیب «حق مالکیت» دارید زیرا در حقیقت «کار» خود را با «درخت» که منبع خام طبیعی است، آمیخته اید. در نتیجه براساس قانون طبیعت شما «مالک» آن سیب هستید.
به عقیدهی لاک، انسان برای حفاظت بهتر از «حق مالکیت» خود، با رضایت خود وارد جامعه میشود. در جوامع دموکرات، قانون، ضامن و حافظ «حق مالکیت» است و این قانون چیزی نیست جز «عقیدهی اکثریت شهروندان جامعه». در چنین جامعهیی، آزادی انسان به قوانینی محدود است که اکثریت شهروندان جامعه تعیین و تنظیم میکنند. بنابراین دراندیشه دموکراسی «خط قرمز آزادی» را اکثریت شهروندان جامعه میکشند.
حالا که لاک سوال ما را دربارهی جایگاه آزادی در اندیشهی دموکراسی جواب داد، من از او سوال میکنم که آیا به راستی آزادیی که حد و مرز داشته باشد، «آزادی» است؟ به نظر من آزادیی که اعمال و افکار انسان را محدود میکند، آزادیی برازندهی بشر نیست. زیرا این گونه آزادی مقابل ذهن پرسشگر انسان قرار میگیرد. ذهنی که بی هراس و با عشق، هستی و نیستی را سوال میکند. خود را سوال میکند و تمام ارزشهای اجتماعی و اخلاقی را سوال میکند. آزادی خط قرمز و حد و مرز ندارد و اخلاق، ارزش ها و قوانین نمیتوانند آن را محدود کنند. آن چه دموکراسی آن را آزادی می نامد، در حقیقت نوعی قانونمندیست که ملاک آن نظر اکثریت است.
دو گلوله ی سیاه میان آینه فرو میروند.
- (من چرا اینقدر غمگینم؟) و آینه با دو سوراخ سیاه٬ بی جواب و سرد میایستد - همانطور که همیشه - و سوالم را هزاران هزار بار در خودش تکرار می کند٬ آنقدر که دیگر اوست که می پرسد: (غمگینم چرا اینقدر من؟) و من میایستم٬ سرد و بی جواب٬ با دو سوراخ سیاه.
تیغ را در مشتم میفشارم. احساس میکنم که برای پاهایم بیش از حد سنگین شدهام. برای همین است که پشتم خمیده میشود. آینه خوب میداند. دندههایم دارند از پوستم بیرون میزنند و جای پستانها و شکمم دارند با هم عوض میشوند. مدتهاست جلد جدیدی دست و پا کردهام تا همه چیز را پنهان کنم. نمیخواهم کسی بداند که دارم کمکم به جانور دیگری تبدیل میشوم٬ جانوری که با ترکیدن میمیرد - وقتی شکمش بر اثر یبوست بیش از حد باد می کند. سه سالی هست...
به جز آینه هیچ کس نمیداند. مادرم فکر می کند که لاجون شده ام و باید قرص ویتامین بخورم. پدرم معتقد است که من باید بیشتر ورزش کنم٬ که «ضعف جسمی و روحیام» هر دو به دلیل «بیتحرک» بودنم است. با آن که از روی اجبار بعد از ظهرها توی اتاق ورزش ساختمانمان٬ نیم ساعت روی دستگاه در جا میزنم٬ به همه میگوید که در باشگاه تارعنکبوت اسم نوشتهام. و میخندد. او نمیداند ولی خودم و آینه می دانیم که شکم من روز به روز دارد بیشتر باد میکند و من دارم کمکم تعویض میشوم.
این رابطه را با آینه البته فقط سه سال است که پیدا کردهام. درست از وقتی که آمدیم. روزهایی بود که وقتی راهروی مدرسهی جدید را با قدم های بیصدایم میپیمودم٬ آدمهایی که از کنارم میگذشتند٬ هیچ کدام مرا نمیدیدند. خودم را از سر راهشان کنار میکشیدم: (!). اما صدای زمزمهوارم را هم نمیشنیدند. همان روزها بود که یک شب خودم را در دستشویی زندانی کردم. تصمیم گرفته بودم که موهایم را بتراشم و صورتم را آنقدر قرمز کنم که هیچ کس نتواند بدون توجه از کنار من بگذرد. همانطور با چشم های گریان چهاردیواری تنگ را دور میزدم که ناگهان به آینه برخوردم. رشته های سیاه ژولیده که صورتی رنگ پریده را حاشیه میکشیدند که دو لکهی سیاه میانشان افتاده بود. چون هنوز شاعرانه بودم به یاد فروغ افتادم که میگفت: «تمام روز در آینه گریه میکردم» و از همان لحظه همه چیز شروع شد. از آن به بعد تنها آینه بود که همه چیز را میدانست.
از همان وقتها بیماریام هم کمکم شروع شد. اوایل فقط دندههایم بر آمده میشدند. خیال کردم که لاغر شدهام. از بس زنگهای ناهار به جای تنها نشستن توی کافه تریای پر سر صدا و لقمه لقمهی ساندویچم را شمردن٬ به کتابخانه میرفتم٬ پشت یکی از میزهای تک نفره مینشستم و به جای نهار خوردن، برای همه نامه مینوشتم. ولی وقتی شکمم کمکم شروع کرد به برآمده شدن٬ من و آینه به این نتیجه رسیدیم که لاغر نشدهام. که مشکل دیگری هست.
راجع به این بیماری قبلا جایی خوانده بودم: انسان به جانور دیگری تبدیل می شود که بر اثر یبوست باد میکند و میترکد. اوایل که به بیماریام پی برده بودم چون هنوز شاعرانه بودم٬ خیلی گریه و زاری میکردم. آنقدر با آینه حرف میزدم که جانش به لبش میرسید. فریاد میزد که: (برو بمیر!) من با صدایی که از گریه گرفته بود میگفتم که: (کاش میتوانستم.) جوش میآورد: (دخترهی گه!). من دماغم را میگرفتم و آنقدر سعی میکردم بغضهایی را که پشت سر هم میآمدند قورت دهم٬ که چانه و لبهایم میلرزیدند. من به لرزش لبهایم نگاه می کردم و دلم برای خودم میسوخت. مادرم خیلی گیر میداد که از خانه بیرون بروم٬ که مثل آدمهای ملول گوشهی خانه کز نکنم٬ مثل آدمهای تریاکی و بلند شوم بروم بیرون و روابط اجتماعیام را گسترش دهم. چیزی که او نمیدانست بیماری من بود و این که آینه تنها کسی بود که میفهمید. چیزی که او نمیدانست این بود که هیچ کس مرا نمیدید...
اه٬ بس است. بس است. حتی نوشتنش هم حالم را بهم میزند. اینها همهاش مزخرفات است٬ گُه کاری است. پس ماندههای یک تخیل مریض که دلم را آشوب میکند. واقعیت این است که دیروز ترتیباش را دادم. تیغی را که توی دستم بود برانداز کردم و بار دیگر از آینه پرسیدم: (نگفتی من چرا اینقدر غمگینام؟). آینه چانهاش لرزید ولی ناگهان دیدم که نه از بغض٬ که این بار از خشم بود. ناگهان دیدم که دیگر نمیتوانم توی چشم هایش نگاه کنم. عرق سرد ریختم و نفس نفس زنان آنقدر دستمال توالت دور تیغ - که لبهاش کمی خونی شده بود - پیچیدم که به سختی در سطل آشغال جا گرفت. با ترس نیم نگاهی به آینه انداختم. همانطور با خشم به من زل زده بود. با دست روی شکمم آب ریختم و خیره شدم به مایع سرخ رنگی که در آب رقیق میشد و دایره وار به سوراخ دستشویی فرو میرفت. درد سختی توی شکمم پیچیده بود٬ درست در امتداد خط های افقی که با تیغ تراشیدم تا شاید هوای شکمم خالی شود و بیماری دست از سرم بردارد. کمی سبک تر شده بودم. قبل از آنکه با حولهیی که سخت زیر پستانهایم نگه داشته بودم٬ به سرعت از دستشویی بیرون بروم٬ جرات کردم و برای آخرین بار به چشم های آینه زل زدم. هر دو یکدیگر را با خشم نگاه کردیم. هوار کشیدم: (همش تقصیر توئه...) و در را محکم بهم کوبیدم.
از همان اولین لحظاتی که امواج زلزله به تورنتو رسید، گروه های مختلف ایرانی تورنتو به این فکر افتادند که در حد توان - تا آنجا که فاصله اجازه میدهد - به کمک زلزلهزدگان برخیزند. این گزارش نگاهی دارد به آن چه در هفتهی پس از زلزله در تورنتو گذشت. هر چند در مقیاس دردی که بم را فرا گرفته بسیار ناچیز است.
فعالیت گروه های داوطلب ایرانی در سطح شهر
روزهای یکشنبه و دوشنبه جمعی از دانشجویان در تقاطع یانگ () و بلور () بین مردم اعلامیه پخش کردند. در این اعلامیهها اطلاعات لازم در مورد کمک مالی اینترنتی به زلزلهزدگان از طریق نهادهایی چون صلیب سرخ، داده شده بود. چند نفری خواستند کمک نقدی کنند که بچهها از گرفتن آن خودداری کردند. در این محل میزی گذاشته شده بود که تصاویری از زلزله زدگان و مجروحان بر روی آن قرار داده بودند. روز دوشنبه عدهای دیگر از بچهها همین فعالیت ها را در تقاطع یانگ () و اگلینتون () انجام دادند. در کل ۳۰۰۰ اعلامیه بین مردم توزیع شد. این گروه در شب سال نوی میلادی نیز به رفتند و در آنجا نیز به جمعآوری کمک پرداختند.
دو گروه از بچهها با صحبت با صلیب سرخ کانادا توانستند مجوز فعالیت خیریه به نمایندگی از صلیب سرخ را برای کمک به زلزلهزدگان بم بگیرند. به موجب این توافق، صلیب سرخ تعدادی صندوق جمعآوری کمک آرمدار و پوستر در اختیار این گروهها قرار داد تا آنها بتوانند کمکهای مالی مردم را از سطح شهر نیز جمعآوری کنند. در روزهای سهشنبه و چهارشنبه این گروهها در مناطق مختلف شهر فعالیت میکردند.
صلیب سرخ همچنین امکانات مرکز تلفن خود را در این هفته در اختیار این گروه قرار داده است. اعضای گروه با استفاده از این مرکز با ایرانیان مختلف تماس گرفته و تقاضای کمک مالی میکنند. برای این منظور لیستی از ۲۰۰۰ شماره تلفن متعلق به بازرگانان و صاحبان صنایع ایرانی تهیه شده است.
از دیگر گروه های فعال در سطح شهر گروه تورنتو-ایرانیان است. این گروه در روزهای اخیر با گذاشتن صندوق جمعآوری کمک های مردمی در مراکز ایرانیی چون سوپر ارزان و سوپر خوراک، تاکنون توانسته است بیش از ده هزار دلار کمک جمعآوری کند که آن را در اختیار صلیب سرخ قرار خواهد داد. همچنین این گروه اعلامیههای روش های کمک مالی اینترنتی را در میان مردم توزیع میکند.
ستاد بازسازی و همیاری به زلزلهزدگان بم انتاریو
روز شنبه نمایندگان بیش از ۲۵ گروه ایرانی در تورنتو گرد هم آمدند و ستاد بازسازی و همیاری به زلزلهزدگان بم انتاریو - را تشکیل دادند. تارنمای این ستاد: //. -. است. در روز دوشنبه نمایندگان این گروهها با دو تن از نمایندگان مجلس فدرال کانادا برای بررسی راه های کمک گرفتن از دولت کانادا جلسهای تشکیل دادند. این جلسه در نهایت به درگیری لفظی بین نمایندگان گروههای مختلف بر سر مسایل گوناگون تبدیل شد و به وضع بسیار ناخوشایندی، بدون آن که هیچ تصمیم خاصی گرفته شود، پایان یافت. کمیتهی اجرایی این ستاد روز جمعه با نمایندگان () دیدار خواهند کرد تا از دولت کانادا تقاضا کنند که چند برابر یا معادل همان مبلغی که این ستاد به عنوان کمک از جامعهی ایرانی جمع آوری کرده است، به ایران کمک کند. شمارهی حساب بانکی این ستاد برای دریافت کمک های مردمی عبارت است از
: - کمیتهی اجرایی این ستاد در روزهای اخیر فعالیت بسیار خوبی داشته است و تا آخر روز پنجشنبه توانسته است حدود ۴۰ هزار دلار کمک از ایرانیان تورنتو جمعآوری کند.
کمکهای دولت کانادا
تا صبح چهارشنبه ساکنان کانادا نهصد هزار دلار از طریق صلیب سرخ کانادا به زلزلهزدگان کمک کردند. دولت کانادا تاکنون یک میلیون و سیصد هزار دلار از طریق به صلیب سرخ و هلال احمر کمک کرده است. یک هواپیمای نظامی کانادا شامل ۱۶ تن وسایل و تجهیزات گوناگون مانند ژنراتور، پتو، چادر و سیستمهای تصفیه کننده ی آب، روز دوشنبه به ایران رفت. در این خصوص دکتر محمدعلی موسوی، سفیر ایران در کانادا، از کمک های دولت کانادا تقدیر کرد.
از سخنرانی چه خبر:
در جلسات کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو، در تاریخ ۶ و ۱۳ دسامبر به ترتیب دکتر عطا هودشتیان دربارهی مدرنیته، جهانیشدن و ایران و یاسر کراچیان دربارهی طرح تاسیس شبکهی علمی ایرانیان خارج از کشور، صحبت کردند.
در جلسات گروه نگاه، خانم دکتر سیمین فصیحی در روزهای ۵ و ۱۹دسامبر، سلسله سخنرانیهای خود را دربارهی ایران دورهی ناصری ادامه دادند.
از فیلم و تلویزیون چه خبر:
فیلم خانهی ماسه و مه از ۲۶ دسامبر در پنج سینمای شهر تورنتو به روی پرده رفته است. این فیلم ماجرای یک افسر سابق ارتش شاهنشاهی ایران است که پس از انقلاب به آمریکا مهاجرت می کند. شهره آغداشلو به دلیل بازی بسیار خوبش در این فیلم از شانسهای دریافت جایزهی اسکار است.
از سیاست چه خبر:
هوشنگ بوذری که اکنون ساکن کانادا می باشد، پروندهی شکایتی علیه دولت ایران در دادگاه فدرال کانادا تشکیل داده است. وی ادعا می کند که ۱۰ سال پیش، زمانی که مشاور نفتی دولت ایران بوده، توسط عوامل دولت ربوده شده و تحت شکنجه قرار گرفته است.
دیگر چه خبر:
گروه تورنتو-ایرانیان دومین سالگرد تشکیل خود را در روز ۹ دسامبر در رستوران پرشیا جشن گرفت. تورنتو-ایرانیان یک گروه اینترنتی در یاهو با ۲۵۰ عضو است که اعضای آن بیشتر ساکن تورنتو هستند و در این گروه، اطلاعات و تجربیات خود را در اختیار یکدیگر قرار میدهند.
انجمنهای دانشجویان ایرانی دانشگاههای تورنتو، یورک، مکمستر و رایرسون در تاریخ ۲۰ دسامبر شب یلدا را جشن گرفتند.
کاریکاتورهای نیکآهنگ کوثر دربارهی آزادی بیان و جنگ، با عنوان «صدای سکوت» از تاریخ ۱۵ دسامبر در کتابخانهی روبارتس دانشگاه تورنتو به نمایش در آمده است و تا اواسط ژانویه نیز ادامه خواهد داشت.
نازنین افشین جم، دختر ایرانیتبار ساکن کانادا، در مسابقات دختر شایستهی جهان که امسال در کشور چین برگزار شد، به مقام دوم دست یافت. او که ۲۴ سال دارد در ایران به دنیا آمده ولی از یک سالگی در اروپا و کانادا زندگی کرده است.
از آینده چه خبر:
فیلم مستند در روز ۸ ژانویه ساعت ۹ شب از کانال پخش خواهد شد. این فیلم که به ماجرای کشته شدن زهرا کاظمی میپردازد، توسط جین ککن کارگردان کانادایی، فیلمبرداری شده است. این فیلم چندی پیش در اروپا با عنوان پخش شد.
گروه موسیقی سنتی دستان در تاریخ ۱۰ ژانویه در تورنتو کنسرت برگزار میکند. برای تهیهی بلیط این برنامه میتوانید اینجا را کلیک کنید یا با شماره تلفن ۷۷۲۳ ۳۶۶ ۴۱۶ تماس بگیرید.
مسعود بهنود و ماشاالله شمس الواعظین در اواسط ماه ژانویه به دعوت انجمن دانشجویان ایرانی دانشگاه یورک در تورنتو سخنرانی خواهند داشت.
همیشه همینطور بوده. دیوار دور چشمم را آنقدر تنگ کردهاند که هر چه هم سعی کنم، باز هم با نفسی غافل شدهام. به خدا سعی کردهام که یادم بماند، ولی نمیدانم چه می شود. صبح که از در بیرون میروم، به خدا نمیدانم چطور شب میشود و من - بینفس - روی تخت افتادهام، دوباره برای فردا.
نمیدانم چند ساعتی از آن ساعت پنج صبح روز جمعه گذشته بود که فهمیدم. زندگی همهشان یک آن با هم تمام شده بود و یک جا با هم قبر شده بودند؛ زیر تاق اجدادمان.
چند دقیقهای به عکس خاکروبهها خیره شدم، و بعد آرام روی مبل نشستم. آرامِ آرام. جایی که نه سرم بود و نه دلم٬ درد میکرد. کاری نبود که بکنم. همیشه همینطور بود. فقط بُغ میکردم یک گوشه و میرفتم توی فکر. نمیدانم درد از کجا شروع شد. از جانِ هزاران نفری که همه در خواب قبر شده بودند و یا از فرو ریختن شهری به قدمت تاریخم؛ یادگار گذشتهی گمشدهام. آخر مرگ که درد نداشت، خاک که درد نداشت. دردم از خودم بود. از زنده بودنم و حس کردنِ دردم. از گمشدگیام.
یاد پرتقال فروشِ توی وانت افتادم که ظهرهای بچگی را کوفتم میکرد وقتی در بلندگوی ناهنجارش داد میزد: «خونه دار و بچه دار، زنبیل و بردار بیار، پرتقال بم دارم، بمِ بم.» آن وقتها نمیدانستم بم یعنی چه. فقط به هر چه پرتقالفروش و پرتقال لعنت می فرستادم. دوباره دلم گرفت. تمام عمرم به اندازهی یک ساعتِ گذشته نه به بم فکر کرده بودم، نه به ارگش و نه به مردمش. شاید بیشتر از همه فقط به پرتقالهایش فکر کرده بودم. آن هم که همهاش لعنت بود. اصلا حتی درست نمیدانستم که بم کجا هست! بم فقط شهری نزدیک کرمان بود که ارگ بم در آن قرار داشت. از ارگ هم فقط عکسش را دیده بودم. حالا چه شده بود که بم مهم شده بود؟ نه تنها ما، که تمام دنیا در موردش صحبت می کردند. زلزله در بم نیامده بود. در تمام دنیا به جز بم آمده بود و غیرت آنها را که توانسته بود تکان داده بود. اگر نه، بم که مرده بود. دیگر نه پرتقال داشت، نه ارگ، نه آدم. فکر کردم ردِ درد را پیدا کرده ام. دردم جایی میان زندگی در غربت و وجدانم گره خورده بود. گویی طی این سالیان، هر چه قدر هم که نخواسته بودم، باز هم تنفس هوای پاک اینجا از من ذهنی خودخواه ساخته بود. اگر حالا هم ناراحت بودم، حتما به دلیل ناتوانیم بود، که نمیتوانستم بروم بم و جسد از زیر خاک بیرون بیاورم. اگر نه٬ هنوز هم چه میدانم که مرگ چه حسی دارد. یا اینکه اگر شب بخوابی و صبح بیکس و بیخانه و بیشهر بیدار شوی، چه حسی دارد. دردم میآمد و باز هم شب در تخت راحتم تا صبح میخوابیدم و صبح هم با درد بیدار میشدم، زندگی میکردم، میهمانی میرفتم، خرید میکردم و چانه میزدم و درد هم بود. دلم از خودم و دردم به هم ریخت. اگر نه مردن که درد ندارد.
یاد خانه های کوچک با دیوارهای گچی و اسبابهای کهنهی توی عکس افتادم. همان که هنوز قاب عکس مرد جوانی روی دیوار فرو ریخته اش آویزان بود. من از آن مرد چه میدانستم که اینگونه دلم برایش میگرفت. چند تا از آن عکسها به همان دیوارها، در شهرهایی به همان کوچکی و نازکی، نه چندان دور از بم بودند؟ چند زن و مرد و بچهی دیگر، با همان زندگی کوچک و اسباب کهنه در دنیا زندگی می کردند؟ حالا میلیون میلیون پول از تمام دنیا به بم می فرستادند که مردهها را از زیر خاک بیرون بکشند. اگر نه مردن که درد ندارد.
انگار قیامت شده بود و مردمِ بیخانه و اسباب بم، زنده و سالم در پیش خدا از من شکایت میکردند. دردی افقی زیر شکمم را تند تند تیغ میزد. یاد چاه امام زمان در ارگ بم افتادم. چاهی که محرم اسرار هزاران هزار زن و مرد بوده است. گویی زنان و دختران نذر و دعاهای خود را نامه میکردهاند و در چاه میانداختهاند که مراد بگیرند.
دردم را پیدا کرده بودم. دلم میخواست ته آن چاه بودم و نامههاشان را میخواندم. اگر نه٬ من از زندگی و دنیا و سختی و دل آنها چه می دانستم، اگر نامه هاشان را نمی خواندم. آخر مردن که درد ندارد.
سیاه چون روزگارِ یک ایرانی که مشتَش نمونهی خروار است، تلخ چون طعمِ چایِ پررنگ در استکانِ کمرباریکِ لبطلا.
مسعودِ بهرانی تیمسارِ بازنشستهی دربار و از نزدیکانِ شاهِ سابق، با خانوادهاش به آمریکا گریخته است تا زندگیِ تازهای را پس از انقلابِ ایران در غرب شروع کند. اگرچه غیرتش اجازه نمیدهد که خانوادهاش مطلع شوند، او برای گذراندنِ زندگی تن به کارهایی چون کارگرِ راهسازی و سیگارفروشی میدهد و قصد دارد با پولِ اندکی که پسانداز کرده است، زندگیِ خانوادهاش را سامان ببخشد و آیندهای موفق برای دو فرزندش به ارمغان آورد. کتی زنِ جوانیست که همسرش ترکش کرده و یک اشتباه در ادارهی مالیات باعث میشود خانهای که به ارث برده و آخرین امیدش برای شروعِ یک زندگیِ مستقل و آرام است، به مزایده گذاشته شود و او را به مسافرخانه ها و خیابانخوابی بکشاند. بهرانی در مزایده برنده میشود و قصد دارد خانه را پس از اندکی بازسازی به چند برابرِ قیمتِ خرید بفروشد. قانون از حلِ قائله سر باز میزند و نبرد میانِ کتی و بهرانی بالا میگیرد تا در نهایت به شکستِ دو طرف میانجامد.
فیلم با صحنهی کتی که روی بامِ حریصانه سیگار میکشد شروع میشود و ماشینهای آمبولانس و پلیس که در پس صحنه خودنمایی میکنند، به پایان می رسد. نقشِ کتی را جنیفر کانلی برندهی جایزهی اسکارِ نقشِ دومِ زن و بهرانی را بازیِ ستودنیِ سِر بن کینگسلیِ انگلیسی به زیبایی ایفا میکنند. شهره آغداشلو نقشِ همسرِ بهرانی را دارد که به سختی انگلیسی صحبت میکند.
خانهی ماسه و مه محصولِ ۲۰۰۳ و به کارگردانیِ ودیم پرلمان کارگردانِ روس، بر اساسِ رمانی از آندره دوبوسِ سوم، فیلمیست دیدنی و بهیادماندنی. داستانِ زندگیِ نسلی از ایرانیانِ راندهشده از میهنِ خویش. داستانِ پرلمان در به تصویر کشیدنِ این خانوادهی ایرانی بسیار موفق بوده است. در چشمانِ بهرانی همانچه را میبینید که در چشمانِ یک نظامیِ بازنشسته انتظار دارید. در عمقِ چشمها عظمتِ بر باد رفته و چروکِ ناتوانی بر پیشانی. نظمِ بهرانی را آنجا به تصویر میکشد که دفترش را باز میکند و مبلغِ اسنیکرزی را که خورده است از موجودی اَش کم میکند. مبلغِ باقیمانده در حدودِ چهل و نه هزار دلار است! هر روز پس از پایانِ کارِ راهسازی، به دستشوییِ هتلی میرود، پوستِ صورتش را با تیغی سنتی صاف میکند، کت و شلوار و کراواتَش را میپوشد و با بنزِ دههی هشتادَش به خانه میرود. همسرش اما اعتمادَش را به شوهرِ خود از دست داده است و هیچ فرصتی را برای سرکوفت زدن به او از دست نمیدهد.
تلاشِ کارگردان برای دوری از زیرنویسِ انگلیسی و ناتوانیِ بهرانی در سخن گفتن به فارسی باعث شده است دیالوگهای او کمی غیرِطبیعی به نظر رسد. اگرچه کلماتی چون «پسرم» را به زیبایی بیان میکند، ولی نوعِ ترکیبِ کلماتِ فارسی و انگلیسی در صحبت با همسر و پسرش برای یک فارسیزبان مصنوعی جلوه میکند. فضای فیلم سعی میکند تا اعماقِ وجودتان را از حضورِ مه در اطرافِ خانه در تمامِ ساعاتِ روز، مطلع سازد. همچنین صحنههای خشنی در فیلم حضور دیده می شوند که میتوانستند بدون خدشهدار کردنِ مفهوم به طورِ بهتری نمایانده شوند، مانندِ فرورفتنِ سه میخ در پای کتی که صدای نالهی بینندگان را در سالن بلند میکند.
از اینها که بگذریم «خانهی ماسه و مه» فیلمیست نوستالژیک، غمانگیز و افسردهکننده، و در عینِ حال دیدنی و فراموش نشدنی. فیلمی که نه تنها هر ایرانی باید ببیند، بلکه ارزشش از دیدِ یک غیرِ ایرانی هیچ کمتر نیست.
سردم است. همه ی بدنم درد می کند. پای راستم بین دو تکه چوب گیر کرده و نمی توانم تکان بخورم.
سردم است و هوا تاریک. زمان از دستم در رفته است. سردردم وحشتناک است. در ذهنم در هر لحظه هزاران نامه مینویسم، به همهی آنها که دوستشان دارم. گهگاه با این فرض که خواهم مرد، و مینویسم که بر من اکنون چه میگذرد و چه ناامیدم که آنها را دوباره ببینم و التماسشان میکنم که هرگز یکدیگر را تنها نگذارند. حس عجیبی است، انگار بدانی که داری میمیری و همهی حرف هایی که میخواستی بزنی در یک لحظه به ذهنت هجوم بیاورند. خودت مجلس ختم خودت را تصور کنی و بر رفتن خودت بگریی. گاهی با این فرض که زنده بیرون میآیم و همه زنده هستند، فقط میخواهم این لحظات را ثبت کنم و بعدها آن را بارها بخوانم و احساس خوشبختی کنم. گاهی هم با این فرض که فقط من زنده میمانم و نامههایم در اصل خطاب به مردگان است. انگار بر سر قبرشان نشستهام و درددل میکنم.
تصویر یک خانهی محکم در یک منطقهی خوب شهر و یک زندگی گرم که تصور نابودیش هم غیر ممکن است، هر لحظه در ذهنم کمرنگتر میشود. گویی مربوط به گذشتههای خیلی دور است. واقعیت ها چه زود به رویا بدل میشوند.
جایی خوانده بودم که برای واقعی ساختن رویاها، فقط کافی است که بین آنها و واقعیت یک پل بسازی. هیچ جا نخوانده بودم که واقعیت میتواند در یک آن به رویایی تبدیل شود که هزاران پل هم واقعیت جدید را نمیتوانند به آن مربوط کنند.
دکتر علیرضا نامور حقیقی، تحلیلگر مسایل سیاسی، رسالهی دکترای خود را از دانشگاه تهران با موضوع اندیشه سیاسی در ایران معاصر گرفته است. او هم اینک در کانادا ساکن است. در این گفتوگو با او به کنکاش دربارهی انتخابات مجلس در ایران و گزینههای روبروی مردم و اصلاحطلبان پرداختهایم.
اول میخواهم بدانم شما به شرکت در انتخابات از چه منظری نگاه میکنید و با چه پارامترهایی این مساله را تحلیل میکنید؟
اولین مساله به نظر من مسالهی شاخصهای تحلیل است. زیرا با آن می توان هم اقدام سیاسی را قبل از عمل و هم بعد از رخداد مورد ارزیابی قرار داد. بدون شاخص نظرات نمیتوانند مورد آزمون واقع شوند. دقت کنید اینها معیارهای من است که با آن مسایل را میسنجم. کسی که این معیارها را نداشته باشد، میتواند نظر من را هم قبول نداشته باشد. اولین شاخص در تحلیل اقدام سیاسی در حوزه مسایل ایران این است که آیا این رفتار سیاسی شما به یکپارچگی و تمامیت ارضی کشور کمک میکند یا خیر. دومین شاخص مسالهی دموکراسی است. اینکه حرکت و اقدام شما به نهادینهشدن دموکراسی کمک میکند یا نه. سومین شاخص مسالهی تولید است. این که این رفتار سیاسی به موقعیت تولید اقتصادی و ارتقای ایران در سطوح بینالمللی کمک میکند یا نه. حالا چرا اینگونه هست؟ شما اگر دقت کنید هر کشوری که هر کدام از این سه عامل را در ارتباط با هم نداشته باشد، با یک بحران مواجه میشود. شما اگر دموکراسی و تمامیت ارضی داشته باشید ولی در جنبهی تولیدی و ارتقایتان در سیستم بینالمللی دچار مشکل باشید، قطعا آن جایگاه مناسب را نخواهید داشت و دموکراسی شما هم مدام با بحران مواجه خواهد بود. مثلا دقت کنید به ایتالیا که به دلیل مشکلات اقتصادیی که دارد، همیشه ساختار سیاسیاش هم با بحران مواجه است. ایتالیا را در این زمینه با آلمان یا انگلستان مقایسه کنید. تولید اقتصادی ایتالیا همیشه پایینتر از این کشورهاست. از سویی اگر شما تولید اقتصادی بالایی داشته باشید ولی نتوانید نهادهای دموکراتیک ایجاد کنید، ساختار سیاسی شما دچار بحران میشود. بحرانهایی که کرهی جنوبی داشت ناشی از همین مساله بود. از سوی دیگر اگر شما این دو شاخص را داشته باشید ولی امنیت و تمامیت ارضی را نتوانید حفظ کنید، آن موقع هم دچار مشکلاتی میشوید که مثلا چکسلواکی دچارش بود و حتی یوگوسلاوی دچارش شد و تقسیم شد. میخواهم بگویم اینها بر هم خیلی تاثیر دارند و بنابراین وقتی کسی نگاه میکند به یک عمل سیاسی باید با این شاخصها نگاه و ارزیابی کند. اگر ما شاخص نداشته باشیم آن وقت مبنایی هم نداریم که چه چیزی درست است و چه چیزی نادرست. در بیشتر تحلیلها، افراد شاخصهایشان را از قبل مطرح نمیکنند. با شاخص است که شما میتوانید نقد کنید که این مجموعه رفتار با چیزهایی که خودش میگوید سازگار است یا نه. بنابراین از دو زاویه میتوان نقد کرد. یکی با شاخصهای خودش و دیگر این که با شاخصهای خودتان میتوانید شاخصهای آن را نقد کنید.
اما مسالهی انتخابات را میتوان از چهار منظر نگاه کرد. ۱- از زاویهی مردم عادی، ۲- نیروهای درون حاکمیت، ۳- جناح هایی که در حاکمیت نیستند مثل نهضت آزادی و نیروهای روشنفکری که در سطوح اجتماعی ایران فعالیت سیاسی اجتماعی میکنند و یکی هم از زاویهی نیروهای بینالمللی یعنی کشورهایی که به نحوی در بازی آیندهی ایران تاثیر دارند و میخواهند موثر باشند. من بحث خودم را مطرح کردم. حالا شما سوالهای خود را مطرح کنید.
حالا قبل از این که به انتخابات بپردازیم، این سوال مطرح میشود که اساسا روشهای مبارزهای که خط قرمزهای امنیت ملی، دموکراسی و تولید را به خطر نیندازند چقدر متنوع هستند یا آیا محدود به یکی دو روش بیشتر نیستند؟ با این شاخص های شما اگر ما از اول بپذیریم که از یک مسیری میرویم که نه آن خط قرمز تمامیت ارضی را به خطر می اندازد و نه تولید و روال عادی کشور و از طرفی هم مبارزه برای دموکراسی ادامه پیدا کند اصلا چند تا راه میماند؟ با این استدلال خب مجبور میشویم که برویم رای دهیم.
نه، حالا مساله فقط رای دادن نیست. برای اینکه یک جامعه بتواند آن شاخصها را بدست بیاورد و دموکراسی را نهادینه کند باید اولا بتواند از پایه شروع کند. شما باید سازمانهای غیردولتی () قوی داشته باشید. باید گروههای تحصیلکرده بتوانند در ارتباط با منافعشان دور هم جمع شوند. در عرصهی مطبوعات باید تا جایی که میشود گفتمانهای جدید تولید کرد و در عین حال مسایل عینی را مورد بررسی علمی قرار داد، چیزی که کمتر در مطبوعات ایران به چشم می خورد. این چیزها را اگر نتوانید نهادینه کنید حرکتهای از بالا مثلا این که دولت یک مقدار فضا یا آزادی بدهد براحتی برگشتپذیر است. شما دقت کنید بعد از انقلاب در فضای بازی که ایجاد شد و به خاطر انقلاب بود هیچکس نیامد از این فضا در ارتباط با موقعیت علمی جامعه، نهادینه کردن سازمانهای غیردولتی استفاده کند بلکه تبدیل شد به این که هر کس یک گروه درست میکرد. هیچکس، نه قدرت حاکم و نه گروهها مسوولانه در ارتباط با موقعیت سیاسی جامعه و آیندهی آن رفتار نمی کردند. شما دقت کنید بزرگترین گروه سیاسی مخالف ایران در آن موقع که بیشترین نیروی تحصیل کرده را جذب خود کرده بود سازمان مجاهدین خلق بود که اصلا مسوولانه به موقعیت سیاسی نگاه نمیکرد. آنها فکر نمیکردند که اگر سیاست را علیه نیروی حاکم قطبی کنند و خشونت را درساختار سیاسی وارد کنند آیا این خشونت به دموکراسی کمک میکند یا نه. معلوم نشد با چه تحلیلی وارد آن بازی شدند. آنها وارد بازیی شدند که طرف مقابل می خواست و البته هزینهی آن را همه پرداختند. متاسفانه سیاست مشکلش این است که بر خلاف حوزهی فردی وقتی وارد بازی میشوید براحتی نمی شود آمد و گفت من را ببخشید، من معذرت میخواهم. گاهی اوقات حساسیت بازی مانند پرواز خلبانهاست که شعارشان این است که در آسمان جایی برای اشتباه وجود ندارد.
شما میگویید باید پروژهی دموکراسی پیش برود ولی به این خط قرمزها برنخورد. خب، با این حساب آیا هیچ راهی جز این مسیری که دارد پیش میرود از دید شمایی که این خط قرمزها را ترسیم میکنید وجود دارد؟
من خط قرمز ترسیم نمیکنم. میگویم شاخص باید داشته باشیم. به این مفهوم که آیا این کاری که شما میکنید به این شاخص کمک میکند یا آسیب میزند. شما ممکن است در یک مملکتی امنیت را خدشهدار کنید، مثلا بگویید برای من مهم نیست کردستان از ایران جدا شود، من هیچ اهمیت نمیدهم، برای من فقط دموکراسی مهم است. یعنی شما اگر با این شاخص بیایید جلو، از زاویهی خودتان ممکن است درست باشد، ولی من آن را قبول ندارم. بنابراین من با این زاویه نگاه نمیکنم. چون من معتقدم ایران یک پتانسیل و نقطه قوتهایی دارد که به آن ارزش میدهد. مثلا شما خوزستان را از ایران جدا کنید دیگر ایران آن اهمیتی را ندارد که الان دارد. دقت کنید تولید هم شاخص اعتبار یک مملکت است. ببینید الان چین نظام دموکراتیک ندارد. آن چیزی که به چین اعتبار میدهد تولیدش است و به خاطر همین تولید و قدرتی که به آن خاطر دارد همه را مجبور میکند به او احترام بگذارند. حتی اروپاییها و آمریکاییها پروژهی حقوق بشر در مورد چین را تقریبا کنار گذاشتهاند. حرف میزنند ولی هیچوقت دنبال نمیکنند. برای اینکه نمیتوانند کاری بکنند. بنابراین قدرت به نظر من خیلی تاثیر دارد. مسالهی خط قرمز نیست. من میگویم شما وقتی میخواهید عمل کنید باید برای خودتان معلوم باشد چه چیزی مهم است. دوم هم از یک دید رئالیستی در آنالیز نیروهاست. بینید شما نمیتوانید از تحریم انتخابات صحبت کنید بدون این که بگویید بعدش میخواهید چه کار کنید. مگر از اول انقلاب نیروهای سیاسی خارج از کشور انتخابات ایران را تحریم نکردند؟ هیچکدام در انتخابات دوم خرداد شرکت نکردند. فقط در انتخابات ریاست جمهوری هفتم و مجلس ششم شرکت کردند. ۹۵٪ ایرانیهای خارج از کشور که در حوزهی سیاست بودند انتخابات دوم خرداد را تحریم کردند. بنابراین تحریم اینها تعیینکننده نیست. تحریم موقعی اهمیت پیدا میکند که یک نیروی سیاسی بعنوان آلترناتیو مطرح باشد که برای بعد از تحریم برنامه داشته باشد. بگوید آقا شما بیایید تحریم کنید و من بعد از تحریم میخواهم این کارها را بکنم. این نیرو الان وجود ندارد.
اصلاحطلبان میگویند که تحریم کنندگان هیچ برنامهای برای بعد از تحریم ندارند. این قبول. ولی آن طرفیها هم میگویند خب شما هم که تحریم نمیکنید هیچ برنامهای برای بعد از شرکت در انتخابات ندارید.
این به ضعف جریان روشنفکری در ایران بازمیگردد. من نمیخواهم بگویم اصلاحطلبان برنامه دارند. آنها هم به همین اندازه بیبرنامهاند. روشنفکری در ایران بنا به دلایل زیادی هنوز نتوانسته است اعتماد عمومی مردم را در سطح وسیع جلب کند. نتوانستهاست خودش را سازماندهی کند و نتوانسته تولید فکری خودش را بگونهای بالا ببرد که بتواند مرجع گفتاری و رفتاری حامعه باشد. مقایسه کنید با ترکیه. سازماندهیای که حزب رفاه داشت ایران هنوز نداشته است. این مشکلی است که وجود دارد. دلایلش خب بحث دیگری است. میخواهم بگویم جنبش روشنفکری در ایران بعد از سال ۷۶ امکان سازماندهی کردن خودشان را داشتند. ولی شما دو تا انجمن درست و حسابی نمیبینید که این روشنفکران زده باشند. در روزنامهها هم که آمدند متاسفانه سر مسایل مالی و غیره دعوایشان شد و اختلاف ایجاد شد. پس این اشکالات وجود دارد. در مجموع طبیعی است که اینها در ارتباط با برنامهی سیاسی ممکن است طرح مشخصی نداشته باشند و یا حداقل بخشی از طرحهایشان را نخواهند بیان کنند. در ایران ممکن است طرحهای شما، دوم و سوم داشته باشد ولی در ایران کسی که عمل میکند بنا به ملاحظات سیاسی ممکن است طرحهای دو و سهاش را بیان نکند. برای اینکه اگر بخواهد طرحهای دو و سهاش را بیان کند در طرح اول ممکن است آنها را حذف کنند. در مورد انتخابات باید ببینیم هر اقدامی شما را به شاخصهایی که من گفتم نزدیک میکند یا دور. من با این شاخصها معتقدم که اگر در انتخابات افراد بتوانند کاندیداهای مورد نظرشان را انتخاب کنند نزدیک میکند. حالا مشکلاش این است که ممکن است شورای نگهبان تایید نکند. به نظر من باید تلاش را گذاشت روی این که فشار اجتماعی بگونهای افزایش پیدا کند که شورای نگهبان وادار شود اکثریت را تایید کند همین طور که سری قبل این کار را کرد. همینطور که الان معتمدین را مجبور شد تایید کند. اگر شورای نگهبان این امکان را سلب کرد و اکثریت کاندیداها را رد کرد و وزارت کشور و رییسجمهور نیز به سوگند خود در پاسداری از آرای مردم وفادار نماندند آن وقت باید تمهید دیگری اندیشید، هر چند که معمولا شورای نگهبان در عمل در مقابل فشار افکار عمومی کنار میآید.
یکی از همین شاخصها مسالهی امنیت ملی است. زیربنای امنیت ملی هم کم شدن شکاف بین ملت و دولت است. اگر گروههای سیاسی بار دیگر مردم را به شرکت در انتخابات دعوت کنند و اتفاق انتخابات شوراها تکرار شود یک نقطه ضعف را گذاشتهاند برای همهی آنهایی که میخواهند امنیت ملی را به خطر بیندازند. به همه دنیا میگویند حتی آنهایی که اصلاحطلبند از مردم دعوت کردند بیایند و رای دهند و آنها نیامدند. شما با این کارتان این شاخص را به خطر انداختهاید.
من به این فرهنگی که قبول کنیم مردم هر چه میگویند درست است اعتقاد ندارم. چند تا ویژگی ایرانیها را باید توجه کنیم. ایرانیها در پیگیری و تداوم اهداف سیاسیشان کاهل هستند. معمولا مردم دوست دارند هر کاری سریع به انجام برسد. حدی که هزینه میکنند در خیلی موارد محدود است. مثلا خیلی از افراد در دوم خرداد فقط یک رای دادند. مردم انتظارشان باید متناسب با فعالیت خودشان هم باشد. با انقلاب فرق میکند. مردم طبیعی بود که بعد از انقلاب خواستار خیلی چیزها باشند. ولی کسانی که در انتخابات شرکت کردند بر مبنای آن چیزی که تشخیص دادند آمدهاند و شرکت کردند. بر مبنای همان هم بایستی مطالبه داشته باشند. آنها فکر میکردند با یک رای دادن که یک روز یک ساعت وقت گذاشتند - مقایسه کنید با انقلاب که عده زیادی از جانشان مایه گذاشتند - میخواستند یک دفعه همه چیز عوض شود. بعد هم در هیچ چیزی حاضر نیستند مشارکت کنند. حال شما نگاه کنید به تمام فراخوانهایی که بعد از دوم خرداد شد و جمعیتهایی که در آنها شرکت میکردند. مثلا در سخنرانی آقای خاتمی در ۱۶ آذر ۷۶ تنها ۲۰ تا ۳۰ هزار نفر آمدند. یعنی مردم حاضر نبودند بلند شوند بیایند ببینند چه خبر است. این موارد تعیین کننده است. شما وقتی حضورت را اعلام میکنی بعد حاضر نیستی مایه بگذاری نباید انتظار داشته باشی که افراد هم به شما پاسخ دهند. قانون امکاناتی را در اختیار جناح مقابل قرار داده که بتواند شما را رد صلاحیت کند. ولی همه چیز را که قانون تعیین نمیکند. نیروی اجتماعی هم تعیین کننده است. نیروی اجتماعی در انتخابات مجلس ششم باعث شد که شورای نگهبان خیلیها را تایید کند. بنابراین شما باید نیروی اجتماعی را تقویت بکنید. هر چند با این که شما با معذوریتهای حقوقی سر و کار دارید.
تکلیف نیروهای سیاسی در برابر تشخیص ملی مردم که به درست یا غلط ممکن است در انتخابات شرکت نکنند چیست؟
شما باید شاخص خودت را اجرا کنی. ممکن است ملت به جایی برسند که بگویند ما برویم از آمریکا تقاضا کنیم به ایران حمله کند و مشکل ما را حل کند. یک نیروی سیاسی نباید دنبالهروی مردم باشد. نیروی سیاسی باید آگاهی خودش را از جهانی که در آن زندگی میکند به مردم منتقل کند. چون مردم در ایران میخواهند راحتترین راه و بدون هزینهترین راه را انجام دهند. دقت کنید که در ایران که ساختار سیاسیاش با پیچیدگی سروکار دارد و شما با نیروهای پیچیدهای سروکار دارید که به راحتی انعطاف ندارند و خیلی از موارد ممکن است علیه منافع خودشان اقدام کنند. شما در چنین فضایی باید هزینههای زیادی بدهید در حالیکه جامعه نمیخواهد هزینههای زیادی بدهد. باید ببینیم حالا اگر مردم قهر کنند و شرکت نکنند چه منافعی گیرشان میآید. اولا اگر شرکت نکنند خیلی طبیعی است که ممکن است آنهایی به قدرت برسند که مخالف آنها هستند. فوقش این است که خارجیها میگویند اینها مشروعیت ندارند. آمار نشان داده که همیشه در انتخابات مجلس به خاطر منازعات قومی، ملی و منطقهای در سطح شهرهای کوچک و شهرستانها زیر ۴۰٪ شرکت نکردهاند. بنابراین مطمئن باشید آمار انتخابات ایران زیر ۴۰٪ نخواهد بود. انتخابات شوراها ۴۹٪ بوده است. در انتخابات مجلس که قطعا رقابت جدیتر است و در شهرهای کوچک از ششماه قبلش بسیج انتخاباتی است. بنابراین میانگین حضور بین ۴۵٪ تا ۵۵٪ خواهد بود. خب این چه خواهد شد؟ از لحاظ بینالمللی هیچ جایی نیست که بگوید چه انتخاباتی با چه درصد آرایی مشروع یا غیرمشروع است. الان مگر در انتخابات صربستان که دو بار تمدید شده اتفاقی افتاد؟ مگر کسی میآید مداخله میکند؟ مگر سازمان ملل این حق را دارد که بگوید در انتخابات شما ۳۰٪ شرکت کردند ما میآییم مداخله میکنیم؟ هیچ اتفاقی نمیافتد. در انگلستان همزمان با انتخابات آقای خاتمی ۴۶٪ شرکت کردند. اگر مردم در انتخابات شرکت نکنند هیچ اتفاقی نمیافتد جز این که مردم از حق خودشان صرفنظر میکنند و آن را به نیروی مخالفشان میدهند. ما در سیاست دو نیروی اجتماعی بیشتر نداریم. یا باید در گروه بازندهها باشی یا برندهها. کسی که فکر میکند در بازی نمیخواهد وارد شود بازنده است. کسی اگر بیطرف شد و گفت به من ربطی ندارد بازنده است. اتفاقا ما باید با روحیهی طلبکاری وارد بازی شویم. این که شما نماینده مجلس انتخاب کنید جزو حقوق شماست. باید دنبال این باشید که بگویید من نمایندهای را که خودم میپسندم میخواهم انتخاب کنم. برای این که این نماینده در سرنوشت شما، بچه شما و آینده مملکت تاثیر دارد. اگر نمایندهای بیاید که بیسواد باشد آن لوایحی که میگذراند به ضرر شماست. یک لایحه اقتصادی بیمورد بگذراند درآمد سرانهی بچه شما در این مملکت کاهش پیدا میکند.
این استدلال را که میشود راحت اینگونه زیر سوال برد که اصلا نماینده در ایران هیچ کاره است. بدترین تصمیمات در بالاترین قسمتهای حاکمیت گرفته میشود و نمایندهی مجلس حتی نمیتواند جلویش را بگیرد. البته شاید شما بخواهید این بحث را بکنید که نمایندهی مجلس میتواند خیلی کارهای بدی را که میتوانسته بکند، نکند.
نمایندههای مجلس در بسیاری از موارد تاثیر دارند. در انتخاب و عزل وزیران مستقیم رای دارند. در اینجا شما با شورای نگهبان سروکار ندارید. خیلی فرق میکند که وزیر آموزش و پرورش شما چه کسی باشد. این که بگویید نمایندهها هیچ تاثیری ندارند یک بحث ایده آلیستی است. مجلس در نفی یک سری از چیزها تاثیر دارد. میتواند لوایحی که از قوهی مجریه میآید را اصلا تصویب نکند. بعد از این که تصویب بکند میتواند با سد شورای نگهبان مواجه شود. ولی اگر یک لایحه را رد بکند هیچ کس نمیتواند بگوید چرا رد کردی. فرض کنید یک قراردادی که از نظر منافع ملی به ضرر ایران باشد را دولت به مجلس بیاورد. مجلس میتواند رد کند.
الان یک اکثریتی با این موضوع اتفاق نظر دارند که انتخابات یک فرصت است. این که استراتژی گروههای سیاسی چگونه میتواند از این فرصت استفاده کند را بعد از این که همه بر سر مبنا توافق کردند میتوان مطرح کرد. میتوان انتخابات را تحریم کرد نه به این دلیل که بگوییم نمایندههای مجلس مهم نیستند، بلکه به این دلیل که با یک تحریم فعال میتوانیم تغییرات عمیقتری ایجاد کنیم. مثلا شاید بتوانیم این انتخابات را به یک رفراندوم علیه مجموعه نظام تبدیل کنیم. برای اولین بار در شش سال گذشته کسانی که مردم را تشویق به شرکت در انتخابات میکردند این بار میگویند که شرکت نکنید. این بار متفاوت از دفعات گذشته است. در گذشته فقط اپوزیسیون خارج از کشور تحریم میکرد ولی این دفعه کسی چون مهندس سحابی هم تحریم میکند. یکی دیگر هم این که اگر شورای نگهبان کاندیداهای همهی گروههای سیاسی را رد کند و ما به این نتیجه رسیدیم که مجلس آینده نمیتواند تغییری ایجاد کند شاید بهتر باشد مردم را تشویق کنیم که رای سفید بدهند. شما بیست میلیون رای سفید جمع کنید. میخواهم بگویم وقتی بپذیریم که این یک فرصت است و باید از آن استفاده کنیم آن وقت گروههای سیاسی چگونه میتوانند به اجماع برسند که کدام یک از این استراتژیها میتواند مورد استفاده قرار گیرد؟ گروههای سیاسی فکر میکنند که چگونه هر اقدامی به آن شاخصها کمک میکند. وقتی آنها دیگر به این فکر نباشند که برگردند و ۲۰ تا ۳۰ درصد قدرت را برای خود نگه دارند آنگاه میتوانند این اطمینان را به جامعه بدهند که ما در این انتخابات به دنبال این هستیم که منافع ملی را حفظ کنیم. آنوقت باید خیلی باز در مورد همهی این استراتژیها حرف بزنند. من میخواهم بدانم چرا در فضای سیاسی ایران بویژه از طرف جبهه مشارکت و دیگر گروههای فعال سیاسی این مساله مطرح نیست؟ چرا این گروهها به بررسی ضمنی استراتژیای مثل تحریم فعال یا رای سفید فعال نمیپردازند؟
خب آنها را بررسی کردهاند. من معتقدم که همه، هر کسی که فکر میکند که موثر است و حقش را خوردهاند، باید بیاید ثبتنام کند. چرا که ثبتنام کردن به معنی شرکت کردن نیست. شما اگر جای هشتهزارتا صد هزارتا آدم داشتید که ثبتنام کرده بودند رد کردن آنها به این راحتی امکانپذیر نبود. پس شما ببینید همهی جوانانی که میگویند آقای نماینده، شما بدرد نمیخورید، خودشان این اعتماد به نفس را نداشتند که بروند کاندیدا شوند و بگویند که من میتوانم حرف بزنم. اینکه شما بگویید که مجلس هیچ نقشی در مملکت ندارد بحث دیگریست. من الان میخواهم این پرانتز را باز کنم که برمیگردد به بحث تئوریک قضیه. اینکه انتخابات در چه سیستمهایی کارکرد دارد و در چه سیستمهایی بیتاثیر است. انتخابات در سیستمهای توتالیتر بیتاثیر است ولی ایران یک سیستم توتالیتر نیست. برای اینکه اگر آنگونه بود و مجلس بیتاثیر بود، لزومی نداشت که شورای نگهبان بخواهد کسی را رد صلاحیت کند. اینکه جناح رقیب حاضر است برای رد صلاحیت هزینه کند یعنی اینکه مجلس موثر است. این بهترین دلیل است. وگرنه شما وقتی بدانید که هر نمایندهای وارد مجلس شود فرقی نمیکند آن وقت مسالهای نیست. نکتهی بعد اینکه ما باید قبول کنیم حداقل این انتخابات از نظر شمارش آرا به دلیل نظارتی که جناحها بر روی هم دارند دقیق خواهد بود. ببینید در زمان شاه اصلا هیچکدام از این بحثها نبود. شما بروید مطبوعات آن زمان را بخوانید. چون انتخابات موثر نبوده هیچکدام از این بحثها در ادبیات سیاسی زمان شاه هم نبوده است. برای این که آن زمان به شاه میگفتند در این شهر این آدمها خوبند و او هم می گفت اینها انتخاب شوند. آدمهای سیاسی اصلا وارد آن بازی نمیشدند. دلیل دیگر اهمیت مجلس این است که این انتخابات همیشه در ساختار سیاسی ایران فضا ایجاد کرده است. در مجلس سوم باعث انشعاب بین روحانیون و روحانیت شد. در مجلس چهارم جناح چپ از قدرت رانده شد. در مجلس پنجم حضور کارگزاران را داریم و در مجلس ششم باعث روی کار آمدن جناحهایی مثل مشارکت شده است. همیشه این مجلس به علت اینکه در ارتباط با واقعیات اجتماعی و تودههای مردم است فضای سیاسی و گفتمان جدید ایجاد کرده است. در یک جاهایی ممکن است انتخابات اصلا سیاسی نباشد. در خیلی از کشورها انتخابات است. در سیستم ایران انتخابات مجلس به نظر من سیاسیترین فضایی است که ایجاد میشود، حتی سیاسیتر از انتخابات ریاست جمهوری. علتش هم این است که انتخابات مجلس آزادتر از ریاست جمهوری است. در انتخابات ریاست جمهوری یک اختیارات کاملی از لحاظ حقوقی به شورای نگهبان داده شده است تا تعداد کسانی که میتوانند کاندیدا شوند بسیار محدود شود. ولی در انتخابات مجلس اختیارات شورای نگهبان محدودتر است. حداقل باید عدم صلاحیت کاندیدایی را احراز کند و به این راحتی نیست. در ضمن وزارت کشور هم در آن موثر است. البته دقت کنید مفهوم آزادی مقایسهای و نسبی است.. همین که عدهای به هر دلیلی بسیج میشوند تا به مجلس روند مهم است. حتی ممکن است عدهای بخواهند نمایندهی مجلس شوند و از این طریق سود ببرند. این هیچ اشکالی ندارد. اصلا تمام کسانی که وارد سیاست میشوند دنبال سود هستند. کسی که برای رضای خدا نمیرود پست و مقام بگیرد. سیاست یک سری منافع دارد مثل هر کاری که دیگران میکنند. بنابراین آدمها وارد بازی میشوند و انگیزهیشان مهم نیست. مهم تاثیرات اجتماعیاش است که فضا را باز میکند. بعد هم اینکه اگر مجلس یک کشوری یکدست شود نظارت بر سیستم از بین میرود. آن هم برای کشوری مثل ایران که درآمد نفتی دارد که در دست دولت است. این خطری برای ایران است. بنابراین مجلس هم از این بابت موثر است. بنابراین از دید تئوریک انتخابات نقش دارد.
در مورد رای سفید دادن، برای استراتژیهای دیگر بستگی دارد که چگونه برخورد کنیم. شما باید ببینید که اگر رای سفید دهید آیا انتخابات باطل میشود یا اینکه تنها نمایندهی جناح مقابل انتخاب میشود. اگر قانونی برای ابطال انتخابات وجود داشته باشد شاید بتوان در مورد رای سفید دادن صحبت کرد. ولی الان رای سفید دادن نتیجهاش با اینکه شما شرکت نکنید یکی است. یعنی وقتی آرای شما باطل شود باز هم آن جناحهایی که رای کمتری دارند روی کار میآیند.
شما نتیجهگیری سیاسی را اصلا در نظر نمیگیرید؟
حداکثر مانند انتخابات شوراها میشود که ۴۰ تا ۵۰ درصد شرکت کردند. ۱۵ درصد رای دادند، ۶۵ درصد اعلام مخالفت کردند.
اگر در یک انتخابات ۲۵ میلیون شرکت کنند و ۱۵ میلیون رای سفید دهند آن مجلس دیگر مشروعیت ندارد.
شما باید ببینیند این آیا واقعگرایانه هست یا نه؟ در شهرستانها این اتفاق میافتد یا نه؟ من میخواهم بگویم در شهرهای کوچک و شهرستانها به خاطر رقابتهای قومی این اتفاق نمیافتد. بحث برمیگردد به این که انتخابات را از نگاه چه کسی میبینیم. اگر از نگاه مردم نگاه کنید ماجرا فرق میکند. در شهرستانها با این استراتژی نگاه نمیکنند. آنها احساس میکنند که در مواقعی باید رای دهند تا کسی از آدمهای خودشان داخل مجلس برود. آنها به نماینده به عنوان پلی برای حل مسایل محلی و منطقهای نگاه می کنند.
یک مساله هست و آن اینکه یک زمان از موضع فردی بررسی میکنیم که آیا من بهتر است رای بدهم با ندهم. یک موقع از نظر یک نیروی سیاسی بحث میکنیم که آیا در انتخابات مشارکت بکنیم یا نه. حال بگذارید من از نظر مردم بگویم. از نظر آنها که میگویند تحریم باید کرد. یک دلیلشان این است که میگویند اصلاحات در عمل جواب نداده و به بنبست رسیده و مجلس هم نشان داده است که در عمل قدرت خاصی ندارد. این حاکمیت دوگانهای که الان وجود دارد بیشتر باعث میشود که تنها در رسیدن ما به آن اهدافی که میخواهیم تاخیر بیفتد. با اصلاحات ما به دموکراسی نمیرسیم و تنها ماجرا را به تاخیر میاندازیم. حاکمیت دوگانه است و بنابراین سیستم قفل میکند و هیچ کاری نمیتواند بکند. پس اصلا ما بیاییم بیرون و حکومت مال اینها باشد. این حکومت هم قاعدتا دوام نمیآورد. قبول دارم اینجا یک مشکل پیش میآید و آن این که حالا اگر حکومت دوام نیاورد بعد چه میشود.
به دلایل مختلف معلوم هم نیست دوام نیاورد.
بله، منظر دوم این است که چون مشارکت مردم کم است اصلا اصلاحطلبها پیروز نمیشوند. تنها کاری که اصلاحطلبان با لیست دادن میکنند این است که به انتخابات مشروعیت میدهند. شما چه شرکت بکنید چه نکنید رای نمیآورید پس چه بهتر که شرکت نکنید. دلیل سومی هم این که به نظر نمیآید اصلاحطلبان اصلا به فکر این باشند که تغییر استراتژی بدهند. یکی از راههایی که مردم میتوانند پیامشان را به اصلاحطلبان برسانند این است که در انتخابات شرکت نکنند. این که مردم هر دفعه در انتخابات شرکت کنند اصلاحطلبان اصلا به این فکر نمیافتند که کاری انجام دهند. لااقل این رای ندادنها میتواند تلنگری باشد به اصلاحطلبان که اگر شما پشتیبانی ما را میخواهید باید لااقل کاری بکنید. البته باید دقت کنیم که این سه دلیل از یک منظر نمیآید و هرکس طبیعتا یکی از این دلایل را دارد. حال ابتدا شما بپردازید به حاکمیت دوگانه و این که به چه دلیل تداوم حاکمیت دوگانه به این شکل به سود منافع ملی ماست؟
یک عده معتقدند اگر حاکمیت یکپارچه شود مسایل مملکتی بهتر حل میشود. ولی معلوم نیست شما به دموکراسی نزدیکتر شوید. بعضی معتقدند اگر مسالهی حاکمیت دوگانه حل شود، مسالهی ایران و آمریکا هم حل میشود، بخشی از فشارهای اجتماعی هم کاسته میشود و بعد برخی کارهایی که اینها خودشان هم مخالفند را مجبور میشوند با دست خودشان انجام دهند. اگر این حرف را قبول کنیم بهترین راه و کم هزینهترین راهش این بود که آقای خاتمی در انتخابات دور دوم شرکت نمیکرد. بدینترتیب خشونتی هم اتفاق نمیافتاد. چرا که شاخص ما باید این باشد که خشونت کمتری متوجه جامعه شود. من از زاویه خودم میگویم. من چیزی را توصیه میکنم که خودم بتوانم انجام دهم. کسانی که توصیهی کارهایی را میکنند که خشونتآمیز است ولی خودشان حاضر نیستند انجام دهند قابل قبول نیست. آدمی که خارج از ایران است و راهحلی میدهد که در آن خشونت است، من موقعی از او قبول میکنم که خودش حاضر باشد برود ایران و این خشونت را در ارتباط با خودش پذیرا باشد. بخشی از شعارهایی که اپوزیسیون در خارج از ایران میدهد غیرمسوولانه و از زاویهای هم غیرانسانی است. یعنی شما در جایی که زندگی میکنید رعایت مقررات قانونی را میکنید برای این که خوب زندگی کنید ولی از یک عدهی دیگر میخواهید تا قانون را رعایت نکنند تا شما به اهداف خودتان برسید. به حاکمیت دوگانه بازگردیم. کسی که این حرف را میزند باید از خاتمی هم بخواهد که فوری تقاضای انتخابات ریاستجمهوری هم بکند. نمیشود دوباره مجلس دست یک جناح باشد و دولت دست جناح دیگر. کسانی که این شعار را میدهند باید بروند روی این سیاستگذاری در حالیکه اینطور نیست. از سویی باید دید حاکمیت یگانه در دولتهای نفتی مانند ایران منجر به چه چیزی میشود. کسانی که این حرف را میزنند آیا میخواهند سیستم دچار فروپاشی شود یا میخواهند مسایل سیستم حل شود؟ مثلا آقای سحابی در مصاحبهاش با ماهنامه آفتاب از زاویه فروپاشی بحث کرده است. ولی مشخص نکرده است بعد از فروپاشی چه اتفاقی میافتد. از نظر شاخصهای من، اگر فروپاشی اتفاق بیفتد آن سه شاخص را از دست دادهایم. بعد از فروپاشی معلوم نیست چه اتفاقی میافتد. انقلاب میشود؟ کشور تجزیه میشود؟ چه میشود؟ ایران وضعیت خیلی پیچیدهای دارد. ایران دولت نفتی است و با دولتی مثل گرجستان فرق میکند. ایران از جنبهی قومیتی خیلی متنوع است. نیروهایی ندارد که بتوانند همبسته عمل کنند. دیگر مانند انقلاب ۵۷ هم کسی را ندارد که بتواند همه را زیر چتر خودش بیاورد. انقلاب ۵۷ خیلی متفاوت بود. به این راحتی ممکن است در تاریخ ایران تکرار نشود که برای تغییر، وحدت نظری ایجاد شد. بنابراین با توجه به این وضعیت معلوم نیست این اتفاق بیفتد. حالا چه اتفاقی میتواند بیفتد؟ میتواند یکپارچه شود. من نمیخواهم بگویم یکپارچگی مشکلات مملکت را کمتر حل میکند. از زاویهی حل مسایل ایران، اقتصادی و از زاویهی امنیت ملی این حرف خوبی است.
من از زاویهی حفظ اعتبار نیروهای سیاسی میخواهم صحبت کنم. وقتی نیروهای سیاسی معتبر داخل کشور از حاکمیت خارج شوند و تبدیل به اپوزیسیون بشوند هنگام فروپاشی حاکمیت و نه کشور، اینها میتوانند بعنوان آلترناتیو مطرح شوند.
من به پتانسیل این نیروی سیاسی شک دارم. بینید من حرف شما را وقتی میتوانم قبول کنم که ما یک نیروی سیاسی دست به نقد داشته باشیم که واقعا آماده باشد هزینه کند و نقش ایفا کند. شما نگاه کنید کارگزاران تا در قدرت بود جریان مهمی بود ولی بعد کمرنگ شد. حتی یک کنگره هم نتوانست برگزار کند. حزب مشارکت هم من شک دارم بعد از این که از قدرت رانده شود بتواند مسایلش را حل کند. دقت کنید بخشی از تواناییهای اینها مربوط به دسترسیشان به سیستم است. ما نیروی سیاسی متشکل در بیرون سیستم نیز جز نهضت آزادی نداریم که آن هم با محدودیتهای بسیاری رو بروست.
اگر همه با هم خارج شوند و یک اپوزیسیون متحد ایجاد کنند چه؟
اگر چنین امکانی باشد خوب است. ولی من شک دارم. ببینید اگر در جایی انتخابات آزاد نباشد و حقوق طبیعی شما را رعابت نکنند شما باید تلاشتان را بکنید تا حقتان را بگیرید. میتوانید در این حالت تحریم بکنید و نگذارید از کارتتان استفاده کنند. ولی مهم این است که پتانسیل این نیرو چقدر است. فرض کنید نیروهای مخالف بگویند که در انتخابات شرکت نمیکنند. فکر میکنید به خاطر بیان اینها چند درصد در انتخابات شرکت نمیکنند؟ اگر آقای خاتمی انتقاد جدی کند و بگوید این انتخابات را آزاد نمیداند ممکن است دامنهی تحریم بالا رود. ولی ممکن است خاتمی این کار را انجام ندهد. معلوم نیست این نیروهای سیاسی چقدر در مردم نفوذ داشته باشند. من در این شک دارم.
این در حالی است که شما میگویید اینها این اندازه نفوذ دارند که در انتخابات رای بیاورند.
بله، برای این که ملت میآیند رای میدهند ولی وقتی قرار باشد هزینه کنند معلوم نیست اکثریت مردم چقدر حاضرند هزینه کنند. مثلا اگر به مردم بگویید گردهمایی کنید ولی ممکن است در این گردهمایی ده نفر را بگیرند، شاید خیلیها نیایند. ولی کسی را به خاطر شرکت در انتخابات نمیگیرند. اگر موقع انتخابات ۷۶ میگفتند بیایید فلان جا گردهمایی و تظاهرات بکنید نصف این جمعیتی که آمدند رای دادند نمیآمدند. خیلیها برای این آمدند که مهم نبود. آمده از خانهاش بیرون ده دقیقه نه دو ساعت وقت گذاشته است. انتخابات قبلی خب خیلیها چهار پنج ساعت در صف ایستادند. در همین حد هزینه کردهاند.
حالا از این طرف نگاه کنید که حاکمیت دوگانه ما را به کجا خواهد برد؟
من هم معتقدم ادامه حاکمیت دوگانه از لحاظ تولید اقتصادی، مسایل سیاسی خارج از کشور و بسیاری جنبههای دیگر به ضرر ماست. البته بخشی هم مربوط به این است که دولت خاتمی میتوانست کاری بکند که وارد این بازی حاکمیت دوگانه نشود. دولت خاتمی در حوزههایی که قدرت داشت مقتدرانه عمل نکرد. در یک مواقعی دولت آقای خاتمی فرصتهای تاریخی را از دست داد. در حوزهی اقتصادی خاتمی هیچ بسیجی نکرد. ایران نیاز داشت که تولیدش را افزایش دهد. ایران نیاز داشت که رفتار مصرفی جامعه تغییر پیدا کند. جامعه ایران بدون تولید فقط مصرفکننده است. آقای خاتمی نیاز داشت انضباط اقتصادی شدید ایجاد کند. در حوزههایی که مردم با سیستم بوروکراسی روبرو هستند دولت هیچ طرحی برای این که بخشی از این مشکل را حل کند ارایه نداد. بسیاری از نارضایتیهای مردم ناشی از سیستم اداری است که خاتمی نه توانست آن را خادم کند و نه پاسخگو. علاوه بر این مهره چینی سیستم اجرایی نیز غیرکارا و بدون معیار بود. رویایی که خاتمی در انتخابات آن را مطرح کرده بود. آقای خاتمی از این نیرویی که باعث شده بود به قدرت برسد هیچ نمایندهای را وارد حاکمییت نکرد. نیروی جوان متخصص و تحصیلکرده که فرض کنیم بین ۲۰ تا ۳۵ سال سن داشت در سیستم تزریق نشد حتی بعنوان نیروی مشاور. آقای خاتمی چون نشان نداد که مقتدر است در حوزه سیاسی که موانعش هم بیشتر است طبیعی است که کارش پیش نمیرفت. در سیاست خارجی هم نتوانست مقتدرانه عمل کند. در زمان کلینتون امکان بهبود روابط ایران و آمریکا وجود داشت و آقای خاتمی در بسیاری موارد هم با مانعی روبرو نبود. ولی هیچ کاری نکرد. حاکمیت دوگانه که از ابتدا این گونه نبود. خاتمی تنها در زمینهی اقتصادی یک کار مهم کرد و آن هم ریخت و پاشی که در قبل بود را کم کرد. مثلا صندوق ویژهی ریاست جمهوری را لغو کرد. ولی عملا خاتمی از نیرویی که جامعه در اختیارش داد برای افزایش تولید استفاده نکرد. دقت کنید در جامعه ایران تولید خیلی مهم است. اگر شما تولید را بالا ببرید بخشی از این دعواها فراموش میشود. این دعواها مال جامعهای است که تولید ندارد و همه میخواهند از پول نفت استفاده کنند. دولت خاتمی حتی تلاش نکرد به آن طبقهای که او را به قدرت رسانده کمک کند تا موقعیتی کسب کند.
حالا فرض کنید با یک پیشبینی خیلی خوشبینانه اصلاحطلبان در مجلس هفتم یک اکثریت ۱۵۰ نفره داشته باشند و بعد با این تجربه به انتخابات ریاستجمهوری نزدیک شویم.
اگر آقای خاتمی خودش را بازتولید کند در هر حوزهای، اگر آقای خاتمی مقتدرانه عمل کند در حوزهی اقتصاد، در حوزهی قضایی هم مقتدرانه بایستد و بخواهد همان قانونی که جمهوری اسلامی دارد عمل شود، نه این که فقط از حقوق کسانی دفاع کند که میشناسند یا مشهورند، به نظر من موفق خواهد شد وگرنه میرود به دورهی بعدی انتخابات ریاستجمهوری. بعد هم ممکن است انتخابات ریاستجمهوری دست جناح مقابل باشد این دوگانگی ادامه پیدا کند. من میخواهم بگویم معلوم نیست اگر حاکمیت یکپارچه شود مشکلات ایران کمتر شود. وقتی جناح مقابل هم به قدرت برسد بین خودشان انشقاق میشود. چون منفعت ایجاد میشود. همین الان بر سر کاندیداها اختلاف پیدا کردهاند چه برسد وقتی بحث انتخاب کابینه پیش بیاید. ما باید ساز و کاری را پیدا کنیم که ساختار حقوقی جامعه تقویت شود تا افراد در جامعه قواعد بازی را رعایت کنند. اگر این اتفاق نیفتد و حاکمیت یکپارچه هم شود مشکلی حل نمیشود. پیچیدگی جناح مقابل فقط این نیست که با اصلاحطلبان مشکل دارند. اینها با یک سری تناقضات مانند مشکل ریزش نیرو مواجه هستند. مثلا از لحاظ اجتماعی بخواهند فضا را خیلی باز کنند نیروهای اجتماعی خودشان ریزش پیدا میکنند. اگر بخواهند ببندند با جامعه مشکل پیدا میکنند. جناح مقابل چند تا مساله را متوجه نمیشود. یکی این که وضعیت بینالمللی تغییر کرده است. الان ما با یک بحران امنیتی مواجه هستیم. آمریکا بعد از حل مشکل لیبی، سوریه و کرهشمالی به سراغ ما میآید. در انتخابات بعدی اگر جمهوریخواهان و حتی دموکراتها انتخاب شوند ایران زیر فشار قرار خواهد گرفت. دقت کنید تحریم اقتصادی ایران در زمان دموکراتها اتفاق افتاد. کلینتون تحریم را امضا کرد نه بوش. میخواهم بگویم فرقی نمیکند دموکراتها یا جمهوریخواهان بیایند سر کار. اینها دیگر به ایران اجازه نمیدهند که در بعضی از حوزهها مانند غنیسازی اورانیوم وارد شود. ایران مشکل اعتمادسازیش در سطح بینالمللی خیلی جدی است. جناح مقابل هم در سطح داخل و هم در سطح خارج باید اعتمادسازی کند. اگر نخواهد در قدرت شریک داشته باشد به نظر من در برنامه اعتمادسازیش با مشکل جدی روبرو میشود. بخشی از آنها هم این موضوع را متوجه شدهاند. تازه همهی اینها مستلزم این است که شما نفت ۳۰ دلار داشته باشید. با افزایش جمعیت و کاهش قیمت نفت همهی این مسایل به هم میریزد. آنها الان به این نتیجه رسیدهاند که چهرههای شاخص در مجلس را که میتوانند از خطوط قرمز رد شوند رد صلاحیت کنند و بقیه را تایید کنند. همین سروصدایی که کردند باعث شد که خیلی از آدمهای تحصیلکرده که سیاسی نیستند، دلشان برای ایران میسوزد ولی نمیخواهند وارد دعوای سیاسی شوند، کاندیدا نشدند. شما چند تا حقوقدان برجسته دارید که کاندیدا شدهاند؟ هیچی. در مجلس قبلی هم هیچ نداشتیم. در کمیسیون سیاست خارجی یک نفر هم نبود که انگلیسی را درست و حسابی صحبت کند. پیشاپیش کلی از آدمهایی که باید میآمدند نیامدند. جناح مقابل به این نتیجه رسیده که ده تا بیست نفر از آدمهای مهم را ردصلاحیت کند و بقیه را تایید کند. اینجا مشکل اصلاحطلبان است که تصمیم بگیرند.
مشکل اصلاحطلبان الان این شده که حالا که چهرههای شاخصی کاندیدا نشدهاند به مردم بگویند به چه کسانی رای دهند.
بلی، این مشکل هست که به نظر من پاشنهی آشیل جریانی است که میخواهد مردم را به رای دادن تشویق کند. به هر حال باید راهحلی پیدا کنند که اگر در این وضعیت احتمال پیروزی هم بدهند چگونه یک لیست بدهند و شرکت کنند. دقت کنید در انتخابات شوراها اگر اصلاحطلبان یک لیست میدادند رای میآوردند.
چرا فکر میکنید آن چه در کشورهایی چون گرجستان اتفاق افتاد در ایران ممکن نیست اتفاق بیفتد؟
ببینید تئوریهایی که امثال آقای راشدان مطرح میکند چند تا مبنا دارد. یکی این که مثلا اگر کسی با این ده هزار تا نیروی مردمی مخالفت کند نیم ساعت بعد نیروهای سازمان ملل در تهران هستند. این حرف بی معنی است. اصلا سازمان ملل در مورد چه موضوعی توانسته به این سرعت توافق کند که این موضوع دومش باشد. در مورد عراق با این همه فشار آخر نتوانستند اجماع کنند. در مورد بوسنی و هرزگوین هم اینها کلی طول کشید تا مداخله کردند. نکته دوم این است که در این ساختار سیاسی مجموع نیروها باید به این نتیجه رسیده باشند که خروجشان از حاکمیت مشکلی ایجاد نکند. در ایران همچنین تلقیای وجود ندارد. چون ادبیات اپوزیسیون بویژه اپوزیسیون برانداز خشونتآمیز است قطعا طرف مقابل را به واکنش وا میدارد. نیروی مدافع در جناح مقابل بهگونهای نیست که نایستد و دفاع نکند. در مورد گرجستان اولا معلوم نیست که مشکل اینها حل شده باشد. حکومت گرجستان یک حمایت بینالمللی داشت و رابطهی اقتصادی بسیار نزدیکی با آمریکاییها داشتند. اخبار نشاندهنده این بود که آمریکاییها به شواردناتزه توصیه کرده بودند بدون خشونت کنار برود و او هم حرف آنها را گوش کرده بود. در ایران چنین مسالهای وجود ندارد. حاکمیت ایران به نیروی خارجی وابسته نیست که به آنها توصیه کند تا کنار روند. اروپای شرقی هم همینطور بود. در آنجا فروپاشیها وقتی اتفاق افتاد که دولت حامی دولت حاکم که همان شوروی بود فروپاشید. قبل از فروپاشی شوروی وقتی در چکسلواکی و مجارستان در سالهای ۱۹۶۸ و ۱۹۵۶ قیام رخ داد بلافاصله سرکوب شد. همهی اینها آن هنگامی اتفاق افتاد که اینها نیروهایشان را بیرون کشیدند. در این کشورها آمادگی برای انقلاب بود ولی دولت به زور فشار بیرونی سرپا بود. همین که آن زور برداشته شد دولتهای اروپای شرقی هم فرو پاشیدند.
شما باید مدلها را بررسی کنید. بعد هم دقت کنید شما در ایران با دولت نفتی سروکار دارید. این را از تحلیلتان بیرون بیاورید تمام تئوریهایتان دچار مشکل میشود. در دولت نفتی امکانات جامعه در دست دولت است. خود جامعه تولید ندارد. بنابراین دولت بخش وسیعی از نیروهای هوادار خودش را به زور آن منافع نفتی جذب میکند. در اکثر این موارد دولتها نفتی نبودند. تنها دولت نفتی که شما انقلاب از پایین به بالا دارد خود ایران در سال ۵۷ است. در الجزایر هیچ انقلابی موفق نشد. در کشورهای عربی هیچ وقت اتفاقی نیفتاده است. در دولتهای نفتی چون پول در دست دولت است جامعهی مدنی به راحتی شکل نمیگیرد. موقعی جامعهی مدنی شکل میگیرد که دولت مالیات بگیرد. یکی از دلایلی که شعار جامعهی مدنی دولت آقای خاتمی کار نکرد به این دلیل بود که نتوانست اقتصادش را طوری سازمان دهد که بر مالیات بچرخد. ایران را با هیچ کشور دیگری نمیتوانید مقایسه کنید. ایران را باید با مدل ایران بررسی کرد. مدل گرجستان در مورد ایران کار نمیکند. هیچ جای دنیا شما رییسجمهور ندارید که بخواهد نقش اپوزیسیون را بازی کند.
میخواهید حالا یک جمعبندی بکنیم.
محورهایی که بحث شد یکی شاخصهای تحلیل بود که مطرح کردیم و حرف من این بود که اگر بتوانیم از لحاظ اجتماعی فشار بیاوریم و انتخابات آزادی برگزار شود میتوانیم کمک کنیم که در مسالهی دموکراسی در ایران یک گام به سمت جلو برداریم. باعث میشود یک نوع ثبات سیاسی در ایران حاکم شود و این در مسالهی تولید و جلب سرمایهگذاری خارجی نقش موثرتری ایفا کند. نکتهی دیگر این که تلاش کسانی که معتقدند باید از بیرون و بوسیلهی نیروهای خارجی مشکل حکومت را حل کنند کمرنگ خواهد شد و همهی تلاشها معطوف به تغییر از درون سیستم خواهد بود. دوم این که بحث کردیم که در شرایط ایران انتخابات بیتاثیر نیست. گفتیم که انتخابات در گفتمان سیاسی ایران و شکلدهی نیروهای جدید نقش موثری داشته است. نکته دیگر این که برای ارزیابی انتخابات باید از زوایای گوناگون نگاه کرد. از زاویهی مردم، در شهرهای کوچک و روستاها مردم نگاه استراتژیک و سیاسی به مساله ندارند. بلکه نگاه محلی دارند. در شهرهای بزرگ اگر اصلاحطلبان بتوانند ۵۰ درصد مردم را به صندوقهای رای بکشانند با توجه به این که جناح مقابل یک رای ثابت ۱۰ تا ۲۰ درصدی دارد قطعا پیروز خواهندشد. از زاویهی نیروهای سیاسی هم دیدگاههای مختلف را مطرح کردیم. بخشی معتقدند که دوگانگی در حاکمیت به ضرر ایران خواهد بود و بهتر است حاکمیت یکپارچه شود. بحث کردیم که در شرایط بینالمللی این گزینهی خوبی نیست و حرکت ایران به سمت دموکراسی را با مشکل مواجه میکند. گفتیم به هر حال حضور در مجلس به لحاظ قدرت نظارتی و اختیارات دیگری که دارد مهم است. از زاویهی روشنفکران بیرون سیستم هم باید توجه کرد. به ضعفهای بنیادی این نیرو پرداختیم. گفتیم نیروهایی که میخواهند کل سیستم سقوط کند تمایل ندارند به این راهحلها نگاه کنند و مایلند شرایط سیاسی ایران را قطبی کنند. اما تجربه نشان داده که این اتفاق در ایران با خشونت همراه خواهد بود. و معمولا نتایج خوشایندی هم ندارد.
با توجه به مختصات ایران در عرصهی بینالمللی و تهدیدهایی که متوجهش است، با توجه به مختصات اقتصادی دولت نفتی در ایران و امکاناتی که دولت نفتی در جذب عناصر تکنوکرات دارد و توزیع ثروت، با توجه به ویژگیهای نیروهای سیاسی که در درون ساخت سیاسی ایران فعالیت میکنند و با توجه به ضعفهای جنبش روشنفکری و نقاط ضعف و قوت جریان مقابلشان در مجموع بایستی دقت کرد که راه تغییر در ایران به سادگی تغییراتی که در سال ۵۷ اتفاق افتاد نیست. ما موقعی که راهحلهای ساده داشته باشیم یا ببینیم که در اطرافمان اتفاقات ساده میافتد ممکن است این توهم برای ما ایجاد شود که راهحل ما هم ساده است. اگر معتقدیم که ما نباید به سمت انقلاب به مفهوم راهحل خشونتآمیز قدرت برویم بایستی راهحلهایی را انتخاب کنیم که طولانیترند ولی ممکن است نتایج کمتری به شما بدهند. ولی راهحلهای دیگر مبهم هستند. من ترجیح میدهم سراغ این راهحلها نروم. تجربهی ایران در گذشته نشان داده این راهحلها میتواند به نتایج و پیامدهایی منجر شود که بسیار متفاوتتر از آن چیزی است که شما در ابتدا در ذهنتان داشتهاید.
از انجمنها چه خبر:
کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو با قرار دادن چند میز در سطح دانشگاه در روز ۷ ژانویه برگههای کمکرسانی به زلزلهزدگان را بین دانشجویان دانشگاه تورنتو توزیع کردند.
گروه تورنتو-ایرانیان در مجموع با فعالیتهای خود توانست ۱۳ هزار دلار کمک برای زلزلهزدگان بم جمعآوری کند. تا کنون صلیب سرخ کانادا از محل کمکهای مردم یک میلیون و چهارصد هزار دلار دریافت کرده است. کمیتهی کمک رسانی به زلزلهزدگان بم نیز در مجموع حدود ۱۰۰ هزار دلار کمک جمعآوری کرد.
کانون اندیشه، گفتوگو و حقوق بشر تورنتو در روز ۱۰ ژانویه جلسهای برای بزرگداشت زلزلهدگان بم و جمعآوری کمکهای مالی در سالن برگزار کرد. دیوید میلر شهردار تورنتو و جک لیتون رییس حزب کانادا نیز در این مراسم حضور داشتند و در این باره صحبت کوتاهی نیز کردند. در این جلسه اتحادیهی کارگران اتومبیلسازی کانادا ۱۰۰ هزار دلار و دو اتحادیهی دیگر هر کدام ۱۵ هزار دلار به زلزلهزدگان بم کمک کردند. گزارش این جلسه در روزنامهی شرق نیز منتشر شد.
از سخنرانی چه خبر:
مسعود بهنود و ماشاالله شمسالواعظین که به دعوت انجمن دانشجویان ایرانی دانشگاه یورک به تورنتو آمده بودند، در روز ۱۷ ژانویه در دانشگاه تورنتو برای ایرانیان شهر تورنتو سخنرانی کردند. بعد از سخنرانی، جلسه به صورت پرسش و پاسخ ادامه پیدا کرد. گزارش کامل این جلسه را میتوانید در اینجا بخوانید.
دانشکدهی خاورمیانهشناسی و دانشکدهی تاریخ دانشگاه تورنتو به مناسبت سالگرد انقلاب ایران، سلسله سخنرانیهایی برگزار کرده است. در روزهای ۲۱ و ۲۸ ژانویه به ترتیب دکتر تد لاسن () دربارهی «فلسفه و بنیادگرایی» و ماشاالله شمسالواعظین دربارهی «انقلاب و توسعهنیافتگی» سخنرانی کردند.
دکتر علیداد مافینظام در روزهای ۱۶ و ۲۳ ژانویه در جلسات گروه نگاه دربارهی مارشال مکلوهان، متفکر برجستهی کانادایی صحبت کرد.
از فیلم و تلویزیون چه خبر:
انجمن دانشجویان ایرانی دانشگاه تورنتو فیلم «خانهای روی آب» به کارگردانی بهمن فرمانآرا را در روز ۷ ژانویه در دانشگاه تورنتو به نمایش گذاشت. از محل فروش بلیت این مراسم ۳۰۰ دلار جمع شد که برای زلزلهزدگان بم اختصاص یافت.
کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو فیلم «زندگی و دیگر هیچ» ساختهی عباس کیارستمی را با زیرنویس انگلیسی در روز ۸ ژانویه در دانشگاه تورنتو پخش کرد. بینندگان این فیلم حدود ۱۰۰۰ دلار به آسیبدیدگان زلزلهی بم کمک کردند. این کانون در مجموع تاکنون ۴۵۰۰ دلار کمک جمعآوری کرده است.
پانزدهمین جلسهی «شب سینمای هنری» بعد از یک وقفهی طولانی در روز ۲۲ ژانویه برگزار شد. در این جلسه پس از نمایش فیلم «» ساختهی لوییس بونویل حاضرین به نقد و بررسی آن پرداختند. این جلسات هر دو هفته یک بار پنجشنبهها در اتاق سمعی بصری کتابخانهی روبارتس برگزار میشود. علاقهمندان میتوانند با ایمیل () () تماس بگیرند.
از سیاست چه خبر:
علی احساسی، حقوقدان و از فعالین جامعهی ایرانی تورنتو قصد دارد خود را برای انتخابات مجلس نمایندگان کانادا از طرف حزب لیبرال برای منطقهی تورنتو نامزد کند. وی برای این که از طرف حزب لیبرال به عنوان نامزد انتخابات مطرح شود ابتدا باید در انتخابات داخلی اعضای حزب لیبرال منطقهی که در اواخر ماه فوریه برگزار میشود، به رقابت با هفت نامزد دیگر بپردازد.
هفده عضو از ۳۸۰۰ عضو گروه مجاهدین خلق که تحت بازداشت نیروهای آمریکا هستند، اقامت دایم و یا گذرنامهی کانادایی دارند. وزارت امور خارجه کانادا میگوید قرار است در برابر وضعیت اعضای این گروه که امکان دارد به ایران اخراج شوند، با مقامهای آمریکایی مذاکره نمایند. وکیل کانادایی این ۱۷ تن در تلاش است تا با همکاری وزارت امور خارجهی کانادا، اعضای تحت بازداشت این گروه را به کانادا بازگرداند. در همین راستا تلویزیون در بخش خبری روز ۸ ژانویه گزارشی در این باره پخش کرد.
دیگر چه خبر:
روزنامهی دانشجویی وارسیتی () دانشگاه تورنتو در گزارشی به شرح فعالیتهای دانشجویان ایرانی دانشگاه تورنتو برای آسیبدیدگان زلزلهی بم پرداخت.
کنسرت «همبستگی» به همت کمیتهی کمکرسانی به زلزلهزدگان بم در روز ۳۱ ژانویه در سالن برگزار شد. در این کنسرت که با حضور افتخاری استادان موسیقی و رقص برگزار شد، ژیان قمیشی هنرمند و نازنین افشارجم دختر شایستهی کانادا در سال ۲۰۰۳ مجریان برنامه بودند. تمام درآمد این کنسرت برای کمک به زلزلهزدگان بم مصرف خواهد شد.
انجمن دانشجویان ایرانی دانشگاه تورنتو برای دومین سال، جشن سده را در تاریخ ۳۰ ژانویه برگزار کرد. جشن سده به لحاظ تاریخی متعلق به زرتشتیان است که معمولا در نیمهی زمستان برگزار میشود.
سروش یداللهی جوان ۲۶ سالهی ایرانی و دانشآموختهی مهندسی مکانیک دانشگاه مکمستر در روز ۸ ژانویه در یک حملهی خیابانی در منطقهی اسکاربرو به قتل رسید.
از آینده چه خبر:
کنفرانس «نگاهی به انقلاب ایران پس از یک ربع قرن» در روزهای ۱۳ و ۱۴ فوریه در دانشگاه تورنتو برگزار میشود. برگزارکنندگان این برنامه دانشکدهی آتسینکتون دانشگاه یورک و مرکز مطالعات جنسیت و زنان دانشگاه تورنتو میباشد. برخی از سخنرانان این کنفرانس دکتر سعید رهنما و دکتر هایده مغیثی از دانشگاه یورک، دکتر شهرزاد مجاب، دکتر کوروش حسنپور، دکتر محمد توکلی و دکتر رضا براهنی از دانشگاه تورنتو هستند. برای اطلاع از برنامهی این کنفرانس میتوانید اینجا را کلیک کنید.
خانم شیرین عبادی، برندهی جایزهی صلح نوبل در تاریخ ۷ ماه مه در دانشگاه تورنتو سخنرانی خواهد داشت. در بیستم ماه آوریل نیز خانم شیرین عبادی در میزگردی که به همت دانشگاه سایمون فریزر در ونکوور برگزار میشود همراه با دالایی لاما رهبر تبت، واسلاو هاول رییسجمهور سابق جمهوری چک و برندهی جایزهی صلح نوبل، شرکت خواهد کرد.
دکتر رضا براهنی استاد ادبیات تطبیقی دانشگاه تورنتو در روز ۴ فوریه از ساعت ۱۲ تا ۱: ۳۰ بعدازظهر در، ۲۰۰ دانشگاه تورنتو دربارهی «انقلاب و ادبیات» صحبت خواهد کرد. این سخنرانی به مناسبت ۲۵ سالگی انقلاب ایران و توسط دانشکدهی خاورمیانهشناسی و دانشکدهی تاریخ دانشگاه تورنتو برگزار میشود.
گروه دانشجویی دانشگاه مکمستر به مناسبت سالگرد انقلاب ایران در ساعت ۴: ۳۰ روز ۹ فوریه در اتاق ۳۱۱/۳۱۳ جلسهای با عنوان، ۲۵ برگزار میکند. در این برنامه دکتر نسرین رحیمیه، رییس دانشکدهی انسانشناسی دانشگاه مکمستر و دکتر علیداد مافینظام از دانشگاه تورنتو سخنرانی خواهند داشت.
با هماهنگی کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو، آقای فیلیپ مککینون سفیر کانادا در ایران، در نیمهی ماه فوریه در دانشگاه تورنتو سخنرانی خواهد داشت.
در روز شنبه ۷ فوریه، ساعت ۴: ۳۰ بعدازظهر جلسهی مجمع عمومی کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو برگزار خواهد شد.
کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو در نظر دارد به صورت ماهانه جلسات «شب شعر و موسیقی» برگزار کنند. کسانی که مایلند در این جلسات شرکت کنند میتوانند به آدرس () () ایمیل بفرستند.
وقتی در آغوشش کشید، واکنشی نشان نداد. خوشحال بود که با مقاومتی مواجه نشده. در آغوشش گرمای رخوتانگیزی تولید میشد که برای گرم نگاه داشتن خودش هم کفایت میکرد. سرمای بیرون تمام انرژیاش را به مقابله میطلبید و تلف میکرد ولی او تمام تلاشش را به کار میبرد تا آن موجود ارزشمند را از سرما بپوشاند.
لحظهای سرمای بیرون بر ارادهاش پیشی گرفت و شک سردی وجودش را لرزاند. سر را به سینهی او نزدیک کرد و به طپش قلبش گوش داد. فکر کرد که در هر طپش، این قلب خون حیات بخشی را در چرخهی زندگی به گردش در میآورد و گرمای امید دوباره سراپایش را فرا گرفت. «این قلب برای من میطپد. یعنی این قلب برای من میطپد؟ این زندگیی که در هر طپش به جریان میافتد صد بار بیشتر از آنیست که در کل زندگیام ممکن است نیاز داشته باشم.» ناامیدی بیهوده بود.
ولی سرما با مرور زمان بر صبرش غلبه کرد. از خودش بیزار شده بود که مجبور بود برای بقا بطلبد. ولی اختیاری وجود نداشت. باید زندگی میکرد... با شرم، قطرهای از خون زندگی طلب کرد. تنها چیزی که به چنین درخواست پستی قانعاش کرده بود این بود که برای خودش نمیخواست. خودش نیازمند نبود، خودش میتوانست به راحتی تسلیم سرما شود ولی موجودی برای محافظت در آغوش داشت و اختیارش دیگر از خود نبود. قسم خورد قطرهای بیش نطلبد و... ناگاه احساس کرد که دیگر نمیتواند. خود را لعنت کرد. فکر میکرد که بیشتر از اینها طاقت داشته باشد ولی سرما طاقتش را هم تمام کرده بود. دندانها را به هم میفشرد که مبادا از نالهاش از خواب بیدار شود.
سرما از همه سو احاطهاش کرده بود. در آغوشش دیگر چیزی نمانده بود جز فضای تهیی که سرما کم کم پرش میکرد. بدنش گرد شد و بدون هیچ مقاومتی خود را به سرما سپرد که آرام به قعر میکشاندش، به قعر درهای بیانتها و بیبازگشت... فکر میکرد، انگار برای سالها. حسی نداشت، فکر میکرد و سردرگم بود. «واقعا وجود داشت؟ یا تصوری بیش نبود؟» مغزش با رخوتی که لحظه به لحظه بیشتر میگشت، سرگردان تناقض واهیی بود که به مرور از حلش دورتر میشد، زیرا در عمق دره جوابی وجود نداشت، زندگیی نبود، فقط تهی بود و تهی. «شاید واقعا وهمی بیش نبود. ولی پس صدای طپش قلبی که شنیده بود چه؟» شاید صدای قلب خودش؟ به قلب خودش گوش سپرده بود؟ قلبی که حالا دیگر نمیطپید؟
عاقبت رخوت غلبه کرد. دیگر حتی فکر هم نمیکرد. ولی میدانست. همیشه میدانست. انتها به طرز حقارت باری همانی بود که همیشه میدانست. فقط نمیدانست که برای این باید خوشبخت میبود یا بدبخت. اما دیگر چه اهمیتی داشت؟...
«رفتن»
سهشنبه بود شاید
لذت برف
دستانت، سفید و صورتی
من تو را میرسانم.
خیابانی پشت به کوه
مردی که رفت
زنی که ماند
افسوسی که شعر شد.
«برای نرفتن...»
حالا دیگر مردی شدهام
ساکنِ نقطهی عزیمت
همانجا که میدانی
سالهایی برای حافظهام
حالا دیگر
نه سایبانِ کافهای برای تازهکردن لبها
نه چتری برای این همه باران
چشمهایم ابرهای بهاریاند
باید تا به حال رفته بودی...
آنچه در اینجا می خوانید گفتگوی قاصدک با پرسیا بهارلو است. خانم بهارلو را از طریق دوستان ویولنزنم میشناسم. در تورنتو زندگی میکند و به تدریس موسیقی مشغول است. او ویولن را از سه سالگی در نزد پدرش٬ استاد محمد بهارلو٬ فرا گرفت. خانم بهارلو در کنار اتمام ردیفهای موسیقی ایرانی٬ در موسیقی کلاسیک هم دست داشته است. دورهی پیشرفتهی تکنوازی ویولن را در آلمان تکمیل کرد٬ در رشتهی تخصصی تکنوازی ویولن به مدارک معتبر جهانی دست یافت و آخرین کار او تک نوازی در ارکستر سمفونیک اشتودگارد آلمان بوده است. او ویولن کلاسیک را نزد استاد روبن طهماسیان و استاد حشمت سنجری٬ پیانو را به آموزگاری استاد ملک اصلانیان٬ سه تار را نزد استاد جلال ذوالفنون و استاد مهرداد ترابی و تئوری و کمپوزیسیون را زیر نظر استاد فوزیه مجد فرا گرفته است. در سالهای اخیر پرسیا بهارلو به تدریس موسیقی سنتی و تشکیل گروه موسیقی ایرانی در تورنتو مشغول بوده است. آنچه نظر مرا به او جلب کرد٬ برنامهی موسیقی بود که به رهبری او در اواسط ماه نوامبر توسط گروهی - که تمام اعضایش را خانم ها تشکیل می دادند - اجرا شد: مهرنوش عازم (سنتور) از دانشجویان دانشگاه تورنتو٬ مهرآنوش حسینی طباطبایی (تمبک) از دانشجویان دانشگاه واترلو و صبا صانعینژاد (فلوت) با همراهی و رهبری خانم بهارلو (ویولن) اعضای گروه را تشکیل میدادند. کارشان را شنیدم و خیلی به دلم نشست. اما در کنار احساس خوشایندی که از ایدهی گروه موسیقی زنان داشتم٬ علامت سوالها و علامت تعجبهای بسیاری برایم به وجود آمده بود. میخواستم بدانم که چرا در قلب تورنتو٬ جایی که از محدودیتهای موجود در ایران مبراست٬ هنوز احساس نیاز به تشکیل چیزی به عنوان گروه موسیقی زنان در موسیقی ایرانی هست؟ به دنبال جواب سراغ خود پرسیا بهارلو رفتم. آن چه در اینجا می خوانید نتیجهی آن گفت و گوست.
قاصدک- خانم بهارلو٬ در این مصاحبه میخواهم روی یک موضوع اصلی که برایم جالب توجه است٬ تمرکز کنم. در حالی که هرگز چیزی به نام گروه موسیقی مردان وجود نداشته است٬ در موسیقی ایرانی ما به طور متعدد به گروه موسیقی زنان برمیخوریم. آنطور که من میدانم در این سالهای اخیر٬ یکی از هدفهای شما نیز تشکیل گروه موسیقی زنان در تورنتو بوده است. میخواهم بدانم که چه چیز باعث میشود که شما احساس نیاز برای به وجود آوردن چنین گروهی کنید و دلیل علاقهی شخصیتان چیست؟ دیگر اینکه در اساس به نظر شما چه چیز باعث میشود که گروه موسیقی زنان داشته باشیم در حالی که گروه موسیقی مردان حتی به کلام هم غریب می آید؟
بهارلو- در حقیقت گروه موسیقی زنان پدیدهی جدیدی نیست. حتی پیش از انقلاب هم ما گروههای زیادی داشتیم که فقط از نوازندگان زن تشکیل میشدند. دلایل گوناگونی برای این مساله وجود دارد. قسمتی هم مربوط به شرایط فرهنگی ماست و به هر حال این که در گروه زنان روابط راحتتر میتوانند شکل بگیرند و فضای فرهنگی سبکتری برقرار است. چرا من تصمیم به به وجود آوردن چنین گروهی گرفتم در فضای فرهنگی تورنتو که به هر حال از محدودیتهای حاکم در ایران مبراست؟ حقیقتش من از اول به دنبال تشکیل گروه خانم ها نبودم. من خودم فمینیست نیستم و تصمیمم هم بر اساس چنین اعتقادهایی نبوده است. ولی با خانمها کار خیلی راحتتر جلو رفته است٬ حالا یا به این خاطر است که زبان یکدیگر را بهتر میفهمیم٬ یا مشکلات یکدیگر را بهتر درک میکنیم چون به هر جهت همجنس هستیم. این داستان یکی از علل این قضیه بوده است. من هم با آقایان کار کردهام و هم با خانمها. در تجربهی شخصی من٬ خانمها به طور منظمتری در تمرینها حاضر بودهاند و خود را به کارشان موظفتر حس کردهاند.
قاصدک- یعنی در مقایسه با آقایان؟
بهارلو- بله٬ من در ابتدای تشکیل گروه صرفا به دنبال افراد علاقهمندی میگشتم که با من در موسیقی ایرانی کار کنند٬ چه آقا و چه خانم. جنسیت برای من اصلا مطرح نبود. اما بعد از آن که قرارهای تمرین گذاشته شد٬ عملا کسانی که با جان و دل کار نمیکردند به نوعی فیلتر شدند. آقایان چون در مجموع کمتر از خانمها در تمرینها حاضر میشدند٬ کم کم خود به خود از گروه جدا شدند و آن ایدهی اولیهی به وجود آوردن یک گروه موسیقی ایرانی تبدیل به گروه موسیقی زنان شد. البته من هنوز روی گروه آقایان هم کار میکنم. در ضمن خود من در کار کردن با خانمها راحتتر بودم. ما نه تنها خیلی راحتتر میتوانستیم با هم کار کنیم که راحتتر میتوانستیم احساسها را به هم منتقل کنیم. من در کار با آقایان هم نتیجههای بدی نگرفتهام ولی آن احساس یکی بودن و همدلی را بیشتر با خانمها حس می کنم.
قاصدک- دلیل این حالت را چه میبینید؟
بهارلو- خوب من فکر میکنم که نوع بزرگ شدن زنها و مردها با هم از کودکی متفاوت است و نوع احساس مسئولیت به نظر میرسد که بینشان فرق میکند. ارتباطی که بین زنان در گروه موسیقی به وجود میآید٬ بین یک زن و یک مرد٬ لااقل در فرهنگ ما به راحتی قابل تولید نیست. در کارهای موسیقی ما٬ آن ظرافت زنانه اکثر اوقات در قطعات به چشم میآید٬ لطافت خاصی که مخصوص طرز تواختن خانمهاست و این شاید موجب دیگری برای برقراری ارتباط نزدیکتر است. در ضمن گروه موسیقی خانمها بسیار کمتر است و من میخواستم کار متفاوتی بکنم.
قاصدک- خوب به نظر شما چرا گروههای زنان در موسیقی سنتی ایرانی کمتر تشکیل میشوند. آیا زنها به طور کلی کمتر به سراغ موسیقی میروند، یا شرایط موجب حضور کمترشان در موسیقی ایرانی است؟
بهارلو - خوب ببینید، هر گروه برای تشکیل شدن به یک رهبر قابل نیاز دارد که بتواند گروه را پیش ببرد. در ایران، زنهایی که به طور جدی کار موسیقی را تا مراحل بالا ادامه دادهاند انگشت شمارند - اگر چه نسبت به پنجاه سال پیش بیشتر شدهاند - و کمبود اینگونه موسیقیدانهای زن قابل که نتوانند رهبر گروه باشند عملا جلوی تشکیل گروهّهای زنان را میگیرد.
قاصدک - میخواهم برگردم به قضیهی تصمیم شخصی شما در تشکیل گروه موسیقی ایرانی که منجر به تصمیم تشکیل گروه زنان شد. شما اشاره کردید که مردان گروه کمتر علاقه نشان میدادند.
بهارلو - کمتر علاقه نشان نمیدادند ولی خود را به اندازهی کافی موظف نمیدانستند. برنامه ریزی درستی نداشتند.
قاصدک - خوب سوال من این است که آیا شما فکر میکنید که کم کاری آقایان ممکن است به دلیل زن بودن شما به عنوان رهبر گروه بوده باشد؟ یعنی اگر شما مرد بودید ممکن بود آنها هم بیشتر احساس مسئولیت کنند؟ از احساس شخصی خودتان میپرسم.
بهارلو - راستش قبل از اینکه شما بپرسید من به این موضوع به این شکل فکر نکرده بودم. البته هرگز چنین احساسی نداشتهام. آقایانی که با من کار میکردند به طرقی با من آشنا بودند. من هرگز احساس نکردم که هر گونه کم لطفی از طرف ایشان متوجه زن بودن من است. من سالهاست که تدریس میکنم و بسیاری از شاگردانم آقایانی بودهاند که سالها از من بزرگتر بودهاند، اما مسئله انسجام و احساس مسئولیت خانمهاست. نتیجهی کار هم خوب بهتر بوده است.
قاصدک - برگردیم به بعد موسیقی. شما اشاره کردید به ظرافت زنانهای که در نواختن خانمهاست. آیا شما به چیزی به عنوان «زنانه» نواختن اعتقاد دارید؟ یعنی اینکه زنها «زنانه» ساز میزنند؟
بهارلو - بله در موسیقی کلاسیک هم چنین جنبهای وجود دارد. دلیلش این نیست که زنها ضعیف ساز میزنند. بلکه طرز نواختن طور دیگری است. به نوعی لطیفتر است. در ضمن یک گروه موسیقی زن از نظر تصویری هم جذابتر و زیباتر در روی صحنه به چشم میآیند.
قاصدک - نتیجهی کار تاکنون چگونه بوده است؟ منظورم این است که تشکیل گروه خانمها تا چه حد موفق بوده است؟
بهارلو - من روز به روز باورم به این تصمیم محکمتر شده است. شاید در ابتدای کار دلیل انتخاب خانمها صرفا راحتتر بودن برقرار کردن ارتباط بود، ولی در طی این راه باورم به این ایده محکمتر شده است؛ چرا که دیدم در عمل گروه خانمها سریعتر از گروه آقایان - که همزمان به رویش کار میکردم - جلو رفته است. تا این حد که گروه خانمها برنامه اجرا کردهاند، در حالی که گروه آقایان در اول راه است.
قاصدک - در مورد جایگاه زنان در موسیقی ایران امروز چه نظری دارید؟ نسبت به پیش از انقلاب آیا حضور زنان در موسیقی ایرانی افزایش یافته است یا بر عکس؟
بهارلو - دورهی بعد از انقلاب - البته به جز آن سالهایی که موسیقی ممنوع بود - به طور کلی دورهی شکوفایی موسیقی سنتی بوده است. زنان هم با این پیشرفت همگام بودهاند. طبق آمارهایی از ایران در حدود سالهای ۱۳۶۴ - ۱۳۶۳ - که از طریق معلمها جمعآوری شده است - حدود سه تا چهار هزار نفر خانم فقط سهتار کار میکردهاند، که رقم قابل ملاحظهای میباشد. بعد از انقلاب محیطی فراهم شد که خانمهایی که به هر دلیل تحت محدودیتهایی برای رفتن به کلاس موسیقی بودند، فرصتی پیدا کردند تا ارائه برنامه کنند. قبل از انقلاب محیط ساز و آواز، محیط سالمی به نظر نمیرسید. به خصوص به دلیل وجود موسیقی کابارهای و پاپ. بعد از انقلاب بسیاری از این نوع موسیقیها، به سبب شرایط سیاسی فیلتر شدند. در سالهای اول انقلاب، موسیقی پاپ در ایران وجود نداشت و موسیقیهای محلی هم که جایگاه خاص دیگری داشتند. به همین سبب جا برای موسیقی سنتی باز شد و فضای سالمتری که به وجود آمده بود جا را برای حضور خانمها هم مناسبتر میکرد. میتوانم بگویم که موسیقی زنان بعد از انقلاب پیشرفت کرد. البته قبل از انقلاب هم چهرههای سرشناسی وجود داشتند که خیلی از آنها بعد از انقلاب هم به کار خود ادامه دادند.
قاصدک - بله، نمونههای بسیاری است. خوب با توجه به این مسئله که شرایط ایران طوری است که خانمها مجبور میشوند گروههای زنان تشکیل دهند، به خصوص از نظر داشتن خوانندهی زن، و با توجه به زنانه نواختن خانمها فکر میکنید که با پیشرفت کنونی زنها در موسیقی سنتی، کم کم ما با چیزی به نام «موسیقی زنانه» مواجه شویم؟ یعنی در آینده شاخهای از موسیقی در ایران به این عنوان به وجود بیاید؟
بهارلو - برای سالها حتی در موسیقی کلاسیک، تشکلهایی وجود داشتهاند که توسط مردها اداره میشدند و خانمها را در این تشکلها راه نمیدادند. حالا به تازگی خانمها وارد صحنه شدهاند و تشکل خودشان را به وجود آوردهاند. اما در واقع خانمها از این نظر در مقایسه با آقایان هنوز در اول راه هستند. اگر چه که روز به روز پیشرفت میکنند، ولی هنوز خیلی راه مانده است تا چیزی مانند موسیقی زنانه بتواند در ایران به وجود بیاد.
این طور که به نظر میرسد مردمِ خاورمیانه حضورِ اینترنت و به خصوص بلاگنویسی را به عنوانِ وسیلهای برای ایجادِ تغییرات اجتماعی و سیاسی صمیمانه پذیرفتهاند. در ایران، وبلاگ نویسی به طورِ ناشناس، به نسلِ فعلی اجازه داده که قوانینِ سختگیرانهای که توسطِ مراجعِ سیاسیمذهبی اعمال میشود را نادیده بگیرند و با وجودِ سانسور و فیلترِ موجود، اجتماعِ وبلاگنویسان فارسی (ایرانی) یکی از قویترین و فعالترین اجتماعات در نوعِ خود در جهان است.
یکی از پیشگامان اجتماعِ وبلاگنویسان فارسی، حسینِ درخشان، دانشجوی دانشگاهِ تورنتو، یا آن طور که در اینترنت شناخته میشود «هودر» است. وبلاگِ فارسیِ هودر به طور متوسط روزانه بیش از ۳۵۰۰ خواننده دارد. همین رقم هودرِ ساکنِ تورنتو را یکی از تاثیرگذارترین وبلاگنویسانِ کانادا میکند.
به تازگی هودر اعلام کرد که قصد دارد نامزدِ انتخاباتِ بعدیِ مجلسِ ایران شود. چندی پیش، او یک مبارزه ضدِ سانسورِ اینترنت را آغاز کرد که توجهِ زیادی در اجلاسِ سرانِ جامعهی اطلاعاتی در ژنو به خود جلب کرد.
بلاگزکانادا اخیراً در تورنتو گفتگوی یک ساعتهای با وی درباره وبلاگنویسی، سیاست، صلح در خاورمیانه، و زندگی در ایران انجام داده است که برگردانِ آن را در زیر میخوانید. این مصاحبه تصویرِ یک مردِ ایدهآلیست و امیدوار را نمایش میدهد با فکرهایی واقعی برای تغییرِ مثبت در کشور زادگاهش و در کلِ خاورمیانه.
یک مصاحبه یک ساعتهی واقعاً طولانی است و بنابراین در دو بخش ارائه میشود. در بخش اول هودر از پدیده وبلاگنویسی، جامعه ایرانی و سیاست، و جورج بوش سخن میگوید.
مصاحبه با هودر: بخش اول
: کمی درباره خودتان بگویید. شما در ایران به دنیا آمدید. در چه زمانی؟ در چه سنی به کانادا آمدید؟ در دانشگاه تورنتو به در چه رشتهای مشغول به تحصیل هستید؟ و چیزهایی از این قبیل.
حسین درخشان: من در ژانویه ۱۹۷۵ در تهران -پایتخت ایران- متولد شدم. حدود سه سال پیش در دسامبر ۲۰۰۰ به کانادا آمدم. اکنون در دانشکدهی جامعهشناسی در دانشگاه تورنتو تحصیل میکنم. یک پیشزمینهی جامعهشناسی در ایران داشتم، یک مدرکی هم داشتم. نکته خوب این است که دانشگاه تورنتو بعضی از آن واحدها را قبول کرده و من باید نصفه دیگر واحدهایم را بگذرانم تا مدرک لیسانسم را بگیرم.
: شما چند وبلاگ دارید؟
هودر: من فعالیتهای اینترنتی زیاد دارم که همه آنها وبلاگ نیستند. دو وبلاگ دارم، یکی به انگلیسی و دیگری به فارسی، هر دو با عنوانِ «سردبیر: خودم» که فکر کنم تا حد خوبی گویای این است که چرا من شروع به وبلاگنویسی کردم. من دو فیلتر دارم، اگر با این لغت آشنا باشید. اینها وبلاگهای دستهجمعی هستند که هیچچیز از خودشان ندارند. مردم فقط لینکهایی به سایر منابع در آنجا قرار میدهند. یکی از آنها که به فارسی است، دارد بسیار محبوب میشود. عنوانش صبحانه است. دیگری ایرانفیلتر است که تازه برپا کردهام. یک وبسایت دیگرهم وجود دارد، یک فهرست با عنوان وبلاگهای ایرانیان، که در آن تلاش میکنم وبلاگهایی را پوشش دهم که افراد ایرانی در سراسر دنیا به انگلیسی مینویسند. فکر کنم همهاش همین است. اوه، من وبلاگهای دانشگاه تورنتو را هم دارم که تنها فهرست وبلاگهایی است که دانشجویان و کارکنان دانشگاه تورنتو می نویسند و هنوز نتوانستهام رویش کار کنم. هنوز بینندهی زیادی هم ندارد. و هنوز یکی دیگر مانده: .. که بر مساله سانسور اینترنت در ایران تمرکز دارد.
من فکر میکنم دلیلِ این که وبلاگنویسی در ایران این قدر محبوب است این است که تغییراتِ اجتماعیِ زیادی در نسلِ جدیدِ ایرانیان رخ داده است، منظورم آنهایی است که بعد از انقلاب ۱۹۷۹ به دنیا آمدهاند. آنها یک سیستم ارزشی کاملا جدید دارند که با پدر و مادرانشان متفاوت است. همان طور که قبلا هم اشاره کردهام، آنها بسیار بیشتر فردگرا هستند. آنها به نسبتِ پدر و مادرانشان بیشتر برونگرا هستند و میخواهند خودشان را به بقیه بشناسانند و قدرت تحمل بالاتری دارند. همه اینها بر مبنای چیزهایی است که دیدهام. به عنوان مثال، اگر شناساندن خود به دیگران وجود نداشت، کل ایده وبلاگنویسی شناخته و محبوب نمیشد. یا اگر قدرت تحمل وجود نداشت، مردم اجازه نمیدادند که سایر مردم در مورد نوشتههای وبلاگشان اظهار نظر کنند. این کار اکنون در وبلاگهای فارسی خیلی محبوب است. و فردگرایی اگر وجود نداشت، آنها شروع نمیکردند که درباره خودشان یا زندگی خصوصیشان با اسم واقعیشان بنویسند. این خیلی جدی است، حتی در میان زنان جوان. زنان زیادی وجود دارند که وبلاگ مینویسند، مخصوصا دانشجویان و فارغالتحصیلان. فکر کنم به خاطر این است که این اولین باری در تاریخ ایران است که زنان میتوانند آزادانه و عمومی درباره نظراتشان و دیدگاهشان درباره دنیا بنویسند.
: همین حقیقت که آنها این کار را انجام میدهند تا حدی انقلابی است؟
هودر: بله، هست. آنها وبلاگنویسان بسیار مشتاقی هستند. فکر میکنم آنها در مقایسه با پسران علاقهمندترند. این اولین باری است که آنها میتوانند راجع به هرچیزی صحبت کنند.
: شما همیشه میگویید که شما سکولاریزاسیون و کم اهمیتتر شدن مذهب را میبینید.
هودر: بله، شما آن را به راحتی میتوانید بر روی بسیاری از وبلاگها ببینید. اما آنها راجع به سیاست به طور باز صحبت نمیکنند. آنها بیشتر نسبت به آزادی اجتماعیشان حساس هستند اما حتی صحبت از آزادی اجتماعی میتواند در یک جامعه بسته یک بحث سیاسی تلقی شود.
: این وبلاگنویسان فارسی چه کسانی هستند؟ آیا وبلاگهای سیاسی بیشتری وجود دارند یا به همان تعداد خاطرات روزانه نوجوانی؟
هودر: فکر میکنم که بیشتر آنها بین ۱۶ تا ۳۰ سال سن دارند. میتوانم بگویم خیلی مخصوص نوجوانان نیست.
: دانشآموز هستند یا دانشجو؟
هودر: بیشتر دانشجو هستند. البته چند دانشآموز دبیرستانی که وبلاگ مینویسند را هم دیدهام، اما آنها به اندازه بقیه جدی نیستند. شاید دلیلش این باشد که دانشآموزان دبیرستانی بعد از جنگ ایران و عراق به دنیا آمدند و بنابراین کلا نظر متفاوتی نسبت به دنیا دارند. آنها بیشتر به آزادیهای فردی فکر میکنند و کمتر درگیر سیاست هستند. آنها از اینترنت استفاده نمیکنند که به اطلاعات دسترسی پیدا کنند، بلکه اینترنت راهی است برای اجتماعی شدن. فکر میکنم که قرار گذاشتن () یکی از دلایل اصلی است که آنها از اینترنت استفاده میکنند، بنابراین شاید وبلاگ چندان در میان آنها محبوب نیستند.
: خوب، برگردیم به این که آنها چه کسانی هستند؟ از طبقات میانیِ اجتماعی اقتصادی، فوق میانی؟
هودر: بله، آنها بیشتر مردم طبقه متوسط هستند که از لحاظ مالی میتوانند یک کامپیوتر در خانه داشته باشند.
: با دسترسی به تکنولوژی.
هودر: دقیقا. یکی از مهمترین دلایل این است که کارتهای اینترنت فراوانی وجود دارند. این کارتها خیلی شبیه کارتهای تلفن راه دور در اینجا هستند. مثلا میتوانید صد ساعت دسترسی به اینترنت با مودم را خریداری کنید، یک کلمه عبور و شناسه کاربری بر پشت کارتی که استفاده میکنید چاپ شده است.
: کل فرآیند بدون شناسایی است؟
هودر: بله، و شما اسمتان را نمیگویید. میتوانید در امنیت کامل هر چه دوست دارید انجام دهید.
: آیا فکر میکنید که فاصلهی زیادی بین این دو نسل وجود دارد؟
هودر: بله، وجود دارد. یکی از بزرگترین کارکردهای وبلاگهای فارسی این است که فاصلههای اجتماعی را پر کنند. منظورم از آن فاصله اجتماعی بین زنان و مردان، بین پدر و مادران و فرزندان، بین سیاستمداران و مردم عادی، و بین ساکنان داخل ایران و خارج از ایران.
: و وبلاگها دارند خطوط ارتباطی را باز میکنند؟
هودر: دقیقا. و پل میسازند. مفهوم پل اینجا یک مفهوم کلیدی است که وضعیت وبلاگها در ایران را شرح میدهد.
: شما فکر میکنید که این واقعا دارد اتفاق میافتد؟ وضعیت اینگونه نیست که جوانان وبلاگهای خودشان را بخوانند و افراد خارج از کشور هم وبلاگهای خودشان را؟
هودر: نه. خیلی از آنها نسبت به بخش دیگر کنجکاوند، طرف دیگر پل.
: آیا شما فکر میکنید که وبلاگها بر افراد درون قدرت تاثیر گذاشتهاند؟
هودر: بله، من فکر میکنم که یکی از پلهایی که دارد ساخته میشود بین سیاستمداران و مردم است و این اولین باری است که آنها مستقیما میتوانند ببینند نسل جدید از چه صحبت میکند، به چه فکر میکند، و چه میخواهد. من به طور قطعی میدانم که بعضی از سیاستمداران به طور مرتب این وبلاگها را هر روز میخوانند.
به عنوان مثال، من شخصا چند دیپلمات ایرانی در اتاوا را دیدم. نه تنها آنها با من دوستانه برخورد کردند، که تعجب برانگیز است چون من همیشه از عقاید مقدس آنها و حکومتی که آنها در آن کار میکنند انتقاد میکنم، بلکه آنها خیلی صمیمی بودند و دیدم که مطالب وبلاگ من و تعداد زیادی از وبلاگهای ایرانیان دیگر را هم با اشتیاق دنبال میکردند. این چیز جدیدی است. من انتظار نداشتم که آنها این قدر راحت با من برخورد کنند.
شاید این حقیقت که این وبلاگها چیزهای شخصیای هستند باعث میشود که آنها آسانتر بتوانند از قضاوت درباره من به عنوان یک مخالفِ عادی که هر روز میبینند دست بردارند. این خیلی مهم است که آنها ببینند ما انسان هستیم و ما ببینیم که آنها هم انسان هستند. ما اشتراکات زیادی داریم. ممکن است اهداف و روشهای متفاوتی داشته باشیم، اما به هر جهت انسانیم. آنها وقتی درباره زندگی شخصیمان در وبلاگمان حرف میزنیم خوششان میآید.
: شما قبلا گفتهاید که فکر نمیکنید که بتوانید به ایران برگردید.
هودر: نه. من فکر نمیکنم که بتوانم برگردم، زیرا میدانم که بعضی از این مردم تندرو، رادیکال، و خطرناک دارند به دقت وبلاگ مرا دنبال میکنند. آنها هم ممکن است شخصا انسانهای دوستداشتنیای باشند، اما فکر نمیکنم به من اجازه بدهند به راحتی به ایران برگردم بدون این که از من بازجویی بکنند. من مطمئنم که آنها مشکوکند که چه کسی پشت همه این چیزها است.
: براندازی خارجی؟
هودر: بله. آنها همیشه سعی دارند ثابت کنند که ما از جایی پول میگیریم. یکی از محتملترین چیزهایی که اگر به ایران برگردم اتفاق میافتد این است که آنها حداقل مرا به دادگاه میخوانند تا درباره این چیزها بپرسند. آنها سینا را که یکی از دوستان نزدیک من است که وبلاگ مینوشت و در یکی از روزنامهها هم مطلب مینوشت دستگیر کردند. او چندان فعالیت سیاسی نداشت، اما دستگیر شد. این باعث میشود که تا حدی از برگشتن به ایران نگران باشم.
: شما اگر در ایران زندگی میکردید نمیتوانستید چنین وبلاگی داشته باشید؟
هودر: قطعا نه. این یک حقیقت است. من یک درصد چیزهایی که الان انجام میدهم را نمیتوانستم انجام بدهم. بیشتر به دلیل وضعیت نامناسب اتصال به اینترنت و سانسور.
: پس آیا وبلاگ به عنوان وسیلهای برای اعتراض در ایران استفاده میشود؟
هودر: مطالب وبلاگها عموما سیاسی نیستند. اما، همانطور که گفتم، در یک جامعه بسته شما اگر درباره چیزهای شخصی که ممنوع است صحبت کنید، این میتواند سیاسی تلقی شود. فکر میکنم که حکومت وبلاگها را سیاسی میبیند چون آنها در حقیقت تنها رسانه آزاد هستند که در ایران وجود دارند. من بعضی از روزنامهنگارانی که میتوانند خطر گفتن چنین چیزهایی را قبول کنند -روزنامهها نمیتوانند خطر را قبول کنند-را میشناسم که وبلاگها را به تریبون خودشان تبدیل کردهاند.
: آیا تهدید هم وجود دارد؟
هودر: بله، تهدیدهایی وجود دارد. شاید به همین دلیل است که تعداد زیادی از مردم با اسم خودشان وبلاگ نمینویسند.
: عدهی زیادی به طور ناشناس وبلاگ مینویسند؟
هودر: بله. خیلی از آنها که از داخل ایران به طور جدی وبلاگ مینویسند، به طور ناشناس مینویسند. اما، یکی از چیزهای جالبی که تازگی اتفاق افتاد این است که یکی از معاونان رئیسجمهور ایران شروع به وبلاگنویسی کرده است. شخصیت خیلی جالبی است. خندهدار و پرطرفدار. شروع به وبلاگ نویسی کرده زیرا میداند که این کار در میان جوانان، افراد تحصیلکرده، و مردم طبقه متوسط خیلی محبوب است. من فکر میکنم با توجه به این کاری که او میکند، برنامهای برای آینده سیاسیاش دارد. وبلاگش واقعا خندهدار است. مثلا او با تلفن همراهش از جلسات رسمی عکسهای مخفیانه میاندازد. در روز اول وبلاگنویسیاش، یک عکس از خودش در کنار ادوارد شواردنادزه، رئیس جمهور اکنون برکنار شدهی گرجستان، گذاشت که مخفیانه گرفته شده بود و خیلی بامزه بود. بنابراین وبلاگ کمکم دارد مورد توجه قرار میگیرد، حتی در میان دولتیها دارد پذیرفته میشود به تدریج.
: آیا وبلاگهایی وجود دارند که برای دانستن در مورد ایران پیشنهاد کنید؟
هودر: خیلی از آنها وجود دارند، اما به فارسی هستند. تعدادی از آنها به انگلیسی هستند که شما میتوانید در. پیدایشان کنید. من سیستمی تنظیم کردهام که اگر هم کدام از این وبسایتها به روز شوند، پررنگ نشان داده میشوند.
: بگذارید درباره جواد لاریجانی صحبت کنیم. شما او را حمایت کردهاید.
هودر: من او را شخصا نمیشناسم. حتی او را ندیدهام. اما فکر میکنم که او مثال خوبی از یک محافظهکار معتدل است. نظرات معتدلی نسبت به غرب دارد و در غرب درس خوانده. او از لحاظ شخصی و سیاسی یک آدم معتدل است و این حقیقت که او بهترین موسسه علمی در تهران را با طیف وسیعی از مردمِ مذهبی و سیاسی اداره میکند نشان میدهد که او کم و بیش میتواند همین مدل را در کشور به عنوان یک رئیس جمهور اجرا کند. اگر اسلامگراهای افراطی اجازه دهند که این افراد میانهرو به قدرت برسند، ایران میتواند از این وضعیت بنبستی که الان در آن قرار دارد، بیرون بیاید.
میدانید، من یک نظریه کلی راجع به آیندهی ایران دارم. من فکر میکنم که مجلس باید رادیکال ولی دولت باید محافظهکار باشد. زیرا رهبر، آیتالله خامنهای، که همه قدرت را در دست دارد، یک فرد محافظهکار است. اگر او دولت را دوست نداشته باشد، به آن اجازه نمیدهد که هیچ کاری انجام دهد. او دولت خاتمی را دوست نداشت، به دلیل سابقه تاریخی و به آنها اعتماد نکرد، بنابراین به هیچیک از نهادهای زیردستش اجازه نداد که با دولت کار کنند. آنها نتوانستند مشکل رابطه ایران و آمریکا را حل کنند. آنها نتوانستند خیلی از چیزهای مهمی که مطمئنم محافظهکاران هم میدانستند لازم است را انجام دهند. آنها نمیخواستند که اصلاحطلبان آن کارها را انجام دهند.
: بنابراین شما دارید یک سیاست عملگرا را پیشنهاد میکنید؟
هودر: بله، حداقل برای امروز.
: تغییر واقعگرایانه و تدریجی بر خلاف یک روش رادیکال؟
هودر: کاملا. بنابراین من فکر میکنم که محافظهکاران میانهرو موفقترند. رادیکال بودن اکنون در ایران بیفایده است چون شما قدرت زیادی را که قانون اساسی به رهبر میدهد در پیش رو دارید و مگر در حالتی که شما قانون اساسی را تغییر دهید، هیچکاری نمیتوانید بکنید.
: و آن اصولا انقلاب دیگری خواهد بود؟
هودر: بله. من شخصا امیدوارم که در پنج یا شش سال آینده با دولت بعدی اتفاق بیفتد، این که قانون اساسی زیر سوال برود و در نهایت تغییر کند. این یکی از برنامههای من برای کاندیداتوری مجلس است که میخواهم از آن صحبت کنم.
: شما توسط جناح راست در آمریکا پذیرفته شدهاید. درباره این چه احساسی دارید؟
هودر: من واقعا دوست ندارم که از من همیشه توسط جناح راست نقل قول شود یا توسط آنها حمایت شوم. حدس میزنم که چندان در مورد آیندهی ایران نظر مشترکی نداریم. به عنوان مثال، آنها طرفدار یک تغییر رادیکال سریع رژیم هستند بدون در نظر گرفتن آنچه که مردم واقعا احتیاج دارند. فکر میکنم بخشی از آن به این دلیل است که آنها جامعه ایرانی را خیلی خوب نمیشناسند، چرا که اطلاعات نادرست دریافت میکنند. اما من هیچ انتخابی ندارم زیرا فکر میکنم که آمریکاییهای لیبرال هماکنون آنچنان متوجه حکومت بوش، مشکلات اقتصادی، با مسائل آزادیهای شهروندی و جنگ در برابر تروریسم در عراق و افغانستان هستند که نمیتوانند یک مرکز توجه جدید داشته باشند. انتخابات ریاست جمهوری ۲۰۰۴ را هم اضافه کنید. پس شاید به این دلیل باشد که آنها به مسائل بینالمللی به اندازه جناح راست توجه نکردهاند. امیدوارم که بعضی از آنها این مطالب را اینجا بخوانند و از من حمایت کنند (خنده). منظورم خودم نیست، وبلاگهای فارسی. این یکی از مشکلات من است. من همیشه مجبورم مردم را متقاعد کنم که این فقط من نیستم. من بخشی از آن هستم اما من نمیخواهم فقط خودم را تبلیغ کنم. چیزهایی که من انجام میدهم مهمتر از این حقیقت هستند که من آنها را انجام میدهم.
: شما بحثهای زیادی با سایر مردمی که بر روی وبلاگتان نظر میگذارند دارید. این یک نوع اجتماع است.
هودر: بله. دوباره فکر میکنم که این چیزی جدید در رسانههای فارسی زبان است که به مردم اجازه دهند آزادانه بر روی نوشتههایشان نظر دهند. بعضی از وبسایتهای خبری اصلی مانند گویا تازگی این کار را شروع کردهاند.
: خوب، شما در مورد بوش چه احساسی دارید؟
هودر: من فکر میکنم ایرانیها واقعا بوش را نمیشناسند. اروپاییها هم او را نمیشناسند. من شخصا او را شخصیتی جالب، خیلی گرم، خیلی صمیمی، و خاکی مییابم. او در حقیقت در ایران خیلی محبوب خواهد بود اگر مردم واقعا او را بشناسند، زیرا، همان طور که میدانید، خاکی بودن به طور سنتی یک ارزش مورد احترام در بین ایرانیان است. اما به عنوان یک سیاستمدار، او کارهای احمقانهای انجام داده است و به گمان من او روحیهی جنگجو و سختی دارد که با ویژگیهای شخصیاش متفاوت است.
: اما او ایران را با محورهای شرارت طبقهبندی کرد.
هودر: بله این کار را انجام داده. این خیلی پیچیده است. مردم عادی از طبقات پایین در ایران گاهی به نظر میرسد که مخالف یک عملیات نظامی برای براندازی رژیم نیستند، اگر خیلی وحشیانه و خونبار نباشد. اما فکر میکنم که این به این دلیل است که آنها بسیار خستهاند از این که توسط رژیم اسلامی سرکوب شوند. شاید اگر ببینند که این اتفاق در یک یا دو روز آینده میافتد، نظرشان عوض شود. من چیزهای زیادی از مردم عادی میشنیدم: «اگر این اتفاق برای ایران میافتاد چه میشد؟» آنها آرزو میکنند که همان اتفاقی که برای افغانستان افتاد، برای ایران بیفتد. تغییر واقعی سیاسی در کوتاهمدت. اما بعد، به گمان من، هرچه بیشتر عراق را میبینند، بیشتر فکر مداخله نظامی را از سر بیرون میکنند.
: بنابراین یک عنصر ضد آمریکایی قوی وجود ندارد؟
هودر: نه اصلا. این یکی از تعجببرانگیزترین چیزها در خاورمیانه است که ایرانیها کمتر از همه مردم منطقه ضد آمریکایی هستند. بخشی از این به این دلیل است که آنها همان نوع مسلمان مانند بقیه کشورها نیستند. آنها عربها را دوست ندارند، به دلیل تاریخی، زیرا در تاریخ ایرانی این عربها بودند که به ایران حمله کردند و مردم را مجبور کردند که مسلمان شوند. گرچه آنها در حقیقت آن را قبول کردند و حتی از جنبه فرهنگی موجب پیشرفت بخشهای زیادی از اسلام شد، ولی ایرانیها زیاد با اسلام شناخته نمیشوند، حداقل نه به اندازه عربها. آنها هویت خودمان به عنوان یک ایرانی را دارند و بیشتر مردم روی آن خیلی جدی هستند.
مصاحبه با هودر: بخش دوم
: من فکر میکنم که مردم اینجا واقعا فرق بین عربها و ایرانیها را تشخیص نمیدهند. بعضی از مردم درباره تاریخ و این که ایران کاملا یک تمدن متفاوت است میدانند، اما عموما ایران را با بقیه در یک طبقه میگنجانند.
هودر: این برای ما ایرانیها خیلی غمانگیز است. چون تنها آخرین حرف در دیکته ایران () و عراق () متفاوت است، به این معنا نیست که این دو خیلی شبیهاند. آنها خیلی خیلی متفاوتاند، از لحاظ فرهنگی و تاریخی و اجتماعی. برگردیم به ضد آمریکایی بودن... قبل از انقلاب، فرهنگ آمریکا بر ایران غلبه داشت. محصولات آمریکایی زیادی وجود داشت که هنوز هم خیلی پرطرفدار هستند. بعضی از خویشاوندان من، از نسل پدر و مادرم، هنوز هم فکر میکنند که هر محصول آمریکایی از هر چیز دیگر بهتر است. به عنوان مثال، آنها همیشه یخچال آمریکایی را به یخچال ژاپنی و اتومبیل آمریکایی را به اتومبیل ژاپنی ترجیح میدهند. آنها هنوز تصویری که آمریکا قبل از انقلاب ساخته بود را در سر دارند. اما فرهیختگان، مخصوصا چپها، همان طور که میتوانید حدس بزنید همیشه، به طور سنتی ضد امپریالیست بودهاند. اما با این حال، همه آنها فیلمهای آمریکایی تماشا میکنند یا به موسیقی راک آمریکایی یا انگلیسی گوش میدهند.
: پس آیا شما فکر میکنید که ایران کاملا غربی است؟
هودر: بله. شما به راحتی افرادی را در شمال شهر تهران میتوانید پیدا کنید که درست مثل طبقات بالای نیویورک، لندن، یا جاهای دیگر زندگی میکنند. آنها تقریبا طریقه زندگی و سیستم اعتقادی مشابهی دارند. اما، میدانید، همهچیز همیشه به داخل خانههایشان محدود است.
: درباره فرهنگ پاپ چطور؟ مردم به چه نوع موسیقیای گوش میدهند؟ آیا آنها به موسیقی آمریکایی گوش میدهند؟
هودر: من فکر میکنم جوانان نوعی طبقه متوسط و بالا تا حد خوبی به موسقی غربی گوش میدهند. هرچه سطح تحصیلاتشان بالاتر میرود، چیزهایی مثل و شکل جدیتر راک یا موسیقی رقص، جاز، و چیزهای اینچنینی به میان میآید. تقریبا مشابه هرجای دیگر.
: شما داشتید در مورد ایرانیهای طرفدار دموکراسی که از حمله نظامی آمریکا جانبداری میکنند صحبت میکردید.
هودر: نه، نه دقیقا آن. این بیشتر یک عکسالعمل احساسی است تا یک عکسالعمل منطقی.
: مردم خسته هستند؟
هودر: بله. آنها به شدت از وضع موجود خسته هستند و به همین دلیل است که به راحتی به این شکل درباره موضوع صحبت میکنند. اما فکر نمیکنم که آنها بطور جدی طرفدار یک حمله نظامی هستند. فکر میکنم که آنها از جنگ با رژیم دست کشیدهاند. گرچه گاهی آنها میگویند که باید یک تغییر سریع و رادیکال وجود داشته باشد، اما به چنین تغییری کمک نمیکنند. آنها به زندگی اجتماعی خودشان چسبیدهاند و فقط میخواهند که تا حد ممکن آزادانه زندگی کنند، بدون آن که در سیاست دخالت کنند. نسل جدید چند سال پیش هزینه سنگینی را به خاطر یک مخالفت دانشجویی در تهران پرداخت کرد. خیلی از آنها دستگیر شدند و برای یک سال یا بیشتر در زندان در خطر اعدام قرار داشتند. بنابراین جوانترها آن را دیدند و الان کاملا خارج از سیاست قرار دارند. آنها بیشتر مشغول قرار گذاشتن، دوست پسر/دوست دختر، مواد مخدر، روابط جنسی، فیلم، موسیقی، و چیزهایی که نوجوانهای بقیه جاها مشغولش هستند، میباشند.
: این تا حدی مشابه روشی است که جامعهی چینی در حال تکامل است.
هودر: بله. یکی از چیزهایی که محافظهکاران امیدوارند که به دست بیاورند این است که یک سیستم اجتماعی-سیاسی مانند چین بسازند.
: ساختار قدرت تغییر چندانی نمیکند اما از لحاظ اقتصادی...
هودر:... و اجتماعی مقداری آزادی به دست میآورند. آنها خواهان توسعه سیاسی به اندازه توسعه اجتماعی و اقتصادی نیستند. اما من فکر میکنم که این در ایران کار نمیکند. من برای دوره بعدی طرفدار یک دولت محافظهکار هستم، زیرا من میدانم که آنها میخواهند این کار را انجام دهند اما همچنین میدانم که این در ایران کار نمیکند زیرا ما یک تاریخچهای از مبارزه برای دموکراسی و فعالیت سیاسی هستیم که سطح توقعاتی ایجاد کرده است که در چین وجود ندارد. من طرفدار این هستم زیرا اگر آنها مدل چین را اجرا کنند، ما آزادیهای اجتماعی و رشد اقتصادی خواهیم داشت که در نهایت منجر به تغییرات تدریجی ولی بسیار موثر در رژیم خواهد شد.
: شما فکر میکنید که با وجود یک طبقه متوسط بزرگ، قدرت جابهجا میشود؟
هودر: بله، دقیقا. و این مخفیانه سیستم را تغییر میدهد. با یک شیوه مخفی و تدریجی در حدود ده سال رژیم اسلامی کاملا میرود و احتمالا فقط اسمش وجود دارد، بدون هیچ خونریزی.
: یک ایرانی، شیرین عبادی، اخیرا جایزه صلح نوبل را برد. روزنامههای غربی گزارش دادند که این توسط رهبران ایرانی کماهمیت جلوه داده شد. آیا عبادی طرفدار دموکراسی هیچ تاثیر واقعی در ایران دارد؟
هودر: شیرین عبادی نوعی از اصلاحطلبان محافظهکار است که در ایران خیلی تاثیرگذار هستند. او شخصا یک فرد مذهبی است و در طبقهای جا میگیرد که طرفدار تغییر تدریجی هستند. او مخالف خشونت، طرفدار دموکراسی، و طرفدار سکولاریسم است. او درباره تطابق اسلام و دموکراسی سخن گفته است. فکر میکنم که او تلاش دارد تصویر ضد دموکراسی و ضد متمدنی که اسلام دارد برای خودش در دنیا به وجود میآورد را تغییر دهد. به جز این، فکر میکنم که او بیشتر طرفدار یک حکومت سکولار است. کارهای او در پنج یا شش سال گذشته خیلی سیاسی بودهاند و مردم این را میدانند. او از خیلی از مخالفان، خیلی از شهروندان و فرهیختگان در دادگاههای ایران دفاع کرده است. او در میان آنها خیلی محبوب است. کلا او در میان افراد تحصیلکرده طبقه میانی یک فعال شناختهشده بود قبل از آن که جایزه نوبل اتفاق بیفتد... من فکر میکنم که او میتواند نقش مهمی در آینده بازی کند زیرا که او یک زن است و زنان نقش بزرگی در تغییر ارزشها در جامعه ایرانی داشتهاند.
بعضی مردم فکر میکنند -و من با آنها موافقم- که موتور اصلی تغییر اجتماعی در ایران زنان بودهاند. این زنان بودهاند که مردان را مجبور کردهاند بعضی تغییرات واقعی در سیستم ارزشیشان را بپذیرند. مانند فردگرایی، اگر زنان آن را به دست نمیآوردند، در ایران اتفاق نمیافتاد. تعریف از خود و همه این چیزها. اگر شیرین عبادی میخواهد که در سیاست ایران بیشتر فعال باشد، با کمک جامعه بینالمللی، میتواند نقش مهمی داشته باشد. به همین دلیل است که پیشنهاد کردم برای ریاست جمهوری کاندید شود. من فکر میکنم اگر آنها او را در سیستم راه دهند، او میتواند محبوبترین رئیس جمهور در تاریخ ایران باشد. این حقیقت که رهبر و محافظهکاران به او اعتماد ندارند ممکن است او را از تبدیل شدن از آنچه که دوست دارد، بازدارد. بنابراین همان چیزی که برای خاتمی، رئیس جمهور اصلاحطلبان، اتفاق افتاد، برای او هم به عنوان یک رئیس جمهور اتفاق میافتد و حتی بدتر از آن.
: به نظر میرسد که حکومت چندان در برخورد با او سختگیرانه نیست. آیا این به دلیل اهمیت بینالمللیاش است؟
هودر: قطعا. آن زمان که حکومتگران ایران به دنیا اهمیت نمیدادند گذشته است. اکنون آنها واقعا به جامعه بینالمللی اهمیت میدهند. آنها چنان روابط اقتصادی محکمی با اروپا و سایر جاها دارند که نمیتوانند آنها را نادیده بگیرند.
این یک تئوری خام دیگر من است: اگر حکومت بخواهد دوباره یک رابطه با آمریکا برقرار کند، دوباره این تنها محافظهکاران هستند که میتوانند این کار را انجام دهند. به این دلیل ساده که آنها اعتماد رهبر ارشد، خامنهای، را دارا هستند. بنابراین، آنها چیزهای بیشتری برای از دست دادن دارند اگر نخواهند که از جامعه بینالمللی اطاعت کنند. آنها در مورد تجاوز به حقوق بشر، فعالیتهای اتمی، و غیره آسیبپذیرتر خواهند بود. به عنوان مثال، در مورد برنامه اتمیشان، اگر به خاطر رابطه قوی اقتصادیشان با اتحادیه اروپا نبود، آنها قطعا این کار را نمیکردند. بنابراین اگر آنها رابطه اصلی دیگری داشته باشند، ارتباطات بیشتری دارند که به آن اهمیت دهند. به همین دلیل است که من یک دولت میانهرومحافظهکار را پیشنهاد میکنم. فقط یک رئیسجمهور محافظهکار میتواند رابطه با آمریکا را دوباره برقرار کند.
: غالبا به ما گفته میشود که مساله فلسطین یک عامل زیرین برای حس ضدآمریکایی در کل خاورمیانه است. آیا این در مورد ایران هم صادق است؟
هودر: فکر نمیکنم. الان متفاوت است. شاید بیست یا سی سال پیش این وضعیت در مورد ایران هم صادق بود. فکر کنم این را میتوانم به این طریق شرح دهم. هرچه ایرانیان بیشتر خودشان را با اسلام شناساندهاند، بیشتر به مساله فلسطین-اسرائیل توجه کردهاند. ما به سادگی میتوانیم ببینیم که ایرانیان در مورد این مساله به اندازه بیست سال پیش صحبت نمیکنند. این به این دلیل است که آنها به اندازه گذشته «مسلمان» نیستند. (چند سال پیش، محمدعلی ذم، یک روحانی تاثیرگذار، اخبار شوککنندهای در مورد نرخ نمازگزاران مرتب در بین جوانان، میزان مصرف روزانه الکل و مواد مخدر در تهران، پایینترین سن فاحشگی -- ۱۵ سالگی، و غیره منتشر کرد.) نسل جدید در حقیقت به این به عنوان یک مساله مذهبی توجه نمیکند. ممکن است به عنوان یک مساله حقوق بشر به آن توجه داشته باشند.
فکر میکنم این یکی از مسائلی است که حکومت ایران دربارهاش به همه دنیا دروغ گفته است. آنها ایران را کشوری ترسیم کردهاند که بسیار به مسائل فلسطین توجه دارد و آن را به عنوان یک مخالف جدی به فرآیند صلح خاورمیانه تصویر کردهاند. آنها به حماس، گروه تندروی اسلامیای که مدتها است در مقابل فرآیند صلح خاورمیانه قرار دارد، کمک کردهاند، حتی از زمانی که من یک نوجوان بودم. من فکر میکنم این حقیقت که ایران از آنها حمایت میکند نباید جامعه بینالمللی را فریب دهد که همه مردم ایران هم حماس و دیگران را حمایت میکنند. یک نظرسنجی که توسط یک اصلاحطلب سال گذشته انجام شد نشان داد که یک اکثریت از مردم ایران سیاست حکومت در قبال خاورمیانه را حمایت نمیکنند. آنها فکر میکنند که این مساله آنها نیست. این مساله کشورهای عربی است و ما نباید کل سرنوشت سیاسی و سیاست خارجی را با تنها یک چیز که ربطی به ما ندارد، گره بزنیم.
: آیا فکر میکنید که امکان ارتباط محکمتر و بهتر بین ایران و اسرائیل وجود دارد؟
هودر: حتما. من شخصا فکر میکنم که ایران و اسرائیل میتوانند، از لحاظ استراتژیکی، دوستان نزدیکی باشند. منظورم دولت شارون، که خیلی راست است، نیست، اما چپهای اسرائیلی و چپهای ایرانی میتوانند به دلایل استراتژیک و جغرافیاییسیاسی بهترین دوستان در منطقه باشند. این به هر جهت در بیست یا سی سال آینده اتفاق میافتد. این تنها راهی است که ایران میتواند قدرتش را در یک منطقه تحت قدرت عربها متعادل کند. ما بعضی مشکلات خیلی مهم با بعضی کشورهای عربی جنوب ایران داریم، مثلا در مورد چند جزیره که امارات متحده عربی ادعا میکند به آن کشور تعلق دارد. علاوه بر آن، همه آنها، حتی فلسطینیها، در طی هشت سال جنگ با عراق در دهه ۱۹۸۰، از عراق حمایت کردند. ما همیشه با آنها مشکل داشتهایم و فکر میکنم تنها چیزی که میتواند برای ایران یک تعادل در منطقه ایجاد کند، این است که یک دوست نزدیک اسرائیل باشد. و این تا وقتی که حکومت راستها در هر دو کشور در قدرت است اتفاق نمیافتد.
: و آنها احتمالا بعد روابط بهتری با آمریکا خواهند داشت؟
هودر: بله، حتما. یکی از بزرگترین مانعهای روابط ایران با آمریکا این است که اسرائیل آن را نمیخواهد و شدیدا بر علیه آن سعی میکند، حداقل تا وقتی که رژیم رادیکال تندرو ایران وجود دارد. من فکر میکنم اگر مشکل با اسرائیل حل شود، خیلی از مشکلات بینالمللی ایران هم سریعا حل میشود.
: بگذارید در مورد نامزد شدنِ شما برای انتخابات صحبت کنیم.
هودر: باشد. من فکر میکنم که من فرصت خوبی دارم که از این مخاطبها که به سختی در طول زمان به دست آوردهام استفاده کنم، که مسائلی که به نظرم مهم هستند را مطرح کنم.
: چه مدت است که شما وبلاگ مینویسید؟
هودر: بیش از دو سال است که وبلاگ مینویسم -- تقریبا هر روز. من زمانی شروع کردم که تقریبا هیچکس در ایران درباره وبلاگ چیزی نمیدانست. شاید با چند صد بیننده در روز شروع کردم و الان بیش از ۵۰۰۰ بیننده در روز دارم، حتی با وجود سانسور. اگر من این قدر جدی نبودم، الان اینطور نبود.
من فکر میکنم که میتوانم از این مخاطبانم برای یک مبارزه سیاسی استفاده کنم، نه برای خودم بلکه برای فکرهایی که خیلی دیگر از فرهیختگان و مردم عادی درباره آینده ایران دارند. آنها این جرأت را ندارند که درباره آنها صحبت کنند، چرا که رسانهها، روزنامهها و رادیو توسط اسلامگراهای تندرو اداره میشوند یا به شدت کنترل میشوند. من فکر میکنم از این نظر وبلاگها میتوانند نقش بزرگی بازی کنند.
من فکر کردم که اگر من نامزد شدنم را اعلام کنم، میتوانم توجه چند ناظر بینالمللی را جلب کنم، و در عین حال، مسوولان داخل ایران را مجبور کنم که ببینند نسل جدید ایرانی واقعا به چه اهمیت میدهد. من میخواهم چند موضوع ممنوع مانند تغییر قانون اساسی، اسرائیل، و حجاب -که حتی در قانون اساسی نیست اما تندروها آن را به زنان تحمیل کردند- را بشکنم.
من فقط میخواهم که صدایم را به عنوان یک آدم معمولی از نسل جوان ایرانی به گوش برسانم تا یک بحث کاملا جدید درباره این مسایل را شکل دهم. و نشان دهم که وقتی اصلاحطلبان میگویند که مردم به آنها رای نمیدهند - اصلا- این به این معنا نیست که آنها به آینده خودشان اهمیت نمیدهند. این یعنی مردم احساس نمیکنند که انتخابی واقعی دارند زیرا بر طبق قانون انتخابات، کاندیدشدن تنها از کسانی پذیرفته است که به اسلام معتقدند و کاملا آن را اجرا میکنند، و به رژیم اسلامی و قدرت مطلق رهبر آن اعتقاد دارند. بنابراین همه مردم دیگر نمیتوانند نمایندهای پیدا کنند و بنابراین رای نمیدهند.
من میخواهم نشان دهم که اگر شما یک برنامه رادیکال دارید -برای تغییرات رادیکال- اما در یک ساختار غیر خشونتبار، مردم رای خواهند داد -گرچه من میدانم که اسلامگراهای رادیکال آن نوع مردم را راه نخواهند داد. من میخواهم بقیه مردم را هم تشویق کنم که همین کار را انجام دهند. من فکر میکنم مثلا اگر صد یا هزار ایرانی جایگاه مبارزه خودشان را بسازند، به طور سمبلیک یا غیرسمبلیک، برای آینده ایران، یک تصویر عالی برای همه دنیا و مسوولان ایران فراهم میکند که بسیار فراتر از مرزهای اصلی یک نقشه سیاسی را ببینند.
بنابراین چند تا از دوستانم و من در حال ساخت یک وبسایت هستیم که مردم میتوانند در آن نامزد شدن خود را اعلام کنند -- یا حداقل نامزد شدن به طور نمادین. آنها تصویر و اسم واقعیشان را آنجا میگذارند، و اگر میخواهند یک زندگینامه کوتاه و جایگاهشان. من فکر میکنم این یک ماجرای جالب ایجاد میکند و یک محبوبیت قابل توجه هم در داخل و هم در خارج از ایران ایجاد میکند. این یک وسیله برای تغییر سیاسی خواهد بود و آزادی بیان.
: آیا شما فکر میکنید که ایران هستید؟
هودر: اگر من واقعا میخواستم وارد سیاست شوم، بله، میتوانستم باشم. اگر مثلا ۴۰ ساله باشم و تحصیلاتم را تمام کرده باشم و بخواهم به ایران برگردم و واقعا یک حرفه سیاسی را شروع کنم، واقعا به دنبال یک مبارزه واقعی و سخت خواهم رفت. من حتما همهی تلاشم را میکنم که اولا برای انتخابات شایسته باشم و سپس یک مبارزه سخت را انجام دهم، یک مبارزه موفقیتآمیز. اما حقیقت این است که قانونهای انتخابات در ۲۰ سال گذشته عوض نشدهاند و اکنون، همان طور که گفتم، تنها کسانی که به قوانین اسلام و رژیم اسلامی و این قاعده که رهبر ارشد قدرت نامحدود سیاسی و مذهبی دارد اعتقاد دارند میتوانند در انتخابات نماینده شوند. این کاندیدهای بالقوه را تقریبا محدود به کسانی میکند که هماکنون در فضای سیاسی حضور دارند و مانع میشود که خون تازه به سیستم قانونی و سپس به دولت وارد شود.
حتی اگر من واقعا میخواستم که برای مجلس ثبتنام کنم، دارای شرایط نبودم زیرا به هیچ وجه یک مسلمان مقید نیستم. نماز نمیخوانم، الکل مینوشم، با زنان دست میدهم، در ماه رمضان روزه نمیگیرم، به شدت به موسیقی غربی گوش میدهم، چگونه میتوانم ثابت کنم که یک مسلمان مقید هستم؟
: شما اشاره کردید که احساس امنیت نمیکنید که به ایران برگردید، مخصوصا پس از اعلام نامزد شدن نمادینتان. یک نفر گفته است که فکر میکند شما اگر به ایران برگردید کشته میشوید. آیا این را باور میکنید؟
هودر: نه، من فکر نمیکنم که آنها من یا هیچکس دیگر را به این راحتی بکشند! مخصوصا پس از اتفاق بدی که برای زهرا کاظمی، خبرنگار ایرانیکانادایی که به ایران رفت و با کتک خوردن کشته شد، افتاد. مطمئنم که آنها مرا حبس میکنند یا از من میخواهند که به چند سوال پاسخ دهم، و احتمالا مرا چند ماه در زندان نگه میدارند و گذرنامهام را میگیرند.
: دستگیر میشوید؟
هودر: بله، حتما دستگیر خواهم شد. اما من نمیخواهم مثل خیلی از گروههای مخالف سنتی در اروپا و آمریکای شمالی باشم. آنها به نوعی بازنده هستند. آنها همیشه تهدیدهای بر علیهشان را و نیز محبوبیتشان بزرگ جلوه میدهند. بخشی از دلیلش این است که آنها معمولا به شدت نیازمند پشتوانه و پول یعنی رفاه هستند. من فکر نمیکنم آنقدر محبوب یا مهم باشم که حکومت به من اهمیت بدهد، و فکر هم نمیکنم که آنها آنقدر که مخالفان ترسیمشان میکنند، وحشی و غیرمنطقی هستند. آنها در گذشته مثلا ده، پانزده سال پیش خیلی وحشی بودند -- شاید به این دلیل که این مقدار مقبولیت بینالمللی نداشتند. اما الان، کاملا متفاوت است. الان از گذشته خیلی منطقیترند.
: پس شما فکر میکنید که وضعیت حقوق بشر پیشرفت کرده است؟
هودر: در مقایسه با ده یا پانزده سال پیش، بله. حداقل الان هرچه که اتفاق میافتد شفاف است. همچنین حتی محافظهکاران و تندروها سعی میکنند که یک توجیه قانونی برای آن پیدا کنند. گرچه نتیجه هنوز تغییر چندانی نکرده، روشها بسیار تغییر کردهاند.
رادیکالهای اسلامی ممکن است خیلی با از دست دادن قدرتشان خوشحال نباشند، ولی میدانند که چارهای ندارند و گاهی توسط روسای خودشان تحت چنان فشار زیادی هستند که اعمالشان را توجیه میکند.
آنها نمیتوانستند به آن ادامه دهند و مجبور بودند که کارها را به روشهای تمیزتری انجام دهند. الان آنها نمیتوانند هرآنچه را که دوست دارند انجام دهند، اما میخواهند. آنها دیگر مانند گذشته شکنجه فیزیکی انجام نمیدهند. آنها در گذشته کارهای زشتی به روشهای زشتی انجام میدادند، اما الان کارهای بد به روشهای نسبتا موجهی انجام میدهند، که بعضی ممکن است بگویند یک پیشرفت است، بعضی نه. من شخصا مطمئن نیستم.
: بگذارید به مبارزه برگردیم. آیا شما محبوبترین وبلاگنویس فارسی هستید؟
هودر: بر مبنای بینندگانم، حدس میزنم که این طور است. البته ما چند وبسایت سکسی که توسط خدماتدهندگان وبلاگنویسی میزبانی میشوند را در نظر نمیگیریم. بعضی از آنها خیلی محبوبند. بخشی از دلیلش این است که حکومت ایران وبلاگهای من را فیلتر کرده است، مال آنها را نه.
: یعنی وبلاگ شما را سانسور میکنند و نمیگذارند ایرانیها آن را ببینند؟
هودر: بله، به مدت حدود سه ماه، آنها کل آدرس مرا (.) بسته بودند و وبسایتهای بسیار دیگری با آن آدرس مانند صبحانه، یک فیلتر خبری ایرانی. اما بعد برخی از سرویسدهندهها آن را باز کردند، اما هنوز تا آنجایی که من میدانم -و نمیدانید که چقدر سخت است در مورد این چیزهای از راه دور اطمینان حاصل کنید- بعضی از سرویسدهندههای اصلی مثل پارسآنلاین هنوز باز نکردهاند. اما من هنوز واقعا مطمئن نیستم، زیرا من بعضی نسخههای لیست سیاه را که شامل. هم بوده است، دیدهام. اما خیلی از مردم الان از بعضی وبسایتهای ناشناسساز که حکومت آمریکا و بعضی از شرکتهای دیگر آنها را برای دسترسی به وبسایتهای فیلترشده برپا کردهاند، استفاده میکنند. بنابراین من واقعا نمیتوانم بگویم که اندازه مخاطب واقعی من چقدر است.
: برگردیم به معاون رئیس جمهور ایران، محمد علی ابطحی، وبلاگنویس، چه چیز دیگری درباره او میتوانید به ما بگویید؟
هودر: میتوانم بگویم او یک مردمگرا کامل است. او میخواهد همه گروههای سیاسی ممکن را در وبلاگش راضی کند. اما من حدس میزنم که او جالبترین سیاستمدار ایران در آن سطح است. او همچنین یک اصلاح طلب است، خیلی نزدیک به رئیس جمهور که خودش یک مرد مهربان و سادهگیر است و قبلا خیلی محبوب بود، اما نه الان، چرا که در انجام قولهایش شکست خورده است.
: هیچ امکان نظرخواهی در وبلاگش وجود ندارد. شما درباره این موضوع چه فکر میکنید؟
هودر: من فکر میکنم که او در نهایت این امکان را خواهد گذاشت، به دلیل سطح توقعات و فشار از طرف خوانندگانش. اما حتی اگر این کار را نکند، این قابل درک است. من وبلاگش را دوست دارم. او درباره چیزهای مدرن مانند، تلفن همراه، عکسهای تلفن همراه، وبلاگها و غیره صحبت میکند. او از کلمات تخصصی و مقداری اشاره به فرهنگ پاپ برای جالب نشان دادن خود برای خوانندگان جوانش استفاده میکند -- فکر میکنم که او به روشنی از وبلاگش برای نامزد شدن برای مجلس یا چنین چیزی استفاده خواهد کرد. به هر جهت، این حقیقت که او ریسک زیادی با این کار کرده است به این معنا است که سیاستمداران دیگری هم ممکن است باشند که بتوانند به محیط وبلاگ وارد شوند. این خیلی خوب است زیرا این به ما نوعی مشروعیت در نظر حکومت میدهد که ما هیچکار از نوع براندازی یا بد انجام نمیدهیم. این نوعی رسانه است که هرکس میتواند انجام دهد. میتواند حتی توسط تندروها، اسلامگراها، اصلاحطلبان، و هر کسی استفاده شود.
: خطوط ارتباطی را باز میکند؟
هودر: بله، و در واقع همه این حزبها را به هم نزدیک میکند. چرا که آنها میتوانند نقاط مشترک انسانی در شخصیت یکدیگر را ببینند و کمک میکند که تنفر کاهش پیدا کند.
: این پایان سوالات از پیش آماده ماست. آیا چیز دیگری هست که بخواهید اضافه کنید؟
هودر: رسانههای کانادایی. رسانههای کانادایی کاملا نسبت به اهمیت وبلاگ نوشتن بیتوجه بودهاند، مخصوصا در کشورهای در حال توسعه به عنوان یک راه ارزان و موثر در گسترش دموکراسی، آزادی بیان، آموزش، و غیره. کاناداییها بیشتر از آمریکاییها از آزادی و دموکراسی حمایت میکنند. چرا آنها هنوز به وبلاگ نویسی روی نیاوردهاند؟ به عنوان مثال، در ماجرای زهرا کاظمی، وبلاگ نویسی میتوانست یکی از نقاط توجهشان باشد. زیرا وبلاگها به همان اندازه درباره حقوق بشر و آزادی بیان و روزنامهنگاری هستند که ماجرای زهرا کاظمی بود، آنها یک سوژه مشترک داشتند. من فکر میکنم کانادا بکند. وبلاگها میتوانند پلهایی بسازند که اینجا در کانادا هم مفید هستند.
قاصدک از انتشار نوشتههای خوانندگان خود استقبال میکند. در صورتی که مایل به چاپ نوشتهی خود هستید میتوانید متن تایپ شدهی آن را به صورت فایل یا به آدرس ایمیل نشریه ارسال کنید. مطالب ارسالی نباید قبلا در جایی دیگر مانند وبلاگ به صورت الکترونیکی منتشر شده باشد. شورای سردبیری قاصدک دربارهی چاپ مطالب ارسالی از طرف خوانندگان تصمیم میگیرد. -بابک
انگشتان چروکیدهی فالگیر،
زمان را،
در دو جفت گوی سبزآبی،
میایستاند؛
در سکون حرکت دُمها،
در انجماد دَمها،
در نوسان بلورهای یخ
بر سبیلهای فروافتاده،
در دهان گشودهای که تمنای شهوت دارد؛
زیر شاسی ماشین،
زمان،
صدای پای گذرندهایست،
و خشخش ژنده کتی که با باد میرود.
بر فلات ماسههای بادگردان قدم گذاشتهام،
دامنهی کوههایی که برف را
نه بر قلههاشان،
که در میان پذیرا هستند،
-شاید هم این شنهای بادخیز، کمر به پهلوشان گرهزدهاند-
و جنگلهای استوایی،
تا آن قلههای دوردست ادامه دارد،
صدای گیتار و رقص و پایکوبی است.
با مشت بر یخ میکوبم،
خون شب، در دهانم طعم میگیرد،
اما،
با هایهوی و سوز و غرش و توفان
کشاکشی نیست،
زمان،
مرا به خود میآورد.
مار نشسته بر درخت،
دهان به بلعیدن جوجه توکا گشوده،
«نگاه کن! این کوه نیست،
پوست ریشریش شدهی درختی است که
به دو راهی میخواند.»
میایستم،
سکوت یا غوغا،
اشک یا خنده،
که سکوت، غوغاست،
اشک، خنده.
بر کلاهخود رستم مینشینم.
مورچه، به لانهی تو در تو بازمیگردد،
از درهها و کوهها،
که برای من، جایی است که ناخن بیندازم
و پوست تنهاش را بکنم،
یا آتشگردانی که خورشید را در آن بیفروزم،
تا شتهها با گرمایش شهد بسازند،
تا مورچه از درخت پایین بیاید.
دستانم لطافت او را حس کنند،
در کمرکش، در ستیغ؛
به جنگل باران بیاید
و فلات، شخم بخورد.
تکان نمیخورم،
دست را پشت سر گذاشتهام،
سیگاری بر لب،
مار دود میشود،
و سیگار مینالد:
«نه و نه و نه و نه!، این تنها ترکی بر دیوار است.»
روی میز کنار پنجره دو کاغذ بیخط محاکمهام میکردند و تنها راه فرار پر کردن خلا سفید ورقها بود. تنها چیزی که میدانستم ندانستنم بود و همین اعتراف به ندانستن بود که کاغذهای بیخط را از روی میز فراری داد. پنجرهی کنار میز را که بستم از دیدن روشنایی برف کوچه و برفی که میبارید و ابرهایی که از آنها برف میبارید، تعجب کردم. هیچ وقت نتوانسته بودم روی کاغذ بیخط بنویسم. میدانستم که خطهای آبی دفتر٬ ذهن سیالم را آرام میکنند. دفتر را که از روی میز برداشتم٬ کاغذ کهنهی تاخوردهای از لای آن بیرون افتاد. تاهای کاغذ سفید را باز کردم. ورق به زردی میزد و رویش جملهای با مداد نوشته شده بود: «۲۷ ژانویه٬ زیر برج سفید٬ روی علفهای سبز٬ مرده خواهم بود.» فردا آخر ماه بود و یک روز بیشتر وقت نداشتم نوشتهای که هنوز ننوشته بودمش را تمام کنم. زیر دست خط مدادی نوشتم...
«زیباترین٬ بزرگترین و عجیبترین اشتباه بشر٬ سخن گفتن بود. سخن گفتن تلاشی بیهوده برای معنا دادن به چیزهای بیمعنی با واژههای بیمعنی بود. نمیدانم چرا دیوانهوار به چیزی که نمیدانستیم چیست، «زندگی» گفتیم و دیوانهوارتر از آن «زندگیمان» را به هدر دادیم تا معنی «زندگی» را درک کنیم. شاید ترس از پرسشهای وحشتناکی که در سکوت به سراغمان میآیند باعث شد تکلم را یاد بگیریم. همانطور که از ندیدن ترسیدیم و برای غلبه بر ترس از سیاهی برای خودمان دو چشم آفریدیم تا چیزهای واقعی٬ شاید هم غیر واقعی ببینیم. شاید هم برای این که بگوییم از «زندگی» میترسیم٬ آغاز به تکلم کردیم. نمیدانم.... من میگویم ما هم باید مثل دلفینها ساکت باشیم. باید مثل دلفینها از آب بیرون بپریم...»
هر چه نوشته بودم را خط زدم. جملههایم مثل شعارهای روی دیوار خشن شده بود. ورق کهنه را تا کردم و لای دفتر جا دادم. کاغذ سفید را از روی زمین برداشتم و روی میز کنار پنجره گذاشتم. پنجره را باز کردم و از دیدن روشنایی برف کوچه و برفی که میبارید و ابرهایی که از آنها برف میبارید، تعجب کردم.
بهنود دو بار و شمس یک بار قبل از این برای سخنرانی به تورنتو آمده بودند. این بار هر دو با هم قرار بود بیایند آن هم به دعوت انجمن دانشجویان ایرانی دانشگاه یورک در مراسمی در دانشگاه تورنتو. حول و حوش ساعت ۶ بعدازظهر یک روز برفی، کمکم به جمعیتی که بیرون سالن منتظر بودند افزوده میشد. طبق روال معمول این سالها، میزی در بیرون سالن از طرف حزب کمونیست کارگری بود که بر روی آن جزوات و کتابهایشان را قرار داده بودند. ولی این بار با دفعات گذشته یک فرق داشت. چند دقیقهای از ساعت ۶ نگذشته بود که سروکلهی دو پلیس پیدا شد. دانشجویان یورک میگفتند برای کرایهی سالن و محیط بیرون آن پول دادهاند و به هیچ عنوان مایل نیستند کمونیستها در آنجا میزشان را بگذارند. به لحاظ قوانین دانشگاه حق با آنها بود و پلیس به کمونیستها گفت که میزشان را جمع کنند. کمونیستها به هیچ عنوان مایل به چنین کاری نبودند و ترجیح میدادند به جروبحث با پلیس بپردازند. آنها میگفتند که سالهاست روال این بوده که میزی بیرون جلسات بگذارند. میگفتند اینها تنها یک سری کاغذ هستند. چرا دانشجویان از این کاغذها میترسند؟ چند دقیقه بحث فایدهای نداشت. یکی از کمونیستها رو به مردمی که آنجا بودند کرد و با صدای بلند فریاد زد: «خجالت داره!»، «ایران چماقدارها جمع میکردند. این جا حزباللهیهای دانشجو»، «اینها میخواهند در مورد آزادی انتخابات صحبت کنند، بعد میز ما را جمع میکنند»، «پای این میزها خون داده شده»، «یک مشت آخوند» و.... صداهای پراکندهای در میان جمعیت در مخالفت با آنها شنیده میشد. تنها دوربینی که در آن لحظات از مردم و اتفاقاتی که میافتاد فیلم میگرفت، به قول بچههای دانشجو، مال خود کمونیستها بود. کمکم دو پلیس دیگر هم آمدند و مکالماتشان با کمونیستها لحن خشنتری گرفت. پلیس میگفت: «». کمونیستها که دیدند از بحث کردن به جایی نمیرسند، گفتند که منتظرند ماشین بیاید تا کتابهایشان را جمع کنند. پلیس هم میگفت که دست کم این کتابها را فعلا روی هم بگذارید و جمع کنید ولی آنها اعتنایی نمیکردند تا سرانجام وقتی لحن پلیس جدیتر شد، دو سر میز را گرفتند و به بیرون از سالن بردند. جایی که سرمای هوا باعث شده بود کسی آنجا نباشد.
جلسه با نیمساعت تاخیر ساعت ۶: ۳۰ شروع شد. حدود ۳۰۰ نفری آمده بودند که با احتساب بلیتهای ۵ دلاری برای دانشجویان و ۱۰ دلاری برای بقیه و هزینههای سفر سخنرانان و اجارهی سالن، یورکیها حدود ۵۰۰ دلار ضرر دادند. مجری مراسم، جلسهای را که «کنفرانس ایران و انتخابات مجلس هفتم» نامید، با تقاضای یک دقیقه سکوت برای هزاران نفری که بر اثر زلزلهی بم اکنون زیر خاک خفتهاند، آغاز کرد. سپس او با بیان اینکه دوربین نشریهی پیکروز تنها دوربینی است که برنامه را پوشش خواهد داد، از حاضرین در سالن خواست تا از دوربینهای خود استفاده نکنند. بعد مجری از شمسالواعظین خواست تا صحبت خود را آغاز کند. در حالی که شمس حتی اولین جملهی خود را تمام نکرده بود، یک نفر از میان جمع برخاست و گفت که میخواهد سوالی را از برگزارکنندگان برنامه بپرسد. این صحبت او با مخالفت مجری برنامه و اکثریت حاضرین در جلسه مواجه شد. اعتراض کننده اشارهای کرد به ماجرای پلیس و این که یک عده بیرون جلسه حبس شدهاند. در این زمان بود که حاضرین در جلسه با کف زدنهای مکرر مانع از شنیدن حرفهای او شدند. وقتی کف زدنها تمام شد، او دوباره به صحبتش ادامه داد و حاضرین هم دوباره کف زدن را شروع کردند. این اتفاق یکی دو بار دیگر هم افتاد تا اینکه فرد اعتراض کننده تصمیم گرفت سالن را ترک کند.
جلسه بعد از آن به آرامی با صحبتهای شمس و بعد از آن بهنود ادامه پیدا کرد. شمس به ذکر سه دیدگاهی پرداخت که این روزها دربارهی مسالهی انتخابات در ایران شکل گرفته است. دیدگاه اول متعلق به کسانی است که شرکت در انتخابات را یک وظیفهی شرعی یا ملی میدانند. دیدگاه دوم دیدگاه طرفداران تحریم انتخابات است. طرفداران این دیدگاه که جبههی ملی، بخشی از نیروهای ملی-مذهبی و سبزها را تشکیل میدهند، انتخابات را در نظام حاکم به رسمیت نمیشناسند و آن را به مانند تظاهراتی میدانند که حکومتها برای پشتیبانی از خود برگزار میکنند. اینان معتقدند که اصلاحطلبان باید از حاکمیت خارج شوند و قدرت را به کلی به محافظهکاران واگذارند. در این حالت محافظهکاران چون خود توانایی ادارهی کشور را ندارند، مجبور میشوند به نیروهای غیرخودی متکی شوند و در این زمان آنان میتوانند با طرح شرطهای لازم، امتیازهای خود را از محافظهکاران بگیرند. در غیر این صورت محافظهکاران به کشورهای خارجی چون آمریکا متوسل میشوند. دیدگاه سوم متعلق به حزب مشارکت، نهضت آزادی و روشنفکران دینی است. از لحاظ آنان با شرکت در انتخابات در بدبینانهترین حالت، حاکمیت دوگانهی کنونی ادامه مییابد. این اتفاق در نهایت به سود تحکیم نیروهای طرفدار دموکراسی و نهادهای مدنی در ایران خواهد بود و این موج سوم در آینده حرف آخر را خواهد زد. شمس در سخنانش یکی از بزرگترین موفقیتهای دولت خاتمی را اجازهی تشکیل حدود ۴۰۰۰ نهاد مدنی در ایران دانست.
بهنود در سخنان کوتاهی که داشت به پیچیدگی تصمیمگیری در مورد مسایل ایران اشاره کرد و اعلام کرد که هنوز در مورد شرکت کردن یا نکردن در انتخابات تصمیم خود را نگرفته است. او گفت ترجیح میدهد زمان بخرد و در هفتهی آخر تصمیم بگیرد. او از نگرانی خود نسبت به جامعهی به شدت غیرسیاسی شدهی ایران صحبت کرد و این که به نظر او برای در آمدن از این وضعیت نیاز به یک شوک است. بهنود گفت که شخصا طرفدار رفراندوم است، اما نمیداند که این اتفاق چگونه میتواند روی دهد. به نظر او هیچ نیروی سیاسی در کشور این توانایی را ندارد که نیروهای اجتماعی را برای شرکت کردن یا نکردن در انتخابات بسیج کند.
بعد از نیم ساعت سخنرانی هر یک، تنفس ۵ دقیقهای که در عمل به یک ربع تبدیل شد، اعلام گشت. طبق معمول مراسم با جلسهی پرسش و پاسخ ادامه پیدا کرد. حدود ده نفری که میخواستند سوال بپرسند، پشت میکروفونی که در وسط سالن قرار داده شده بود به صف ایستادند. مجری برنامه با ذکر این که فقط یک ساعت برای پرسش و پاسخ وقت باقی است، از سوالکنندگان خواست که فقط یک سوال و آن هم در ۳۰ ثانیه بپرسند. عجیب نبود که صدای اعتراض برخی از سوالکنندگان بلند شد. این که مگر در ۳۰ ثانیه اصلا چه میتوان گفت.
به هر حال پرسش و پاسخ آغاز شد. در میان سوال کنندگان دو سه نفری از کمونیستها هم بودند که نسبت به جمع شدن میزشان اعتراض داشتند. یکی از آنها از این که «دستههای چماقدار میز کتاب مخالفان را بهم ریختند» گله داشت. یکی دیگر خطاب به بهنود و شمس از آنان خواست «مردم را گول نزنند» و «برای شعور مردم احترام قایل شوند». وقتی در انتقاد به بهنود گفت که «خاتمی به ما آزادی نداد»، بهنود به سوی جمع برگشت که «من از این جمع میپرسم که اگر شما بیایید، آزادی میدهید؟» و آن وقتی بود که همه به نشانهی «نه» کف زدند. در میانهی مکالمات وقتی بهنود گفت که: «... رایی که ما و شما در دوم خرداد دادیم...»، فردی از میان جمع، نگران قلب واقعیت، فریاد زد که «من ندادم». سپس بهنود به خونسردی گفت: «ولی من دادم.» اما از جالبترین صحبتهای حاضرین آنی بود که خطاب به سخنرانان از آنها خواست که بیشتر مطالعه کنند. به نظر او «شاید آنها احتیاج به مطالعهی بیشتر داشته باشند.» در جایی دیگر یکی از سوالکنندگان از شمس انتقاد کرد که چرا دولت خاتمی را «دموکراتیکترین» دولت تاریخ ایران نامیده است. شمس هم در جواب گفت: «وقتی حرف یک ربع پیش من که «پرپشتوانهترین دولت» بود را شما میگویید «دموکراتیکترین»، وای به حال اخبار ایران که به شما میرسد.» یکی دیگر از سوالکنندگان هم از اطلاع موثقاش در مورد گردش مردم ایران به عقاید چپ صحبت کرد.
یکی از پرسشکنندگان جوان دانشجویی بود که ترجیح داد وقت سوالش را به مزاح بگذراند. او با کنایه به «فرهنگ مخفی جوانان ایران» که در صحبتهای شمس به آن اشاره شده بود، از او پرسید که «آیا قاضی مرتضوی آدم خفنیه یا آدم ملوییه؟» این سوال هم فرصتی را فراهم کرد تا شمس چند خاطره از مرتضوی برای جمع تعریف کند. سپس آن جوان اشارهای کرد به بهنود و این که نسبت به دفعهی گذشته که به تورنتو آمده، «تپلتر» شده است و گفت که گویا زندان به او ساخته است. اندکی بعد همین نکته دستمایهی حرف یکی از معترضان شد که میگفت «ما را که به زندان میبردند دستهجمعی اعدام میکردند و شما بعد از زندان تپلتر شدهاید.»
مراسم با تاکید شمس بر اهمیت سنت در ایران پایان یافت. او به اشتباه اصلاحطلبان در دستکم گرفتن سنت اشاره کرد و گفت که آنان قدرت سنت و میزان نفوذ آن در میان مردم را درک نکرده بودند. محافظهکاران با اتکای به همین سنت توانستهاند عرصهی سیاست را فتح کنند. آنان تمامی مساجد، کل اوقاف و شبکهی اقتصادی آن، بازار، بنیاد مستضعفان و صندوقهای قرضالحسنه را در اختیار دارند. او گفت اگر چه ممکن است مردم ایران شب شعرشان را با اصلاحطلبان برگزار کنند، اما زندگی روزانهشان را با محافظهکاران تنظیم میکنند.
معمولا این مسعود بهنود است که با بقیه مصاحبه میکند. این بار ما قاصدکیها بودیم که با او مصاحبه میکردیم. در یک بعدازظهر یکشنبه در کافینت یک کتابفروشی قرار گذاشتیم. از او خواستیم از خاطرات روزنامهنگاریش بگوید و او هم با روی گشاده پذیرفت. گفتوگو آنقدر روان بود که بدون سوالهای ما هم بهجلو میرفت. مصاحبه چهار ساعت به طول انجامید. شاید اگر آقای بهنود نباید آن شب برای شام به خانهی عمید نایینی، سردبیر پیامامروز میرفت تا نیمهشب همچنان برای ما از آن دورانها تعریف میکرد. بخش اول گفتوگو را در پایین میخوانید. بخش بعدی در شمارهی بعد منتشر خواهد شد.
از تولد تا دانشگاه
از مجلهی روشنفکر تا روزنامهی آیندگان
کار در رادیو و تلویزیون
اعتصاب روزنامهها و دیدار با دکتر بهشتی
توقیف آیندگان
سالهای اول انقلاب تا انتشار آدینه
قتلهای زنجیرهای
پیامامروز
از تولد تا دانشگاه
- آقای بهنود، میدانیم در ۲۸ مرداد ۲۵ به دنیا آمدهاید. از دورهی جوانی و تحصیلاتتان برایمان بگویید.
در تهران به دنیا آمدم. پدرم اهل انزلی بود. هیچوقت بندر انزلی نرفتم تا ۱۶ سالگی. دبیرستان تهران رفتم، بچهی فیروز بهرام و اخراجی البرز.
- چرا اخراج شدید؟
شیطانی میکردم. روزنامهنویسی و این کارها میکردم. دنبال این کارها بودم. این کارها را دبیرستان تحمل نمیکرد. زمان ما سیکل بود. از کلاس سوم دبیرستان رفتم به سمت روزنامهنگاری. یواشیواش دیگر مدرسه نمیرفتم. عاشق این کارها بودم و در همین زمان میرفتم دانشگاه تهران، کلاس استادهای مهم مثل بدیعالزمان فروزانفر، آقای همایی. سال های ۴۰ بود. اینقدر میرفتم و میآمدم که بچههای دانشگاه تهران فکر میکردند که من دانشجویم. بعد هم یواشیواش عینک مادربزرگم را میزدم و کراوات میزدم. شدم این قیافه. عینک را که تا دو سال پیش میزدم شیشه بود. دو سال است که واقعا عینکی شدهام. ولی از ۱۶ سالگی زده بودم و به آن عادت داشتم. بعد هم مرا یک کم گندهتر نشان میداد تا بقیه جدیام بگیرند. بعد بنابراین نمیرفتم دبیرستان. معلمها را شوخی میگرفتم. فکر میکردم که اینها بیسوادند. من سیکل دوم رفتم رشتهی ادبی. معلمهای ادبیات هم که فسیل بودند. در خاقانی مانده بودند و جلوتر نمیآمدند. ماها که دیگر برای خودمان آدم شده بودیم. شعر هم میگفتم و در روزنامهها چاپ میشد، در مجلات ادبی مانند آرش و اینها هم. گاهی هم میرفتم مدرسه. مدارس هم طبیعتا بیرونم میکردند. من هم اول سال مبصر میشدم نمیرفتم، چون دیگر با حضور و غیابم کاری نداشتند. سال ۴۳ بود که تصمیم گرفتم تحصیلات کلاسیک را ول کنم. تصمیم داشتم که دیپلم را نگیرم. فشار آوردند که نمیشود. دوستان فشار آوردند و خلاصه دیپلم را گرفتم. محض اطلاع شما موقعی که امتحان نهایی بود کتابها را یکی از دوستانم، مهدوی، که الان شاعر است برایم آورد. من تمام سال نرفته بودم مدرسه. کتابها را آورد و گفت برای امتحان نهایی آماده شو. کار میکردم و وقت نداشتم. بعضی از اینها را حتی یک بار هم نخواندم. ولی به توصیهی او رفتم و امتحان دادم. او شاگرد زرنگی بود و دقیق میخواند. رفتیم امتحان دادیم. من اول این که تاریخادبیات را ۲۰ شدم. بعدا گفتند در کل امتحان ادبی تنها دو نفر ۲۰ شدند. بعد هم معدلم مثلا شد حدود ۱۶. مهدوی که خیلی خوانده بود و شاگرد درسخوانی بود شده بود مثلا ۱۶. ۵. برای همین او معتقد بود که سیستم آموزشی ما خرتوخر است. چون من این کتابها را یکبار تا ته نخوانده بودم. بههرحال این شد و بنا به عادت آن موقع رفتم کنکور دادم و قبول شدم.
- چه رشتهای؟
رفتم دانشگاه، دانشکدهی ادبیات. در این موقع من یک روزنامهنگار جدی شده بودم. در مجلهی روشنفکر، معاون سردبیر شده بودم. این موقع واقعا دنبال تحصیلات کلاسیک نبودم. یک ذره هم برایم زشت بود. ۲۳ سالم بود. آدمهایی مثل شاملو و آلاحمد و اینها فکر میکردند من لیسانسم را گرفتهام. بعد نمیشد بگویم من تازه کنکور دادم. این قسمت را پنهان میکردم. من سه چهار سال بود میرفتم دانشگاه تهران. دیگر همه من را میشناختند. در این زمان دو درگیری معروف دانشگاه تهران رخ داد. اولین سالی بود که حسنعلی منصور نخستوزیر شده بود. وقتی آقای خمینی را تبعید کردند یک حرکتهایی در دانشگاه شد. یک عدهای را گرفتند از جمله من را. درست بعد از ۱۵ خرداد. ۱۵ خرداد من دبیرستان بودم. جزو اولین گزارشهایی که من از شهر نوشتم همین گزارش ۱۵ خرداد بود برای روزنامهی اطلاعات. کلاس سوم بودم. بعد آقای خمینی را گرفتند و به زندان انداختند. بعد از زندان آزادش کردند. بعد دوباره رفت. انگار سال ۴۳ اعلامیه داده بود و با مستشارهای آمریکایی مخالفت کرد. دانشگاه و شهر را یک ذره به هم ریخت. بعد رژیم ایران تصمیم گرفت ایشان را تبعید کرد. بعد ما را گرفتند بردند شهربانی و تیمساری هم مشتی زد به من. زیر چشمم پاره شد. به هر حال من هم بیکس نبودم ٬ خانواده داشتم. اینها افتادند پشتمان. این پارگی هم باعث شد من زندان نرفتم. وگرنه بقیه بچهها را انداختنند زندان. تیمسار گفت: «تو چه طوری میخواهی انقلاب کنی که خون از تو راه میافتد؟» من هم گفتم: «چه ربطی دارد. انگار مثلا انقلاب که میکنی خون نباید راه بیفتد.» در ضمن این انگشترش تاج پهلوی بود. زد به من، بغل تاج گرفت به صورتم و یک ذره پاره کرد و خون ریخت روی پیرهنم. من هم یک ذره ترسیدم و بعد کلی جیغ و داد کردم. خلاصه ما را بردند بهداری و پانسمان کردند و و بعد هم آزاد کردند. ولی بقیه را نگهداشتند. این باعث شد که عملا درس دانشگاهی و اینها تمام شد. دیگر نرفتم و مدرکی نگرفتم. موضوع هم منتفی شد. سال بعد یا دو سال بعد دانشگاه تهران یک تصویبنامه گذراند که کسانی که در یک رشتههایی متخصص باشند برای آمدن و درس دادن در دانشگاه تهران احتیاج به مدرک ندارند. این را گذراندند برای استادهای قدیمی مانند استاد همایی که دانشگاه نرفته بودند ولی آدمهای عالمی بودند. ولی به هر حال من با استفاده از این قضیه رفتم و در دانشگاه بهعنوان معلم درس دادم. درست سال بعد از این بود که رفتم و کنکور دادم. ۲۱ سالم بود. در این فاصله من نه اینکه شناسنامه ساخته باشم. کسی شناسنامه نمیخواست، ولی به زبانها انداخته بودم که من متولد سال ۱۷ یا ۱۸ هستم. بنابراین توی کتابها و مطبوعات آن زمان زیاد میخوانید که آمده من را نوشته متولد این سالها. این بیچارهها اشتباه نکردند. من گفته بودم. چارهای نداشتم. آن موقع که من سردبیر اخبار رونامهی آیندگان شده بودم که یکی از سه روزنامهی مهم ایران بود تازه ۲۵ سالم بود. من وانمود میکردم که بزرگترم. بعد روزنامهنویس حرفهای شدم دیگر.
- چه موقع ازدواج کردید؟
من در حقیقت ۱۹ سالم بود که ازدواج کردم. درست همان سالی که دیپلم گرفتم و کنکور دادم. سال بعدش هم دخترم به دنیا آمد. دخترم با من ۲۰ سال فاصله دارد و الان سانفرانسیسکو است. دندانپزشک است. نیما پسرم درست ۱۰ سال از بامداد کوچکتر است. دختر من اولین کسی است که به خاطر شاملو اسمش بامداد بوده است. دختر توللی هم اولین دختری هست که به خاطر نیما یوشیج نامش نیما شده. بعد از آن دیگر خیلیها گذاشتند.
از مجلهی روشنفکر تا روزنامهی آیندگان
- چه موقع رفتید روزنامهی آیندگان؟
قبل از اینکه بیایم آیندگان در مجلهی روشنفکر معاون سردبیر بودم. مجله روشنفکر پیداست درست شده بود که مجلهی اینتلکچوالها باشد. یک آدم خیلی با سواد مدیرش بود. در زمان دکتر مصدق، در سال ۳۱ از فرانسه که دکترای حقوق گرفته بود آمد به ایران تا یک نشریهی روشنفکری درست کند. تا آمد امتیازش را بگیرد کودتای ۲۸ مرداد شد. امتیاز گرفت ولی کار نمیتوانست بکند. بنابراین مجلهی روشنفکر خیلی زود یک نشریهی پاپیولار شد. گوگوش معتقد است اولین بار که اسمش در مطبوعات آمد کار من بود در همین مجله. جنجالی بود. دربارهی پری غفاری، دعوای ویگن و مرضیه و از این چیزهای آبکی. من از این کارها زیاد میکردم. شلوغ پلوغ. بعد در عین حال شعر هم میگفتم. گزارش هم تهیه میکردم. من رپرتاژ خیلی دوست داشتم. میرفتم دنبال رپرتاژ و گزارش. ولی در مطبوعات همه کار میکردم. شعر مینوشتم. قطعهی ادبی مینوشتم. تا اینکه روزنامهی آیندگان آمد. این روزنامه درست شده بود با این فکر که یک تصور تازهای بیاید به مطبوعات. به اصطلاح کیهان و اطلاعات فسیل شدهبودند و قدیمی بودند. قرار بود یک نشریهای بیاید که روشنفکرها را جذب کند. داریوش همایون همراه با یک گروه حرفهای سطح بالا کار را آغاز کرده بودند. من هم در آن نشریه آبگوشتیها کار میکردم و شده بودم معاون سردبیر. هفتهای۰۱ تا نامه برایم میآمد و عکسم را میخواستند. از این کارها. حالا این روزنامه آمده بود. آمدند به من گفتند این روزنامه من را خواسته. ما هم فکر کردیم میرویم آن جا و حالا آنها پیشنهاد میکنند که بیا بشو مثلا دبیر. سردبیر نمیگویم چون سابقهی کار روزنامه نداشتم. ولی دبیری یکی از سرویسها یا بخشهای خبری مهم را میدهند. بدم نمیآمد بروم روزنامه. هیجانش بیشتر بود. بعد رفتم پیش آقای همایون. معلوم شد آقای همایون دنبال کسی میگردد که جدول طراحی کند. خیلی سخت بود. تازه معلوم شد من را بهعنوان مسوول جدول هم نمیخواهد. برای جدول دکتر سیروس پرهام را در نظر گرفته. او وقت ندارد شش روز در هفته جدول طراحی کند، من باید بغلدست مسوول جدول شوم. من هم گوش کردم و چیزی نگفتم. آمدم بیرون پیش خودم فکر کردم که من که حقوق خوبی دارم. سمت هم دارم و خواننده ها هم که برایم نامه مینویسند. اینها کی هستند آمدند پیشنهاد دادند که من جدول طرح کنم! ولی یک ندایی در وجودم گفت که من اگر همان کاری را بکنم که طبیعی است، اینها هیچ وقت من را نخواهند گرفت. باید بروم بهشان ثابت کنم که اشتباه میکنند. بنابراین باید یک ذره تحمل کنم. دوستهایی که با هم در مجلهی روشنفکر بودیم سر خیابان در کافهی نادری نشسته بودند و عزا گرفته بودند که حالا پول بیشتری می دهند و فلانی را میبرند - نمی دانم شاید هم خوش حال بودم و شاید هم تفاوتی برایشان نمی کرد. بنابراین من باید میرفتم و به اینها میگفتم ما را نمیبرند و به من میگویند برایشان جدول طرح کنم. دیدم خیلی بد شد. رفتم گفتم پیشنهادهایی میدهند و حالا بررسی میکنیم. بعد دو سه تا جدول طراحی کردم بردم آیندگان پیش آقای همایون. ایشان هم گفت یک کلاسهایی آن بالا هست برای این جوانها که بروند خبرنگاری یاد بگیرند. میخواهید شما هم بروید. جوان هستید. گفتم خیلی ممنون و گفت پس بعدازظهرها این بالا کلاس تشکیل میشود. هنوز روزنامه چاپ نشده بود. من رفتم بالا و در کلاس، صفا حایری داشت درس میداد. من را میشناخت. رفتم بالا، صفا گفت تو چرا آمدی؟ گفتم حالا و رفتم نشستم. جلسهی دوم یک بار به صفا حایری تلفن شد. یک قرار ملاقاتی بود، خواستندش رفت. وقتی داشت میرفت به من گفت مسعود تو بیا و قضیه را ادامه بده. من کار دارم باید بروم. آن موقع داشت خبرنویسی یاد میداد. من گفتم خیلی خب. رفتم پای تخته که همایون آمد یک سرکی کشید و توی کلاس را دید. با خودش گفت این پسر که من آوردم برای جدول که دارد درس میدهد! فکر کرد این جا خرتوخر شده. رفت ته کلاس نشست و گوش داد. من هم داشتم درس میدادم. بعد که تمام شد به من گفت شما یک لحظه تشریف بیاورید پایین. من هم رفتم پایین. به روی خودش نیاورد که اشتباه کرده. آن موقع روزنامه منتشر نمیشد. گفت شما بروید پارلمان، خبرنگار پارلمانی شوید. این طوری شد که یک پله رفتم بالا. وقتی که در آذر۱۳۴۶ آیندگان منتشر شد من خبرنگار پارلمانی بودم. بعد از یک سال شدم دبیر سیاسی. شش ماه بعد از آن شدم معاون سردبیر. سال ۵۰ هم در نهایت شدم سردبیر اخبار.
- تیراژ روزنامهها در آن زمان چند تا بود؟
روزنامههای آن موقع ادعا میکردند تیراژشان خیلی بالاست. ولی در عالم واقع تیراژشان از ۱۰۰ هزار تا بالاتر نبود. ما در آیندگان حدود ۶۰ هزار تا داشتیم. کیهان و اطلاعات ۱۰۰ هزار تا بودند. سال ۵۷ آیندگان یک میلیون تیراژ داشت. آیندگان به طور عادی تا روزهایی که تعطیل شد ۷۰۰ تا ۸۰۰ هزار تا چاپ میشد. بعد تیراژ روزنامهها ناپدید شد تا همشهری که رسید به ۴۰۰ هزار تا.
کار در رادیو و تلویزیون
- از کی وارد تلویزیون شدید؟
من موقعی که در آیندگان بودم تلویزیون یک برنامهای داشت به اسم روزها و روزنامهها. دربارهی مطبوعات بود. هر هفته یک موضوعی را درست میکردند دربارهی مطبوعات و دعوت میکردند یک نفر برود آنجا و با او مصاحبه میکردند درباره یک موضوع. برنامه را خانم ژاله کاظمی اجرا میکرد و خانم سازگار هم تهیه کنندهی برنامه بود. من را نمیدانم به چه دلیلی دایما در این برنامه دعوت میکردند. تا سوژهای کم میآمد یا به حوادث روز نگاه میکردند. به هر حال کسی که در مطبوعات شلوغ میکرد زیاد نبود. بنابراین ما را دعوت میکردند آن جا. من شده بودم پای ثابت این برنامه. هر دو هفته یا سه هفته یک بار. یک روز آقای گرگین که مدیر برنامهی دوم رادیو تلویزیون بود به من تلفن کرد گفت که این برنامه تهیهکنندهاش که خانم ژیلا سازگار باشد، قرار است یک مجلهای درست کند به نام تماشا که ایشان قرار است بشود مدیر آن مجله. خیلی کار زیاد است. بنابراین ما فکر کردیم چه کسی تهیه کنندهی این برنامه شود. فکر کردیم دیدیم خودت این کار را بکنی، بهتر از هرکس دیگری است. گفتم من تا حالا این کار را نکردهام. گفت عیب ندارد، خودت بکن. یک قراردادی تلویزیون با من بست و من شدم تهیهکنندهی برنامهی «روزها و روزنامهها». مینوشتم. دعوت میکردم، آدمها میآمدند. خانم کاظمی مجری بود و من پشت پرده بودم. یک روز آقای مسعودی مدیر اطلاعات را دعوت کرده بودیم برای سالگرد اطلاعات. خانم کاظمی شباش سرما خورد. بنابراین ما وقت استودیو گرفته بودیم. همه چیز آماده شده بود که خانم کاظمی نتوانست بیاید. من تلفن کردم به گرگین که یکی از گویندههای جانشین باید بیاید. گرگین گفت کسی نمیتواند با مسعودی صحبت کند. گفت حالا خودت صحبت کن. گفتم من! گفت خودت بهتر از هر کس دیگری هستی. گفتم من عینکیام. عینک میگویند جلوی دوربین فلاش برمیدارد. آن موقع امکانات این طوری بود. گرگین گفت کی گفته این جوری است. گفت نه، نه، نه. من خودم میآیم پایین. گفتم من مصاحبه را بکنم، برنامه را کی بگوید؟ گفت خودت بگو. گفتم این کار را تا به حال نکردهام. گفت مهم نیست میکنی، مگر چیست. گفتم خوب حالا نمیدانم. میکنیم. خانم کاظمی خب کلی با تجربه است. به هر حال رفتم و نشستم و آن چیزهایی که برای خانم کاظمی نوشته بودم را خودم گفتم. فیلمی بود، خودم گفتم و مصاحبه با آقای مسعودی را هم خودم کردم. برنامه ضبط شد. بعد حوادثی اتفاق افتاد. از جمله اینکه خانم کاظمی گفته بود صدای مسعود به این خوبی است. برای اولین مرتبه کسی به من گفت صدایت برای این کار مناسب است. تا آن موقع کسی در این باره حرفی نزده بود. من خودم هم دقت نکرده بودم که ممکن است این کار را بتوانم بکنم. موقعی که پخش شد همه تو رادیو تلویزیون صدایشان در آمد که ما هم چنین چیزی را میخواهیم که خود تهیهکننده خودش هم اجرا کند. نه اینکه یکی بنویسد و یکی اجرا کند غلط است. بنابراین من به طور ثابت رفتم جلوی دوربین. از اینجا شروع شد. حدود سال ۵۰. بعد یک برنامهی هفتگی بود که من اجرا میکردم. بعد از مدتی یک برنامهی دیگر درست کردم به اسم «رسانه» که من و دکتر ابراهیم رشیدپور تهیه میکردیم. معروف بودیم به مک لوهانیستهای تهران. ما چون مکلوهان را خیلی دوست داشتیم و همهاش در این باره حرف میزدیم، اینها به ما میگفتند مک لوهانیستها. خلاصه ما یک برنامه دیگر درست کردیم و آن هم یک مدتی بود، تا سال ۵۴. سال ۵۴ من دعوت شدم به رادیو برای اینکه یک فکری بکنیم به حال شبها. من یک برنامهای درست کردم که البته اسمش را از رادیو فرانسه گرفتم، به اسم «راه شب». برنامهی زندهی و گاهی جنجالی. شبها با پاسبانها صحبت میکردیم. یکی توی خیابان گم شده و یک بچه فلان طور شده و یک کسی میخواهد خودکشی کند و چیزهای جنجالی این طوری. تا قبل از آن رادیو شبها میخوابید از ساعت ۱۲. خبر که پخش میشد ساعت ۱۲، بعد موزیک پخش میشد تا ۵ صبح. ۵ صبح دوباره بیدار میشدند. به ما گفتند این فاصله را میدهند به ما. زود یک تیم جمع کردیم و رفتیم آنجا. همهی دوست و آشناهای روزنامهها را جمع کردیم. رفتیم و یک سری فیل هوا کردیم. خیلی گرفت و اعتبار مفصلی به ما دادند. گفتند که هر کاری میخواهی بکنی بکن. در تلویزیون یک باند دست راستیها هم بودند که ما در دورهی شاه به آنها میگفتیم ساواکی. مثل الان که هر کسی به هر کسی میگوید اطلاعاتی. هر کی با هر کی بد بود این را میگفت. ما هم به یک گروه میگفتیم ساواکی. ساعت ۱۱: ۳۰ از آیندگان که صفحه را میبستم میرفتم رادیو تا ۵ صبح. ۵ صبح میخوابیدم تا ۹ بعد دوباره میرفتم آیندگان. یک زمانی علاوه بر این کارها ته برنامهی تلریریون ساعت ۱۱: ۳۰ که تمام شد گفتند که یک چیزی ته خبرها باشد که یک دفعه گوینده نیاید بگوید شببهخیر. برنامه ای درست کردیم من و ساسان کمالی که ترکیبی از اخبار داخلی و خارجی روز بود به اضافه بررسی مطبوعات. یک موقع دیگری هم صبح رادیو را به ما دادند. صبح وقت بسیار پرشنوندهای بود و شاه و اینها هم گوش میکردند. برای همین همه نگران بودند وای رادیو چی میشود ساعت ۶ صبح. یک موقع شاه یا فرح یک مصاحبه کرده بودند و گفته بودند فاصلهی ۶ تا ۶: ۳۰ شاه دارد صبحانه میخورد رادیو هم گوش میکند تا ۶: ۳۰ که میرود به دفترش. بعد توی مملکت طوری شده بود که هر کسی می خواست کار خود را به رخ بکشد می خواست در آن زمان در رادیو مطرح شود که شاه بشنود. البته من خودم نمیرفتم پشت میکروفون. مانی گوینده بود. من و مرحوم پرویز نقیبی مینوشتیم. برنامه صبح همه چیز زنده بود. بحث بر سر این است که مردم را بفرستد سر کار. بر خلاف شبها که آرام است. خلاصه خیلی کار میکردم. خارج هم میرفتم. هر جا جنگ بود میرفتم. کودتا هم بود میرفتم. خیلی زندگی سنگینی بود. ولی خب دوست داشتم. زندگیم شبیه جوکی شده بود. دو تا منشی داشتم که یکی که شیفتاش تمام میشد مرا تحویل میداد به دیگری. در بعدازظهر آن یکی هم از پا در میآمد. تا ساعت دو بعد از نیمهشب کار میکردم. آنها هم باید با من کار میکردند. بنابراین دو نفر در این فاصله از پا درمیآمدند ولی من همچنان ادامه میدادم. راضی هم بودم. یک بار یکی از منشیها با من آمده بود در هواپیما. میرفتم پاریس با شیراک که آن موقع شهردار بود مصاحبه کنم. آن هم همینطور کارها را یادداشت میکرد. این همینطور با من آمد توی هواپیما. بعد هم هی میگفتم و او هم مینوشت. یک دفعه دو تاییمان متوجه شدیم که هواپیما در آسمان است. گفتم تو پاسپورت داری؟ گفت نه. به یکی از مهماندارها ماجرا را گفتم. گفت چه طوری این اصلا سوار هواپیما شده؟ بعد بلند شدم رفتم به خلبان گفتم. خلبان گفت نمیشود من برگردم بنشینم. یک راهش این است که برویم آنجا. از من پرسید که ساواک و اینها با من کاری ندارند. گفتم نه. گفت اگر این طوری است ما میرویم و فردا صبح از پاریس برمیگردیم و خب این هم برمیگردد. گفت ولی در پاریس نمیتواند برود توی شهر. من هم گفتم این را درست میکنم. بعد با ما آمد. بیپاسپورت. از این ماجراها هم خلاصه پیش میآمد. ما هم مشهور شده بودیم. امکانات داشتیم. کسی به ما گیر نمیداد. بعد دیگر از پا در آمدم. مدتی رفتم آمریکا. سه چهار ماهی آنجا ماندم. یک دوره درس هم شروع کرده بودم هنوز در آیندگان بودم. بعد که برگشتم ریتم را آرامتر کردم. از آیندگان هم رفتم برنامهای درست کردم که در رادیو خیلی کار خوبی بود. هنوز یکی از بهترین کارهای خودم میدانم، به اسم «بعدازظهر روز ششم» برای رادیو. بعد از ظهر پنجشنبهها بود که کارهای خرده ریز را همه جمع و جور میکردم. ادبیات داشت، دنیا، گزارشهای جهانی، موزیک خوب. موزیکهای آبکی پخش نمیکردیم. کلاسیک، فرانسوی، ایرانی هم بنان و چیزهای جدی و اینها. خلاصه برنامهی خیلی خوبی بود که مثل بقیهی کارهایی که ما میکردیم بعد از مدتی این کسانی که ما بهشان میگفتیم ساواکی، که بیچارهها ساواکی هم نبودند، طرفدارهای حکومت بودند، دست راستیهایی بودند که خیلی ما را دوست نداشتند، اینها سه چهار مرتبه مرا بیرون کردند و برنامه را قطع کردند. ما دوباره میرفتیم و برمیگشتیم از یک راه دیگر. تا سال ۵۵ که من از آیندگان جدا شدم. اول کیهان دعوتام کرد. رفتم آنجا در حقیقت مشاور پرویز مصباحزاده شدم. ولی یکی دو هفته بیشتر طول نکشید، چون رفتم تلویزیون و کارهایم را متمرکز کردم آنجا. یک برنامهی هفتگی خبری درست کردم که اسمش بود «صفحهی اول» بعد شد «تیتر اول». برنامهای بود که تا انقلاب ادامه داشت. غیر از این برنامه، رادیو هم بود. آن هم بعد از مدتی شد «بعدازظهر روز هفتم». روزهای جمعه پخش میشد. برنامهی روشنفکری بود بیشتر برای دانشجویان و جوانان. این وسطها یک مجله مثل نشنال جیوگرافی برای طرفداران طبیعت در آوردم به اسم «سبز».
- مصاحبههایی که با شخصیتهای مهم دنیا انجام دادید مال چه دورهای است؟
از سال ۵۵ که رفتم و این برنامه را برای تلویزیون درست کردم تا سال ۵۷ که انقلاب شد، هر حادثهای که در دنیا شد رفتم و فیلم گرفتم و مصاحبه کردم. با رهبران دنیا و شخصیتهای معروف و حتی هنرپیشهها. با هر کسی اسماش مطرح میشد. این کارها را برای تلویزیون ملی ایران میکردم. البته در این فاصله با خبرگزاری فرانسه هم کار میکردم. برای آنها هم فیلمهایی ساختم. در این فاصله از ژورنالیسم رفتم به سمت ژورنالیسم. رفتم آن کار را یاد گرفتم. یک ۳۰ تایی فیلم مستند ساختم. دو تا فیلم بلند هم ساختم. در آن کار هم یک مقدار شناخته شدم. ژوری فستیوالهای مختلف شدم. دو سه بار در فستیوال فیلم تهران جزو هیات منتخب بودم. تا سال ۵۷، که انقلاب شد. انقلاب خبر خیلی خوبی بود. ولی فکر نمیکردیم که اولین آدمهایی را که انقلاب دفع میکند خود ما باشیم. من ایران بودم. آخرین برنامهی تلویزیونی من روز ۱۶ شهریور ۵۷ پخش شد. پنجشنبه بود. آخرین برنامهی رادیوییام خود روز ۱۷ شهریور بود. ساعت ۱ تا ۴ بعدازظهر که در شهر آن حوادث اتفاق افتاد. من یک لگد زدم زیر سانسور. اتفاقات توی شهر فقط در برنامهی من منعکس شد. نه این که دقیقا اتفاقات شهر. خیلی با کنایه. مثلا من ترانهی حکومت نظامی مرکوری را پخش کردم. اولین بار در برنامهی من گویندهی خبر بود که اعلام کرد حکومت نظامی شده. خانم تاجنیا که آمد خبر را بخواند به لرزه در آمد. نمیتوانست بخواند. دستپاچه شده بود گفت غلامعلی... غلامعلی اویسی. بعد هم بلافاصله بعدش ما ترانهی خوشبختی را پخش کردیم. شلوغ کردیم. هرچی ممنوع بود را پخش کردیم. از صمد بهرنگی، شاملو، آلاحمد، هر چی ممکن بود را پخش کردیم. چون معلوم بود دیگر ما را در این برنامه راه نمیدهند. شب قبلش هم، ۱۶ شهریور، میدانستم فردا حکومت نظامی میشود. ولی نمیدانستم آن اتفاقات در ۱۷ شهریور میافتد. میدانستم حکومت نظامی بشود ما را راه نمیدهند. بنابراین یک جور تصمیم عجیبی گرفتم. تا آن زمان آقای خمینی نجف بود. بعد فیلمهای ماهوارهای میآمد. جعفریان میرفت پایین در قسمت ماهواره میایستاد. هر چه میآمد را پاک میکرد که کسی بعدا یک موقعی برندارد از یک تصویری استفاده کند. من شب رفتم پیش عظیم جوانروح، دوستم که سرش بوی قورمه سبزی می داد و درد می کرد برای کارهای این طوری. گفتم میآیی یک کاری بکنیم. فیل هوا کنیم در شهر و این ها. گفت چه کاری. هر کاری بگویی. گفتم فردا بیا دفتر من در مجلهی سبز. آمد. به این دستیار تهیه مان آقای فرهادی گفتیم برو هر چه اعلامیه در شهر هست جمع کن. او هم رفت هر چه اعلامیه، شبنامه و از این چیزهای زیرزمینی بود جمع کرد. کلی آوردند. عکسهای آقای خمینی. ما هم گفتیم در را ببندید و حالا از اینها فیلم بگیریم. عظیم گفت چه کار میخواهی بکنی. گفتم بگیر یک کاریش میکنیم. گفت برای کجا فیلم بگیریم؟ گفتم بگیر یک کاریش میکنیم. اینها را گذاشتیم روی دیوار با پروژکتور نور دادیم، فیلم گرفتیم. یک حلقه فیلم چهار دقیقهای شد همهاش تصویر آقای خمینی. رفتیم پیش آقای محمد رضا شاهید که الان پاریس است و کارشناس موزیک برنامه بود. موزیک برنامه را میداد. گفتم یک موزیک مناسب بده که هم انقلابی باشد هم نوستالوژیک. پیدا کردیم ولی بچهها هنوز نمیدانستند میخواهیم چه کنیم. من رفتم گفتم این را بگذاریم سر فیلمهای شبم. از ۱۶ شهریور هر چه فیلم داشتم که قبلا سانسور شده بود و اجازهی پخش نداشت از ساندیستهای نیکاراگویه تا خود مسایل ایران. آنها را گذاشتیم روی هم و یک نوار درست کردیم و رفتیم. به اعتماد من کسی فیلمهای من را تست نمیکرد. همینطور گذاشتیم و رفتیم و برنامه هم زنده بود. بعد زد گفت تست تله سینما. گفتم «به نام آزادی که بدون آن نمیتوان نفس کشید. قبل از هر کاری تصویر کسی را نگاه کنیم که در دل مردم ایران نشسته است.» بعد عکس آقای خمینی را نشان دادیم. اصلا مملکت در یک لحظه رفت روی هوا. در مملکت توقع اینکه از رادیو تلویزیون شاهنشاهی تصویر آقای خمینی پخش شود توی کلهی کسی نمیرفت. من همین طور که نشسته بودم پشت میز اتاق فرمان، صدای شهرستانها را که با مداربسته با تهران تماس داشتند میشنیدم. صدای اینها که داد و بیداد میکردند را میشنیدیم. انگار در باز بود. پنج شش دقیقه گذشت، یکی از بچهها آمد گفت آقای قطبی پشت تلفن است. میخواهی بیا. گفتم نه، میدانستم چه اتفاقی دارد میافتد. فقط خدا خدا میکردم برنامه تا انتهایش بتواند برود. بعد هر چی بشود عیبی ندارد. خلاصه ساندیستها و همه را پخش کردیم. من هم خداحافظی کردم گفتم معلوم نیست کی دوباره در خدمت شما باشم. من از آن وقت دیگر هیچوقت در تلویزیون ایران ظاهر نشدم تا الان. این وداع من بود با ژورنالیسم. تمام شد. خودم امضا کردم. پخش کردیم و آمدیم. دم در، بچهها بودند. گفتند چند تا پلیس دم در هستند. بعد من را بردند از در پشتی. از آن پشت ماشین آمد سوار شدیم و رفتیم. بعد آقای دکتر بهشتی تلفن کرد. دکتر بهشتی آن موقع نمایندهی امام بود. در تهران کارها را میچرخاند. همهی خبرگزاریها پخش کرده بودند که تصویر خمینی برای اولین بار از تلویزیون پخش شد. خبر مهمی بود. شلوغ کرده بودیم. تماس گرفت و گفت به ما پیغام رسیده شما را مخفی کنیم. گفتم نه. من جا دارم، خیلی ممنون. گفت شما را میگیرند. به هر حال امکانش هست. خارج از کشور هم میخواهید بروید میتوانیم درستاش کنیم. اما من ماندم. پنجشنبه بود. فردا هم برنامهی رادیوییمان بود. صبح یکی را فرستادم دم در رادیو تا ببیند کسی ایستاده که بخواهد مرا را بگیرد یا نه. به بچهها صبح تلفن کردم گفتم خبریه؟ گفتند ما از تلویزیون خبری نداریم ولی در رادیو که خبری نیست. ظاهرا اوضاع درهم تر از این بود که کسی به فکر رادیو باشد. ما هم همهی نوارها را گذاشتیم زیر بغلمان، هرچی پخش نشدهی شاملو بود، از آلاحمد که ممنوع بود، از بهرنگی که ممنوع بود، جمعهی فرهاد. ما همهی اینها را گذاشتیم و نوار را بردند بالا. میخواستیم ته قضیه را جمع کنیم و برویم. خلاصه رفتیم و سه ساعت شلوغ کردیم و وسطش هم که حکومت نظامی شد و معلوم شد پیش بینیم غلط نیست. خبر را دادیم و آخر برنامه هم گفتم: «من دیشب یکبار با شما خداحافظی کردم. متاسفانه در موقعیتی دارم خداحافظی میکنم که از شهر دارد خبرهای بدی میآید. این جمعه در تاریخ ما خواهد ماند. این جمعهی سیاه.» بعد هم جمعهی فرهاد را پخش کردم و با آن تمام کردم. دیگر خیلی چریکی بود. از آن پشت پریدیم در پارک شاهنشاهی و رفتیم.
اعتصاب روزنامهها و دیدار با دکتر بهشتی
- شماها هم در آن زمان در اعتصاب بودید؟
آره، گروهی درست کرده بودیم بهعنوان اعتصاب. گروه طرفدارهای انقلاب که در مطبوعات بودیم و ما بعد از ۱۷ شهریور اعتصاب کردیم. آن زمان اتفاقی که افتاد این بود که بچهها رفتند در اعتصاب. من هم رفته بودم تهران مصور را منتشر کنم، یک نشریهی سیاسی مثل تایمز و اشپیگل. چاپ کرده بودیم ولی چون اعتصاب عمومی شد مجله را نگهداشتم. وقتی ما در دورهی شریف امامی از اعتصاب در آمدیم یک قراری گذاشتیم، پذیرفتیم کسی به ما کاری نداشته باشد. مطبوعات از اعتصاب در آمدند. ولی هوشنگ وزیری -که جای من سردبیر شده بود- را بچههای آیندگان راه ندادند. روزنامه را شورایی کردند و صحبت شد که من به آیندگان برگردم من حقیقتش برایم کار مشکلی بود. اگر چه خیلی دلم میخواست. ولی از نظر اخلاقی برایم کار مشکلی بود. همایون به من کلی چیز یاد داده بود. یچه بودم رفته بودم آیندگان. او استاد من بود. بنایراین من آیندگان نرفتم. ولی دوستان خودم بودند. در آیندگان شورایی درست کردند که آن شورا دو نفر آدم مشخصاش یکی آقای نایینی بود یکی فیروزگوران. ولی خب با هم تماس داشتیم. این اعتصاب دوم است تا شبی که شاهپور بختیار رفت با شاه مذاکره کرد. بختیار یک روز من را دعوت کرد به خانه اش و گفت من نخستوزیری را قبول کردم شما هم بروید روزنامهیتان را دربیاورید. رادیو تلویزیون هم شروع کند از اعتصاب بیاید بیرون. چون ما در اعتصاب بودیم. از کل ۳۰۰۰ و خردهای کارکنان تلویزیون غیر از ۱۷۰ نفر و یک تعداد نظامیهایی که حداقل برنامههایی را نگه داشته بودند بقیه در اعتصاب بودند. اینها را معروف کرده بودیم به ضداعتصاب، ضدانقلاب. ماها هوادار انقلاب بودیم. آقای بختیار گفت از اعتصاب دربیایید. آزادی میخواستید این هم آزادی. ۳۹ روز قبل از انقلاب بود. روز پنجشنبهای بود. من گفتم دست من نیست. باید بروم صحبت کنم. بعد با بچهها صحبت کردم. بچهها همه خوشحال گفتند درمیآوریم. آزادی، بدون سانسور. همه خسته شده بودند در این ۶۰ روز اعتصاب. قرار شد جمعه برویم کار کنیم صبح شنبه روزنامه در بیاوریم. رادیو تلویزیون هم فکر کنیم چه کار باید کرد. هی میگفتند آنها که کار کردند را باید بریزیم بیرون بعد ما بیاییم تو. یک عدهای میگفتند نمیشود. خب به هر حال آنها هم کارمنداند. در شورای اعتصاب تلویزیون شهنواز بود، جوان روح بود، علی حسینی بود. همهشان را یادم نمیآید. از بچههای جلوی صحنه که اسم داشتند پیش مردم، جز علی حسینی کسی نبود. مطبوعات هم که سندیکایی بود که آنها بهعنوان اعتصابکننده بودند. دبیر آن هم محمد علی سفری بود. من رفتم که پیغام بختیار را به آنها بدهم. آنها هم از یک راه دیگر شنیده بودند. مطبوعات بلافاصله آماده شدند که دربیاورند. صبح جمعه آقای دکتر بهشتی من را دعوت کرد به همراه آقای پورحبیب خبرنگار بازار آیندگان و آقای درخشان که با دکتر بهشتی دوست بود و در جریان هفت تیر کشته شد. من هم رفتم. گفت این خبر چیست؟ گفتم هیچی. اینها سانسور را برداشتند. خوب شد دیگر. ما هم راحت شدیم حالا اخبار مربوط به انقلاب را چاپ می کنیم و مردم از وقایع با خبر می شوند. گفت نه عزیزم، اعتصابات سراسری ست در کشور. شما هم جز اینها هستید. بالاخره انقلاب رهبری دارد. گفتم خب ایشان یکی از رهبرهاست. دکتر سنجابی هم هست. بازرگان هم هست چپ ها هم هستند. گفت نه جانم، این طور نیست. من گفتم خب حالا چی میگویی آقای دکتر. گفت شما از اعتصاب در نیائید. گفتم هیچ نیرویی نمیتواند جلوی مطبوعات را بگیرد. شنبه صبح همه درمیآیند. به نفعتان هم هست که روزنامهها در بیایند. بهشتی گفت اعتصاب یک پیکرهی به هم پیچیدهای است که یک جایش خراب شود همهاش خراب میشود. من هم گفتم آره دیگر، ولی دست من هم نیست. یک ذره تهدید کرد. گفت من فکر کنم اگر مطبوعات دربیاید ممکن است که رهبر تحریم کند. خیلی برای شما بد می شود. گفتم به دید من سفتم. ولی خب دست من هم نبود. گفت عزیز من، شنبه مطبوعات در بیاید معنیاش این است که آزادی مطبوعات را بختیار داده. گفتم خب داده دیگر. آخر این جزو شرایطش است. سانسور را برداشته است. ما هم که میخواهیم سانسور برداشته شود. شما هم که میخواهید انقلاب کنید. خب خیلی خوب است دیگر. این همه باید ناز بیبیسی را بکشید. روزنامهها در میآیند کارتان را انجام میدهند. گروههای سیاسی شما هم خوشحال میشوند. گفت آره، ولی تصمیمگیریش با ما نیست. بلند شدم بروم. او هم تهدید کرده بود. گفت شما هم به دوستانتان خبر دهید. احتمال دارد ایشان تحریم کنند و اعلام کنند مطبوعات مال رژیم است. این خیلی سنگین می شود برایتان. راست می گفت چون آن موقع آقای خمینی خیلی محبوب بود. ما هم نمیخواستیم ولی کاری هم نمیتوانستم بکنم. بلند شدم. دم در گفت آقای بهنود شما خیلی باهوشید. یک راهی بدهید از این بنبست خارج شویم. گفتم چه راهی؟ گفت شما یک راهی بگویید. به شوخی گفتم میخواهید حالا پس فردا ما در بیاوریم ایشان هم به جای این که تحریم کند اعلامیه بدهد و برای ما دعا کنند. من این را بهعنوان شوخی گفتم. در حقیقت یک طنزی در آن بود که چرا ما عقبنشینی کنیم، ایشان عقبنشینی کند. دکتر بهشتی خیلی باهوش بود. گفت فکر خردمندانهای است. گفتم حالا چه کار کنیم آقای دکتر؟ گفت شما اینجا تشریف داشته باشید. من زنگ میزنم به پاریس. شام خدمتتان میخوریم بعد جواب می آید. این را من با نظر مثبت به ایشان منتقل میکنم. شاید که درست شد آن وقت دستخطی بنویسند و اجازه دهند و روزنامهها با دستخط مبارک ایشان دربیاید. بعد نشستیم شام خوردیم و نماز خواند. همه هم پشت سرش نماز خواندند. سر هر ساعت تلفن می کرد. او خبرها را میداد و دستورها را میگرفت. خلاصه خبر را داد و گزارشها را گرفت. آمد گفت الحمدالله، الحمدالله یک نماز شکری بخوانیم، اجازه فرمودند مطبوعات منتشر شود. آخر شب شده بود و حکومت نظامی بود ولی دکتر بهشتی چندین کارت مجاز حکومت نظامی داشت و خانه اش پر از مردم بود و هر کس را می خواست با یکی از ماشین های کارت دار می فرستاد و مرا هم فرستاد. خلاصه جمعه فردایش پیام آقا را فرستادند برای مطبوعات و روزنامهها هم از خدا خواسته. صفحهی اول عکس بزرگ اجازهی رهبر. صبحاش دکتر بختیار به من تلفن کرد. گفت من متاسفم برای شما. برای خودتان یک آقا بالاسر دیگر درست کردید. من دلم میخواست شما آزاد باشید. شما بلافاصله با اصرار یکی دیگر برای خودتان درست کردید. باز با اجازه این کار را کردید. متلک گفت. من واقعا خودم را میگویم، شاید بعضیها این طور نبودند، اهمیت حرفی را که بختیار زد نفهمیدم. باید میگذشت سه ماه بعدش، حمله به دفاتر ما شروع میشد، حمله به آیندگان شروع میشد تا ما میفهمیدیم.
توقیف آیندگان
- ماجرای بستهشدن روزنامهی آیندگان را تعریف کنید؟
آقای خمینی یک فتوایی داد. اعلام کرد من آیندگان را نمیخوانم. تصور میکنم که آن حادثه اولین شکست آقای خمینی بود. الان که من به تاریخ نگاه میکنم فکر میکنم کاش که این شکست را نمیخورد و ما قانون اساسیمان با همان تصور قبلی نوشته میشد. خمینی معتقد نبود که قدرتش قانونی بشود. معتقد بود قدرت را دارد. آخوند قدرت را دارد. قانون نمیخواهد. ایشان بدون قانون انقلاب کرده بود. بدون قانون یک رژیم بزرگ را برانداخته بود. رژیم اسلامی بیاید بعد قانون بخواهد حمایتش بکند! تصوری که از قدرت داشت اینگونه نبود که قانون اعمال شود. فکر میکرد بگذار اینها بروند با قانون کار کنند. دولت درست کنند. من که بگویم این قانون بدست و اسلامی نیست همه تنشان میلرزد. خلاصه قدرت خود را در قانون نمی دید. به همین جهت وقتی از دست آیندگان عصبانی شد اعلام کرد من نمیخوانم. فکر می کرد با این نوشته یا گفته فردا آیندگان باد می کند و هیچ کس آن را نمی خواند اما بچهها تصمیم گرفتند که روزنامه را سفید در بیاورند.
- دلیل آن فتوا چه بود؟
فکر می کنم مساله سر ماجرای بچههای آقای طالقانی بود که ربوده شده بودند. آن زمان آقای طالقانی از شهر خارج شد. آیندگان تیتر زد «اختلاف بین طالقانی و خمینی». این طور بود که بعد از این که طالقانی به شهر بازگشت با آقای خمینی ملاقات کرد. وقتی ملاقات کردند طالقانی آمد بیرون گفت: «ما یک سری مشکلاتی داریم. اختلافاتمان هم باقی است. ولی الان مسالهی ما حل شد.» بر این اساس بود که آیندگان کار حرفه ای کرد و تیتر زد. آن موقع آدم های مشخص در شورای آیندگان آقای نایینی و گوران بودند. آن طرفیها گفتند که طالقانی که در حد و اندازهی آقای خمینی نیست. خود این تیتر «طالقانی و خمینی» برای خیلیها سنگین بود. باید مثلا نوشته میشد امام خمینی و آیتالله طالقانی. مگر میشود تیتر بشود طالقانی و خمینی و حتی اسم طالقانی هم اول بیاید. بعد گفتند که اینها آمدهاند اختلاف ایجاد کنند و جبهه را به هم بزنند و بین روحانیت اختلاف بیندازند. به ایشان گفتند و ایشان هم فکر کرد این را که بگوید فردا آیندگان تعطیل میشود. اعلام کردند که من این روزنامه را نمیخوانم. بعد فردا روزنامه سفید در آمد. کل روزنامه سفید بود جز یک ستون کنار، نصفه که نوشته شده بود: «ما در شرایط مشکلی قرار گرفتهایم و نمیدانیم باید در این شرایط چه کرد. از یک طرف میخواهیم احترام بگذاریم به رهبر انقلاب و از یک طرف هم کسی به ما نمیگوید یک همچنین چیزی معنیاش از لحاظ قانونی چیست. نمیخواهیم غیرقانونی برویم جلو.» از این شماره سفید یک میلیون نسخه فروش رفت. آن موقع قیمتش یک ریال بود به نظرم علاوه بر روزنامهفروشیها مردم و دانشجویان هم ریختند و توزیع کردند. چاپخانه چاپ میکرد و اینها پخش میکردند. پیام مهمی بود برای آقای خمینی. برداشتی که از قدرن در ذهن داشت این بود که هر چه میخواهد میتواند بگوید تا اجرا شود. از ماجرای آیندگان معلوم شد که نمیشود. باید بروی قدرت را چارچوب بدهی، بکوبی، پرچ کنی و میخ بزنی. از این نظر تجربهی خیلی بدی بود برای او. بعد از آن دیگر حملات شروع شد. بلافاصله رفتند راهحلهای قانونیاش را پیدا کردند. حملات به روزنامهها شروع شد. بهطوری که بعد از آیندگان بلافاصله تهران مصور، آهنگر، امید ایران را که نوریزاده در میآورد و هفت هشت روزنامه و نشریهی دیگر را همزمان بستند. در مورد آیندگان سختتر از بقیه بود. چون به طور قانونی نمیتوانستند ببندند. برای همین حمله کردند و شورای تحریریه را گرفتند انداختند زندان. این اولین دستگیری روزنامهنویسان در ایران بود بعد از انقلاب.
- هیات سردبیری روزنامهی آیندگان در آن زمان چه کسانی بودند؟
من آن موقع بودم. نایینی، گوران، نورایی، مسعود مهاجر، محمد قاید بودند. مسعود مهاجر همین دوست ماست که الان در روزنامههای اقتصادی مینویسد. نورایی هم همانی است که الان منتقد فیلم شده است. جهانبخش و جهانگیر نورایی هم دو تا برادرند که در آن زمان هر دو در آیندگان بودند. همه شان را گرفتند. ما هم عملا زیرزمینی شدیم
- حکم دستگیریها را چه کسی میداد؟
آقای آذری قمی بود در آن زمان دادستان کل انقلاب.
سالهای اول انقلاب تا انتشار آدینه
- بعد فعالیت مطبوعاتیتان متوقف شد؟
من شخصا در ۱۷ شهریور ۵۷ با شوق چیزی را اعلام کردم و بعدش هم بلافاصله تهران مصور را منتشر کرد اما همه آن آزادی ها در شهریور سال بعدش تمام شد. عمر روزنامهنویسی آزاد ما حدود یک سال بود که شش ماهاش در اعتصاب قبل از انقلاب گذشت و هفت ماهاش هم در شادمانی و پیروزی مردم. دیگر عملا تمام شد و آیندگانی ها در زندان و من دیگر با اسم نمیتوانستم بنویسم. پنج بار دستگیرم کردند. عملا دیگر زیرزمینی شده بودم. نمیآمدم روزها بیرون چون به محضی که میآمدم میشناختندم و دستگیرم میکردند. بعد من رفتم تصمیم گرفتم کتابی بنویسم دربارهی تاریخ معاصر بنویسم. بیرون هم البته رادیوهای اپوزیسیون درست میشد و ما را هم دعوت میکردند. تقریبا همهی چهره های اصلی مطبوعات رفتند. از روزنامهنویسهای قدیمی جز من و سه چهار نفری کسی از آن ها که حال و نای کار داشتند نماندند. همه یا خانه نشین شدند و یا آمدند بیرون از کشور. از چهره های رادیو تلویزیون آن موقع هم کسی نمانده. همه به رادیو آمریکا و جاهای دیگر رفتند.
- شما چرا نرفتید؟
گفتم من شاید و به تقریب تنها نویسنده سیاسی بودم که ماندم. مطمئن بودم این طوری نمیماند. این یک تب انقلابی است. بعد این بچهها میآیند پشت ما. احساس میکردم بیرون از ایران هم خبری نیست. میمانم در ایران تحمل میکنم. راه پیدا میکنیم حرف میزنیم. بههمین دلیل شروع کردم کتاب از سید ضیا تا بختیار را نوشتن. چهار سال طول کشید. در حقیقت حاصل کارهایی بود که در این سالها کرده بودم و مصاحبههایی که انجام داده بودم و نقلهایی که شنیده بودم. اینها را جمع کردم. احساسم این بود که بچههای نسل انقلاب تاریخ ایران را نمیدانند، برای آن ها نوشتم الان به بسیاری از بخش هایش اشکال دارم و نمی پسندم در ضمن منابع هم مثل حالا متعدد نبود ولی به هر حال... فکر می کردم بهتر است با زبان نرمی با بچه های نسل انقلاب حرف بزنم. اولش هم نوشتم من مورخ نیستم، من یک گزارشنویس مطبوعات هستم. حالا این دفعه تاریخ برایتان گزارش میکنم. تاریخ معاصر را. کتاب تمام شد ولی امکان چاپش نبود. اما آقای خاتمی وزیر ارشاد بود برای ایشان پیغام دادم. گفته بود بیاورند بخوانیم. کتاب من را بازبینها همهیشان نوشته بودند اشکالی ندارد، نویسنده اشکال دارد. بعد آن هم داده بود به رییسجمهور وقت که آقای خامنهای بود. آقای خامنهای هم خوانده بودند. شنیدهام اما مطمئن نیستم به این حرف که آقای خامنهای گفته بود کتاب اشکال ندارد. بنابراین اجازه دادند. کتاب من درآید. سال ۶۵ یا ۶۶.
- در این مدت در نشریات چه کار میکردید؟ انتشار مجلهی آدینه چطور شروع شد؟
در این پنج، شش سال هیچ کار خاصی نمیکردم. گاهی فقط بدون اسم یک کارهایی مقالاتی می نوشتم. با اسم مستعار. روزنامهی بامداد تا بود با اسم مستعار در آن چیزی مینوشتم. بعد آن هم تعطیل شد. بعد مجله ای درست کردم. مجله برای خانمها، مجله مد و بافتنی و اینجوری چیزها. تا روزی سیروس علی نژاد آمد با یکی از گویندگان «راه شب» رادیو به اسم غلام ذاکری. آمد و گفت: «من امتیاز یک مجله را گرفتهام. موقعیت خوبی است. ولی خب من که این کار را بلد نیستم. چی کار کنم؟» گفتم: «چه طوری بهت دادند؟» گفت: «من دوستهای رسانهای دارم و پارتیبازی کردم و اینها.» معلوم شد از لای دست سیستم اداری در رفته. اگر آن موقع میدانستند این میآید پیش ما ها، مجوز نمیدادند. بنابراین علینژاد و من ذاکری شروع کردیم و حالا مشکلمان این شد که هیچکدام پول نداشتیم. وضع همه خراب بود. خیلی سخت بود. سال ۶۴، ۶۵ بود. بعد خلاصه رفتیم با یک بدبختی نفری ۲۰ هزار تومان جور کردیم. به این فکر بودم که مجلهاش نکنم مانند روزنامه باشد و کم خرج. با یک چاپخانهای هم صحبت کردیم. حواشیاش را زدیم. شد یک چیزی مثل روزنامهی قطع مترویی منتها به صورت دوهفتهنامه. درش آوردیم. متنها اسم من را نمیشد بگذاریم. شمارهی اول فقط اسم صاحب امتیاز و علینژاد را گذاشتیم. از شمارهی ۱۶ یا ۱۷ بالاخره بچهها گفتند: «بهتر است اسم تو را بگذاریم.» من گفتم: «اگر قرار است خطر کنیم خطر را با اسم شاملو بکنیم.» شاملو آن موقع خارج بود. باهش تماس گرفتیم و یک شعری فرستاد و ما هم چاپش کردیم. بههرحال آن را گذاشتیم و یک ذره ترسمان ریخت. شمارهی بعد من یک چیز بیخاصیتی نوشتم راجع به جهان. راجع به وسایل ارتباط جمعی، دهکدهی کوچک مکلوهان و این چیزها. از شماره های هفت و هشت اسم هم گذاشتیم. به هر حال از شماره دوازده وضع تیراژ خیلی تکان خورد. ولی کسی به ما حرف بدی نزد. تعطیلمان نکردند. یواش یواش. آن زمان هیچی نبود. هیچی. آدینه تنها نفسی بود که در میآمد. آقای علینژاد به خاطر اینکه فضا را بسته میدید خیلی نشریه را اجتماعی کرد. راجع به مباحث تحقیقات اجتماعی، طلاق، بیکاری و این چیزها مینوشتیم بیشتر و این پیدا بود که جلو نمی رود. ولی راهحلی بود برای ماندن. ولی احساس میکردیم هر طوری شده باید یک خطی را بشکنیم. بعد آقای علینژاد قهر کرد و رفت. شمارهی ۲۵ام. آدینه دوهفتهنامه بود. ولی آن موقع جنگ بود، کاغذ نبود، گاهی میشد دو ماه. خلاصه علینژاد رفت و به فرج سرکوهی پیشنهاد کردم که او تحریریه را اداره کند تجربه این کار را نداشت و همیشه با سیروس کار کرده بود. گفتم عیبی ندارد بمان تاسیروس برگردد من پشتت هستم. فرج آبان ۵۷ از زندان شاه آمده بود بیرون. نمی دانم عضو کدام گروه چریکی و چپ بود شاید از «ستارهی سرخ». در زمان شاه هفت سال زندان بود. فرج را در دوران دانشجویی در تبریز گرفته بودند. فرج در ۴ آبان ۵۷، همزمان با آقای طالقانی و منتظری و یک سری از زندانیان سیاسی آزاد شد. یکی دو ماه بعد فرج آمد پیش ما در تهران مصوری که من یک شماره منتشر کرده بودم و اعتصاب کرده بودیم و در نیامده بود. منتظر بودیم که اعتصاب تمام شود درش بیاوریم. آنجا به معرفی سیروس علی نژاد شد خبرنگار ما. خیلی از مصاحبههای معروفی که تهران مصور کرد و بعضیهایش خیلی معروف و اثرگذار بود کار فرج بود. مصاحبه با کیانوری، قطبزاده و اسکندری. خودش را نشان داد. تهران مصور که تعطیل شد فرج رفت و در شرکتهای مختلف شروع کرد کار کردن و به کل از صحنهی کار سیاسی، مطبوعاتی رفت بیرون. تا وقتی که آدینه در میآمد که باز دعوت شد و آمد با علینژاد در تحریریه کار کرد. وقتی علینژاد رفت نمی خواستم آدینه تعطیل شود و به کس دیگری هم اعتماد نداشتم وبه ذاکری پیشنهاد کردم فرج به طور موقت تحریریه را بگرداند فرج فرقی که با علی نژاد داشت این بود که سیاسی بود. الحق خیلی خوب اداره کرد مجله را. حالا بعدا رفته در کتابش نوشته که من بهاصطلاح با ارتباط با رژیم پوشش ایجاد میکردم بماند. من در نامهای که به فرج جواب دادم هم نوشتم که حرف فرج غلط نیست. درست است. شاید با لحن بدی میگوید و بعضیها نپسندند. برای یک کشوری مثل ایران آدمها فکر میکنند یک کسی با بزرگترش نباید این طوری حرف بزند. اما اگر من باید گلهای داشته باشم ندارم. چون پایهی حرفش درست است. من فرضم را بر این قرار داده بودم که نسل جوان و زنده ایران فقط همین مجله را دارند. هیچی ندارند. هیچی نبود. هیچ چیزی در صحنهی مطبوعات ایران که بچهها، دانشجوها، کسانی که یک نگاهی بخواهند به مسایل سیاسی بکنند بخواهند بخوانند نبود. من اساس را بر این گذاشته بودم که تعطیل نشود و بماند. من لابی نداشتم بکنم. اگر داشتم حتما میکردم. با نوشتههایم بالانس را ایجاد میکردم تا فرج بتواند کارش را بکند. اگر آن تعادل را نداشتم آدینه ۱۴ سال منتشر نمیشد. من میخواستم همین حادثهای که آخر پیش آمد و فرج را تا نزدیکی کشته شدن بردند اتفاق نیفتد و تمام سعیام را هم کردم. چون اینها سیاسی نبودند نمیدانستند. من میدانستم آن بالا خیلی خشن است و به همین جهت هنوز هم پشیمان نیستم از کاری که در آدینه کردیم چه دوره ای که علی نژاد بود و چه دوره فرج و چه چند شماره ای که بعد از فرج در آمد. اگر هم اگر پیش آید همان کارها را خواهیم کرد. تصور می کنم که فرج سرکوهی هم همان کار ها را خواهد کرد. فرج مثل برادر کوچک من است. فرج را میشناسمش. بعد واقعا هم فرج سهمی که دارد و همین دوران کوتاهی که در مطبوعات کار کرده، نقشی که در مورد کار مطبوعات در ایران دارد خیلی است و خیلی هم زجر کشید. ۷ سال دوران شاه و یک سال هم دورهی اینها. پدرش را در آوردند. فرج آن موقعی که در فاصله کوتاهی آمد و بعد زد بیرون، من و گلشیری تنها کسانی بودیم که اعتماد میکرد پیششان بیاید. به هیچکس حتی برادر و خواهرش اعتماد نداشت. از بس آزارش داده بودند رعشه گرفته بود. در اول کار التماس میکرد بهش سیانور برسانیم. میگفت تحمل ندارد دوباره برگردد زندان. هیچکسی در مطبوعات ایران به اندازهی فرج زجر نکشید. یک مرتبه آمده بودم خارج در فرانکفورت، سخنرانی می کردم یک نفر بلند شد گفت شماها را خریدند برای سوپاپ اطمینان و از این حرفها. گفتم: «حقیقتاش را بخواهید اینها تا حالا نفرستادهاند دنبال ما که تازه من بررسی کنم ببینم قیمتش خوب است یا نه. کسی نیامده. حالا بیایند ما یک مطالعهای میکنیم.» واقعش این است که اینها بعد از انقلاب نیامدند دنبال ما برای خرید و فروش.
قتلهای زنجیرهای
- از ماجراهایتان با سعید امامی بگویید.
من ماجراهایم با سعید امامی را نوشتهام. در گزارشهای پیامامروز. یک گزارشی نوشتم به اسم «نفوذ». در آنجا برخوردهایی که با شخص من کرده را نوشتم. ما هیچکدام از اینها را به اسم نمیشناختیم. من حتی بعد از این که عکس سعید امامی چاپ شد هم تطبیق ندادم که این همان است. در گزارش پیام امروز هم پیداست. تا این که رفتم زندان. در زندان دو سه روزی همبند شدم با مصطفی کاظمی معاون سعید امامی. آنجا مصطفی کاظمی آمد به من گفت: «آقای بهنود شما که دیده بودید حاج سعید را.» گفتم: «من کجا حاج سعید را دیده بودم؟» گفت: «مگر آن روز شما یادتان نیست. شما کراوات داشتید. او گفت شما اتاق خواب هم که میروید کراوات میزنید؟» گفتم: «آن آقا در هتل هما» گفت: «آره دیگر». ماجرا این بود که چند ماهی قبل از دوم خرداد ما را دعوت کرده بودند به هتل. فکر کردم مثل همیشه باز یک اطلاعاتی میخواهد حرف بزند. رفتم. دیدم همهی سرانشان هستند. ده نفر آدم نشستهاند. من با کراوات رفته بودم. اینها خیلی بهشان بر خورد که نترسیدهام از اینها. سعید امامی نشسته بود ردیف دوم. از رفتار بقیه معلوم بود که این رییسشان است. لهجهی غلیظ شیرازی داشت. بعد گفت: «شما در رختخواب هم که میروید کراواتتان را باز نمیکنید؟» گفتم: «نه، من از مجلس ختمی میآیم.» بعد یکیشان که با من یک خرده مهربانتر بود بلند شد گفت: «آره، کراوات مشکی پوشیده.» اما آن نفر دوم قتل های زنجیره ای را من از ماجرای اتوبوس ارمنستان میشناسم. اسمش عالیخانی بود و خودش را هاشمی معرفی میکرد. او رییس پروژهی فرج هم بود. موقعی که فرج را گرفته بودند او به ما زنگ میزد. این وسط که آزادش کردند او تلفن کرد به همهی بچهها. اعضای کانون نویسندگانیها هم او را دو سه بار دیده بودند. میگفتند آقای هاشمی آدم نرمی است و معروف شده بود به فرشتهی نجات. ما که رفتیم ارمنستان و بعد از ساقط نشدن اتوبوسی که قرار بود به ته دره برود و سنگی نگذاشت ما را بردند پاسگاه آستارا، گفتند از تهران معاون وزیر اطلاعات دارد میآید. فرج و سپانلو که قبلا در ماجرای خانهی وابسته فرهنگی سفارت آلمان بودند هی به ما میگفتند شانس بیاوریم هاشمی بیاید. ما گفتیم چرا. گفتند چون هاشمی خیلی نرم است و آدم میانهرویی است. چقدر سادهدل بودیم آن موقع! رانندهی اتوبوس هم خسرو براتی بود. در زندان فقط کاظمی و عالیخانی یک بار با ما تصادفی همبند شدند. در یکی از بازجوییها به بازجو میگفتم: «آقای کاظمی خودش میگفت معاون امامی بوده.» بازجو گفت: «طوری میگویی انگار دم دست توست.» گفتم: «خب تو بند ماست.» گفت: «تو بند شماست؟!» بعد من فهمیدم گاف دادم. از نظر روزنامهنگاری خیلی فرصت خوبی بود که بتوانی با چنین آدمی (کاظمی) در زندان حرف بزنی. ولی من حالم اجازه نمیداد. و گرنه اینها میخواستند حرف بزنند. میخواستند خیلی حرفهای جدی بزنند. خیلی آمادگی حرف زدن داشتند. برای یک روزنامهنویس هرگز چنین فرصتی پیش نمیآید. من در تمام عمرم با خودم میگفتم اگر آن ور دنیا هم چنین فرصتی پیش آمد میروم استفاده کنم. ولی در زندان از آن موقعیت نتوانستم استفاده کنم. اولا تحملش را نداشتم. واقعیت را به شما بگویم. این آمده بود کنار تخت من نشسته بود. دربارهی قضیهی داریوش فروهر حرف میزد. دستش هی میآمد نزدیک آستین من. من احساس بدی داشتم. احساس میکردم این آن دستی است که پای داریوش را شکانده، دهان یک نفر را بسته. احساس بدی داشتم با دستش. ده دقیقه بود حرف میزد. بهش گفتم: «داری هدر میدهی. من گوش نمیدهم. ولی فکر میکنم این چیزهایی که میگویی خیلی جالب است. من ترتیبی میدهم تو با گنجی حرف بزنی.» بعد رفت با اکبر حرف زد. مشکل بود. ما باید صحنه جور میکردیم. دو تا از دانشجوهایی که در کوی دانشگاه گرفته بودند پایین در بهداری بودند. ما صحنه جور کردیم. چون نباید همدیگر را میدیدیم. اکبر رفت در بهداری پایین و بیست دقیقهای با هم حرف زدند. کسی با کاظمی و اینها کاری نداشت. آنها منعی نداشتند. راحت بودند. هم تلفن داشتند هم ارتباط داشتند. اینها را اول بردند بند سه. در بند سه مهران عبدالباقی و امیرانتظام و اینها بودند. جوانها به اضافهی سیاسیها. اما را فرستادند بندهای دیگر. درست شب سالمرگ داریوش فروهر بود. مهران و بچهها و اکبر محمدی و این ها توی بند برای داریوش ختم گرفته بودند. درست همان شب اینها را بردند آن تو. بعد ناگهان فضا طور دیگری شد. خطرناک هم بود. کاظمی و عالیخانی فکر کرده بودند یک دام است که سیاسیها اینها را بزنند و رژیم از دستشان خلاص شود. یک پیغام آمد که صحنه وحشتناک است. این دو تا رفتند ته بند در یک اتاق چسبیدند به همدیگر. بعد بقیه بچهها رفتند توی حسینیه و ایستادند سینه زدن و گریه کردن. میگفتند: «مرگ بر قاتل، مرگ بر قاتل». مثل فیلمهای هیچکاک شده بود. صحنهی عجیبی بود. خلاصه یکی از بچهها که در زندان خیلی بانفوذ بود به نگهبان گفت: «برو به این روسای بند بگو شما تعمد دارید یا بیعقلید یا بیشعورید؟ این چه کاری است؟ یک حادثهای پیش میآید بعد کی میخواهد جمع و جورش کند؟» بعد از ده دقیقه دیدیم اینها را آوردند در بند ما. احتمال میدهم ظاهرا اینها فکر کرده بودند من به هر حال آدم آرامتری هستم نسبت به گنجی و مثلا نبوی. زیدآبادی هم البته بود. ولی به نظر من ناآگاهانه بود. بعد که من به آن بازجو گفتم شبانه اینها را بردند به بند دیگر. ولی به هر حال بیشتر هم میماندند، من تحمل نداشتم. برایم دشوار بود. ولی اگر میماندند خوبیش این بود که با اکبر بیشتر میتوانستند اطلاعات بگیرند و بدهند.
- از روزنامهنگاری بعد از دوم خرداد بگویید.
دوم خرداد حتما دورهی مهمی از روزنامهنویسی ایران است. من حتی یک بار نوشتم روزنامهنویسی معاصر ایران به قبل از دوم خرداد و بعد از دوم خرداد تقسیم میشود. اتفاق مهمی افتاد. اگر بخواهم شخصی در زندگی خودم نگاهش کنم میگویم یک بار من آزادی دیده بودم، آن هم در انقلاب. ولی حالا که نوشتههای زمان انقلاب را میخوانم میبینم خیلی ما سادهدل و آرمانگرا بودیم. دوره دوم خرداد خوبیش به این بود که ما بودیم، تجربه داشتیم و تجربه را منتقل میکردیم. اگر کسی هم میآمد شبیه جوانیهای ما، یک ذره تندتر بود مثل گنجی، بالاخره کسی مثل ما هم بود که میگفت نه نکن. تازگیها نبوی یک نامه مانندی نوشته به شادی صدر. در آنجا نوشته که در آن روزها همه تسمه پاره کرده بودیم. بهنود میگفت همه با هم از چراغ قرمز رد نشویم.
- ماجرای رسمالخطی که شما در آدینه رعایت میکردید چه بود؟
اصلاح خط در حقیقت با شاملو شکل گرفت. با کابلی و فرج. برایمان آن بخشی مهم بود که چون این چیزی که شاملو در مورد آن کمیتهی اصلاح خط با دکتر صنعتی و کابلی درست کرده بودند یک جوری شده بود لوگوی شاملو، لوگوی کانون نویسندگان. ما در حالی که بوضوح نمیتوانستیم بگوییم که ما بیانگر و یا صدای کانون نویسندگان هستیم رعایت این رسمالخط در آدینه بهترین لوگو بود برای این که بفهماند که ما با هم همخونیم. اگر دقت کرده باشید تکاپو هم که در آمد همین کار را کرد.
- تکاپو که بعد از چند شماره توقیف شد؟
تکاپو پنج شماره بیشتر دوام نیاورد. تکاپو را منصور کوشان راه انداخت. آدینه را منصور تعطیل کرد و تکاپو را هم او. منصور بیخط میرفت. البته فرج هم همینطور بود. اگر دست هرکدامشان میسپردی حداکثر میتوانست پنج شماره منتشر شود. منتها فرج مشورت های مدام ما را داشت. او را متعادل نگه میداشتم. بالاخره تجربه ای بود. ۱۴ سال طول کشید. بعد که فرج رفت زندان ضربهی سختی به ما خورد. یک مقاله نوشتم به اسم «و پاییز میشویم». در کتابم هم هست. همین مقالهای را که میگویم شاید تنها اشاره به فرج در آدینه بود. فشار خیلی زیاد بود. تقصیر ذاکری یا کسی نیست. من و گلشیری تصور بیرون آمدن فرج را نداشتیم. گفتیم فرج را میکشند. گلشیری ورد زبانش بود که جنازه رفته رو به آفتاب. سر ماجرای احمد میرعلایی، گلشیری دیده بود که این ها چهها که نمیکنند. گلشیری اصلا این قضیه را قطعی کرده بود. همه ترسیده بودند. در پیامامروز یک دو درباره فرج چاپ شد به نظرم بیشتر از این که نشانهی شهامت باشد به خاطر این بود که پیام امروز به اندازهی آدینه زیر فشار نبود. وقتی فرج را گرفتند آدینه زیر نگاه بود. ذاکری حق داشت که بترسد. بنابراین من از بعضی از این روزنامهنویسهای جوان را میبینم که یک خطی دارند و آن را میروند، تعجب میکنم. من اگر شما دقت کرده باشید توی دورهی تهران مصور یک آدم دیگری هستم. دورهی روزنامههای جامعه، نشاط و توس یک یادداشتنویس دیگرم. دورهی آدینه یک آدم دیگری هستم. یعنی یک نوع بیان و یک نوع عمل دیگری دارم. برای هر کدام از اینها یک چیزی در ذهنم طراحی داشتم. برای آدینه هم همینطور، نوشته هایم در پیام امروز هم بیش تر از آن که کار تنها من باشد کار گروهی بود و حاصل فکر همه مان.
پیامامروز
- گزارشهای پیامامروز را شما مینوشتید؟
گزارشهای پیامامروز را من مینوشتم. کار کردن بر بیشتر جلدهای پیامامروز هم کار من بود. ولی من در پیامامروز فقط همین دو تا کار را میکردم. کار دیگری نکردم. روزنامهنویس است که طرح جلد را تعیین میکند و یک گرافیست هم آن را اجرا میکند. برای گزارشها ما یک کار جمعی میکردیم. گزارشها به قلم من است. به هر حال حاصل کار جمعیمان بود. تازگیها دارم به این فکر میافتم گزارشهای سیاسی را بصورت کتاب منتشر کنم. آن هم به خاطر بچههای روزنامهنویس که الان در تهرانند و کلاسهایمان برقرار نیست. آنها اصرار میکنند. فکر میکنم الگوی خوبی برای بچهها برای گزارشنویسی است. اصولا در همهی صنعت حملونقل و پیامامروز من اسم نگداشتم. جز یک عیدی که یک گزارش نوشتم بعد هم همان نوشته در جشنوارهی مطبوعات برنده شد. ما همه در صنعت حملونقل بودیم و بعد از این که صنعت حملونقل از دستمان بیرون رفت، آقای نایینی رفت امتیاز پیامامروز را گرفت. در نتیجه رفتیم پیامامروز. اگر بخواهیم گزارشها را سهمبندی کنیم، اگر من ۴۰ دزصد سهم داشته باشم، ۳۰ درصد هم مال مسعود خرسند و ۳۰ حسن نمک دوست- این دو نفر که اصل کار را بهعهده داشتند- و بعد بچههای سرویس خبری، شهرزاد مشاور، خانم دژم، کمال آقایی و اینها بود. آنها سفارش میگرفتند که یک جاهایی تولید کنند. فرض کنید که فلان موضوع پیش آمده. میگفتیم یک کسی با فلان کس مصاحبه تلفنی کند یک جمله از او بگیرد. یا ترتیبی پیدا میکردیم بچهها قسمت خالیاش را پر میکردند. من شاید به همین دلیل، تا حالا در عمرم اتفاق نیفتاده که در یک مطلبی یک درصد هم دیگران سهم داشته باشند بعد آن را به اسم خودم چاپ کرده باشم. اگر گزارشهای سیاسی را جداگانه چاپ کنم این اولین باری است که فکر میکنم ناچار میشوم توضیح دهم که به هر حال حاصل کار یک گروه است و کل این مطلب از اول تا آخرش ساختهی من نیست. نوشتنش کار من است.
- تیراژ پیامامروز چقدر بود؟
تیراژ پیامامروز یک داستانی دارد. آن چه من می دانم این بود که در آن زمان تیراژ تنها مجله ای که از پیامامروز بیشتر یود مجلهی فیلم بود. پیامامروز فکر کنم در یک زمانی هر نسخهای دست کم پنج تا خواننده داشت. دلیلش هم این بود که به دلایل اقتصادی و یک ذره سیاسی تیراژ را بالا نبرده بودند. به همین جهت روز سوم انتشار تمام میشد. پیامامروز تنها نشریهای بود که سه هزار تا مشترک داشت. در تاریخ همچنین اتفاقی نیفتاده. در ایران هیچ وقت ما سههزار تا مشترک نداشتهایم. نشریه که روز سوم نباشد معلوم است که بیشتر از اینها خوانده میشود. دو شماره قبل از این که تعطیل بشود آقای نایینی تصمیم گرفت که این منع را از روی تیراژ بردارد. بیشتر چاپ شود. بنابراین تیراژ پرید به پنجاه، رفت به شصت به هفتاد و تعطیل شد. من یک مقالهای نوشتم همان موقع توی عصرآزادگان. نوشتم «به اندازهی کوپنمان». من احساس میکنم ما در آدینه ۳۰ هزار تا کوپن داشتیم. به محض این که کوپنمان را شکستیم تعطیل شد. ماجرای بستن پیامامروز این طوری بود که مجافظهکاران شروع کرده بودند یک دوره اصلاحطلبان را زدن. ما در قالب اصلاحطلبان نمیگنجیدیم. چون قبل از دوم خرداد هم پیام امروز منتشر می شد. اصولا سعی میکردیم بیطرف باشیم. بعد حلقه را بستند. نزدیک شدند. یعنی وقتی هممیهن را هم زدند معلوم شد آمدند به حساب همه برسند. نشانههایش رسید. این بود که آقای نایینی تصمیم گرفت خودمان داوطلبانه تعطیل کنیم. ولی حکومت از این ابتکارها سرش نمی شود. جمهوری اسلامی تا حالا به کسی اجازهی استعفا نداده است. خاتمی تنها آدمی در طول این مسیر بود که از وزارت ارشاد توانست استعفا دهد. آقای خمینی فوت کرده بود و آقای خامنهای هنوز تازهکار بود. خاتمی تنها آدمی بود که توانست با استعفا صحیح و سالم بیرون برود و به همین جهت هم برگرشت. میرحسین موسوی یک موقعی با آقای خامنهای دچار اختلاف شده بود. دعوا بالا گرفت و میرحسین استعفا داد. بعد آدمها در تحلیلهایشان می گفتند از دو حال خارج نیست. یا این که استعفای میرحسین قبول میشود در نتیجه دستراستیها و آقای خامنهای خیلی جلو میروند یا استعفایش قبول نمیشود که دستچپیها و میرحسین برنده میشوند. فردا صبح یک نامه در رادیو خواندند که این دو تا هیچ کدامشان خبر نداشتند. آقای خمینی نوشته بود «نامهی نخستوزیر را خواندم. مگر مملکت صاحب ندارد. استعفا معنی ندارد. به سر کار خود برگردید.» به نظر آمد چپ پیروز شد. ولی بعد نوشته بود «وزرایش را مجلس تعیین میکند.» یعنی راست پیروز شد. یعنی معلوم شد راه سومی هم وجود داشته است. در آن نامه یک جوری نوشته بود که معنایش این بود که شماها کسی نبودید. من به تو فرصت دادم بیایی آدم شوی. حالا میخواهی استعفا دهی بروی دسته درست کنی؟ میمانی تا آن رت که به تو دادم را از تو بگیرم بعد میروی.» حرکت میرحسین معنایش این بود که میخواهد دسته درست کند و مثلا مستقل بماند. اما در جمهوری اسلامی مستقل معنا ندارد. من باور دارم در این یک ساعت و نیمی که آقای خامنهای با آقای خاتمی مذاکره کرد تا آقای خاتمی بیاید برای رییسجمهوری نامزد شود مهمترین موضوعی که آقای خامنهای گفت این بود که «فقط من از این میترسم که استعفا دهی و گرنه همهی کارهایت را تحمل میکنم. برو مردم را راه بینداز. اصلاح کن. دموکراسی درست کن. همهی کارها را بکن. ماشین را اوراق کنی و وسط راه ول کنی قبول نیست.» آقای خاتمی هم قول داد و پای قولش هم ایستاد. از حق نگذریم آقای خامنهای هم ایستاده. آقای خامنهای تا حالا نگذاشته خاتمی را بخورند. وگرنه میخورندش اگر آقای خامنهای نباشد. حتی آقای خاتمی و خامنهای را با هم میجوند. قوی هستند. یک جا بعدها ممکن است تاریخ واقعی این سرزمین را بنویسند. آقای خاتمی به باور من یکی از وفادارترین آدمهایی است که در کل تاریخ ما به دموکراسی پیدا کردهایم. اما او در دنیا به هیچ کس به اندازهی آقای خامنهای بدهی ندارد. یعنی اگر اینها هر ۹ روز یک بحران درست کردند، او در هر پنج روز یک بار نجاتش داده. یعنی در هر پنج روز یک بار دستش را گرفته جلو و از حداکثر نفوذش استفاده کرده تا سید را نخورند. بازی آن پشت شرایطش اصلا یک جور دیگر است. این بازی خیلی سهمگین است. یعنی شما در تاریخ میبینید که موسیلینی وجود دارد. یک موسیلینی میآید مردم را هیجان میدهد. منظم میکند. این فاشیست است. با این فاشیسم فضایی درست میکند که در ایتالیا هیچکسی نفس نمیتواند بکشد. همان که در فیلمهای پازولینی دیده اید. همهی پاسبانها، کشیشها و این ها مامور سانسورند و فضای وحشتناکی درست میکنند. فاشیسم یک چیز تقلبی است که میرود خودش را پشت واتیکان قایم میکند و فقط در همین ایتالیا میتواند اتفاق بیفتد. به همین جهت فاشیسم وقتی در آلمان اتفاق میافتد شما به آن فاشیسم نمیگویید. نازیسم میگویید. در ایران خود کلیسا وارد صحنه شده، نه این که کسی پشت کلیسا پنهان شده باشد. سهمگین است. سهمگینیاش به دلیل خشونتاش نیست، به دلیل نیرویی است که دارد. وحشتناک است نیرویش. همان قدر که با یک اشاره میتواند میلیونها نفر را روبرویتان قرار دهد و از حضورشان استفاده کند.
یک:
شمعِِِِِِ روی میز، احاطه شده میان دیوار استوانهای از پارافین قرمز تیره، نارنجی میسوزد. بالای میز تختهای به دیوار پیچ شده است، روی تخته در انتهای تاریک آن، ماهی بر سطح آب و هوا لب میزند. باید ماهی بزرگی باشد که اکسیژن ظرف بلوری کفافش را نمیدهد. زیر تخته، بالای شمع لکهی سیاه گردی است. سرم را که بلند میکنم لکه به زحمت دیده میشود. میان لباسها زیرپوشم را پیدا میکنم، دقت میکنم که برعکس نپوشم. تخت و ملافههایی که گلهای آفتابگردان بزرگ دارد؛ پیچیده در گلها، نگاهم نمیکند. در را میبندم. راهرو پراز بوهای غریبه و کفشهای رها شده پشت درِ اتاقهاست. آسانسورِ کند، درهای چوبی، پلههای سیمانی، خیابان که مه زده است. پنج چراغ شناور در مه را میشمارم. از بغل گدای دیوانهای رد میشوم. دستم روی نردههای نمناک کنار پلهها سر میخورد. ردیف پلههای کوچک و بیشمار، من را درست کنار سوراخ، در امتداد دیوارهای روشن از نورهای آبی پیاده میکنند. حضور سوراخ در سایهی زبالهدانِ بزرگی، محل تلاقی دیوار و پله، قطعی است.
دو:
تالا متولدِ سرزمین سردِ دوردستی است. این جا هم زمستانها حسابی یخ بندان میشود. لکهی سیاه کوچک بود که بیمقدمه شبی در گوشم گفت شش روشِ اثبات شده برای خودکشی بیدرد ابداع کرده است. از داروها و سمها سررشته دارد. میتواند موش سفید زرنگی را چند دقیقهای ناکار کند. موش راحت میمیرد، دست کم از نظر تالا.
وقتی قطار به سرعت از تونلی به روشنایی ایستگاه وارد میشود، وسوسهی عبور از خط زرد درست قبل از رسیدن قطار آزارش میدهد. دستش را میگیرم. تکیه کرده آرام نجوا میکند، مردنِ شلوغی میشود. تالا شلوغی و سرما را دوست ندارد. غیر از این دوست ندارد تالا صدایش کنم. اسم کاملش ناتالیاست.
سه:
چهار انگشت ِ آخر من با هم از ورودی تیرهاش رد نمیشود. ردِ خشکیدهای، مخلوط گیریس و لجن از زیر سوراخ شروع میشود. روی کاشیهای دیوار و کف موزاییکی تا خط زرد پلاستیکی احتیاط پیچ میخورد؛ انتهای آن جایی میان فلز ریلها، کاغذ پارههای رنگارنگ، روزنامههای سرگردان و آدامس سفید جویدهای گم میشود.
باید شب از نیمه گذشته باشد، من تنها از پلهها پایین بیایم. ساکت چند قدم دورتر بایستم. به سوراخ خیره شوم تا سر کوچک سیاهش از میان تاریکی پیدا شود. با چشمهای سیاهِ براقش نگاهم کند. دستهای سیاهش را به هم بمالد. دم باریک و سیاهش را بجنباند؛ رد سیاه را تا روی ریلها بگیرد؛ لرزشِ دوردستِ قطار را حس کند و دوان دوان به سوراخش برگردد. چند دقیقه بعد آخرین قطار شب، مسافر خوابزدهاش را سوار میکند.
آخر:
رقصیدیم. نیمه مست از پلههای سیمانی بالا رفتیم. درهای چوبی را برای هم باز کردیم. کلمات ناتمام کنده شده روی دیوار آسانسور را خواندیم. عکسهای یک آلبوم قدیمی را تماشا کردیم. آفتابگردانها را مچاله کردیم. به صدای لب زدن ماهی گوش دادیم. از شمع و لکهی دودزدهاش خندهمان گرفت. لمس کردیم. بو کشیدیم و گذاشتیم تا ماهی با ساعت اتاق بازی کند. موقع رفتن نگاهم کرد که یعنی نروم. بلند شد، شمع را خاموش کرد.
من دوباره در راهروی غریبه و خیابان مه آلود بودم. موش آمد از خط زرد گذشت. میان ریلها دوید. روی ریل ماند تا من کند شدن تدریجی مسافران و شتاب فزایندهشان را تماشا کنم. عبور آخرین قطار. روی ریلهای خالی اثری از موش نبود. به نظرم جیرجیر گنگی از ظلمات سوراخ شنیده میشد. پله ها را دو تا یکی کردم. خیابان مه زده، چراغ های شناور.
«آری! بختم میخواهد که بختیار شود
روشن است که همهی بختها خواهان بخت یاریاند
میخواهید سرخ گلهای مرا بچینید؟
باید که خم شوید
وخود را لابهلای صخره و پرچین پرخار
پنهان کنید!
و اغلب انگشتان نازنینتان میخلد!
زیرا که بختم، خلیدن را خوش دارد
زیرا که بختم، خباثت را خوش دارد
میخواهید سرخ گلهای مرا بچینید؟»
\ \ \ (نیچه)
گیسوان مناند که ماهرانه
دستان زیبای تو را به هم میبافند
و بی خویش
ز هم میگسلند
تا بر تنم جاری
چون گیسوان من
که بر تن تو
و گلهای سرخ من اند
که سر برآوردهاند
تا زانوی تو
تا تو خم نه حتا اگر خم نه
بر زانوانت به بوسهای کفایت کنند
و دستان من اند
که همچنان منتظر به اشارتی
چون گیسوانم
یا خود دستانت که گیسوانم را...
جاری
بر تَنت
بر بستر تَنت
جاری
بر آن لبها
که کفایتِ اشارت را به فریاد آمدهاند
اینک دستان من
در انتظار نگاهی دلبرانه
اشارتی
و لبانم
منتظر نوازشی
از لبهایی
که میخواندند
برای اشارتی
کاش قبل از آن که از آن پلههای لعنتی بالا میرفتم، فکر همه چیز را کرده بودم. آن خستگی وحشتناکی که پاهایم را بالا میبرد از چه بود؟ شاید احساس این همه سال ساکت بودن، چیزی نگفتن، یا چیزی شبیه اینها. قبل از همهی اینها میدانستم که کارم هیچ فایده ندارد. اما نه، فایده داشتن یا نداشتناش برایم هیچ فرقی نمیکرد. میخواستم به خودم ثابت کنم برای یک بار توی این بیست و نمیدانم چند سال زندگی - که همین حالا هم به اندازهی کافی پیرم کرده - میتوانم جلوی کسی بایستم، که پشت نکنم، که غم زده و ناامید فرار نکنم. گلویم خشک شده بود یا دست کم من فکر میکردم که این طور است.
دفتر یارو را دود سیگار گرفته بود. هنوز صدای خسخس لعنتی گلویش را میشنوم. رقتانگیزتر از آن بود که بخواهم بگویم قیافهاش شبیه نزولخورهای حرفهایست. شبیه آنهایی که غبغبشان از کرم و چربی و کثافت پر است. اما چشمانش را هنوز بعد از این چند ساعت خوب یادم میآید: خیره، چیزی بین سبز و خاکستری. ترسوتر از این حرفها هستم که بخواهم بگویم هنوز چیزی هست که در این دنیا مرا میترساند. سیگار تعارفم کرد. برداشتم و پشت پلکهای عمیقش پنهان شدم. نمیدانم از چه، از گذشتهها شاید، از آن روزهایی که دم به دم از بچههای مدرسه کتک میخوردم. وقتی دبیر شیمی به چشمهایم زل میزد، هر چه را از ِبر تشخیص نمیدادم، تو بگو ِهر را از ِبر، یا ِهر را از َبر. یا مثل وقتی که به آن دختر با دستپاچگی گفتم: «دوستت دارم.»، با تمسخر نگاهم کرد و رفت. کاش من هم میرفتم. از آن دختر کذایی میآمدم بیرون. بعد چند تا لیوان پر پیمان الکل میخوردم و کپه میگذاشتم. آن وقت این آخر شبها نباید هی قدم میزدم و کابوسهایم تکرار میشدند.
گفت: «خوب چیکار داری؟»
من کاری نداشتم. هیچ وقت به کار هیچ کس کاری نداشتم. همیشه توی کتابهایم پنهان بودم. کتابهایی به معنای دقیق کلمهی «گولزنک». از آنهایی که هم غم و غصهی بیهوده تبلیغ میکنند، هم سعی میکنند به تو بفهمانند که تو، به عنوان خوانندهشان، بزرگترین انسانی هستی که از فقدان عدالت، زیبایی و هزار کوفت و زهرمار دیگر رنج میبری. حالا اینجا باید جایی دور از قصههای تزار و ناپلئون، انقلابها، عشقها، دلها و یا شعرها؛ فقط برای نشان دادن یک علاقه، برای نشان دادن درک از یک رابطهی خونی و شاید جبران تمام مستیها و نافرمانیها، حق پدرم را میگرفتم.
گفتم: «اومدم در مورد اون مبلغی که به پدر من بدهکارید، حرف بزنم.»
آه کشان از جایش بلند شد. آرام آرام به طرفم نزدیک شد. دست روی شانههایم گذاشت. خیره نگاهم کرد و گفت: «پسر جون، به بابات گفتم، به خودتم میگم، من دیگه به بابات بدهی ندارم. اگرم دارم شما هیچ مدرکی ندارید.»
تمام عمر از مدرک متنفر بودم. از آنهایی که به حکم یک امضا، معنایی جعلی پیدا میکنند، حق میدهند. از اینکه سرنوشتها به امضاها متکیست، متنفرم و حتی تا لحظههای آخرین زندگیام هم متنفر خواهم بود. این را که گفت احساس کردم از شدت ناتوانی زبانم بند آمده.
- «اگه تا یه دقیقهی دیگه نری بیرون، میدم با تیپا بندازنت بیرون.»
از روی صندلی بلند شدم و آمدم بیرون.
پدرم آن طرف خیابان ایستاده بود، مشتاق و چشم انتظار. رفتم طرفش. گفتم: «گفت تا فردا پولتو میده.»
پدر گفت: «چه جوری راضیش کردی؟»
شانه بالا انداختم. سیگاری آتش زدم.
- «حوصله ندارم توضیح بدم. سرم درد میکنه. برو خونه. من کار دارم.»
کاش از آن پلهها بالا نرفته بودم.
اقلیتهای قومی و نژادی ساکن آمریکا همگی به تدریج پای خود را در هالیوود باز کردند. ایتالیاییها و پورتوریکوییها قهرمانان خشن و آسیبپذیر سینمای گانگستری شدند، چینیها با جکیچان محبوب شدند و موج فیلمهای هنرهای رزمی را در هالیوود به راه انداختند. هیسپانیاییها هم گاهی در فیلمهای روبرتو رودریگوئز (دسپرادو، ال ماریاچی، روزی روزگاری در مکزیک) سنت گیتارنواز/انتقام گیرندهی تنها را زنده کردند و گاهی رئالیسم جادویی را محمل قرار دادند و در فیلمهای اقتباس شده از ادبیات آمریکای لاتین (مثل آب برای شکلات) راه خود را باز کردند.
اما تاکنون جمعیت عظیم ایرانی لس آنجلس نتوانسته بود به هالیوود راه پیدا کند. تعداد فیلمهایی که ایرانیها را حتی در نقشهای فرعی مطرح کنند، تقریبا انگشت شمار بود و به جز «بدون دخترم هرگز» که نوعی توهین به ایرانیها محسوب میشود، هیچ فیلم دیگری دربارهی این اقلیت پرشمار ساخته نشده بود. از طرف دیگر جمعیت مهاجران ایرانی در آمریکا نیز هنوز آنقدر پا نگرفته که بتواند ادبیات و هنر خود را تولید کند. هنوز متن هنری مهمی که رابطه یک ایرانی و زندگی در خارج از ایران را توصیف کند - لااقل به زبان انگلیسی - وجود ندارد. این وضعیت مانند به سر بردن در یک سکوت اجباری است. سکوتی که هرچند از طرف یک جامعهی دیکتاتوری تحمیل نشده است، اما به هر حال یک خفقان است.
خب این بار آستین را خود آمریکاییها بالا زدند. آندره دوبوسی کتاب «خانهی ماسه و مه» را دربارهی سرهنگ امیر مسعود بهرانی، مهاجر گریخته از ایران نوشت. تلاش سرهنگ برای بازگرداندن شکوه گذشته و حفظ خانواده و همسرش او را به پافشاری در تصاحب خانهای که آن را به قیمت ارزان در حراج خریده است، وا میدارد. صاحب اصلی خانه، کتی، زنی تنها و رها شده است که خانه تنها تعلقش محسوب می شود. نبرد میان سرهنگ و کتی بر سر خانه، قصه را به پیش می برد و به فاجعهی نهایی منجر میشود. این داستان گیرا با شخصیتهای پر رنگ، صحنههای تأثیرگذار، و مقدار کافی از سکس و خشونت و عاطفه، نظر تهیه کنندگان هالیوود را به خود جلب کرد و نهایتا زندگی ایرانیها و زبان فارسی را به روی پردههای هالیوود کشاند.
فیلم خانهی ماسه و مه به یکی از فیلمهای مطرح امسال تبدیل شده است. منتقدان نقدهای بسیار خوبی روی آن نوشتهاند. دو تن از بازیگران آن، بن کینگزلی و شهره آغداشلو (بازیگر فیلمهای «سوتهدلان» و «گزارش» در سالهای قبل از انقلاب، همسر سابق آیدین آغداشلو، گرافیست ایرانی، و یکی از بازیگران فعال تئاتر ایرانی در خارج از کشور) نامزد جایزهی اسکار شدهاند.
اما همهی اینها تا آنجا برای من اهمیت دارد که میبینم فیلمی دربارهی ایرانیها ساخته شده و سایهی مخوف تروریسم و خشونت بیدلیل بر سر آن نیفتاده است. اهمیت اصلی خانهی ماسه و مه - لااقل برای من- در این است که با نگاهی انسانی و بدون دروغ و پردهپوشی ساخته شده است. وقتی کتاب خانهی ماسه و مه را میخواندم، خدا خدا می کردم که روزی به فیلم تبدیل شود. نه به دلیل این که کتاب من را خیلی متأثر کرده بود، بلکه صرفا به این دلیل که میدیدم در موقعیت فعلی، این نقدترین و دم دستترین و بهترین متنی است که در آن چند نفر ایرانی قادرند دربارهی اندیشهها و احساسات و عواطف خود حرف بزنند. حالا که این فیلم در این سطح کلان مطرح شده و حتی شهره آغداشلو را تا نامزدی اسکار کشانده است، احساس می کنم که این حرفها تا حد زیادی شنیده هم شده است.
از این بحث های جنبی که بگذریم، یکی از جنبههای جذاب فیلم برای من حداقل، تقابل فرهنگ خانوادهی جمعگرای ایرانی و فردگرای آمریکایی بود. در دنیایی که زنی به خاطر یک اشتباه اداری تمام زندگی خود را بر باد رفته مییابد و به قدری از درون احساس خلأ میکند که حتی عشق یک مرد نیز نمیتواند او را نجات دهد، زندگی خانوادهی ایرانی (که به دلایل دیگری طوفان زده است) محلی امن و انسانی به نظر میرسد. وقتی کتی خودکشی میکند تنها کسانی که حضور دارند و به دادش میرسند همان خانوادهی متخاصم ایرانی هستند. خانوادهای که بر خلاف جامعهی سرد آمریکایی به او «محبت» نشان میدهند، بی آن که دلیلی پشت آن باشد و او در امنیتی که این خانواده در خود دارد، برای اولین بار احساس آرامش را تجربه میکند.
آندره دوبوسی کتاب خود را با مشاهدهی دقیق و ریز ریز زندگی ایرانیها نوشته است. چنان که شهره آغداشلو هم به او گفته بود که «تو پشت میز بودی یا زیر تخت قایم شده بودی؟ چطور همهی جزئیات زندگی خصوصی ما را می دانستی؟»
در مقابسهی میان کتاب و فیلم، اگرچه فیلمنامهی اقتباسی فیلم تحسین برانگیز است، اما چند صحنهی خوب کتاب که به نظرم خیلی حیف بودند، از آن حذف شدهاند. یکی از این بخشها جایی است که برای اولین بار کتی و لس در کنار ساحل به هم ابراز علاقه میکنند که به علت نامنتظره و غیر عادی بودن موقعیت، بسیار تکان دهنده است. توصیف دوبوسی از فضای ساحل و سردی نیمکتی که بر آن نشستهاند و طعم نوشابهای که کتی مینوشد، (او از ترس بازگشت به عادت سابق، از نوشیدن الکل امتناع میکند) بسیار تکان دهنده و همچنین پیشبینی کنندهی عشق آسیبپذیر و در عین حال آتشین میان آن دو است.
حذف شدن این صحنه از فیلم، رابطهی آن دو را به یک رابطهی عشقی معمول هالیوودی تبدیل کرده که با موسیقی و نماهای کلیشهیی همراه شده است و نه تنها قدرت تکاندهندگی کتاب را ندارد، بلکه عمق آن را نیز (که دربردارندهی مفهموم آسیبپذیری عشق دربرابر سرنوشت است) از دست داده است.
صحنهی دیگری از کتاب که متأسفانه در فیلم حذف شده است، صحنهیی است که کتی بعد از آرام گرفتن در خانهی سرهنگ، از خواب بیدار شده، به آشپزخانه می رود و در آنجا عکسهای خانوادگی سرهنگ را می بیند. دیدن عکسها و مخصوصا عکس عروسی دختر سرهنگ، کتی را منقلب می کند. تضاد میان آرامش و خوشبختی دختر سرهنگ و آشفتگی و بی پناهی کتی، او را به آخر خط میکشاند و تصمیم مجدد به خودکشی میگیرد. با حذف شدن این صحنه، دلیل خودکشی دوم کتی که منجر به انتقام خشم آلود لس و فاجعهی نهایی می شود، مشخص نمیگردد.
یکی دیگر از ضعفهای فیلم در مقایسه با کتاب، شخصیت لس است. در کتاب، لس مرد آرام و جا افتادهای است که زندگی خوبی دارد، اما از درون احساس خوشبختی نمیکند. آشنایی او با کتی مانند حادثهای پیشبینی نشده و عشق ناخواستهای است که بر سر او هوار میشود. او در تنگنای اخلاقی کمک به زن بی پناه و تحت تآثیر کشش غریبی که به این زن حس میکند، تصمیمهای سریع و جنون آسا میگیرد. در فیلم اما، لس مردی نامتعادل به نظر میرسد که بدون فکر و تحت تآثیر احساسات آنی عمل میکند.
با این حال فیلم از کتاب روانتر و جذابتر جلو میرود. کتاب با توصیف ذهنی سرهنگ شروع میشود در حالی که در گرمای چهل درجهی روزه است و همراه جمعی از کارگران مهاجر جادهسازی میکند. این فصل چند صفحهای کتاب، در یک فصل کوتاه بسیار تأثیرگذار فیلم خلاصه میشود. چهرهی مغرور، دانا و پیچیدهی بن کینگزلی در مقابل صورت خندان و بی معنی کارگران قرار میگیرد. او کوچکترین شباهتی به همکاران خود ندارد. کلنل به سراغ کارفرما میرود و به او میگوید که استعفا میدهد. کارفرما هم نمیفهمد که این استعفا برای او بیشتر یک اعادهی حیثیت و ترمیم عزت نفس آسیب دیده است.
صحنههای فیلم و حوادثی که یکی بعد از دیگری اتفاق میافتند و فاجعهی اصلی فیلم را در هم میتنند، خیلی خوب ساخته شدهاند. کارگردان اوکراینی الاصل فیلم (که خود را همدرد سرهنگ ایرانی میدیده است) به شکل نمادینی از نماهای زیبای طبیعت، درختان، تاریکی، مه و دریا استفاده میکند تا انقلابات درونی شخصیتها را نشان دهد.
قصه دربارهی آدمهایی است که در ته خط قرار دارند. کتی شوهرش را از دست داده و به جز خانهای که از پدرش به ارث رسیده، تقریبا هیچ تعلقی ندارد. کلنل اگر نتواند خانه را نگه دارد و از این طریق عزت نفس از دست رفتهی خود و خانواده اش را بازیابد، آخرین امید برای حفظ زندگیاش را از دست داده است. لس سالهاست با همسری که عاشقش نبوده زندگی کرده و با نزدیک شدن به کتی برای اولین بار عشق زندگیاش را یافته است. در عین حال عشق میان او و کتی، همسر و فرزندانش را از او گرفته است. بنابراین برای او از دست دادن کتی به معنی از دست رفتن همه چیز است.
در این نقطهی حساس این سه نفر با هم برخورد میکنند. جنگ برای هر سهی آنها نبرد مرگ و زندگی است. در نتیجه هیچ سازشی وجود ندارد. هر چه قصه جلوتر میرود، هر یک از آنها متوجه پایداری شدید دیگری در ادامهی نبرد میشود. همهی آنها در واقع دارند «برای زنده ماندن» میجنگند و در نتیجه هیچ مصالحهای در کار نیست. همچون تراژدیهای یونانی، سرنوشت این نبرد سهمگین را خدایان با قربانی کردن یک معصوم رقم زدهاند. پسر سرهنگ (که نام او اسماعیل است) به طور تصادفی کشته میشود و پدر را به نقطهی خودکشی خود و خانوادهاش میکشاند. کتی و لس هم برنده نیستند. کتی دیگر نمیتواند خانهای را که در آغوش آن خانوادهای به کام مرگ رفتهاند، به عنوان خانهی خود بپذیرد. لس کار خود را از دست داده و احتمالا به زندان رفته است.
بسیاری از تماشاگران، فیلم را به عنوان نقدی بر رویای آمریکایی دیدند. من خیلی با این خوانش موافق نیستم چون فکر نمیکنم که فیلم قصد تعمیم دادن زندگی کتی و لس و سرهنگ به همهی جامعهی آمریکا را داشته است. اما فکر میکنم خشونت و نامهربانی زندگی آمریکایی را به زیبایی تصویر کرده است. همچنین ناسازگاری این جامعه را با مردمی که از فرهنگی مهربانتر و آرامتر وارد آن میشوند و از قضا به شکل تناقضآمیزی کارشان به خشونت و ترور هم کشیده میشود.
یکی از جنبههای کتاب که در فیلم وجود ندارد، فحشهایی است که به زبان فارسی در کتاب داده میشود و فکر میکنم دلیل اصلی حذف آنها، ترس از غلط تعبیر شدن آنها بوده است. مخصوصا که حس نژادپرستی تماشاگران را نباید دست کم گرفت. (مرد مهاجر ایرانی، خانهی یک زن بی پناه آمریکایی را تصاحب کرده و تازه او را به انواع و اقسام حرفهای رکیک نیز مزین میکند!) حدف فحشها البته باعث شده که جنبههای مفرح و مزاح گونهی قصه (که تازه در کتاب هم تعداد آنها خیلی نیست) از فیلم حذف شوند و به فیلم حالتی غمانگیز و تکرنگ ببخشند.
این تکرنگی شاید مهمترین دلیلی است که فیلم را به جای تبدیل شدن به یک اثر ماندگار و هنری، به فیلمی معمولی و حادثهای تبدیل میکند. با این حال نکتهی قابل تقدیر فیلم، نغلطیدن آن به فیلمی افسرده کننده و نومیدانه و انتخاب قالب تراژدی برای به نمایش در آوردن اندوه و چاره ناپذیری انسانها است. پایان فیلم اگرچه غمانگیز، اما افسردهکننده نیست. زیرا که آدمها همگی قهرمانانه میجنگند و اگر میمیرند مانند قهرمان میمیرند.
وقتی فیلم تمام شد، فکر کردم که انتخاب خودکشی سرهنگ، در واقع همان انتخابی است که ایران (لااقل تا مدتی مدید) دربرابر آمریکا کرد. انتخابی که فیلم نشان میدهد چقدر چارهناپذیر بوده است.
ساخته شدن خانهی ماسه و مه و مطرح شدن آن در این سطح وسیع در آمریکا را باید به فال نیک بگیریم. بعد از تبلیغات وسیعی که دربارهی تروریسم و متهم کردن ایران به محور شیطانی در آمریکا شده است، حالا فیلمی ساخته شده که تصویری انسانی و همدردانه نسبت به ایران ارائه میدهد. فیلم یک قدم به سوی درک متقابل و نگاه انسانی به آدمهای دارای فرهنگ متفاوت است. بعد از آشفتگی غریبی که آمریکاییها در خاورمیانه ایجاده کردهاند، شاید کمکم به فکر افتادهاند که ببینند پشت قضیهی تروریسم و خشونت و «مرگ بر آمریکا» چیست. ما که آن طرف خط قرار داریم، قبلا به فکر افتاده و آمده و دیدهایم که پشت قضیهی «مک دونالد» و «دیزنیلند» و رویای آمریکایی چیست. حالا بد نیست که آنها هم به این فکر بیفتند. شاید در پشت این کنجکاوی نوعی غافلگیری نهفته باشد...
پیام ر. بابک ر. بهداد ا.
از انجمنها چه خبر:
کمیتهی کمکرسانی به زلزلهزدگان بم در روز پنجشنبه ۵ فوریه با برگزاری مراسمی در چهلمین روز درگذشت هموطنانمان در زلزلهی بم را گرامی داشتند. در این مراسم که شامل موسیقی، شعرخوانی و نمایش فیلم بود به یاد قربانیان زلزله شمع روشن شد.
سرو، که عنوان کمیتهی زبان، ادبیات و شعر فارسی کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو است، اولین مراسم شب شعر خود را در روز جمعه ۲۰ فوریه در اتاق موسیقی () ساختمان هارت هاس () برگزار کرد. در این برنامه چند تن از شرکتکنندگان نیز به اجرای موسیقی زندهی دف و تنبور پرداختند.
از سخنرانی چه خبر:
به همت کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو آقای ساسان قهرمان، رماننویس ایرانی مقیم کانادا در روز شنبه ۲۸ فوریه دربارهی «ادبیات مهاجرت» در جلسات آگورا برای دانشجویان دانشگاه تورنتو سخنرانی کرد. در روز ۲۱ فوریه نیز در جلسهی آگورا شرکتکنندگان به بحث آزاد پیرامون انتخابات مجلس هفتم در ایران پرداختند.
سلسله سخنرانیهای دانشکدهی خاورمیانهشناسی و دانشکدهی تاریخ دانشگاه تورنتو به مناسبت سالگرد انقلاب ایران در ماه فوریه نیز ادامه پیدا کرد. در روزهای ۴، ۱۱ و ۲۵ فوریه به ترتیب دکتر رضا براهنی استاد دانشکدهی ادبیات دربارهی «ادبیات و انقلاب»، دکتر شهرزاد مجاب، استاد دانشکدهی مطالعات زنان دربارهی «زن و انقلاب» و دکتر امیر حسنپور استاد دانشکدهی خاورمیانهشناسی دربارهی «قومیت، تنوع ملی و انقلاب» سخنرانی کردند.
در جلسات گروه نگاه، در روز ۶ فوریه آقای دکتر علیرضا حقیقی در مورد «بحران گروگانگیری و تاثیر آن بر روابط ایران و آمریکا» و در روز ۲۰ فوریه، خانم شادی مختاری پیرامون «تاثیر هنجارهای بینالمللی حقوق بشر در کشورهای مسلمان» صحبت کردند
به همت کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو، آقای فیلیپ مککونین، سفیر کانادا در ایران در روز جمعه ۱۳ فوریه در دانشگاه تورنتو دربارهی «تحولات در روابط ایران و کانادا» سخنرانی کرد. بعد از سخنرانی جلسه به صورت پرسش و پاسخ ادامه پیدا کرد.
کنفرانس «نگاهی به انقلاب ایران پس از یک ربع قرن» در روزهای ۱۳ و ۱۴ فوریه در دانشگاه تورنتو برگزار شد. برگزارکنندگان این برنامه دانشکدهی آتسینکتون دانشگاه یورک و مرکز مطالعات جنسیت و زنان دانشگاه تورنتو بودند. این کنفرانس در روز اول به زبان انگلیسی و در روز دوم به زبان فارسی بود.
دکتر محمد توکلی، استاد دانشکدهی خاورمیانهشناسی دانشگاه تورنتو در روز ۲۰ فوریه در موسسهی مطالعات آموزشی () دانشگاه تورنتو دربارهی «مدرنیته، رفتارشناسی و بازاندیشی تاریخ ایران» سخنرانی کرد.
از سیاست چه خبر:
در روز ۱۱ فوریه مقالهای از دکتر سعید رهنما، استاد دانشکدهی علوم سیاسی دانشگاه یورک با عنوان در روزنامهی گلوباندمیل () کانادا منتشر شد. این مقاله به بررسی انتخابات ایران در بیست و پنجمین سالگرد انقلاب میپردازد.
شیرین عبادی، برندهی جایزهی صلح نوبل از سوی دانشگاه تورنتو بهعنوان یکی از کسانی تعیین شد که امسال از دانشگاه مدرک دکترای افتخاری میگیرد. (منبع خبر)
گروهی از دانشجویان ایرانی دانشگاههای تورنتو با ارسال نامهای به بیل گراهام، وزیر امور خارجهی کانادا، خواستار یاری رساندن کشورهای دموکراتیکی چون کانادا به روند اصلاحات در ایران شدند.
یک خانوادهی ایرانی مهاجر کانادا با شکایت از ادارهی مهاجرت کانادا تقاضای ۴. ۴ میلیون دلار غرامت کرد. سه خواهر این خانواده ادعا میکنند که بررسی پروندهی مهاجرت آنها بیش از اندازه طولانی شده است و در این مدت آنها مدتی که در ایران بودهاند به دلیل داشتن دوستپسر بازداشت شدهاند. (منبع خبر)
از فیلم و تلویزیون چه خبر:
کانال تلویزیونی در برنامهی در روز ۲۳ فوریه مستند «ایران، راز یک قتل» را پخش کرد. این مستند که به کشتهشدن زهرا کاظمی، خبرنگار ایرانی-کانادایی میپردازد به سفارش بیبیسی ساخته شده است.
از آینده چه خبر:
نمایشگاه کاریکاتوری با عنوان «سه مداد ایرانی» از روز ۱ تا ۱۴ مارس در کتابخانهی روبارتس () دانشگاه تورنتو برپا خواهد بود. در این نمایشگاه آثار نیکآهنگ کوثر، علی جهانشاهی و آلن سخاورز به نمایش در میآید.
در سلسله سخنرانیهای دانشکدهی خاورمیانهشناسی و دانشکدهی تاریخ دانشگاه تورنتو به مناسبت سالگرد انقلاب ایران در روز چهارشنبه ۳ ماه مارس، نادر هاشمی از دانشکدهی علوم سیاسی دانشگاه تورنتو دربارهی «راه دشوار ایران به لیبرال دموکراسی» صحیت خواهد کرد. این سخنرانی از ساعت ۱۲ تا ۱: ۳۰ بعدازظهر در اتاق ۲۰۰ واقع در ۴ برگزار خواهد شد.
امسال نیز مانند سال گذشته کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو و انجمن دانشجویان ایرانی دانشگاه تورنتو با قرار دادن دو میز در و همراه با دیگر دانشجویان دانشگاه نوروز را جشن میگیرند. همچنین در روز ۱۲ ماه مارس نیز جشن آغاز سال نو در یکی از تالارهای تورنتو برگزار میشود.
بخش اول گفتوگو با مسعود بهنود در شمارهی گذشته منتشر شد. در این شماره بخش دوم این مصاحبه را میخوانید. در ابتدا فرصت ویرایش و بازبینی متن توسط آقای بهنود فراهم نشد. اکنون این متن توسط ایشان بازبینی و ویرایش شده است.
کارگزاران و همکاری با روزنامهی بهمن
ماجرای پاسخ مرتضی آوینی به بهنود در مجلهی سوره
ماجرای دعوت به همکاری با رورنامهی رسالت
سانسور در زمان شاه و پس از انقلاب
پیروزی محافظهکاران و آیندهی مملکت
همکاری با روزنامهی جامعه
سخنرانی در دانشگاههای ایران و کلاسهای روزنامهنگاری
اوضاع خارج از ایران
بیبیسی و ایدهی الجزیرهی فارسی
زندان آخر
کارگزاران و همکاری با روزنامهی بهمن
- شما بعد با هفته نامه بهمن همکاری داشتید. چه شد که حاضر شدید با تیپ مهاجرانی و کرباسچی کار کنید؟
از سالها پیش معتقد بودم و در سخنرانیهای خارج از کشور هم میگفتم که در نظام آدمهای معقولی هم وجود دارند. بسیاری از بچهها اعتراض میکردند و میگفتند اینها پتانسیل این حرفها را ندارند. وقتی از من میپرسیدند اینها که می گوئی کی هستند، من دو تا نمونه بیشتر نداشتم، میگفتم کرباسچی و مهاجرانی. دو تا نمونهی فعال. اگر میخواستم عقبتر بروم خاتمی را هم میگفتم. حتی عادت شده بود که وقتی برای بچههای نویسنده مشکلی پیش میآمد، تلفن میکردند به سیمین خانم دانشور. سیمین خانم هم تلفن میکرد به مهاجرانی و میگفت: «کاکو، چرا با این بچهها این کارها را میکنند؟» و مساله حل میشد. مهاجرانی به خانم دانشور احترام می گذاشت نه فقط به خاطر زن آلاحمد بودن. ما به خانم دانشور میگفتیم او هم به مهاجرانی میگفت و جواب میگرفت و ما میفهمیدیم که به هر حال مهاجرانی یک آدم دیگری است تا این که نوشتههایش را هم خواندیم. کرباسچی هم عملکردش را میدیدیم. من یک پیشبینی [به قول صدا و سیما] پیامبرگونه کردم در اسفند ۵۷. قضیه این بود که اینها شروع کردند به ما سختگیری کردن. پیغام میدادند. روی در و دیوار شعار مینوشتند «اعدام باید گردد» و از این جور چیزها. من در یک مقالهای نوشتم عیبی ندارد، این نسل امروز به ما خشم و کینه بورزد و ما را به خاطر کراواتمان طرد کند و فحش بدهد. من یکی منتظر میمانم تا اینها آگاهی پیدا کنند. اینها حداکثر زمانی که ببرند تا به آگاهی برسند ۲۰سال است و من نمیدانم آن موقع زنده خواهیم بود یا نه. این مقاله در تهران مصور شمارهی ۵ یا ۶ هست. من مطمئن بودم حداکثر ۲۰ سال میخواهد تا اینها برسند به امروز ما و وقتی رسیدند چارهای ندارند جز این که صدای ما را بشنوند. چارهای ندارند جز این که پشت ماها پنهان شوند. چون ما در آن زمان صاحب تجربهای خواهیم بود که هیچکس ندارد. آنجا نوشتم من به این امید در ایران میمانم و یادتان باشد که سال ۷۶، ۱۹ سال از انقلاب میگذشت که اینها رسیدند به این مساله و دستهای ما را هم گرفتند. البته نه همهشان. موقعی که شمس از من دعوت کرد و من رفتم روزنامه جامعه، خیلیها مثل بهزاد نبوی و اینها به شمس گفته بودند احتیاط کن از این لیبرالها و همچنان در سرشان بود که ما وابسته به فلان و بهمانی و همان فرهنگ دوران انقلاب. عدهای هم مصلحت میجستند و میگفتند آقای خامنهای با اینها بد است.
ماجرای پاسخ مرتضی آوینی به بهنود در مجلهی سوره
- چرا آقای خامنهای با شما بد است؟
نمیدانم. اگر باشد هم به من نگفته چرا. آقای خامنهای تنها آخوندی است در جمع حکومتیها که من از قبل از انقلاب او را میشناسم. از سال ۴۳-۴۲ ایشان را میشناسم. ولی مثلا آقای هاشمی را دفعهی اول در سال ۵۷ در مدرسهی علوی دیدم و تا به امروز هم ایشان را از نزدیک ندیده ام. روزگاری که در آدینه بودیم، مقالهای نوشته بودم با عنوان «دیکتاتوری: حکومت آسان و بی آینده». آقای خامنهای در یک نطقی گفته بود که «میشناسمشون، خوب میشناسمشون.» من در آن مقالهی آدینه نوشته بودم که ملت ایران سفتهای از دورهی انقلاب دارد به نام استقلال و آزادی. بخشی از آن سفته وصول شده که استقلال باشد ولی حالا که رهبر کاریزمایی نیست و جنگ هم نیست آمده برای وصول قسمت دیگر که آزادی باشد. ایشان یک نطقی کرد برای ناشرین و گفت: «بعضیها که تا به حال دنبال سوراخ موش میگشتند حالا برای ما سفته آوردهاند.» که البته راست هم گفتند تا همان چندی قبل ما دنبال سوراخ موش میگشتیم برای پنهان شدن ولی میدانستیم که کار بدون ماها هم نمیگردد و روزی از سوراخ به در می آییم. ایشان بعد گفت: «حال با این حرفی که من میزنم، نریزید اینها را بگیرید. کاری به آنها نداشته باشید. هر وقت لازم شد خودم میگویم. الان این کار را نکنید.» من فردای آن روز تلفن کردم به دفتر ایشان و گفتم: «من میخواستم از ایشان تشکر کنم» رییس دفتر نفهمید. گفت: «قضیه چیست؟» من گفتم: «نطقی که ایشان دیشب کردند ظاهرا اشاره بود به مقالهی من». بعد فهمید و گفت: «مزاح میفرمایید». فکر کرد من دارم مسخره میکنم. گفتم: «نه من جدی میگویم. من پیام قسمت آخر صحبتهای ایشان را میفهمم که گفتند فعلا با ما کاری نداشته باشند و بنابراین بابت این موضوع از ایشان متشکرم». بعد مرتضی آوینی در مجلهی سوره سیزده چهارده صفحه نوشت که ما میگوییم نظام ولایی، اینها میگویند دموکراسی. ما زبان همدیگر را نمیفهمیم و از این جور حرفها و شعارهای الکی و آبکی.
- مرتضی آوینی را چطور میشناسید؟
مرتضی آوینی را من از زمانی که دانشکده بود میشناسم. از زمانی که او دانشکده میرفت، نه من. مرتضی بچهی تندرویی بود که در هر دوره یک حالی داشت. یک دوره زده بود به مواد مخدر و این جور چیزها. تمام بازوهایش جای سوزن بود. شب در دانشکده خوابش میبرد، فردا صبح جسدش را از دانشکده بیرون میآوردند. اصولا بچهی تندرویی بود. هرکار میکرد تا تهاش میرفت. بعد یک دوره هیپی شد. موهایش را گذاشته بود بلند شود. مدرن شده بود. قرتی مآب شده بود. جین میپوشید. دستبند میبست و از این جور کارها. اما شانس یا بدشانسی که آورد این بود که سال ۵۶ زد به عرفان و ادبیات عرفانی. بقیه کارها را کنار گذاشت.
- واقعا معتاد بود؟
این آخر نه ولی یک موقعی صبح بچهها همدیگر را خبر کرده بودند که مرتضی مرد. این پرویز مشکاتیان و محمدرضا لطفی آن موقعها توی دانشکده هنرهای زیبا بودند. بچهها جیغ میزدند میگفتند جسد مرتضی توی دانشکده افتاده. معلوم شد شب توی دانشکده مواد مصرف کرده و رفته تو حال و تا صبح همانجا مانده. یعنی میزد و از حد میگذشت و میرفت تا تهاش. نزدیکهای سال ۵۶ رسید به «یاعلی» و ریش گذاشت. مولانا و امامحسین و تسبیح و از این چیزها. البته مرتضی هیچوقت خیلی جلف نبود. خلاصه برگردیم به بحث اصلی. مرتضی برداشت ۱۳-۱۴ صفحه مقاله نوشت که «ما میگوییم ولایی، اینها میگویند دموکراسی. ما چطور به اینها بفهمانیم که ما ولایی هستیم؟» بعد گفتهی آقای خامنهای را آورد که اینها حالا سفته آوردند و آن موقع دنبال سوراخ موش میگشتند و بعد هم ستاره زد بالای این جمله و بعد در پانوشت صفحه آدرس داد که مقاله مسعود بهنود در شمارهی فلان مجلهی آدینه. خیلی هم قضیه را تند کرده بود. من فکر کردم ممکن است یک عده هم احیانا احساس تکلیف کنند و بلایی سر من بیاورند. خیلی عصبانی شدم. با خودم گفتم من یک خدمتی از او میرسم. مرتضی خیلی پررو شده بود. چون او هم مرا میشناخت. گفته بود «با این جماعت روزنامهنگار نمیشود درافتاد. قطبزادهی بدبخت فکر کرد اینها نیرو ندارند با اینها در افتاد تا دم اعدام بردندش.» ولی به هر حال یادش رفته بود این موقع. ممکن است توی سر ما بزنند، ولی به هر حال مدیا قدرت دارد. من یک نامه نوشتم به وزارت ارشاد میرسلیم. نوشتم که من از حق خودم گذشتم، ولی شما از حق بیت رهبری نگذرید. بهخاطر اینکه اگر قرار باشد هرکس از ملاقات با ایشان بیرون میآید، حرفهای ایشان را نقل کند یا حرفهای ایشان را واضح کند، بهخصوص که در مجله بالای جمله ستاره زدن و واضح کردن حرفی که ایشان دانسته واضح نگفتهاند، نشان میدهد که آوینی همین ولایتی را که دم از اطاعت آن میزند به عاقل بودن قبول ندارد. فکر میکند که ایشان عقل ندارد که واضح نگفته است. در حالی که ایشان با عقل و درایت این را واضح نگفتهاند. برای چه ایشان هی ولایت ولایت میکند. قبول ندارد آقا را به عقل. بعد میرسلیم که اصلا ترسید و دستور داد سوره را جمع کردند تا از دفتر آقای خامنهای بپرسد. سوره هم روی جلدش عکس چهار رنگ آقای خامنهای بود. بعد از دفتر پرسیدند و دفتر گفته بود که طبق قانون کسی حق ندارد از این کارها بکند و خلاصه سوره را خمیر کردند. در آن زمان مرتضی راه افتاده بود این ور و آن ور میگفت «آن کسی که پشتش گرم است بهنود است. ماها حرف مفتیم. باید ببینیم کی پشتیبان اوست. ۶ یا.»
- این اواخر که حتی کیهان هم به مرتضی گیر میداد؟
اصولا آوینی را هیچوقت تیپ کیهانیها قبول نکردند. علی لاریجانی هم او را قبول نکرد. علی لاریجانی یکبار در حضور بچههای مجله فیلم به آوینی گفته بود «اگر تو فکر میکنی تو داخل آدم هستی و ما تو را رییس فارابیات میکنیم، اشتباه میکنی. تو همهی این کارها را میکنی که رییس فارابی بشوی، اما من تو را رییس فارابی نمیکنم.» زمان وزارت ارشاد لاریجانی بود. سه چهار ماه قبل از مرگ مرتضی، کیهان هم سر ماجرای فیلم شقایق رسما میگفت که اینها دکان باز کردهاند و میخواهند پول بدزدند از شهدا. مرتضی طفلک همهی آنچه را که میخواست به آن برسد با مرگ به آن رسید. تا زنده بود نرسید. وقتی مرد، کیهان در صفحهی حوادث نوشت «گروه فیلمبرداری که مرتضی آوینی هم جزوشان بوده میگویند در اثر برخورد با مین کشته شدهاند.» روزنامهی جمهوری اسلامی هم نوشت «بر اثر حادثهای در جنوب کشته شدهاند» کلمهی شهید را به کار نبرد. بعد آقا اطلاعیه داد که در حقیقت پیغامی بود برای رفقا که یاالله جنازه را بلند کنید.
ماجرای دعوت به همکاری با رورنامهی رسالت
- یک صحبتهایی میشود در مورد تقاضا از شما برای همکاری با رسالت. ماجرای آن را تعریف کنید.
روزنامهی رسالت ماجرایی دارد که هیچوقت آقای مرتضی نبوی قبول نکرد. دلیلی که این ماجرا را من فاش کردم، بلایی بود که این محافظهکارها آن موقع داشتند در استیضاح سر مهاجرانی میآوردند. آقای زوارهای که من هیچوقت در عمرم او را ندیدهام و او هم راست گفته که هیچوقت من را ندیده، با یکی از دوستان من همسایه بود. به او گفته بود میخواهیم یک روزنامهای درست کنیم و دنبال آدمهای وارد میگردیم و این دوست ما هم گفته بود فلانی هست. زوارهای هم که من را نمیشناخت پرسیده بود «روزنامهنگار خوبی است؟» دوست من هم گفته بود «بله». همان دورهای بود که ما نیمهمخفی بودیم. این دوست ما هم به من گفت که زوارهای گفته که فلان روز برو آنجا. من نمیدانستم که او میخواهد چه روزنامهای درست کند. آن موقع حتی نمیدانستم زوارهای عضو هیات موتلفه اسلامی است. من هم رفتم آنجا و دیدم که آیتالله آذری قمی آنجاست. اصولا از خامنهای و اینها بگذریم آخوندها با من بد نیستند. آخوندهای حکومتی را نمیگویم، غیر حکومتیها را میگویم، چون یک خرده زبان حوزه را بلدم. آقای آذری قمی هم که خیلی از ما خوشش آمد همینطور میگفت پسر عزیزم و پسر عزیزم. خلاصه اصلا موضوع فراموش شده بود انگار. ما هم برایش کلی قصه و نقل گفتیم. خلاصه آخرش گفت که ما میخواهیم روزنامه دربیاوریم و شما باید حتما باشید و گفت که شما اصلا بیا سردبیر بشو. این موقع دیگر فهمیده بودم که موضوع چیست و بازاریها میخواهند یک روزنامه دربیاورند. به آقای آذری گفتم که «تندروها نمیگذارند.» گفتند «نه تو مطمئن باش. تا من هستم کسی نمیتواند کاری کند.» گفتم «آقای آذری، چطور نمیتوانند؟» خلاصه با هم وارد بحث شدیم. گفتم «آقای آذری، من الان پیر شدهام، ولی آن موقعها که جوان بودم و در آیندگان بودم دیدم که وقتی آن روزنامه تیراژ آورد چه شد. من تصور میکنم در شرایطی که ما الان هستیم اگر روزنامهای را شروع کنیم به فاصلهی کوتاهی روزنامهی جمهوری اسلامی و صبح آزادگان که آن موقع نشریهی خیلی تندرویی بود لوله میشوند و خوب اینها که ساکت نمیمانند که دکانشان تعطیل بشود و بنابراین شروع میکنند یک کارهایی کردن و شروع میکنند ببینند اینجا چه خبر است. بعد با شما که کاری نمیتوانند بکنند، من را گیر میآورند. میگویند سابقهی خانمبازی داشته، معشوقهی فرانسوی داشته، با هویدا محشور بوده، معشوق والاحضرت اشرف بوده، با سادات و با اسراییل و خلاصه این حرفها را برای من درمیآورند. به خیال خودشان رختچرکهای ما را می ریزند روی بند و خلاصه راحت که از میدان بیرون نمیروند.» آقای آذری گفت که «من فکر کردم که شما برای شمارهی اول این روزنامه بروید با امام مصاحبه بکنید. تا حالا که با امام مصاحبه نکردید؟» گفتم که «نه، من خیلی دلم میخواهد که با ایشان مصاحبه کنم، چون من با بعضی از رهبرهای بزرگ دنیا مصاحبه کردم ولی تا حالا با ایشان که رهبر ایران هستند نتوانستم مصاحبه کنم.» گفتش که «من فکر کردم که شما را ببرم با ایشان مصاحبه کنید و اولین شماره با مصاحبهی شما با ایشان بیرون بیاید. دیگران وقتی این مصاحبه را ببینند، غلط میکنند که به شما چیزی بگویند و من هم به ایشان یک طوری میگویم که یک حرفی بزنند و شما را تایید کنند و همین کافی است.» من بهش گفتم «آقای آذری، روزنامهی جمهوری اسلامی ناندانی ۲۰۰ نفر آدم است. این ۲۰۰ نفر راحت بیرون نمیروند. این مدت به زحمت خودمان را سالم نگاه داشتهایم و این سوابق به نظر آقایان ننگینمان فراموش شده. سوابق با هویدا و فرح و اسراییل و اینها دوباره میآید رو. در آن زمان اگر شما با خود من هم مشورت کنید من به شما میگویم تا روزنامه پا گرفت و فرماش مشخص شد و تیترها مشخص و ستونها مشخص شد و سه ماهی گذشت و صد شمارهای بیرون آمد، فلانی را بگذارید کنار تا روزنامه ادامه پیدا کند. طبیعی این است که شما این کار را بکنید. بنابراین من تا اینجای سناریو را میتوانم برای شما بگویم. حالا شما به من بگویید من به چه دلیل این کار را باید بکنم؟ این کار برای من چه فایدهای دارد؟ من یک دو ماهی یک کاری بکنم، یک روزنامهای دربیاورم و بعد هرچه که این ۵-۶ سال فراموش شده بریزند سر روی بنده، دوباره این داستان بگیر و ببند شروع بشود.» بعد او گفت که «شما یک چیزی گفتید که معلوم شد مصاحبه با امام هم کار را درست نمیکند.» خلاصه تو این فاصله گفت با این آقای مهندس ما هم یک ملاقاتی بکن که همین مرتضی نبوی باشد. من هم یک روز رفتم با نبوی صحبت کردم. او هم اولین حرفی که زد این بود که «ما وارد حرفهی شما شدیم. ما که بلد نیستیم. من مهندسام و کارهای فنی را بلدم و این حرفه، حرفهی شماست.» و گذشت و من هم هرگز به آن روزنامه نرفتم و هیچوقت به این موضوع به عنوان یک خاطرهی مهم فکر نکرده بودم. تا این که این قضیهی استیضاح مهاجرانی پیش آمد. روز اولی که علی دهباشی آمد به من گفت که مهاجرانی میخواهد یک روزنامه دربیاورد و مرا دعوت کرد و درباره بهمن گفتگو کردیم من این قضیهی آذری قمی را برای مهاجرانی گفتم که «۱۰ سال پیش آقای آذری قمی چنین پیشنهادی به من کرد و من هم چنین استدلالی کردم. شما هم حالا میخواهید یک روزنامه درست کنید و بروید وزیر بشوید و کابینه درست کنید و خلاصه دوباره همین قضیه است و من هم دوباره همین استدلال را دارم و آخرش دوباره بعد شما تبری میجویید و میروید و من میافتم وسط. چرا باید این کار را بکنم؟» مهاجرانی هم گفت که «آن موقع شرایط سال ۶۳-۶۴ بوده الان سال ۷۴ است و ۱۷ سال از انقلاب گذشته» و از این حرفها. من هم گفتم «باشد هر کاری شما بگویید میکنم.» او هم گفت «تفسیر سیاسی خارجی بنویس.» چند سال بعد وقتی موقع استیضاح او رسید و راستیها به مهاجرانی گیر دادند که چرا بهنود را به بهمن برده بودی و در آنجا مینوشت و مرتضی نبوی و مردک بی شعوری بود که از شیراز با دکتر مهاجرانی مشکل داشت به اسم دکتر نجابت شروع کردند سوابق ننگین برای من درست کردن، مهاجرانی شیطنت کرد و نوشت که چطور شد که وقتی شما میخواستید بهنود را سردبیر روزنامهیتان بکنید عیبی نداشت. مرتضی نبوی تکذیب کرد، باز من هیچ نگفتم. مهاجرانی جواب داد و دوباره او تکذیب کرد. دیدم نمی شود من هم به توضیح افتادم و ماجرا را گفتم وگرنه چیز مهمی نبود. دیدم این پرتوپلاها توی مجلس مطرح میشود و توی صورت جلسات قانونگذاری مملکت نوشته میشود. من برداشتم یک مقاله نوشتم توی روزنامهی عصر آزادگان که قضیه این است و من تعجب میکنم چرا آقای مهاجرانی چیزی را که به او گفتهام فاش کرده ولی این موضوع صحت دارد. بار اول که مهاجرانی در جواب بادامچیان نوشت و من نوشتم آقای آذری زنده بود و شده بود مخالف ولایت آقای خامنهای. یک روز پسرش تلفن کرد گفت که حاجآقا میخواهد با تو صحبت کند. آذری قمی هم این اواخر داغ کرده بود و تخته گاز میرفت و از آدمی که یک موقع نوشته بود ولی فقیه میتواند توحید را هم تعطیل کند رسیده بود به اینجا که آقای خامنهای نه دین دارد، نه عدالت دارد و از این حرفها. تو این شرایط به من تلفن کرد و گفت «آقا این قضیه خیلی غلیظتر از این حرفهاست که شما میگویید. دو سه بار این پسرک آمد دربارهی شما با من حرف زد و عجب وقاحتی دارد که الان تکذیب میکند و من اگر شما لازم میدانید یک اطلاعیه بدهم.» من دیدم توی این شرایط فقط کم داریم که آذری قمی بیاید وسط ماجرا. من هم اصولا آقای خامنهای را به آقای آذری قمی ترجیح میدهم. آقای خامنهای آدم پاک و پاکیزهای است. شعر میداند. آدم یک ذره مدرنی است. اصلا ربطی به آذری قمی ندارد. خلاصه گفتم «خیلی متشکر و من خودم حریف هستم ولی اگر لازم بود، عرض میکنم.» گذشت تا دفعهی دوم که سر استعفای مهاجرانی پیش آمد. من نوشتم و نبوی نوشت و دوباره من نوشتم. مرتضی نبوی با کمال وقاحت نوشت «چرا موقعی که آقای آذری قمی زنده بود این حرفها را نزدید.» من نوشتم «چقدر شماها رو دارید. دفعه اول آقای آذری زنده بود. من هم تا الان فاش نکردم که ایشان با من تماس گرفت و حاضر بود بیاید و دروغ تو را ثابت کند. پسرش هم زنده است، میتوانید از او بپرسید. ولی تو در زمانی که آقای آذری قمی زنده بود چرا نگفتی که شهادت آقای آذری را میخواهیم.» این ها بعضی وقاحت عجیبی دارند. نمونه اش هم این اواخر که نبوی در رسالت نوشته بود «این اصلاحطلبان نمیخواهند با آمریکا روابط برقرار کنند، اگر میخواستند میکردند. خودشان این جهانگردان آمریکایی را آوردند و خودشان شلوغ کردند. چرا موقعی که خاتمی رفته بود سازمان ملل و کلینتون هم آنجا بود شما هیچکاری نکردید.» در صورتیکه آن زمان آقای خامنهای خودش گفته بود که خاتمی حتی با کلینتون عکس هم نگیرد.
سانسور در زمان شاه و پس از انقلاب
- میخواهم از تفاوت فضای روزنامهنگاری الان با زمان شاه از شما سوال کنم: گفتید که آیندگان جنجالی بود. ولی آیا میتوانستید مثلا از وزرا یا معاونانشان انتقاد کنید؟
اصلا نوع گفتمان در زمان شاه جور دیگری بود. یعنی در زمان شاه طوری بود که حتی در جمع چند نفره هم کسی کمتر از اعلیحضرت نمیگفت. نوشتن که هیچ. از نخستوزیر هم حتی نمیشد انتقاد کرد. از وزرا هم نمیشد. آقای هویدا هر سال که شاه به سنموریس برای اسکی میرفت، سردبیرها را میخواست و میگفت: «شاه مملکت دو ماهی میخواهند استراحت کنند. خسته شدهاند و اگر جوادیه آب ندارد یا بم نان ندارد، همیشه نداشتهاند. توی این دو ماه هم هیچچیز عوض نمیشود و بنابراین نوشتن شما تنها اثری که دارد این است که این روزنامهها را میبرند آنجا و ایشان میخوانند و ناراحت میشوند. بنابراین در این دو ماه هیچ خبر منفیای ننویسید. گاهی اوقات هم از پیشرفت مملکت بنویسید.» یکبار علی باستانی که دبیر روزنامهی اطلاعات بود و رویش باز بود گفت: «آقا، روزنامههای بدون انتقاد را نمیخرند مردم. آخر این چه روزنامهای است که ما اگر شیر آب فشاری جوادیه بسته شود، نمیتوانیم بنویسیم. نمیخرند این روزنامه را.» هویدا هم اصلا متخصص این نوع برخورد بود. گفت: «نمیخرند که حرف علمی نیست. یعنی چند تایش از بین میرود؟» علی گفت: «۴۰ هزار مثلا یا چند هزار...» هویدا گفت: «خیلی خوب. اشکالی ندارد. پولش را میدهم.» بنابراین فضا اینطوری بود. بعد از انقلاب حتی در بدترین دوران مطبوعات، موقعی که ماها مخفی شده بودیم و بعد با آن وضعیت توانستیم آدینه را درآوردیم، سانسور این طوری نشد. یعنی سانسور سیستماتیک به این ترتیب که نمایندهی ساواک بیاید بغل دست من تیتر بخواند وجود نداشت. این ماجرا در آیندگان دو سال هر شب اتفاق میافتاد. این محرمعلیخان که مطبوعات را سانسور میکرد به اوایل دوران ما هم رسید. حدود سالهای ۴۰-۴۱.
- اسم و فامیل کامل این محرمعلیخان چه بود؟
اسمش محرمعلیخان و فامیلش هم مطبوعات بود. موقعی که رفته بود شناسنامه بگیرد، چون سالها توی شهربانی کارش این بود، ازش پرسیده بودند که کجا کار میکنی؟ او هم گفته بود ادارهی مطبوعات. آنها هم فامیلاش را گذاشته بودند مطبوعات. محرمعلیخان از زمان قاجار بود و مطبوعات را سانسور کرده بود تا زمان ما. بنابراین به ما میگفت [معذرت میخواهم]: «چسونه، من محمد مسعود و فرخی یزدی را بدبخت کردم، تو کی هستی؟» محرمعلیخان مشروب زیاد میخورد و دایم مست بود. به همین جهت هم ۱۰ دقیقه به ۱۰ دقیقه میرفت دستشویی. هر شب جمعه این اتفاق میافتاد. محرمعلیخان میرفت دستشویی، بچهها هم میرفتند یک چوب میگذاشتند پشت در دستشویی و محرمعلیخان آنجا زندانی میشد. بچهها هم روزنامه را چاپ میکردند، رد میکردند، میرفت توزیع میشد، بعد درش میآوردند. یعنی در تمام چاپخانههای تهران یکبار این اتفاق افتاده بود که محرمعلی خان را بکنند توی دستشویی و در را ببندند. بچهها هم این ساواکیها را به این سادگی ول نمیکردند، ولی خوب ترس و وحشت بود. بچهها درآورده بودند که یک آقایی وجود دارد که تیمسار هم هست و اسمش تیمسار «امر فرمودند» است و این را تند میگفتند و میشد «تیمسار امفمودن». این ماموری هم که میآمد کلاسهی تیترها را بخواند سواد چندانی نداشت. بعد میگفت: ببخشید این صفحه چند لحظه دست من باشد و بعد میرفت توی اتاق بغلی و تلفن میکرد برای کسانی آنور خط میخواند. خیلی هم ظاهرا با ادب بود. و بعد میآمد میگفت: امر فرمودند این طوری. بچهها به شوخی میگفتند که «تیمسار امفمودن آن پشت است.» یک زمانی بود که حتی میآمد ستونها را هم تعیین میکرد. یعنی میگفت این صفحهی اول باشد یا آن. صفحهی اول یک ستونی باشد. ما رفتیم پیش هویدا و به او گفتیم «ما که سردبیر نیستیم. سردبیر این آقایی است که شبها میآید. این به ما میگوید که صفحه اول چه باشد. عکس چه باشد، عکس نباشد، همه را این میگوید دیگر.»
- خب سال ۷۵ هم تقریبا همه روزنامههای کشور حتی همشهری سردبیرها یا مدیرمسوولها تایید شده بودند از طرف نظام و بعضی حتی سابقه اطلاعاتی داشتند.
در زمان پیش از انقلاب هم کسی صاحب امتیاز نمیشد مگر آن که سیستم اعتماد پیدا میکرد به او. چنانکه علی اصغر حاج سید جوادی در سردبیری کیهان ممنوع القلم شد. در آن زمان هم علیالقاعده فرض بر این بود که تو تایید سیستم را داری، یعنی وفاداریات ثابت شده است. ولی همان آدمهای مثلا وفادار سانسور میشدند. اما بعد از انقلاب اینها آدمهای وفاداری ثابت خودشان را سانسور نکردند، ولی البته گاهی کنار گذاشتند. مثلا همین محمود شمس (ماشاالله شمس الواعظین) و اینها را که بچههای مذهبی بودند کنار گذاشتند. یعنی یک زمانی تندروها آمدند و بچه مذهبیها را تحمل نکردند. اما در همان سالهای دههی شصت از شمس مقالهای با امضا در کیهان هست که با اعدامها و تندرویها مخالفت کرده. اما تا آخر دههی شصت با بچههای معتقد انقلابی کاری نداشتند. به هر حال در فضای اطلاعرسانی ایران الان نمیشود با سانسور آن طوری عمل کرد. گرچه ماها در فضای اطلاعرسانی ایران شرکت نداریم، چون خودی نیستیم. مثل قضیهی رای گرفتن است. از بعد از انقلاب تا الان رای قلابی توی صندوق انتخابات نرفته است. صندوقسازی نشده. دو سه موردی هم که شده معلوم است. مثلا کردستان در انتخابات دوم خرداد آماری که داشته میآمده تهران یک مرتبه در یکی از رفتوآمدها ضرب در سه شده، آن هم در این فاصله هزار بار تا حالا ما رو کردیم. مثلا تعداد آرا از تعداد جمعیت پاوه بیشتر بود و از این حرفها. ولی جنس سیستم طوری است که اگر بخواهی تقلب کنی در انتخابات، باید مثلا سیهزار نفر را در جریان قرار بدهی و بعد هم تقلب با باورهای دینی این سیهزار نفر مغایر است، تا ببینیم در انتخابات مجلس هفتم چه می کنند. در زمان شاه این جوری نبود. در زمان شاه همه احساسشان این بود که باید با ترس نتیجه بگیرند. الان نمیشود این کارها را کرد. اصلا عملی نیست.
پیروزی محافظهکاران و آیندهی مملکت
- ولی قبلا شما در جواب سوالی گفته بودید که اگر حکومت یکدست بشود ممکن است در جاهایی یک آزادی عمل بدهند ولی اطلاعرسانی جمع میشود.
ببینید محافظهکارها تجربهی مهمی در این سالها به دست آوردند و آن هم خطری است که روشنگری برای آنها دارد. این تجربه برای خود ما هم مهم بود. اصلاحطلبان هم اهمیت این را نمیدانستند و حتی آقای حجاریان که نظریهپرداز معتبر این جریان است خودش هم یک جاهایی میگوید ما اهمیت این روشنگری را در این حد پیشبینی نمیکردیم. تجربهای که بعد از دوم خرداد به دست آمد و اینها به قیمت بستن ۸۰ روزنامه جلوی آن را گرفتند ولی هنوز جلوی آن گرفته نشده. دیگر هم نمیشود جلویش را گرفت. به محض این که مردم گوششان با این قضیه آشنا شد حالا دیگر میروند دنبال آن. ۱۸۰ روزنامه را هم ببندند دیگر درست نمیشود. یعنی این میل میجوشد. همین اینترنت را ببینید. محافظهکارها به نظر من ممکن است در بعضی زمینههای اجتماعی آزادی بدهند، مثلا روابط دختر و پسر را نادیده بگیرند، مثلا ماهواره را هم نادیده بگیرند. شما دقت کنید این چیزها همخون است با محافظهکارها. پایهاش یکی است. فیلمهای آبگوشتی بعضی شبکههای ماهوارهای لوسآنجلسی را ببینید. یک فاحشه هست که آب توبه سرش میریزند و میرود امام رضا و خلاصه پایهاش و خاستگاهاش همان فرهنگ ته شهری است. این است که اینجاها مشکلی ندارند. ولی به نظر من در مورد آزادی بیان کوتاه نمیآیند و جلویش را میگیرند. چون با اطلاعرسانی نمیشود شوخی کرد. یا باید بدهی، یا نباید بدهی. اگر دادی کسانی مثل گنجی سر بر میآورند. خود آقای خمینی هم یکبار گفته بود در را که باز کنی پشه و سوسک هم وارد میشوند. نمیشود خلاصه، باید در را بست. در را باز کنی بالاخره یکی پیدا میشود و پیهاش را هم به تنش میمالد و به قول اینها قهرمان است یا عشق قهرمانی دارد یا به قول ماها شجاعت دارد. بالاخره میآید و میزند و در و دیوار را داغان میکند. من فکر میکنم محافظهکارها که بیایند، ایران را طالبانی نمیکنند، ولی فضای سیاسی را هم باز نمیکنند. برای مردم ایران هم بد نیست. بالاخره مردم چارهای ندارند برای این که شناخت خودشان را عمیق کنند. چارهای ندارند جز این که از این اشتباهها بکنند که متوجه بشوند که دفعهی بعد دوباره یککم وضع خودشان را درستتر بکنند و پایداری نشان دهند.
من نمیدانم که چرا الان اکبر گنجی مانده زندان. من واقعا نمیدانم. اگر الان امکان داشتم که با اکبر صحبت کنم بهش میگفتم ماندن یا نماندن تو در زندان برای کسی مهم نیست. این دفعه که از زندان مرخصی گرفته بود من بهش تلفن کردم. قبلا یک مقاله نوشتهبودم که اکبر، حرفی نزن بیا بیرون از این زندان. این بار که تلفنی با او حرف زدم یک خرده رعایت کردم که با هم حرفی نزنیم که برایش دردسر بشود. گفتم: «دیشب بهت زنگ نزدم چون فکر میکردم سرت شلوغ است و مزاحمت نشوم.» گفت: «دفعه پیش اینجوری بود. دو سال پیش بود. شما بودید و آمدید. دو سال پیش همه میآمدند دیدن. الان کسی نیست اینجا.» دو سال پیش سیاسی ها و روزنامه نگاران که از زندان میآمدند بیرون، همه بچههای دانشجو توی کوچه ایستاده بودند. الان بچهها غیرسیاسی شدهاند. برای جامعه الان بودن یا نبودن اکبر توی زندان فایدهای ندارد. این دفعه اصلا پیدا کردن آدمی که شهامت داشته باشد و بپرد وسط میدان برای شماها مشکل میشود. بسیار مشکل خواهد بود چون این درد هنوز یاد این گروه هست. یاد این گروه هست که جامعه با بیصبری خودش با خاتمی و با آدمهای دیگر چهکار کرد. یعنی اینبار فیدبکهای بدی میگیرد جامعه. ولی عیبی هم ندارد. جامعه باید همین کارها را بکند تا راه خودش را پیدا کند.
- در واقع شما تجربه این ۵-۶ سال مطبوعات را نابالغ میدانید؟
بلی، ولی حادثهی مهمی اتفاق افتاده است. حالا یک نسلی آمده بیرون که گرچه سیاسی نمینویسد ولی تاثیرگذار است. الان سه تا از دخترهای روزنامهنگار که دوتایشان هم شاگرد من بودند تا حالا سه دختر را از مرگ نجات دادهاند. بچهها مینویسند، عفو بینالملل بیانیه میدهد، سر و صدا بلند میشود، شلوغ میکنیم، من عاطفی مینویسم، دیگری جور دیگری مینویسد، فشار بینالمللی زیاد میشود، آقای شاهرودی هم میگوید فعلا اجرای حکم را متوقف کنید. اینها فکر میکنند که زندانی سیاسی که نبودهاند که متوقف کردن اجرای حکمشان مهم باشد. پیش خود فکر میکنند آن دختر قاتل است، متوقف کردن حکمش مهم نیست. ولی نمیدانند که دارند به جامعه راهی را برای موثر بودن نشان میدهند. عقلشان به این چیزها نمیرسد. ولی به هر حال روزنامهنگارها به هر ترتیب دارند کار میکنند. در زمینههای سیاسی نمیتوانند ولی در زمینههای اجتماعی گزارشهای خوبی مینویسند.
همکاری با روزنامهی جامعه
- خوب برگردیم به کارهای خود شما. چی شد وارد جامعه شدید؟
من خیلی تصادفی وارد روزنامهی جامعه شدم. من معمولا برای روزنامهها یا مجلههای جدیدی که در میآید یه عنوان یک آدم قدیمی که قبولم دارند یک تلگرافی میزنم. میگویم مثلا این جایش خوب بود. این مقاله آنطور بود. گرافیکش آنطوری بود و کجایش کج بود. بهعنوان تبریک این چیزها را میگویم. در مورد جامعه هم یک تلگراف زده بودم به شمسالواعظین که روزنامه خوبی است و از این حرفها.
- میشناختید شمسالواعظین را آن موقع؟
شمس را آن موقع فقط به اسم میشناختم. نه بیشتر. فردا صبح یک نامه برای من فرستاده بود و خیلی هم به من استاد استاد بسته بود و بعد هم گفته بود ما خیلی خوشحال میشویم که شما یک چیزی بنویسید. من هم فکر کردم چیزی بنویسم. به خودم گفتم این دوم خرداد باید یک اثری در حرفهی ما هم بگذارد. اینها هم میگویند ما اولین روزنامهی جامعه مدنی هستیم. شاید بتوانیم کمک جدیتری به اینها بکنیم. من یک یادداشت فرستادم. بعد از آن دیگر به عهدهی شمس بود که ابراز احساسات میکرد و تلفن میکرد و خلاصه رفتیم آنجا.
- به تحریریه هم میرفتید یا این که فقط یادداشت میفرستادید؟
به تحریریه نمیرفتم. یادداشت میفرستادم. البته بعد از اینکه رفتیم زندان قضیه فرق میکرد. حالا دیگر انگار ما هم باید در جلسات اصلاحطلبها شرکت میکردیم. فلان روزنامه چطور دربیاید بهتر است. این اواخر دیگر کار مثل حرکات چریکی شده بود. منظورم روزنامه درآوردن است. بنیان، بهار و اینها. میرفتیم توی جلسات شرکت میکردیم، برنامهریزی میکردیم، میدانستیم که مثلا تاکتیک بعدی چه باشد.
- گویا یکبار آقای جلایریپور یک جا گفته بود که یکی از اختلافات ما با آقای شمس این بود که آقای بهنود مثلا باید روزنامه خودش را داشته باشد و نباید بیاد تو جامعه.
نه این طوری نبود قضیه. توی کنفرانس برلین در حواشی که بچهها صحبت میکردهاند، آقای چنگیز پهلوان گفته بود که ماها لاییک هستیم و شما که اصلاحطلبید به روشنفکری لاییک اجازهی روزنامه داشتن نمیدهید. جلایریپور گفته بود من چه کارهام که بخواهم اجازه بدهم یا ندهم. من کاری که توانستم بکنم این بود که به بهنود بگویم بیاید در روزنامهای که دارم بنویسد. بیشتر از این کاری از دستم برنمیآید. من از خدا میخواهم که شماها هم یک روزنامه داشته باشید.
من خودم موقعی که توی جامعه مینوشتم رفتم پیش شاملو. او گفت: «چی شد تو رفتی قاطی اینها؟ تو اگر میتوانی کار بکنی چرا روزنامه خودت را در نمیآوری تا ما هم تکلیف خودمان را بدانیم؟ رفتهای توی روزنامهی بچهمسلمانها چه کار؟» گفتم: «آقا، نمیدهند اجازه که. من ۱۶-۱۷ سال صبر کردم. مگر چقدر میتوانم صبر کنم. عمرم دارد تمام میشود. بالاخره ما هم باید حرفمان را بزنیم. حالا به اینها اجازه دادهاند، اینها هم از ما دعوت کردهاند، حرفمان را میزنیم. هر موقع هم به خودمان دادند خوب چاپ میکنیم.» ولی اجازه نمیدادند که.
- هیچوقت تقاضا کردید؟
نه، حتی امتیاز آدینه را به ذاکری هم خیلی تصادفی دادند. حواسشان پرت شد. واقعا هم نمیدانستند که ذاکری با ما رابطه دارد و آدینه سرانجام چه میشود وگرنه نمیدادند. البته ذاکری هم یک نمونهی خیلی منحصر به فردی است. البته این اواخر به آقای محمد قائد هم امتیاز دادند که موضوع مهمی است. برای انتشار مجلهی لوح. نشریهی خوبی هم هست. البته غیر سیاسی است. آموزشی است. همین را هم به سختی دادند.
سخنرانی در دانشگاههای ایران و کلاسهای روزنامهنگاری
- از چه سالی به بعد میتوانستید که در دانشگاه سخنرانی کنید؟ قبل از آن هیچوقت توی دانشگاه سخنرانی نداشتید؟
اولین بار علی افشاری این داستان را راه انداخت. موقعی که شد دبیر تحکیموحدت. من هم خیلی ریپ میزدم اوایل. چون من این کارها را عمل سیاسی میدانم. من گفتم من چهکارهام که بیایم نطق کنم. نطق مال آدم سیاسی است. حتی در حادثهی کوی دانشگاه هم ابراهیم نبوی از آنجا تلفن میکرد که بچهها میخواهند که تو بیایی ولی من نرفتم. تلفن را گرفت به سمت جمعیت که بچهها میگفتند فلانی باید بیاید. یکی از طرف تاجزاده تلفن زد گفت باید بروی با بچهها صحبت کنی. گفتم آقا من اهل سخنرانی و این جور چیزها نیستم. حتی در کنگرهی دفتر تحکیم وحدت در منظریه. علی افشاری تلفن کرد. بعد هم کسی از طرف آقای دکتر سروش تلفن کرد و گفت: «امروز عصر من و شما با هم برویم آنجا.» خلاصه من رفتم. پنج شش هزار نفری بودند آنجا. آن واسطه هم گفت «که این ها برای شما آمده اند اینجا چون پریشب که سخنرانی بود ۱۵۰۰-۱۶۰۰ نفری بیشتر نبودند.» و یک خرده هندوانه هم زیر بغل ما گذاشت، اما من سخنرانی نمیکردم. این بعد از بستن روزنامه ها بود که شروع شد به سخنرانی توی جاهای مختلف. گاهی توی شهرستانها.
- کلاس های روزنامه زن چی بود؟
آنجا کلاس روزنامهنگاری گذاشتیم برای این که نیرو تربیت کنیم برای روزنامهی زن. از آن بچهها الان خیلیها روزنامهنگارند. خوب یادم نمانده شاید آن دوره یا بعد فرشته قاضی، شیرین شادیفر، فرناز قاضیزاده بودند. اما از بچههای کلاسهای امیرکبیر امید معماریان، فرشاد محمودی، بنفشه سام گیس و علی صیرفی و اینها بودند.
اوضاع خارج از ایران
- از زندگیتان در لندن بگویید. چه شد که از ایران رفتید؟
همیشه احساس میکنم بیشتر سیاستهایی که اینها روی من پیاده کردند را من با میانهروی خنثی کردم، ولی این آخری را نتوانستم.
- خودتان هم یکبار گفته بودید که من توی افق کارم زندان نمیدیدم.
این آخری مقصودم زندان نیست. زندان هم بالاخره بخشی از زندگی است. در کشورهای جهان سومی همچنان که سیاستمداری سخت است. دستور آدمکشی دادن و ترور و این جور چیزها، روزنامهنگارهای هم سخت است. منظورم از این آخری این برنامهای بود که اینها پیاده کردند که ما را خارج از کشور گذاشتند. یعنی کمهزینه از شر ما خلاص شدند. مدتها بود که این نقشه را داشتند.
- وقتی هم که آمدید بیرون حکم قطعی زندان را صادر کردند.
پنج روز قبلش ایران بودم، خبری نبود. من را هم دو بار احضار کرده بودند. گذاشتند تا آمدیم بیرون بعد هم حکم دادند. من هم شب اول مصاحبه کردم گفتم که برمیگردم. بعد اعلام کردند که به فرودگاه حکم اعلام شده است. بعد هم همسرم تلفن کرد یعنی چه و بیایی فرودگاه بگیرندت. شروع کرد گریه و زاری. پسرم تلفن زد که کجا میخواهی برگردی و مگر دیوانهای و از این حرفها. بعد دیگر ماندم. البته باید بگویم که از یک نظر هم موفق نشدند. به دلیل این که آنها میخواهند که تو بیایی بیرون و تمام بشوی. چون میآیی بیرون صددرصدی میشوی و دیگر میگویی نه انتخابات، نه شرکت در انتخابات، بلکه تحریم و براندازی مطلق. در واقع مجبوری به ساز دیگری برقصی. به ساز ایرانیهای خارج از کشور. در این زمان هم از نظر بچه ها و مردم داخل کشور تمام می شوی. این که میگویم در مورد من موفق نبودند برای این است که من یک سال و نیم است که بیرون هستم ولی هنوز به ساز تهران میرقصم. هنوز هم اینوریها فحش میدهند. هنوز میگویند تو عامل جمهوری اسلامی هستی. من هنوز نبضم آنجا میزند و این هم آنها و هم این رفقا را ناراحت میکند.
- دو طرف را ناراحت میکند.
این طرف که خب ناراحت بشود، چه کارشان کنم. مهم نیست.
- الان یک سال و نیم بیرون هستید، کسانی که بیرون هستند نسبت به قبل چه فرقی کردهاند؟
خیلی فرق کردهاند. من همیشه با کسانی که بیرون بودهاند برخورد داشتهام. بعد از انقلاب تا هفت هشت سال جو بیرون کاملا در اختیار سلطنتطلبها بود. یعنی بیرون از ایران غیر از هایده و مهستی، من و تیمسار دایی جونم و خانهمان را مصادره کردند و این جور چیزها چیز دیگری نبود. بعد از مدتی که اعدامها شروع شد بچههای سیاسی از کشور بیرون آمدند و به صورت پناهنده بیرون ماندند. در این زمان هر جا که میرفتی موضوع خشن اعدام ها بود و مساله قومیتها به شدت بزرگ شده. شاید هنوز هم همین باشد به هرجا می روی مساله کرد و بلوچ مطرح است و یکی می پرسد «جریان ستمهای قومی چه میشود؟» و از این جور بحثها. من هر چه می گویم بابا اصلا توی ایران جریان قومی به این معنایی که در اینجا مطرح میشود وجود ندارد. آخر کی وقتی یک دختر و پسر میخواهند با هم ازدواج کنند مادر دختر میپرسد که داماد اهل کجاست؟ میگویند پول دارد، پول ندارد، کارش چیست؟ دکتر هست، دکتر نیست؟ بنده یک دوستی دارم خودش اهوازی است، خانمش اهل سرخس. من میگویم شما آخر دورتر از این نمیتوانستید انتخاب کنید. اما از نظر طبقاتی چرا، خیلی مسایل اتفاق میافتد. این هم که حکومتها با اقوام چه می کنند به هر حال موضوعی است که من دربارهی آن اطلاع و هم علاقه ندارم. هفتهی پیش در جریان سخنرانی آقای دکتر سروش در لندن بود، یک آقایی هست که خیلی تنومند هستند و هیچوقت هم اسمشان را یاد نگرفتم. خیلی آدم باسواد، پزشک میکروبشناس و مطلعی است. از این آدمهایی که وقتی وارد اتاق میشوند میخورند به در و دیوار و میز و صندلی. یادش به خیر صمد بهرنگی هم همینطور بود. خودش دیگر این موضوع را جوک کرده بود. حالا بگذریم. این آقایی که گفتم مال خلق بلوچستان است. در پرسش و پاسخ سخنرانی دکتر سروش بلند شد گفت که مسایل قومی ما چه میشود. دکتر سروش هم یک نگاهی کرد گفت که «خوب، البته چون من خیلی آدم نمکینی نیستم، خیلی خوب است که جلسه مفرح بشود.» ولی ول نمیکرد این آقا. بنده خدا به من هم خیلی محبت دارد. در سال ۷۶ و بعد از انتخابات دوم خرداد، ما بچههایی که از ایران بیرون میآمدیم شده بودیم مثل مایکل جکسون. یعنی یک مرتبه چند جا خارج از کشور دعوت میکردند و توی فرودگاه با دسته گل میآمدند و خلاصه کار رسید به اینجاها. همه تو فکر جنبش مخملین بودند. دوست داشتند که کسی از ایران بیاید و بگوید چه خبر شده. ضربهی دوم خرداد به طور عجیبی عدهای را ایزوله کرد و به حرکات وحشیانه دچار کرده بود، مثل کمونیستهای کارگری و مجاهدین. جلسهی من در کلن آلمان اینها سیصد چهارصد نفر را بسیج کرده بودند و زد و خورد شد و شیشه شکست. وحشیانه بود. پلیس آلمان هم خشن است. موقعی که آمدند من ترسیده بودم، آنها که جای خود دارد. میزدند و اصلا یک بساط عجیب و غریبی بود. اصلا مرا از سخنرانی پشیمان کرد. حالا یواشیواش آنهایی که هیجانزده شده بودند و خیلی دوم خردادی شده بودند دچار غبن و پشیمانی شدهاند و ملت ایران هم وقتی دچار غبن و پشیمانی میشود از دیگران میخواهد که آنها بگویند چرا دچار غبن و پشیمانی شدهاند. نمیگوید که خب من هم بودم انقلاب کردم. اشتباه کردم. میگوید شماها اشتباه کردید، من اصلا نبودم. راستش این است که من غیر از خودم و چند نفر دیگر که گزارش هایمان هست ندیدم کسی بگوید من در راهپیماییهای دوران انقلاب بودم. بابا بالاخره سه میلیونی که رفت استقبال آقای خمینی پس بالاخره کیها بودند؟ همه که میگویند ما نبودیم. پس بالاخره کی بود؟ من فقط یک نفر را میدانم که نبود، یکی از بستگان مادرم. او سلطنتطلب جدی است و الان هم هنوز جدیاند. توی جلسات خانوادگی نسل دوم خانواده - دخترعمو، پسرعمو، و نوه عموی- که من را گیر میآورند و به حرف میآورند. ایشان بدش نمیآید که من بالاخره مورد توجهام، اما معترضاست و گاهی اوقات هم یک جملاتی در وسط حرفهای من میگویند. مثلا میگوید خب چرا ایشان عمامه نمیگذارد برود تلویزیون و بعد مثلا میگوید حالا چرا اینقدر با تو بدند. شبیه اعتراضهای همین کمونیستهاست ولی خب بیشتر از این جلو نمی آید. اما می دانم ایشان در راهپیماییها نبود.
- خب حالا که آمدهاید بیرون دیدتان نسبت به غرب چه فرقی کرده؟
خب مثلا من در حدود بیست و چند سال است که با آژانسهای خبری بیرون کار کردهام، زندگی کردهام بیرون.
- خب بالاخره فرق میکند یک سال، یک سال و نیم میان این مردم زندگی کنید.
یک جزییات وجود دارد که مثلا حساب بانکی باز کنید، کارت اعتباری چطوری است، مثلا قبضاش میآید در خانه و از این حرفها. این چیزها برای من جدید نبوده چون قبلا هم داشتهام. با چند موسسه خبری خارجی کار میکردم، از این بابت چیز جدیدی نیست برای من. اما خودم را هیچوقت در فضای یک آدم آواره، یک مهاجر قرار نداده بودم. هیچوقت پیشبینی نکرده بودم که اینها موفق شوند ما را از کشور بیرون کنند و در را ببندند. الان اگر بگویم که واقعا دلم برای ایران تنگ شده، دروغ گفتهام. تنگ نشده. دیشب به بچهها میگفتم واقعا شاید برای بچهها، برای شاگردهایم و برای کلاسهایم گاهی اوقات به شدت دلتنگ میشوم. گاهی کم میآورم در این بازی، وگرنه هیچ بخش دیگری برایم نوستالژیک نیست. پسرم میگوید که جزو آن طایفهی هایدهگوشکن و قورمهسبزیخور نیستی. آری مدتهاست قرمهسبزی نمیخورم.
بیبیسی و ایدهی الجزیرهی فارسی
- الان شما با بیبیسی همکاری میکنید. با توجه به این موضوع خواستم ببینم شما آیا پیشبینی میکنید یک اتفاق مثل الجزیره بیفتد؟ یعنی مثل الجزیره که کسانی که توی بخش عربی بیبیسی کار میکردند، الجزیره را پیریزی کردند. یک همچون چیزی هم برای فارسیزبانها اتفاق بیفتد؟ یک الجزیرهی فارسی؟ یک کسانی مثل باقر معین.
فکر یک شبکه تلویزیونی فارسی مدتهاست در سر همه هست. اصولا به طور کلی یک همچون فکری به طور مجرد وجود دارد. اما هنوز عملی نیست. هنوز راه حل اقتصادی ندارد اگر قرار باشد کاری درست و حسابی بشود برای آن باید راهحلهایی پیدا کرد.
- حالا فرض کنید چنین اتفاقی قرار است بیفتد و میخواهید یک تیم ۱۰ نفره انتخاب کنید. ۵ نفر اول را چه کسانی انتخاب میکنید؟
میگویم عمید نایینی، باقر معین، کسری ناجی که برای سیانان کار میکند، علیرضا میبدی، ابراهیم نبوی.
- نوریزاده را دعوت نمیکنید؟
ببینید اگر به من بگویند که بهترین روزنامهنویس خارج از کشور کیست، میگویم نوریزاده بدون شک. ولی این چیزی که شماها میگویید در زمانهی الان اگر قرار باشد که درست بشود، اولویت اول ایجاد اطمینانی است در خواننده یا شنونده که برای آن طوری باید سختگیری کنیم که از سوراخش من و علیرضا رد نمیشویم. یعنی اینقدر باید سختگیری کنند که مثلا جایی مثل بیبیسی میکند. برای این که شما باید این اعتماد را بدهید به آدمها که اگر صدایی از خارج کشور بیان دیگری دارد و طعم دیگری دارد، چرا این طعم و بیان فرق میکند؟ چون میخواهید صدایی از خارج از کشور برسانید به ایران و این صدا قرار نیست هی به دورغ بگوید انقلاب شده کمک برسانید. آهای مردم من الان دارم انقلاب میبینم و از این حرفهایی که سعید قایممقامی میزند. یا یک تلویزیون جدی حتی اگر جنس اپوزیسیون داشته باشد که نمیتواند بیانش شبیه بهروز صوراسرافیل نباشد. بنابراین باید یک توجیهی برای مردم ایران داشته باشد. چنین دستگاهی که وظیفهی اصلیاش براندازی حکومت نیست. هیچ توجیهای قطعیتر و منطقیتر از این نیست که بگوید من بدهکار حقیقیام. نمونهاش بیبیسی. بیبیسی جهانی را میگویم در حالی که اینکار (براندازی) را نمیکند هنوز پرشنوندهترین است ممکن است جواب رویاهای بخشی از مردم را ندهد اما به حقیقت وفادار میماند و شنونده و بیننده خود را میگیرد. چنین دستگاهی نه تنها به بهروز صوراسرافیل راه نمیدهد، بلکه علیرضا نوریزاده را هم راه نمیدهد. به هر حال چنان دستگاهی باید به حقیقت وفادار بماند و بیننده و شنوندهاش را به آن عادت بدهد. همان کاری که الان رادیو و تلویزیونهای ایرانیان لوس آنجلس کمتر میکنند و رادیو اسرائیل هم. به هر حال من نام علیرضا نوریزاده را نگفتم وگرنه علیرضا بهترین روزنامهنگار خارج از کشور است.
زندان آخر
- من یادم میآید موقعی که از زندان در آمدید برای آخرین بار یک مقاله از شما در روزنامه خواندم که شما گفتید من روزنامهنگاری را کنار گذاشتم؟
من توی دادگاه و در آخرین دفاع گفتم که روزنامهنگاری را کنار میگذارم. توی دادگاه ما هرکدام ناچار بودیم یک تکنیکی بهکار ببریم. نبوی نه این که فقط توی دادگاهش بگوید، از همان روز اولی که آمد زندان همینطور عمل کرد. نبوی دو روز بعد از من دستگیر شد، زیدآبادی سه روز. همهی ما را تقریبا با هم گرفتند. نبوی از اولین جلسهی بازجویی به این طالبزاده بازجو میگفت که «ببینید آقا شما بیتالمال را دارید هدر میدهید. شما من را گرفتهاید که آخر سر بگویم غلط کردم. خب باشد، این که چیزی نیست اصلا گه خوردم که نوشتم. حالا چرا این قدر بیتالمال حرام میکنید و به ما غذا میدهید که بخوریم. کو، ضبط کجاست؟ بیاورید تا من بگویم شما ضبط کنید و برویم. امضا کنیم و برویم.» از اول بنای قضیه را بر این گذاشته بود. و دیدید که دادگاهش را هم جوک کرده بود جوکی بزرگ که همه در آن شرکت جدی داشتند. هر کس راهی را برای خلاص شدن انتخاب میکند و تاکتیکی دارد. احمد زیدآبادی واقعا آدم بسیار شریفی است. حاضر نبود که در سرسوزنی خلاف بگوید حتی به بازجو. با لهجهی غلیظ کرمانی میگفت که ما مخالفیم و قانون گفته است که ما میتوانیم انتقاد کنیم و شاید ما حاضر باشیم به رهبری توهین بکنیم و مجازاتش را بکشیم. من تقریبا وسط نبوی و زید آبادی بودم. شب آخر که زندان بودیم، معمول است که وقتی دوره تمام میشود یا میخواهند از زندان بیرونت کنند سعی میکنند با خاطرهی خوشی از زندان بیرون بروی. به همین دلیل معمولا آدم بدها میروند و آدم خوبها میآیند برای بازجویی مثلا. و ما را سه نفری می بردند بازجویی. دایما این اتفاق میافتاد که نبوی از این طرف میرفت و احمد سفت می گرفت و من هم افتاده بودم وسط این دو. به عنوان مثال یک بار این بازجو - که البته اسم این جلسات هم بازجویی نبود، میگفتند گفت و گو میکنیم - به من گفت که «آقای بهنود شما آدم باتجربهای هستید، ما نمیخواهیم آزادی نباشد ولی طوری که ما میخواهیم این است که امنیت در خطر نیفتد.» من گفتم که «خب، بله من به این موضوع فکر نکردهام، باید یک راهحلهایی پیدا کرد.» نبوی گفت «آقا من بگویم. کسی دعوا ندارد با رژیم که. شماها دارید این کارها را میکنید، یک گروه درست کنید هر روز صبح بیاید توی روزنامه بنشیند و بگوید این باشد، این نباشد. زمان شاه هم همچو چیزی بوده است. بعد نه دیگر کسی را بگیرید، نه ما را بدبخت کنید». این بازجو هم میگفت «البته آقای نبوی میفرمایند، ولی این کار خیلی اجراپذیر نیست.» بعد بازجو به من گفت «نظر شما چیست؟» من هم گفتم: «به نظر میآید شما دولت را خیلی قبول ندارید. به همین جهت یک شورایی درست بکنید که خط قرمزها را تعیین بکند و این شورا را هم ببرید بالاتر از دولت. چون اگر قرار باشد توی وزارت ارشاد باشد، شما آن را قبول ندارید. بنابراین مثلا زیر نظر رهبری باشد و این شورا با مدیرهای مطبوعات تماس بگیرد و بگوید خط قرمزها اینهاست. به نوعی در همهی دنیا هم معمول است. یک هم در آمریکا هست که مواظب است کسی از خط قرمزها رد نشود. توی داستانهایی مثل واترگیت این جلو میآید. شما هم یک شورای عالی تشکیل بدهید و برای این که خیلی جنجالی نشود، برود بالاتر از جناح ها قرار بگیرد. بالاتر از رهبر هم که ندارید. برود آنجا قرار بگیرد و به روزنامهها هم توصیههایی بکند و بیشتر روزنامهها هم تا آنجایی که من میدانم، دعوایی ندارند.» نبوی هم نگاه میکرد ببیند نظر این بازجو چیست تا اگر مثلا ناراحت است، او بیاید و یک خرده فتیله را بکشد پایین. این آقای بازجو هم گفت: «بله، پیشنهاد عاقلانهای است و امیدوارم به گوش مسوولان برسد.» و از زیدآبادی پرسید که «خوب نظر شما چیست؟» زیدآبادی هم گفت که «البته فلانی استاد هستند ولی من خیلی موافق نیستم. چون اگر این دستگاه برود زیر نظر رهبر، ما شاید بخواهیم از رهبر انتقاد کنیم، حتی شاید کسی بخواهد به ایشان توهین کند و هزینهاش را هم بپردازد آن وقت نمی شود که.» ناگهان نبوی گفت: «الهی خدا تو را بکشد، ما را گرفتند، آخر لامصب، تو زندان هستیم الان این چیزا چی است که کی می گویی.»
زیدآبادی واقعا خیلی اذیت شد. برای من غمانگیزترین صحنههای عالم که حتی بیشتر از دادگاه خودم مرا اذیت کرد، دادگاه زیدآبادی بود. خیلی زجر کشید. زمانی که ما در بند عمومی بودیم، او را انداخته بودند در قرنطینه. من و نبوی را اینقدر اذیت نکردند. بعدش هم ما آزاد شده بودیم و او هنوز مانده بود در زندان. و بعد هم فرستادنش زندان ۵۹ سپاه. خیلی سخت اذیت میشد. وقتی دادگاهش برگزار میشد من به دلیل علاقهی شخصی به احمد رفتم به دادگاه. وقتی آمد توی دادگاه من بغلش کردم. گفت که «مسعود جان کاری بکن که من برنگردم ۵۹.» احمد اذیت شده بود. من خیلی برایم غمانگیز بود. در نتیجه دادگاهی را که همه فکر میکردند مثل دادگاه گنجی خیلی جنجالی بشود مثل بقیه دادگاهها شد. دادستان آمد و یک مشت حرفها زد و احمد نتوانست آن چه را میخواست بگوید. مرتضوی به وکیل ما قول داده بودند که او را به ۵۹ برنگردانند. خیلی برایم غمانگیز بود. وقتی میدیدم که احمد دارد سکوت میکند. بدتر بود برایم از موقعی که خودم سکوت کردم. خب، آدمها از من انتظاری نداشتند، ولی احمد همهی این درد را کشیده بود. بله، هرکسی بالاخره روشی دارد. من روشی که انتخاب کردم این بود بالاخره که یک جوری نارضایی خودم را از این وضع اعلام کنم. بنابراین توی دادگاه در آخرین دفاع گفتم من بعد از ۳۵ سال روزنامهنگاری اگر در ممالک راقیه بودم لابد که باید مراسم خداحافظی برایم میگرفتند، ولی خب من در جهان سوم به دنیا آمدم و مقدر این بوده که مراسم من اینجا باشد. ولی به هر حال من تصمیم گرفتهام که دیگر روزنامهنویسی نکنم. توی زندان که بودیم، وقتی این موضوع به فکرم رسید، آن را روی کاغذ آوردم و از طریق مهران عبدالباقی و بچهها فرستادم برای اکبر گنجی و احمد زید. اکبر هم شروع کرده بود به جیغ و داد و فریاد که الگو دست ماها نده، بچههای جوان چه میشوند و از این حرفها. زیدآبادی یک نامهای برای من نوشت که الان هم با خودم آوردهام خارج و پیش خودم دارم، چون خیلی برای من دلچسب است. زیدآبادی نوشته بود که «فارغ از این که اقتدارگراها چه استفادهای از این کار تو میکند، من دارم به تراژدی زندگی یک آدم میانهرو فکر میکنم. کشور ما یک آدمی حتی به اعتدال تو را هم رساند به اینجا.» منظور این که واکنش طبیعی من به این قضیه این بود و کسی هم فشار نیاورده بود. خیلی ناراحت بودم. میدانید میگویند که آدمی دو چیز دارد که قدرش را نمیداند، یکی فراموشی و یک هم مرگ. اگر مرگ نبود و الان قرار بود هیتلر و جد هفتم ما بودند و مجبور بودیم به اینها سر بزنیم، خیلی بدبختی بود و مثلا رضاشاه و مظفرالدینشاه هم بودند، مثلا توی خیابان بغلی، واقعا که خیلی گرفتاری بود. فراموشی هم چیز خوبی است. اگر فاجعههایی که برای آدمی پیش میآید را فراموش نکند، لابد باعث میشود که آدم زندگی سالم نکند. آره، من هم بعد از یکی دو ماه به کل فراموش کردم، مثل همهی دردهای دیگر. البته من خیلی هم به در و دیوار نمیزدم. سید نبوی شروع کرده بود گاهی وقتها شیطانی کردن. من گاهی وقتها به او تلفن میکردم، میگفتم: «بند پنج داریم ها. باز دوباره یک چیزی میگویی میاندازندت زندان و این دفعه بگویی غلط کردم، کسی باور نمیکند ها.» میگفت: «مگر چهام شده؟ مگر چهکار کردم؟» میگفتم «آخر این که نوشتهای تند است. این چه است که نوشتی؟» پرهیز من را برای نوشتن احمد ستاری و عیسی سحرخیز شکستند. وقتی روزنامهی بنیان درست شد، من توی پیام امروز یک چیزهای مختصری مینوشتم. ولی در بنیان بیشتر در مورد سیاست خارجی مینوشتم، در دو سه شماره. سر و صدا کرد. مثل قضیهی سفر دیکچنی به ایران. بعد هم مرتضوی آقای اشرفی را خواست و به او گفت که «هم بنیان را میبندیم و هم بهنود را میگیریم.» اشرفی هم گفته بود که «راجع به سیاست خارجی مینویسد، چیزی نیست که.» مرتضوی هم گفته بود: «او خودش میداند، و به همین دلیل هم با گفتن آن حرف از زندان آمد بیرون.» آقای اشرفی هم آمد به من ماجرا را گفت، من هم گفتم تصمیم را شماها میگیرید. بعد هم بالاخره اتفاق افتاد و بنیان را بستند و این آخرین نشریهای بود که در آن نوشتم. البته یاسنو موقعی که من بیرون بودم، پیغام دادند که هفتگی یک مقاله بفرست. فکر کنم سومی یا دومی بود که مرتضوی نعیمیپور را خواسته بود که مثل بنیان تعطیل میشوید. بعد هم با من تماس گرفتند و قضیه را گفتند تعارف کردند. گفتم که مثل این که باید از خیرش بگذرید. بچههای شرق هم تا حالا یکی دو تا مطلب از نوشتههای من از سایت بیبیسی برداشتهاند چاپ کردهاند، نه این که مستقلا من چیزی برایشان بفرستم. ولی تا الان جلوی کتابهایم را نگرفتهاند. البته برای چاپ کتاب آخری من را یک کمی اذیت کردند. هفت هشت دفعه هی بردند و آوردند برای تقطیع و اصلاح. من اینها را میشناسم، احتمالا داشتند چک میکردند، ولی خوب بالاخره اجازهی چاپ دادند. احتمالا تا دو سه هفته دیگر چاپ میشود. مجموعه مقالاتی است با عنوان پس از ۱۱ سپتامبر.
تا آن موقع گاهی شب بود، گاهی روز بود. اما کمکم شب بیشتر میماند. یادم نیست چرا، اما هربار شب بزرگتر میشد و هربار تاریکتر.
تا این که یک روز، روز مجبور شد جلوی شب بایستد. شب خیلی زود آمده بود. روز عجیبی بود. شب قوی بود و روز لاغر و خسته. روز تنها بود. هیچکس نمانده بود. حتی گلهای آفتابگردان هم دیگر شبها باز میشدند. شب روز را خفه کرد.
و از آن روز دیگر هیچوقت روز نیامد. از آن روز هر ماه سی شب است و هر سال سیصد و شصت و پنج شب.
زبان فارسی که به جرات میتوان گفت تمام ایرانیان به داشتن آن افتخار میکنند، امروزه در همسو شدن با پیشرفت سریع تکنولوژی دچار مشکلاتی است که به خصوص بر روی شبکه جهانی وب، نگارش آن را تهدید میکند.
ریشهی اصلی، مشکلات عقب ماندن ایران از چرخهی تولید تکنولوژی است که باعث شد تا مدتها زبان فارسی در نرمافزارها پشتیبانی نشود. تا حدود سال ۱۹۹۸ میلادی تنها راه حل برای ایجاد متون الکترونیکی فارسی، استفاده از معدود نرمافزارهایی بود که در ایران تولید شده بود. ولی به دلیل عدم رعایت استانداردها و مطابقت با نرمافزارهای بینالمللی (مشکلاتی مانند جابجایی متون بین نرمافزارهای متفاوت)، اغلب آنها نتوانستند در حیطه کاربری اینترنت رقابت موثری داشته باشند.
مهمترین گام، ایجاد استاندارد بینالمللیای به نام بود که تمام حروف فارسی را نیز دربر میگرفت. ولی باید در نظر داشت که یک استاندارد تا زمانی که پیادهسازی نشده باشد، فایدهی عملی نخواهد داشت. یکی از تاثیر گذارترین گامها، پشتیبانی زبان عربی توسط شرکت میکروسافت بود که باعث شد در سیستم عامل ویندوز علاوه بر امکان مشاهدهی متون عربی و فارسی، امکان تایپ با رسم خط عربی نیز فراهم شود. چهار حرف «پ، ژ، چ، گ» هم که در عربی وجود ندارند به صورت وصله پینهای به صفحهی کلید اضافه شدند. ولی در ویندوزهای قدیمی فراهم ساختن این تنظیمات آسان نبود.
مشکل اصلی که از آن زمان تاکنون باقی مانده است، استفاده از حروف عربی به جای معادل فارسی آنها است. بارزترین آنها «ی» عربی است که در استاندارد مذکور، کد آن با «ی» فارسی متفاوت است و اگر در انتهای کلمه باشد، دو نقطهی اضافی که در فارسی وجود ندارند زیر آن نمایش داده میشوند. نمونهی دیگر حرف «ک» عربی است که در فارسی «ک» به جای همزه، دارای یک دسته در انتها میباشد. همچنین در بسیاری از موارد دو بخش کلمه باید از هم جدا شوند. ولی نه با فاصلهی کامل، مانند «میشود» به جای «می شود». در این موارد جدا کننده باید با طول صفر به کار رود که بسیاری به اشتباه همان فاصلهی سفید را استفاده مینمایند.
امروزه این خطاهای نگارشی به حدی در بین مطالب منتشر شده بر روی اینترنت متداول هستند که یک خوانندهی ناآشنا به زبان فارسی ممکن است به راحتی شک کند که شاید «ی» فارسی دو نقطه زیر دارد! و این در حالی است که با نرمافزارها و امکانات متعددی که امروزه به راحتی در دسترس میباشد، نگارش صحیح فارسی بسیار راحتتر شده است.
از شکل نمایش متون فارسی که میگذریم، به مشکلات جستجوی متون فارسی میرسیم که از این اشتباه متداول ناشی شده است. برای مثال جستجوی عبارت «زبان و نگارش فارسی» در گوگل، چهار نتیجه و جستجوی عبارت «زبان و نگارش فارسی» (به تفاوت حرف آخر توجه کنید) دو نتیجه، برمیگردانند که این جستجوها اشتراکی ندارند، در حالی که عبارت از لحاظ زبان فارسی کاملا یکسان است. علت این تفاوت این است که کد حرف «ی» در فارسی با «ی» عربی متفاوت است و جستجوگرها بین این دو حرف تمایز قایل میشوند. همچنین حرف «ی» اگر در وسط کلمه به کار رود تفاوتی در نمایش با معادل عربی آن ندارد، در حالی که کد آن متفاوت است.
اینگونه مثالها علاوه بر این که عدم قابلیت جستجو در اینترنت را نشان میدهند، بیانگر تراژدی غمناک دیگری هستند: تعداد موارد اشتباه به کار رفته معمولا از موارد صحیح بیشتر میباشد! اینگونه آمار در زبان انگلیسی گاهی به عنوان ملاک صحت دیکتهیی کلمات به کار میروند! (در بسیاری از آموزشگاهها مقایسه تعداد کاربرد در اینترنت به عنوان روش سریع برای یافتن عبارت صحیحتر توصیه میشود) حتی برخی سایتهای خبرگزاری مانند همشهری و روزنامهی شرق نیز از این قاعده مستثنی نیستند و غلبه بر این مشکل نیاز به همکاری تمام افراد و مراکزی که به انتشار مطالب بر روی اینترنت میپردازند، دارد که نویسندگان و طراحان وبلاگهای فارسی را نیز شامل میشود.
برای راهنمایی در مورد نحوه تایپ صحیح در ویندوز میتوانید به این مقاله مراجعه نمایید.
روز جمعه ۱۳ فوریهی ۲۰۰۴، آقای فیلیپ مککینون، سفیر کانادا در ایران، در دانشگاه تورنتو سخنرانی کرد. این سخنرانی به دعوت کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو در مرکز مطالعات بینالمللی این دانشگاه برگزار شد.
جلسه با معرفی آقای سفیر شروع شد. آقای مککینون دانشآموختهی دانشگاه تورنتو است و در کارنامهی حرفهای خود سابقهی سفارت در کرهی جنوبی و تونز را نیز دارد. پنجاه و چند ساله به نظر میرسد، با چشمانی رنگین و موهایی بور- چهرهی آشنا و شاید هم کلیشهای غربی. راحت و خودمانی است که شاید عجیب باشد برای ما ایرانیها که عادت داریم به دیدن چهرههای عبوس و جدی در وزارت خارجهی کشورمان. پس از شنیدن حرفهایش، بیش از همه نگاه واقعبینانهاش به سیاست و ایران در یاد میماند و البته شناختش از جامعهی ایران و آشناییاش با زیر و بم زندگی مردم.
در سخنرانی کوتاهش از تاریخچهی روابط ایران و کانادا پس از انقلاب میگوید. از سال ۱۹۸۰ تا ۱۹۸۸ کانادا در ایران سفیر نداشته است و از اوایل دههی ۹۰ روابط بهتر شده است. از سال ۱۹۹۷ و پس از رئیسجمهور شدن خاتمی، روابط گستردهتر شده تا این که ماجرای قتل زهرا کاظمی پیش میآید و این روند را کند میکند. پس از این ماجراست که کانادا قطعنامهای را بر علیه وضعیت حقوق بشر در ایران در سازمان ملل مطرح میکند. سفیر داد و ستدهای تجاری ایران و کانادا را بسیار مهم میداند. ایران اولین شریک تجاری کانادا در خاورمیانه است و بیست و یکمین در جهان. ایران بزرگترین خریدار گندم کانادا است و البته شرکتهای نفتی کانادایی در صنایع نفتی ایران درگیراند و آن چنان که سفیر میگوید در سفرهایش به استان آلبرتا که بیشتر شرکتهای نفتی کانادا در آنجا هستند، علاقهی هموطنانش را به رابطهی ایران و کانادا میبیند.
در چند سال گذشته حضور مهاجران ایرانی در کانادا اهمیت روابط دو کشور را بیشتر کرده است. ایران چهارمین کشور مهاجرفرست به کانادا در سالهای اخیر بوده است. سفیر میگوید این مهاجرت، محدود به متخصصان نیست و ایرانیهای بسیاری هم از راه سرمایهگذاری به کانادا مهاجرت کردهاند. به این دو گروه، دانشجویان ایرانی را هم اضافه کنید که آن چنان که سفیر میگوید صدور ویزای دانشجویی برای ایرانیان در این سالها بیست و پنج درصد رشد داشته است.
پس از سخنرانی کوتاه، جلسه با پرسشهای حاضران از آقای سفیر ادامه یافت. حوصله و دقت سفیر در پاسخ گفتن به پرسشها و گاه نیمهسخنرانیهای حاضران به چشم میآمد. بیشتر پرسشها دربارهی مسالهی قتل زهرا کاظمی، حقوق بشر در ایران و نقش روابط ایران و کانادا بر بهتر شدن وضع حقوق بشر در ایران بود.
خلاصهای از این پرسش و پاسخها:
قتل زهرا کاظمی:
سفیر در حال بازدید از سدی در جنوب کشور بوده که خبر بستری شدن خانم کاظمی را در بیمارستان میشنود. از همانجا پیگیری موضوع آغاز میشود. متاسفانه قبل از آن که بتوانند او را در بیمارستان ببینند، میمیرد و موضوع به جنجالی در رسانههای ایران، کانادا و جهان تبدیل میشود. کانادا سفیر را به کشور فرا میخواند. سفیر پس از بازگشت ملاقاتهایی با مسوولان وزارت خارجه و قوهی قضاییه داشته است که همگی قول همکاری و بررسی مساله را دادهاند، اما تا کنون نتیجهای جدی به دست نیامده، جز این که یک جلسه از دادگاه برای فردی به عنوان متهم برگزار شده است. دولت کانادا خواستار بازگرداندن پیکر خانم کاظمی و محاکمهی عاملان این جنایت است و با جدیت از ایران میخواهد که به این خواسته عمل کند. او میگوید موضوع قتل کاظمی به بحث شدیدی در میان جناحهای حکومت ایران انجامیده است، تا آن جا که نمایندگان مجلس با لحنی تند و بیسابقه از عاملان جنایت انتقاد کردهاند و این سخنان از رادیوی مجلس در سراسر ایران پخش شده است. کانادا هم در واکنش به این قضیه، قطعنامهای در کمیتهی حقوق بشر سازمان ملل بر علیه ایران مطرح میکند که به تصویب میرسد.
اقتصاد و دموکراسی:
سفیر معتقد است دموکراسی در ایران بدون پیشرفتهای اقتصادی و صنعتی شدن میسر نیست. طبقهی متوسط شهری و اقتصاد صنعتی رو به رشد را زمینهساز و بستر دموکراسی میداند و فکر نمیکند انزوای ایران و تحریم اقتصادی به رشد دموکراسی در ایران کمک کند. البته واقعبینانه به منافع کانادا هم اشاره میکند و میگوید رابطهی اقتصادی با ایران برای کانادا نیز مهم است و خود را در برابر گندمکاران کانادایی مسوول میداند.
سکولاریسم در ایران:
وقتی از او دربارهی آیندهی سکولاریسم در ایران میپرسند، میگوید جامعهی ایران را هنوز مذهبی میداند. باورهای دینی در میان ایرانیان حضور دارد، گرچه نسل جوان نسبت به بقیهی جمعیت ایران کمتر دیندار است. باورهای مذهبی گرچه در ایران به تدریج کمتر شده است، اما دموکراسی سکولار ممکن است بهترین انتخاب ایرانیان در شرایط کنونی نباشد. او میگوید گرچه در ۴۰۰ سال گذشته و تا پیش از انقلاب اسلامی نفوذ روحانیون در جامعهی ایرانی همواره گسترش یافته، اما در ۲۵ سال گذشته این نفوذ به تدریج کم شده است و شاید بهتر باشد این روند تدریجی ادامه یابد تا پایدارتر شود.
مهاجرت ایرانیان به کانادا:
مسوول منطقهای بررسی پروندهی مهاجرت ایرانیان، سفارت کانادا در سوریه است. اکثریت مطلق پروندههای موجود در سوریه متعلق به ایرانیها است. بهتر بود که این پروندهها در ایران بررسی میشد، اما به دلیل کوچکی سفارت کانادا در ایران این کار ممکن نیست. ساختمان سفارت کانادا در تهران وضع چندان مناسبی ندارد و دنبال جای بزرگتر و مناسبتری هستند. سفیر میگوید این روزها به شوخی میگویند مسافران پروازهای ایران به سوریه زائر میروند و مهاجر برمیگردند.
جامعهی ایران:
از نظر سفیر جامعهی ایران آبستن تحولات بسیار است. باسوادی و شهرنشینی در ۲۵ سال گذشته بسیار رشد داشته است که ناگزیر بر بافت جامعه و خواستههایش اثر میگذارد. حضور زنان ایرانی در جامعه و فعالیتهای اجتماعیشان بسیار چشمگیر است. زنان ایرانی اکنون نزدیک به ۶۰ درصد ورودیهای جدید به دانشگاه را تشکیل میدهند. او میگوید حضور موثر زنان ایرانی میتواند الگویی برای زنان کشورهای اسلامی باشد. اما این نکات مثبت چشم او را بر واقعیتهای دیگر جامعه نمیبندد. اعتیاد به مواد مخدر روز به روز گستردهتر میشود. او میگوید زنان روسپی را به راحتی میتوان در خیابان ولیعصر تهران دید. به نظرش روحیهی بیگانهترسیی که به دلیل قرنها در معرض تهاجم و تجاوز بیگانگان قرار گرفتن در میان ایرانیان رواج دارد، به آرامی متحول شده است و ایرانیان امروز بازتر و خوشبینانهتر به بیگانگان نگاه میکنند.
آیندهی روابط ایران و کانادا در صورت پیروزی محافظهکاران در انتخابات:
از او میپرسند آیا دولت کانادا خط قرمزی در رابطه با ایران دارد؟ آیا اگر محافظهکاران در انتخابات پیروز شوند، تغییری در سیاستهای کانادا به وجود میآید؟ در پاسخ میگوید به نظر او اکنون هم محافظهکاران ۸۰ درصد قدرت را در اختیار دارند. گرچه محافظهکاران تندروتر و پیرتر از قطع روابط ایران و جهان خوشحال خواهند شد، عملگراترها در پی انزوای ایران نیستند. به نظر سفیر قطع روابط ایران و غرب به رشد دموکراسی در ایران کمکی نمیکند. ایران با جمعیت جوان و رشد بیکاری روبرو است. نیازمند سرمایهگذاری خارجی برای مقابله با بحران بیکاری است و این ممکن نخواهد بود مگر با گشودن کشور و داشتن روابط سیاسی مناسب با کشورهای دیگر.
کنسولگری ایران در تورنتو و پرواز مستقیم از ایران به کانادا:
فعلا امکان پرواز مستقیم از ایران به کانادا وجود ندارد. دلیلش هم مشکلات امنیتی است. دولت کانادا با ایجاد کنسولگری در تورنتو موافق نیست، چون ممکن است برای ایرانیان ساکن این شهر مشکلاتی ایجاد کند.
رابطهی ایران و آمریکا و نقش کانادا:
وقتی از او میپرسند آیا کانادا نقش میانجی یا پیامرسان را بین ایران و آمریکا بازی میکند، میگوید ایران و آمریکا نیاز به پیامرسان ندارند. آنها هرروز در سطوح بالای سیاسی گفت و گو میکنند و از مواضع یکدیگر آگاه میشوند. دوباره و با تاکید و لحنی کنایهآمیز میگوید که نیازی به پیامرسان نیست.
مقایسهی ایران و کرهی جنوبی:
سفیر میگوید پس از پایان جنگ کره پیشبینی میشد که کرهی جنوبی کشوری باشد در سطح کشورهای درجه سوم آفریقا با وضع اقتصادی خراب و مردمی که در فقر زندگی میکنند. آقای مککینون که در اوایل دههی ۸۰ میلادی سفیر کانادا در کرهی جنوبی بوده، دو عامل را در پیشرفت کره مهم میداند. او میگوید: «در آن سالها خانوادههای کرهای با آن که وضع اقتصادی خوبی نداشتند، برای تحصیلات فرزندانشان اهمیت زیادی قائل بودند و میشد خانوادههایی را دید که ۶۰ درصد درآمد خود را صرف آموزش فرزندانشان میکردند. کارگران زن صنایع نساجی کره با قبول همهی سختیها فرزندانشان را به مدرسه و دانشگاه میفرستادند تا آیندهی بهتری داشته باشند.»
سفیر میگوید توجه به آموزش فرزندان و تربیت نسل آینده در این سالها در ایران به وضوح دیده میشود. حتی بعضی خانوادههای کمدرآمد در تهران با کمک هم برای فرزندانشان کلاس خصوصی برگزار میکنند. این توجه به نسل آینده در ایران بسیار امیدوارکننده است. اما چتری که به نظر سفیر در آن سالها در کرهی جنوبی بود و اکنون در ایران نیست، امید به آینده است. مردم کرهی جنوبی در آن سالها همهی سختیها را تحمل میکردند، به امید آن که ده سال بعد خود و فرزندانشان زندگی بهتری داشته باشند. اما در جامعهی ایران این امید به آینده و فردای بهتر را کمتر میتوان دید.
صبح روز سیزده به در بود. ساعت ۹: ۴۵. طبق معمول هر روز یک فنجان قهوه برای خودم ریخته بودم و روی پروژه کار میکردم. حین نشان دادن نتایج به همکارم تلفن زنگ زد. اسم رییسم، جان، آمد روی صفحهی تلفن. دو زاریم افتاد. چند روز قبل یکی از دوستانم گفته بود که از یکی شنیده که وضع شرکتمان خراب است و پول ندارند. من اصلا باور نکرده بودم و به او خاطر نشان کردم که همه چیز رو به راه است. ولی برای اطمینان خاطر، فردا صبحش رفته بودم پیش جان و از اوضاع شرکت پرسیده بودم. او هم با کمال آرامش گفته بود خبری نیست و از چیزی اطلاع ندارد.
رفتم توی اتاق جان. قلبم میطپید. گفت در را ببند و بنشین. با یک قیافهی دردناک و سوگوار گفت که پول شرکت ته کشیده. از امروز شما موقتا بیکارید. وسایلات را جمع کن و برو خانه. زبانم کند شد و سعی کردم ازش چند سوال بپرسم. حالا چه کار باید بکنم؟ چه طوری باید به دولت اطلاع بدهم؟ به کجا بروم؟ بیهوده بود. آمدم بیرون و رفتم پشت میزم و به بچههای دیگر که داشتند حرف میزدند و میخندیدند خبر را دادم. همه ساکت شدند. تلفن یکی دیگر زنگ زد. بهش گفتم نوبت توست. آنروز نیمی از اعضای شرکت کارشان را از دست دادند. بقیه هم دو ماه بعد. با خودم در راه خانه فکر میکردم شاید عدد سیزده واقعا نحس است. خانومم رویم را بوسید و گفت فدای سرت. آن روز آغاز ده ماه بیکاری، چندین مصاحبه، دوندگی، کارگری و تدریس بود.
همان دو روز اول نشستم ام را درست کردم. یکی از دوستان دیگرم هم چند وقت بود بیکار شده بود. وقتی شنید که من هم به مصیبت خودش گرفتار شدهام گفت اصلا ناراحت نباش. تو زود کار پیدا میکنی. چون تو شرایطات با من فرق میکند. تو دکترا داری و.... بعدها فهمیدم که اگر بخواهید در یک شرکت مهندسی کار پیدا کنید، این دکترا چیز جالبی نیست. چون یک مهندس با مدارک کمتر و در نتیجه حقوق پایینتر میتواند همان کاری که شما میکنید را انجام دهد. البته همه به اوضاع اقتصادی ربط زیادی دارد.
لباس اطو کرده پوشیدم و کیف یشمی کنفرانس بینالمللی برق دانشگاه تبریز که پدرم بهم داده بود را دستم گرفتم و رفتم پیش یک «شکارچی سر»،. سوابقم را نگاه کرد و گفت برایت در فلان شرکت کار دارم. من هم خوشحال. چند روز بعد از همان شرکت برای مصاحبه تماس گرفتند. دیگر بگذریم که من چهار بار دیگر برای مصاحبه به آنجا رفتم و هر بار با تمهای متفاوت. ولی نشد که نشد. دو نتیجهی اخلاقی گرفتم: وقتی اقتصاد کشور خراب است انتظار را باید پایین آورد؛ و وقتی از حقوقی که در شرکت قبلی دریافت میکردهای بپرسند، حتما لازم نیست راستش را بگویی. پایین آوردن آن مبلغ کمک کمی به بالا بردن شانس برای گرفتن کار میکند. مدارک بالای تحصیلی را نیز، اگر داری، بهتر است برای مدتی فراموش کنی.
مصاحبه با یک شرکت دیگر نیز همین نتیجه را داد. یعنی فعلا برو و با بیکاری صفا کن. اینها را با اطمینان میگویم برای اینکه چند نفر از همکارهای قبلیام، با مدرک پایینتر در همین دو شرکت کار گرفتهاند.
وقتی قسطهای خانه روی دستت مانده باشد و کار هم پیدا نشده باشد، باید به فکر کارهای موقتی باشی. البته دولت کانادا بیمهی بیکاری دارد که حداکثر ۱۵۰۰ دلار در ماه میدهد تا چهل هفته. ولی قسط خانهام از اینها بیشتر بود؛ به اضافهی خرج زندگی. دوستم تلفن پیتزا فروشی چیکوز را به من داد و این طور بود که من پیش طوبی خانم به مدت ۸ ماه کار کردم. مزد کارگری پایین است ولی بهتر است از در خانه ماندن و در فکر رفتن. آدم وقتی دانشجو است از این کارها میکند ولی بعد از اتمام تحصیلات یک کمی زور دارد با این که هیچ عیبی ندارد. به روابط عمومیام خیلی کمک میکند. یک کمی مزهی سختی را کشیدم. خیلیها را توانستم درک کنم. این کار را چهار روز در هفته شبها انجام میدادم. روزها هم در دو مدرسهی خصوصی ایرانی و چینی مشغول تدریس فرانسه شدم و به چند شاگرد هم خصوصی فرانسه و ریاضی درس میدادم. خوبی همهی این کارها این بود که پول نقد میگرفتم وگرنه از بیمهی بیکاریام کم میشد. یک کمی تقلب با دولت کاناداست ولی چارهای نداشتم. همین طور شد که توانستیم زندگی را بگذرانیم. خانومم هم البته تابستان کار کرد برای کمک به من. البته ناگفته نماند که معمولا شرکتی که شما را بیکار میکند به اندازهی چند هفته حقوق (بر حسب تعداد سالهای کار در آن شرکت) به شما پول میدهد که خیلی کمک میکند.
همانطور که گفتم کار توی پیتزا فروشی خیلی چیزها به من یاد داد. با مردم اینجا تماس بیشتری داشتم و چیزهایی را که ندیده بودم متوجه شدم. یادتان میآید که چند ماه پیش در تورنتو خاموشی شده بود و شهر برای چند ساعتی برق نداشت؟ شب اولی که برق نبود من در تاریکی تا ساعت ۱۲ شب پیتزا میفروختم. مغازه قلقله بود. همه دست پاچه شده بودند و درست مثل این بود که جنگ شده بود. حسناش این بود که مردم بیشتر با هم حرف میزدند ولی به نظر میآمد که معنی دموکراسی و احترام به دیگران نسبی شده بود. یادم میآید که طوبی به اشتباه روی پیتزای خانمی پیاز ریخته بود. آن خانم یک مرتبه شروع به داد و بیداد کرد و قرمز شد که چرا روی پیتزای من پیاز ریختهاید. خلاصه اینکه پس از چند داد و فریاد به این طرف پیشخوان آمد و صورتش را تا چند سانتیمتری من نزدیک کرد و فحش بدی داد و به من یادآوری کرد که من خارجی هستم و باید برگردم مملکت خودم. فهمیدم اینجا با اروپا چندان فرقی هم ندارد. شکمشان که گرسنه باشد دیگر قوانین از یادشان میرود. غیر از این فهمیدم که کوچههای تورنتو به اندازهی کوچههای تهران چاله و دست انداز دارد. (آنقدر که پیتزا به در خانهی مردم بردم.)
بیکاری برای کوتاه مدت بد هم نیست. صبحها تا ساعت ۱۰ میشود خوابید. صبحانهی کامل خورد. روزها پشت کامپیوتر از این طرف اینترنت تا آن طرفش دوید. مقالات اجتماعی، سیاسی و غیره خواند و به جورج بوش فحش داد. شب هم دیر خوابید و هر چه مزخرف در تلویزیون را به خورد خود داد. ولی خوب از هر کسی بپرسید بهتان خواهد گفت که کار پیدا کردن خودش یک کار تمام وقت است. روزی پنج شش ساعت باید دنبال کار گشت یا از طریق اینترنت و سایتهای مخصوص برای آگهی کار و یا با پیدا کردن لیست تمام کمپانیهای موجود در رشتهی خودتان و سپس تماس پیدا کردن با تک تک آنها.
- وسیلهی بسیار خوب و آسانی است برای فرستادن. ولی هنوز تلفن برای پیدا کردن کار ردهی اول را دارد. در جایی که میشود تلفن زد، استفاده کردن از - غلط است. مشکل تلفن راه پیدا کردن به داخل کمپانی و با شخص مورد نظر صحبت کردن است. کمی باید پر رو بود وگرنه مثل من بیبخار بیکار میمانید. پای تلفن نیز قدری باید خود فروشی کرد. خالی بست. غلو کرد. این امر در نوشتن و مصاحبهها هم صدق میکند. باید همیشه با اعتماد به نفس پا جلو گذاشت وگرنه در لحظات اول نقاط ضعف مشخص میشوند. در مصاحبه بعضیها خیلی سوالات فنی میپرسند و آدم را کلافه میکنند. قبل از مصاحبه من مانند کنکوریها خر میزدم. از کتاب و اینترنت مطالب متعدد میخواندم که بتوانم به سوالات مصاحبه جواب دهم. ولی کم کم یاد گرفتم که اگر هم یک وقت سوالی را بلد نبودم باید یک جوری چرت و پرت جواب دهم و یا دور سوال دور بزنم. ولی هیچوقت نگویم که نمیدانم.
بعد از این تجربهها حسابی حرفهایی شدهام. در آخرین مصاحبهایی که گرفتم، یارو از من سوالاتی میکرد که خیلی خوب نمیدانستم. ولی با اعتماد به نفس وانمود کردم که همه چیز را میدانم. و همین شد که دو هفتهی پیش بالاخره کار پیدا کردم.
مهمترین فرق این شماره با شمارهی گذشته همین چند سطری است که الان دارید میخوانید. چند هفتهی پیش ما تصمیم گرفتیم روال دورهای نوشتن سرمقالههای جدی هر شماره را پایان دهیم و کمی آرامتر و آسودهتر در هر سرمقاله دربارهی اتفاقی که در یک ماه اخیر حول و حوش نشریه افتاده است، بنویسیم.
اولین نکته لطف آقای درخشان بود که نصیب قاصدک شد. بدینگونه که ما متهم به سانسور گفتوگوی با ایشان شدیم. البته آن چیزی که این وسط نصیب ما شد تعداد بازدیدکنندهی بیشتر بود و برای همین هم ما از ایشان گلهای نداریم. ولی اگر خیلی کنجکاو هستید عرض شود که قسمت سانسور شده مربوط به استعمال مواد مخدر (ماریجوانا یا همین علف خودمان) توسط آقای درخشان بود که در هنگام ویرایش به اشتباه حذف شده بود. اصلا یکی از اعضای تحریریه خود در یک مهمانی شاهد مصرف علف توسط افراد مختلف و از جمله همین آقای درخشان بوده و نقل میکند که تنها فردی که در آنجا برای مدت یک ساعت به ستون کنار دیوار خیره شده بود، همین خود آقای درخشان بوده است. اصلا حذف آن جمله هم این گونه میتواند تعبیر شود که ما خودمان میدانستیم آقای درخشان در این زمینهها هنوز خیلی مبتدی هستند. اصلا همه میدانند که در میان وبلاگنویسان ایرانی از ایشان حرفهایتر بسیار است.
اما در میان انبوه ایمیلهایی -راستش را بخواهید حدود ۱۰ تا- که پس از چاپ شمارهی ۴ دریافت کردیم، یکی هم از دوستانمان از کانون ایرانیان دانشگاه یورک بود که از گزارش سخنرانی بهنود و شمس گله کرده بودند. یک طورهایی نوشته بودند که چرا ما از کمونیستها حمایت کردهایم و ننوشتهایم که یورکیها خیلی آدمهای ماهی هستند. راستش را بخواهید این گزارشگر ما هر چه گزارشی را که نوشته بود دوباره خواند، نفهمید که کجا از کمونیستها دفاع کرده است. اصلا گزارش قرار است نقل آن باشد که اتفاق افتاده و قضاوت را به خود خواننده میسپارد. به نظر شما این طور نیست؟
بازدید آقایان بهنود و شمس هم فرصتی بود برای ما که چند مطلب جدید تهیه کنیم. مصاحبهی این شماره که قسمت دومش را در شمارهی بعد خواهید خواند، حاصل یک گفتوگوی چهار ساعته است با آقای بهنود در عصر یک یکشنبه در کافیشاپ. یک ساعت دیگر مصاحبه ادامه پیدا میکرد میشد کتابش کرد. خلاصه اول دست آقای بهنود و بعد هم دست دوستانی که این همه مطلب را از نوار پیاده و بعد هم تایپ کردند، درد نکند. آقای شمس هم قرار بود با قاصدک مصاحبه کنند که سر زمان مقرر ناگهان اظهار خستگی کردند و این فرصت استثنایی را که برایشان پیش آمده بود از دست دادند. دعا کنید برای سال بعد که دوباره تورنتو آمدند.
در این ماه اگر تورنتو اتفاق زیادی هم نیفتاد، در ایران همهاش اتفاق بود. انتخابات مجلس هفتم را داشتیم که چون قرار است در این سرمقاله بحث سیاسی نکنیم ادامه نمیدهم.
در این باره یک قلمک داریم که اگر خواستید واکنش ایرانیان تورنتو به انتخابات را بدانید، بد نیست نگاهش کنید. البته ما در همین کانادا هم بهزودی انتخابات مجلس فدرال را داریم که لااقل در نام، با آن چه در ایران رخ داد مشابهت دارد. آقای علی احساسی از ایرانیان فعال شهر، این روزها در تلاشند که از طرف حزب لیبرال نامزد انتخابات شوند. نظر به اهمیت این موضوع، ما در قاصدک سعی کردیم تا با ایشان گفتوگویی داشته باشیم و یا دستکم از فعالیت دوستانمان در ستاد انتخاباتی ایشان گزارش تهیه کنیم. ولی این روزها اینقدر آقای احساسی و دیگر افراد ستاد سرشان شلوغ است که ما فقط توانستیم فعلا به یک خبر کوتاه اکتفا کنیم. شمارهی بعد سعی میکنیم گزارش کاملی از این ماجرا تهیه کنیم.
خلاصه، این هم از این شماره با کلی مطالب خواندنی. بخوانید تا رستگار شوید.
مجلهی قرار است مجلهای برای دانشجویان تحصیلات تکمیلی در کانادا باشد. این مجله قصد دارد طیف وسیع دانشجویان تحصیلات تکمیلی را با زمینههای تحقیقاتی سایر رشتهها و مسائل مشترک آشنا کند. اولین شمارهاش را که نگاه میکنید، به یک مقالهی نسبتا طولانی میرسید که با عکسی از پرچم ایران با آرم «الله» در وسط آن شروع میشود. ورق که میزنید، عکسی از پیادهروی یکی از خیابانهای ایران را میبینید که روی دیوار کنار آن تصویر قدس که در دستانی احاطه شده، به وضوح مشخص است و خانمی سر به زیر با مقنعه و مانتویی بلند، در حال رد شدن. عنوان مقاله است که تا وقتی مقاله را کامل نخواندهاید، نمیفهمید گویای چیست. مقاله با گزارشی از جلسهای با حضور عایشه امام در دانشگاه مکگیل آغاز میشود. عایشه امام از فعالان نیجریهای است که در پرونده امینا لوال، مادر جوان نیجریهای که به دلیل خیانت توسط دادگاه اسلامی محکوم به سنگسار شده بود، شخصا فعالیت داشته است. صحبتهای عایشه امام، احساسات برخی از شنوندگان را برمیانگیزد و میکروفون پرسش و پاسخ عملا به میدان جنگ نظرات مخالفان و موافقان اجرای قوانینِ شرعِ اسلام در جامعه تبدیل میشود. این جدال قابل پیشبینی است، چرا که محققان در زمینهی مطالعات اسلامی در مونترال در دو قطب کاملا مخالف کار میکنند. در یک طرف ایدهآلیستهای غربی قرار دارند که تضییع حقوق بشر در رژیمهای بر پایهی شریعت را محکوم میکنند. در طرف دیگر نسبیگرایان فرهنگی قرار دارند که ظهور حاکمیت محافظهکارانهی اسلامی را یک عکسالعمل طبیعی و نه لزوما منفی در مقابل استعمار آمریکا میدانند. بحث میان این دو گروه با سوال فردی که به سختی در این دو گروه میگنجد، آرام میگیرد. رکسانا بهرامیتاش، مهاجر ایرانیتبار در کانادا، گرچه مانند فمینیستهای آزادیخواه غربی به تساوی جنسی، قدرتمند کردن سیاسی و حرفهای زنان، و توانایی زنان در تصمیمگیری در مورد زندگیشان معتقد است، ادعاهای این فمینیستها دربارهی وضعیت زنان در جوامع اسلامی را درست نمیداند. او این نکته را در مقالهاش پیرامون وضعیت اشتغال زنان در ایران که در سال ۲۰۰۲ در مجلهی به چاپ رسید، با مقایسهی وضعیت زنان در ایران قبل و پس از انقلاب نشان میدهد. در فرآیند غربیکردن ایران توسط شاه، منع حجاب در حالی که زنان طبقهی متوسط را از امکان زندگیای مشابه یک زن اروپایی برخوردار کرد، عملا به جای آزادسازی عامهی زنان، اکثریت آنان را که مذهبی بودند در خانهها زندانی کرد. بنابراین به افزایش فاصله بین طبقات پایین و بالای جامعه انجامید. در مقابل، در دههی پس از انقلاب، سیاست تامین اجتماعی با فراهم کردن امکان سوادآموزی و کنترل خانواده، به زنان طبقات پایین اجتماع این فرصت را داد که در جامعه حضور داشته باشند. رکسانا که اکنون در انستیتو سیمون دو بوار در دانشگاه کنکوردیا تحقیق میکند، خود از شاگردان دکتر شریعتی و مبارزان بر علیه رژیم شاه تحت فرماندهی آقای خمینی بوده و در آن زمان پوشیدن چادر را به منزلهی رهایی میدانسته است، چرا که با پوشیدن آن، فاصلهای میان او و یک کشاورز وجود نداشته است. اما پس از انقلاب از تحمیل قوانین اسلام ناخرسند میشود. با این وجود، اعتقاد داشته است که همکاری با حکومت اسلامگرا در بهبود وضعیت زنان موثر است، و از این رو با رعایت حجاب به نهضت سوادآموزی و تدریس در دانشگاه مشغول میشود. رکسانا به کسانی مانند آذر نفیسی، نویسندهی کتاب لولیتاخوانی در تهران که به عقیدهی وی کتابی ضد اسلام و مملو از کلیشهسازی راجع به جوامع اسلامی است، معترض است. او معتقد است که آذر نفیسی زمانی که زنان ایرانی نیازمند کسانی بودند که به آنان سواد بیاموزند، ترجیح داد که از طبقهی اجتماعی خاص خود جدا نشود و خارج از سیستم رسمی، ادبیات ناباکف را به جمعی از زنان ممتاز جامعه تدریس کند و حال فرهنگ عامه را نقد میکند، گرچه با دقت همهی معایب آن فرهنگ را به پدرها، برادرها، و پسران آن زنان نسبت میدهد. رکسانا در هیچکدام از دو دستهی محققان در زمینهی مطالعات اسلامی قرار نمیگیرد. او طرفدار نسبیگرایان فرهنگی نیست، اما از فمینیست آزادیخواهی مانند «یولانده گیداه» که اعتقاد دارد ایالت کبک باید حجاب را در مدارس عمومی منع کند نیز انتقاد میکند. در آن جلسه، رکسانا از عایشه امام میپرسد: «فعالان حقوق بشر در غرب چگونه بر اجرای شریعت در نیجریه تاثیر گذاشتند؟ آیا آنان، به عنوان نمونه، در پروندهی امینا لوال کمک کردند؟» عایشه امام توضیح میدهد که ادعاهای غیردقیق فعالان غربی و استفادهی آنان از لغات دافعهانگیز مانند بربریت، کار فعالان داخلی در پروندهی امینا لوال را مشکلتر کرده است. فعالان داخلی خود توانسته بودند که حکم سنگسار را به شلاق تبدیل کنند. این جواب عایشه امام شاید تا حدی این ادعای رکسانا که فعالان حقوق بشر در غرب لزوما تصویر درستی از وضعیت واقعی جوامع ندارند، را تایید کند.
خودش را کشته بود، لجوج و مغرور. به هیچ محاکمهای تن نداده بود. حالا قهوهای تازه گذاشت و سیگاری آتش زد. قهوه عادت مضر جدیدی بود که به مرگ نزدیکش میکرد. روی تنهاییش دراز کشید (تعبیری که از خودش دزدیده بود) ۱. سایهاش از دیوار خانه بالا رفت و دراز کشید روی سقف، رو به روی او. از ژست همیشگیاش خسته بود. دست چپش را که زیر سرش گذاشته بود برداشت و سیگار دست راستش را در جا سیگاری خفه کرد. مانده بود با دو دست بلاتکلیف. یادش آمد که او تمام شبهای تنها را اینگونه سیگار کشیده است. «چه طور آنقدر ساده و راحت دراز کشیدی؟ بی دستهای بلاتکلیف و بی ژستهای مسخره؟». حالا تنها سایهاش مانده بود تا گیر بدهد. تنها و در یک لزاجت مضحک تمام شعرهایش را کشته بود (یا شعرهای مرا؟!) یادش نمیآمد چند....
حالا دیگر در خلوت یک مرد الکلی
همه چیز دو تاست.
حتی نبودن تو...
چه طور نمیدانم، اما دلش آمده بود که نیمه راه سقطشان کند. جواب آزمایشاش مثبت بود. نگران پلهها را پایین آمد. به یاد چشمهایش افتادم اما این سایه، سایه، سایه... تمام گذشته را بلعیده است و فوت میکند. خستهتر شدهام. خستهتر از خودم. این روزها بی وقفه کتاب میجوم. هفتهای ۳ تا، حساب کردهام اگر همین طور پیش برود میشود ماهی ۱۲ تا و سالی ۱۴۴ کتاب. رکورد خوبی است. اما برای چه؟ اصلا به شما چه ارتباط دارد که با چهار رمان، جو اینگونه مرا فرا گرفته است تا یکباره آن شعرهای الکلی را رها کنم و برسم اینجا؟ اصلا برای من چه اهمیتی دارد که آنها چه میگویند؟ که شما چه میگویید؟ که مثل میمونها تقلید میکنم، که تکرار میکنم، که فرو میروم، که پیر شدهام. مگر آن روز که تعابیرم را یک به یک نفله میکردم کسی برایشان گریست؟ از وزنهای مسخره بیزارم، از موسیقی سمج حروف و جملههای مقطع مقطع از شعرهای معترف بیزارم از دستهای آویزان از رگهای بریده. شاید حسود شدهام. به بادکنک فکر میکنم به «بادکنک که حس از دست دادن است.» (تعبیری که از او دزدیدهام) ۲ وقتی کم باد میشود یا میترکد. اگر طرح دلی را داشته باشد شاعری تمام شده است. نه، گریه کافی نیست. هیچ وقت کافی نبوده است. با بادکنکی کم باد در مغزم خاطرات زنانهی دخترکی را دور میزنم با مردان و پسران آز انگیز و کشیدهاش (تعبیری که از شاملو دزدیدهام) ۳ و زنان و دختران ابله و چاق، با بادکنکی پنچر از خاطرات خودم بر دوش که لبریز از فاحشههای قاعده و دلقکهای شاعر است.
میبینی هنوز کلمات خسته غر میزنند. باید به یک جای آدم زور بیاید تا شعر نیز... اما من که درد را ثانیه به ثانیه به ساعاتم بلعاندهام (تعبیری که از رضا دزدیدهام) ۴ هیچ چیز دیگر برایم تحریک سرودن نیست. پس خود هیچ را مینویسم. هیچ خود مرا مینویسم. خسته، خسته از شعرهای خودنما و واژههای شیک پوش. وقتی که آنها میخندند، «چه با من باشد چه به من» (تعبیری که از بامداد دزدیدهام) ۵، فرقی نمیکند. خودم را گم میکنم چرا که این «من» هیچ چیز خندهداری نیست. یک طنز سیاه است، زشت و گه گرفته و تاریک. بگذریم باید میخندیدم اما من دیگر میخواهم اینگونه بنویسم. برایم هیچ اهمیتی ندارد که تمام کارها را نیمه کاره رها کردهام و به قول پدر هیچ گهی نشدهام. راههای پیشرفت تا آخر دنیا متنوعند و تو همیشه میتوانی با پریدن از شاخهای به شاخهی دیگر مسیر ابلهانهاش را عقب بیاندازی و خود را نجات دهی از آن شیب تند مسخره، تشویق مضحک حاضران و تیراژ دهنکج کتابهای چاپ چندمی.
وضعم که خراب نیست
یک کم عاشقم
عشقیزوفرنی
بیماری بدی نیست
درمان دارد
تجویز کردهاند مرگ موش بخورم
دو قاشق، هر وعده بعد شعر...
میبینی؟ تشویق که میکنند صدای سوت یخچال و سکوت خانه گم میشود. گوشهایم را میگیرم، تشویقشان برای سکوت سایهام سم است. برای سایهای که دیگر میخواهد اینگونه بنویسد. نگران هیچ کس نیست. نگران دوستانش که چه میگویند با عینکهای بزرگشان و خودکارهای قرمزشان. نگران چشمهای او هم نیست. نگران خودش میشود، خودش که دروغ میگوید، دروغ میگوید که نگران چشمهایش نمیشود. حالا اینکه کداممان سایهی دیگریست (تعبیری که از افلاطون دزدیدهام) ۶، یک علامت سوال بزرگ است. من از علامتهای سوال بیزارم، از خلاقیت بیزارم، از پسری که کلاههای عجیب میپوشد و شعرهای معرکه میگوید، از عشقیزوفرنی، از خودم. دزدی میکنم. از خداحافظ گری کوپر داستان کوتاهی در میآورم، ژستهای جدید میگیرم، عینکهای مسخره میزنم،. دروغ میگویم. بین خودمان باشد، کشش شدیدی به دزدیدن آثار خودم پیدا کردهام. به کشیدن واژههای مرده از چاههای خالی ذهنم و تکرار جنازهی شاعری گمشده در شیشهی خالی الکل (تعبیری که از سعید دزدیدهام) ۷. اما من زیر بار هیچ محاکمهای نرفتهام، حتی اگر این سایهی پیگیر هر شب از دیوار خانه بالا میرود و زل میزند به من. بی تفاوت از شعرهای مثله شدهاش متنهای دوباره میبافم و از رو نمیروم. حالا ساعتیست که سیگارم را در جا سیگاری خفه کردهام اما سایهام سیگارش را ادامه میدهد. دود میکند. من قاه قاه میخندم چرا که او را نیز از دست دادهام. تنهاتر شدهام. (متنی که از سایهام دزدیدهام) ۸
۱- روی تنهاییم دراز میکشم.
قی میکنم
بالا میآورم
به خواب میروم. (خودم)
۲- جملهای از طلایه.
۳- پس به هییت گنجی درآمدی
بایسته و آزانگیز (احمد شاملو)
۴- من مثل ساعتی مریضم و به دقت درد میکشم (رضا سیروان)
۵- با من نمیخندند، به من میخندند
شاعر یعنی دلقک (بامداد حمیدیا)
۶- برگرفته از عالم مثل افلاطون، البته میدانم که میدانید، اما فقط به احترام افلاطون
۷- زنی که سمت گل سرخ را نشان میداد
به مرد گمشته در شیشهی الکل و بعد... (سعید میرزایی)
۸-..... (سایهام)
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بابک رجبی (مبایل): ۴۳۵۰ - ۸۳۴ (۴۱۶)
الهام (مبایل):۰۴۷۱- ۸۸۸ (۴۱۶)
من چشم میبندم
تو در برابرم
ایستادهای
با آینهای در دست
من نقش میبندم...
چشم میبندم
تو در برابرم
ایستادهای
با دهانی که گشوده میشود
بیصدا
به گفتن رازی که به کس
توان واگویهاش نیست
من نقش میبازم..
چشم میبندم
تو در برابرم
نشستهای
با واژگونه فنجان قهوهات
من نقش میگیرم...
چشم میبندم
تو در برابرم
- در برابر
نه کنار -
خفتهای
عریان
در نقش جادویی همهی فرشهای کهنهی ایران زمین
گم میشوم...
چشم میبندی...
این کیست؟
این ایستاده...
این نشسته...
این خفته در برابرت؟
-:... سکوت!
چشم میگشاییم
به روزی نو...
از تلویزیون چه خبر:
در روز ۱۰ مارس برنامهای با عنوان «آیا جایی برای مذهب در سیستم قضایی وجود دارد؟» پخش کرد که به بررسی امکان ایجاد سیستم قضایی اسلامی در آنتاریو پرداخت. این برنامه را در سه بخش اول، دوم و سوم میتوانید از وبسایت ببینید.
از سخنرانی چه خبر:
در سلسله سخنرانیهای دانشکدهی خاورمیانهشناسی و دانشکدهی تاریخ دانشگاه تورنتو به مناسبت سالگرد انقلاب ایران در روز چهارشنبه ۳ ماه مارس، نادر هاشمی از دانشکدهی علوم سیاسی دانشگاه تورنتو دربارهی «راه دشوار ایران به لیبرال دموکراسی» صحبت کرد.
در روز ۵ مارس قسمت دوم سخنرانی خانم شادی مختاری در جلسات گروه نگاه، پیرامون «تاثیر هنجارهای بینالمللی حقوق بشر در کشورهای مسلمان» انجام شد.
در روز پنجشنبه ۱۱ مارس، سمپوزیم صدای زنان از خاورمیانه در دانشگاه یورک برگزار شد. در این جلسه خانم ویکتوریا طهماسبی، دانشجوی دکترای رشتهی تفکر اجتماعی و سیاسی، سخنرانیای با عنوان «،:» انجام دادند.
در روز جمعه ۱۲ مارس به همت دانشکدهی خاورمیانهشناسی و دانشکدهی تاریخ با همکاری کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو و گروه نگاه آقای آرنگ کشاورزیان، استاد علوم سیاسی دانشگاه کنکوردیا، در جلسهای تحت عنوان «پژوهش میدانی در ایران (فرصتها و موانع)» سخنرانی کرد. وی در همین روز سخنرانی دیگری به زبان انگلیسی تحت عنوان «ارزیابی انقلاب اسلامی از زاویهی اقتصادی» در دانشگاه تورنتو ترتیب داد. برای مطالعه بیشتر راجع به این موضوع، به این مقاله مراجعه کنید.
روز شنبه ۱۳ مارس در جلسات هفتگی آگورا آقای، دانشجوی دکترای دانشکده دانشکدهی خاورمیانهشناسی دانشگاه تورنتو، سخنرانی با عنوان «» انجام داد.
در روز چهارشنبه ۱۷ مارس به همت دانشکدهی خاورمیانهشناسی و دانشکدهی تاریخ با همکاری کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو و گروه نگاه دو سخنرانی توسط آقای دکتر محمود سریعالقلم، استاد دانشکده اقتصاد و علوم سیاسی دانشگاه شهید بهشتی، انجام شد. در این گردهمایی آقای دکتر سریعالقلم سخنرانی به زبان فارسی تحت عنوان «ایران و سیاستهای بوش در خاورمیانه» و سخنرانی به زبان انگلیسی با «عنوان انقلاب و جامعه مدنی در ایران» ترتیب دادند.
در روز شنبه ۲۷ مارس در جلسات هفتگی آگورا آقای، دانشجوی تحصیلات تکمیلی، دربارهی «» در دانشگاه تورنتو صحبت کرد.
از انجمنها چه خبر:
در روز سهشنبه ۲ مارس انجمن دانشجویی همبستگی برای حقوق بشر فلسطینتوسط انجمن دانشجویان مکمستر در وضعیت آزادی مشروط () قرار گرفت. دلیل قرار دادن انجمن همبستگی برای حقوق بشر فلسطین در آزادی به قید التزام این بوده که این انجمن صهیونیست را صورتی از نژاد پرستی نامیده است.
در روز جمعه ۱۲ مارس دانشجویان ایرانی تورنتو به همت انجمنهای ایرانی دانشگاههای تورنتو، یورک، مکمستر و رایرسون، طبق عادت هر ساله جشن نوروز را جشن گرفتند.
این جشن با استقبال بیش از پیشبینی انجمنها روبهرو شد و با دخالت پلیس، تعدادی از دانشجویان موفق به شرکت کردن در جشن نشدند. عدهای از شرکتکنندگان خساراتی به مکان جشن وارد کردند که این خسارات باعث جریمهی نقدی انجمنها توسط مدیریت مکان شد. عکسهایی از این جشن را میتوانید در قسمت چشم شیشهای این شمارهی قاصدک ببینید.
در روز پنجشنبه ۱۸ مارس انجمن ایرانیان دانشگاه تورنتو و کانون ایرانیان دانشگاه تورنتو مراسم نوروز را در ساختمانهایی از دانشگاه تورنتو، و، به نمایش گذاشتند. در این مراسم سفرهی هفتسین، کارهایی از صنایع دستی شهرهای مختلف ایران، موسیقی ایران، سازهای سنتی ایرانی و عکسهایی از ایران به نمایش گذاشته شد. همچنین غذا و شیرینی ایرانی نیز در این مراسم برای دانشجویان تهیه دیده شده بود. هدف از برگزاری این مراسم شناساندن جشن و مراسم نوروز به افراد غیر ایرانی بود. عکسهایی از این مراسم را نیز در بخش چشم شیشهای خواهید یافت.
در روز شنبه ۲۰ مارس کانون مهندس نوروز را در هتل شرایتون جشن گرفتند. قابل توجه است که تمامی درآمد این مراسم به کمیتهی کمکرسانی به زلزلهزدگان بم اهدا شد.
از سیاست چه خبر:
روز ۲۰ مارس، عدهای از ایرانی-کاناداییها به خانم کلارکسون، کانادا، نامهای نوشتند و در آن به استفاده وی از لغت «خلیج عرب» به جای «خلیج فارس» در مصاحبهاش با رادیو در روز ۱۷ مارس اعتراض کردند.
آقای علی احساسی، کاندید ایرانی در انتخابات حزب لیبرال منطقه دان ولی ایست تورنتو که در روز ۲۷ مارس برگزار شد، نتوانست به مرحله بعد راه پیدا کند.
دیگر چه خبر:
نمایشگاه کاریکاتوری با عنوان «سه مداد ایرانی» از روز ۱ تا ۱۴ مارس در کتابخانهی روبارتز () دانشگاه تورنتو برپا شد. در این نمایشگاه آثار نیکآهنگ کوثر، علی جهانشاهی و آلن سخاورز به نمایش درآمد.
اولین جلسه ماهانه قصهخوانی قاصدک روز پنجشنبه ۱۱ مارس برگزار شد. در این جلسه علاقهمندان به داستانخوانی و داستاننویسی، نوشتههای خود و داستانهای مورد علاقه خود را خواندند. در صورت تمایل به شرکت در جلسات آینده، فراخوان جلسات قصهخوانی را ببینید.
کنسرت خیریه بچههای آسمان به همت گروه روز شنبه ۲۷ مارس برگزار شد. درآمد حاصل از این کنسرت به مجتمع معلولین ذهنی و جسمی بچههای آسمان اهدا میشود.
در انتخابات اتحادیه دانشجویان علوم کامپیوتر در دانشگاه تورنتو در روز ۲۸ مارس، پارسی مینا به عنوان انتخاب شد.
آثار نقاشی آتوسا فروهری از طرف اتحادیه دانشجویان ایرانی دانشگاه تورنتو تا پایان ۳۱ مارس در کتابخانه ربارتز برپا شد.
از آینده چه خبر:
انتخابات سالیانه اتحادیه دانشجویان ایرانی دانشگاه تورنتو روز پنجشنبه اول آوریل ساعت ۶: ۳۰ بعدازظهر در اتاق ۱۱۷۰ ساختمان همراه با پیتزای رایگان برگزار میشود.
در روز ۲ آوریل قسمت دوم سخنرانی آقای علیرضا حقیقی در جلسات گروه نگاه، پیرامون «بحران گروگانگیری در سفارت آمریکا در ایران و تبعات آن» در اتاق شماره ۴۴۲۲ ساختمان انجام خواهد شد. قسمت اول این سخنرانی روز ۶ فوریه انجام شد.
به همت مرکز مطالعات بهایی دانشگاه یورک، در روز ۴ آوریل ساعت ۷ بعدازظهر آقای فریبرز صهبا سخنرانیای با عنوان: در ارائه خواهند کرد.
آثار نقاشی نسرین خسروی در طبقه همکف کتابخانه ربارتز تا روز ۱۵ آوریل به همت اتحادیه دانشجویان ایرانی دانشگاه تورنتو برپاست.
فهرست:
- تاریخ، اسطوره و حماسه
- شاهنامه
- حماسهی رستم و اسفندیار به روایت شاهنامه
- بازخوانی حماسه
تاریخ، اسطوره و حماسه:
اسطوره داستانی است کهن که معمولاً به بحث دربارهی آغاز یا فرجام آفرینش یا تاریخ میپردازد و مجموعهی به هم پیوستهای از این داستانها «فرهنگ اساطیری» یک ملت را میسازند. بسیاری از اساطیر بیانگر اشکال دگرگون شدهی ادیان یا آیینهای باستانی هستند. حماسه اما برخلاف اسطوره لزوماً دربارهی آغاز تاریخ آفرینش یا فرجام آن نیست و قهرمانان آن گرچه گاهی از وجهی ماوراء طبیعی برخوردارند، خدا یا فرزند خدایان نیستند. آنها مدت محدودی زندگی میکنند و پس از انجام اعمال شگفتآور سرانجام مرگشان فرا میرسد. البته بسیاری از حماسهها ریشه در اساطیر دارند که به نوعی عرفی و دنیوی شدهاند. لذا حماسهها معمولاً به دوران متاخرتر برمیگردند.
تاریخ کشور ما را همواره کاتبان دربار یا موبدان نوشتهاند. به این ترتیب صاحبان قدرت آنچه را که خواستهاند به ما راست نمایاندهاند. از این رو جایگاه راست و دروغ در تمامی طول تاریخ ما واژگونه است. لذا شاید بتوان گفت که اساطیر و حماسهها که به ظاهر دروغ مینمایند بیش از تاریخ از حقیقت بهرهمندند. پس میتوانیم امیدوار باشیم که با رمزگشایی از اسطوره ها به هالهای از حقیقت دست یابیم.
شاهنامه:
ابوالقاسم فردوسی، نگارندهی شاهنامه، یک دهگان بود. دهگانان پیش از اسلام و حتی تا قرون اولیهی اسلامی، طبقهی بالنسبه مرفه روستانشین محسوب میشدند. آنها معمولاً رعیت فئودالهای بزرگ نبودند اما بیش از یک یا دو پارچه آبادی نیز در اختیار نداشتند و در مقایسه با مالکان بزرگ و دربار که گاه صاحب تا هزار پارچه آبادی نیز بودند، تنها خرده مالک به حساب میآمدند. به هر حال این طبقه که شاید بتوان آن را «خرده بورژوازی روستایی!» نامید فارغ از تعصب مذهبی شهری، از دورهی ساسانیان تا قرن پنجم هجری مثل یک بستر اجتماعی برای پرورش فرهنگ ایران عمل میکرد. روند اضمحلال طبقهی دهگان که در نهایت باعث سقوط فرهنگی ایران شد خود محتاج یک بررسی جداگانه است. با این تفاصیل فردوسی و همسرش که به زبان پهلوی نیز تسلط داشتند از منابع پهلوی ساسانی و داستانهای عامیانهی مردم شرق ایران به عنوان مادهی اولیهی کار خود استفاده کردند. در این میان تخیل دراماتیک شاعر نیز در شکلگیری نهایی شاهنامه نقش مهمی داشته است. تحت تاثیر همهی این عوامل اثری آفریده شد که عظمت کار نگارندهی آن شاید از عظمت داستانهای آن بیشتر باشد. اما به احتمال زیاد آگاهی فردوسی از تاریخ ایران پیش از ساسانیان از مورخان امروز کمتر بوده است و از این رو، وی از منشأ بسیاری از افسانههایی که از این دوران نقل کرده بیخبر بوده است. پس شاهنامه از معدود کتابهایی است که اطلاعاتی بیش از دانش نگارندهاش دربر دارد.
حماسهی رستم و اسفندیار به روایت شاهنامه (خلاصه)
ماجرا از زمان پادشاهی کیخسرو آغاز میشود. او پس از شصت سال پادشاهی از دنیا سیر میشود. از حکومت کنارهگیری می کند و به عبادت در کوهها میپردازد. عاقبت نیز در کوههای البرز در میان برفها مدفون میشود. خسرو پیش از کنارهگیری از تخت شاهی، لهراسب جوان را جای خود بر تخت مینشاند. لهراسب هم که دست پرودهی خسرو است دست کمی از استادش ندارد. او پیش از آنکه پادشاه باشد یک مرد خداست. از این رو هنگامی که فرزندش کیگشتاسب بدون اجازهی پدر در پی کدورتی به روم میرود و پس از ازدواج با کتایون، دختر قیصر روم، با حمایت قیصر به ایران لشکر میکشد، لهراسب بدون هیچ مقاومتی از حکومت کنار میرود و در آتشکدهی بلخ که خود پیش از آن ساخته است، به نیایش و عبادت مینشیند. زرتشت در سیمین سال حکومت گشتاسب پیامبری خود را آشکار میکند: گشتاسب و فرزندش اسفندیار به او میگروند و گشتاسب اسفندیار را برای گسترش آیین زرتشت به سرتاسر جهان می فرستد. در غیاب اسفندیار بدگویان دربارهی او به سخنچینی میپردازند. در نتیجه پس از بازگشت، گشتاسب او را به جرم جاه طلبی به زندان میاندازد. اما هنگامی که در جنگ با ارجاسب پادشاه توران، کار بر ایرانیان سخت میشود، با وساطت پشوتنِ وزیر اسفندیار آزاد میگردد؛ در جنگ تورانیان را شکست میدهد و به دنبال آنها از هفت خوان میگذرد تا سرانجام ارجاسب را میکشد. در بازگشت از هفتخوان، اسفندیار از گشتاسب میخواهد که از حکومت کنارهگیری کند. گشتاسب در عوض به بدگویی از رستم میپردازد و او را بدخواه پادشاهان ایران مینمایاند. پس اسفندیار را با وعدهی پادشاهی روانه میکند تا رستم را دست بسته به بارگاهش بیاورد. رستم در برخورد با اسفندیار با شگفتی خدمات خود را به پادشاهان ایران بر میشمارد اما اسفندیار تنها در پی اجرای «فرمان شاه» است. به این ترتیب جنگ میان آن دو غیر قابل اجتناب مینماید. پس از پیکاری نفسگیر اسفندیار رویین تن با تیر جادوی سیمرغ که از کمان رستم گسیل می شود، چشمان خود را از دست میدهد...
بازخوانی حماسه:
۱-کیخسرو با دیگر پادشاهان حماسی تفاوتی ماهوی دارد و از این جهت شایستهی تامل است. او علاوه بر اینکه از حکومت دنیوی برخوردار است، به کمک ندای سروش با غیب ارتباط دارد. کیخسرو به نوعی تجسم آرمان پادشاه الهی در تاریخ ایران است. هنگامی که اعلام میکند قصد دارد از حکومت کنار بگیرد و در گوشهای به پرستش یزدان بپردازد، با مخالفت اشراف ایران روبرو میشود. آنها زال را به عنوان ریش سفید خردمند فرا میخوانند تا به نصیحت شاه بپردازد. اما خسرو با زبانی نو، زبانی یکتا پرستانه، با زال به احتجاج میپردازد و او را قانع میکند. سرانجامِِ کیخسرو نیز ماهیتی اساطیری و نه حماسی دارد. او پس از پند دادن نزدیکان، گویی که از سرانجام خویش پیشتر آگاه است، به همراه گروهی از پهلوانان ایران به کوهستان میرود. پس از یک شب نیایش، خود جلوتر میرود و به آنها پند میدهد که از همان راه بازگردند چرا که به زودی برفی سهمگین راه را مسدود میکند. پهلوانان که با ناباوری آسمان را آرام میبینند، چند روزی همانجا اطراق میکنند. در این بین شگفتی آنها از کار کیخسرو جالب توجه است:
چنیـن رفتن شــاه کـی دیـدهایم
ز گردنـکشان نیــز نشنیدهایم
خردمند از این کار خندان شود
که زنده کسی پیش یزدان شود
به هرحال پس از چند روز، پیشگویی خسرو به حقیقت میپیوندد و همهی پهلوانان زیر برف مدفون میشوند. میبینیم که خسرو به نوعی «نمیمیرد» بلکه «زنده پیش یزدان» میرود و این بر خاصیت اساطیری او میافزاید.
پیشتر گفتیم که لهراسب نیز یک شاه موبد است. از حماسه و جنگ و پهلوانی در دوران حکومت او در شاهنامه خبری نیست، تنها ذکری که از کارهای او میآید آتشکده ساختن اوست به بلخ. نکته اینجاست که این اقدام پیش از پیدا شدن زرتشت و گسترش آیین او صورت میگیرد.
در واقع کیخسرو و لهراسب به نوعی نمایندهی زمینهی اجتماعی ظهور زرتشت در جامعهی ایران هستند. آنها به جنبشی جهانی در حدود سه هزار تا دو هزار و پانصد سال قبل تعلق دارند که پیروان کنفوسیوس در چین، بنیاسرائیل در مصر و بوداییان در هند نمایندگان آنند. در این سدهها چند تمدن دور از یکدیگر اصلاحاتی مذهبی را در خود پرورش دادند که باعث پیشرفت شگرفی در اخلاق بشریت شد.
۲- در شاهنامه میخوانیم که اسفندیار دین زرتشت را در سرتاسر جهان گسترش داد. ترویج یک دین جدید در مدتی کوتاه در سرتاسر یک کشور، آن هم توسط حکومت، بدون شک چندان صلحآمیز و بدون خونریزی نخواهد بود و دین جدید با مقاومتهایی از طرف ادیان محلی مواجه خواهد شد. از این خونریزیها و جنایات احتمالی در منابع زرتشتی هیچ ذکری به میان نیامده. در شاهنامه تنها سرنخ کوچکی از فرمان گشتاسب به اسفندیار به دست میآید، هنگامی که او را روانهی گسترش دین «بهی» در جهان میکند.
از آن شهرها بت پرستان بکش
پس آتشکده کن به هرجا به هُش
۳- معمای دیگر که به خوبی بیانگر تناقص بین داستانهای عامیانه و منابع رسمی زرتشتی است، در شخصیت دو چهرهی گشتاسب نمایان است. در اوستا و نوشتههای موبدان، گشتاسب برترین پادشاه تاریخ است. نخستین پادشاهی است که به دین زرتشت میگرود و این آیین را در جهان گسترش میدهد. او یکی از هفت «کی» یا هفت «مرد بزرگ» محسوب میشود. از لحاظ تاریخی شخصیت گشتاسب محتملاً شکل اغراق شدهی یکی از پادشاهان محلی ماوراء النهر، اندکی پیش از ظهور هخامنشیان است. در اوستا گرچه وی پادشاه همهی ایران خوانده شده ولی هیچ نشانهای از حضور وی در غرب ایران به چشم نمیآید. همچنین کرسی حکومت وی نیز «نجد ایران» یعنی میان دو رود جیحون و سیحون ذکر شده است. در داستانهای عامیانهی شرق ایران که شاهنامه به شدت تحت تاثیر آن است، برعکس گشتاسب شخصیتی کاملا فرومایه به حساب میآید. او به طمع پادشاهی بر پدر میشورد که این خود بدترین گناه است. به دشمن ایران - قیصر روم- پناه میبرد. با حمایت بیگانگان پدر را از سلطنت خلع میکند و در جنگ با ارجاسب تورانی با بی کفایتی شکست میخورد و تنها به یاری اسفندیار پیروز میگردد. در سن کهولت از سر آز و بدگمانی پسر جوان و دلاورش اسفندیار را به جنگ رستم میفرستد و او را علیه رستم بی گناه میشوراند. گویی خود از فرجام آنچه با پدر کرده بیمناک است. سرانجام نیز پسرش را به کشتن میدهد و خود اندکی بعد میمیرد. این تناقص چگونه قابل توجیه است؟ آیا این دوگانگی ریشه در دوگانگی عمیقتری در تاریخ ایران ندارد؟ آیا دو چهرهی متضاد گشتاسب نمایانگر تضاد اساسی بین حکومت و دین مرکزی رسمی از یک سو و خرده فرهنگهای محلی ایران پیش از اسلام از سوی دیگر نیست؟
واقعیت این است که در هیچ دورهی تاریخی در نقاط مختلف ایران، به خصوص نواحی دور از شهرهای بزرگ، همهی مردم زرتشتی نبودهاند و به زبان رسمی سخن نمیگفتهاند. این مردم از پادشاهی نظیر گشتاسب که خواهان غلبهی یک فرهنگ مسلط بر خرده فرهنگهای گوناگون محلی بودهاند، دل خوشی نداشتهاند و در حالی که تمامی منابع رسمی تاریخنویسی و سخن پراکنی در اختیار حاکمان بوده است، نارضایتی خود را در حماسههای عامیانه بروز دادهاند. حماسههایی که سینه به سینه از نسلی به نسلی دیگر میرسیده است. حماسهی رستم نمونهای از این داستانهای عامیانه است.
۴- به عنوان تاییدی بر ادعای قبلی توجه کنید در تمام منابع زرتشتی و کتب حماسی که موبدان گردآوری کردهاند از رستم خبری نیست. تنها در رسالهی «بندهش» است که به اندازهی حدود سه خط، ذکری از رستم به میان آمده است. در عوض اوستا و حماسههای زرتشتی سرشار از ستایش دلاوریهای گشتاسب و اسفندیار است. در شاهنامه برعکس داستان هفت خوان اسفندیار آمده اما هیچگاه آن لطف و جذابیت هفت خوان رستم را ندارد. اسفندیار پیش و پس از هر نبرد به طریقی اغراقآمیز به نیایش «اهورامزدا» میپردازد و چندین بار همراهانش او را در حال نیایش پس از جنگهای بزرگ مییابند. اما رستم تنها پیش از برخی نبردها از «یزدان پاک» نیرو میطلبد. او گرچه مردی خداپرست است، هیچگاه در حضور دیگران مشغول نیایش نمیشود. اما در عمل رفتار رستم بارها اخلاقیتر و حتی مذهبیتر از رفتار اسفندیار است. رستم در برابر کسی به خاطر گناه ناکرده پوزش میطلبد که حتی ده یک او نیز برای ایران رنج نکشیده است. رستم در واقع نمادی از «مظلومیت قدرت» اما قدرت متعهد به اخلاق است.
در رجز خوانیهای بین دو پهلوان، اسفندیار بیش از بیست بار او را به تمسخر «سگزی» مینامد. این کلمه به احتمال قوی شکل مقلوب کلمه «سکا» است. سکاها اقوایی آریایی بودند که چندی پس از دیگر اقوام به ایران کوچ کردند. پس از مدتها درگیری و کشمکش، گروهی از آنان در سکستان (سیستان) و گروهی در کنارهی دریاچهی اورال ساکن شدند. سکاها از آنجا که قومی جنگجو و نیمه متمدن محسوب میشدند همواره مورد تحقیر ایرانیان بودند. چنانکه از شاهنامه بر میآید حکومت آنها در سیستان نیز از نوع خودمختاری محلی بوده است. به این ترتیب برخوردن به عباراتی نظیر «به ایران شدن رستم از سیستان» یا «بازگشتن زال از ایران سوی سیستان» در این کتاب شگفتآور نیست.
۵- هفت خوان رستم و اسفندیار گرچه تا حد زیادی به هم شباهت دارند، در یک مورد متفاوتند. اسفندیار در خوان پنجم سیمرغ را میکشد، در حالیکه سیمرغ در ادبیات عامیانهی ایران پرندهی خرد و خوشبختی و همیشه شخصیتی مثبت است. او زال را هنگامی که کودکی بدون پدر و مادر است پناه میدهد و همواره پشتیبان اوست. اما در ادبیات زرتشتی هیچ ذکری از او در میان نیست و در شاهنامه نیز اسفندیار به بهانهی مبارزه با جادو، با سیمرغ دشمنی میورزد و عاقبت نیز همین سیمرغ است که نقطهی ضعف اسفندیار رویین تن را به زال و رستم نشان میدهد (امری که یادآور مداخلهی خدایان کوه المپ در جنگ بین یونان و ترواست). آیا سیمرغ نمادی از ربالنوعهای محلی پیش از همهگیر شدن دین زرتشت نمیتواند باشد؟
۶- وجه دیگر داستان رستم و اسفندیار شروع قدرت طلبی مطلق پادشاهان است که پیش از آن سابقه نداشته. همهی پادشاهان پیش از گشتاسب به نوعی با بزرگان کشور مشورت میکردهاند و این مشورتها به صورت پند و اندرزهایی که از جانب زال و توس و دیگران خطاب به پادشاهان وقت بیان میشود، خود را نشان میدهد. اما هنگامی که گشتاسب فرمان دستگیری رستم را به اسفندیار ابلاغ میکند، اسفندیار که قلبا مخالف این کار به نظر میرسد جوابی به پادشاه میدهد که عبرت تاریخ است:
اگر بد بود کار من کردگار
تو را پرسد ای شاه روز شمار
به این ترتیب میبینیم که استبداد دیرپای شرقی که با زره دین حکومتی فراگیر رویین تن گشته، به شکل فلسفهی «چه فرمان یزدان چه فرمان شاه» خودنمایی میکند و هیچ قدرت محلی را حتی در دورترین نقطهی مملکت نیز برنمیتابد.
به هرحال عاقبت اسفندیار جان برسر خودکامگی میگذارد اما مطابق پیشبینی سیمرغ رستم نیز پس از کشتن اسفندیار دیری نمیزید و به حیلهی برادرش در چاه جان میدهد. پس از مرگ رستم، بهمن فرزند اسفندیار به سیستان میتازد و به کین پدر تمام آن ناحیه را غارت میکند. شگفت نیست که بلافاصله پس از مرگ رستم و اسفندیار شاهنامه وارد دورهی تاریخی میشود. دوران سلطنت پادشاهان کوتاه میگردد و نخستین پادشاه شاهنامه که موجودیت واقعی تاریخی دارد یعنی اردشیر درازدست به حکومت میرسد. اندکی پس از آن نیز ایران صحنهی تاخت و تاز اسکندر قرار میگیرد. به این ترتیب تاریخ ایران با تراژدی رستم و اسفندیار آغاز میشود. تاریخی که به گفتهی شاملو سراسر فرود است و فرازی در آن نمیتوان جست.
منابع:
اصل داستان از شاهنامهی فردوسی نقل شده است. در ارائهی دیدگاهها از کتاب «فرهنگ ایران» تالیف دکتر مهرداد بهار، الهام گرفته شده است اما به مطلب خاصی در این کتاب ارجاع نشده است. تنها شیوهی نگرش به اساطیر کهن را از مقالات دکتر بهار اقتباس کردهام.
پیچیده دور تنش، خیره به راهی که نمیداند کجاست، در تکهای از زمین بیدار میشود. حالا به او نگاه می کند. مانند تمام چیزهایی که دور و برش را گرفتهاند. چیزهایی که همه می گویند: «این مال توست!»
به کفشها، کتابها، لباسها، صندلیاش، کاغذها و خودکارش: بیخون و بیرمق!
بلند میشود. آرام کز میکند به تودهی گرمی که قلقلکش میدهد. تمام تنش شل میشود. بعد آرام خودش را خالی میکند!
- «ببخشید. از چاپ مطالب زننده معذوریم!»
حالا زندگی اش هم زننده شده. از وقتی که لابلای تمام پسرها یک مرد دید. بعد دلش خواست شعر بنویسد اما دید قبلا شعرش را سرودهاند. دور شاعر بودن را خط کشید و گفت: باور میکنم که یک زنم!
نشست جلوی آینه تا موهایش بلند شود. مژههایش برگردند، لبهایش قرمز شوند و... زن شود!
ایستاد با کفشهای پاشنه بلند، منتظر ماشین.
از ماشین پیاده شد.
اما مرد...
خیلی وقت بود که رفته بود!
خودکار را کنار گذاشت و دوباره دراز کشید: خیره به سقفی که نم زده بود و لیوان آب که بالای سرش بوی نفسهای زنی را میداد: همبستر تنهایی.
دیگر نمی توانست به خودش نگاه کند.
- «اما نگران نباش. ثانیهها به سرعت میگذرند و امروز هم تمام میشود. آنوقت چند روز دیگر وقتی خاک نحوست روزها را بشکند و راحت شوی، خدا خودش میفهمد که بیخود درستت کرده بود.»
به خودش می گوید. چشمهایش را میبندد تا دوباره بخوابد.
مصاحبه با سیروس شاملو - زمستان ۸۲*
- بر روی شبکهی اینترنت و به دنبال آن در جراید، خبری درج شد حاکی از کوشش چند سالهی شما بر روی بازتصحیح دیوان کبیر اثر مولانا جلالالدین محمد بلخی، این کار اکنون به چه مرحلهای رسیده است؟
- دو سه کتاب چاپی گزیدهی غزلیات شمس اثر شفیعی کدکنی، دیوان کبیر به تصحیح فروزانفر، چاپ ۱۳۳۶- ۱۳۴۵، برای حاشیهنویسی انتخاب شده و شش نسخهی خطی یوسف ظاهر، مجمعالبیان و... بر روی آنها پیاده شده و به یاری چند کتابخانهی سوئدی که میکروفیشهای نسخ خطی در اختیار من گذاشتند، تاکنون سی غزل از دیوان کبیر تصحیح شده که تا همین اندازه هم با مقدمهی مکمل و پانویسها، مجموعهی حجیمی را تشکیل میدهد که امیدوارم همراه دیسک فشرده به دست علاقهمندان برسد.
- یعنی با توجه به سه چهار هزار غزل دیوان کبیر مجموعهی شما بیش ازصد دیسک فشرده را در بر خواهد گرفت؟ این مجموعه چند جلد را شامل خواهد شد؟
- به اوراق دیوان کبیر چوب خطش نزنید. به ورق پارههای عمر ما حسابش کنید. صد یا هزار دیسک کاریست که باید در این عصر شروع شود. اگر من آغازش نکنم کس دیگری در آینده این کار را خواهد کرد. مگر مولانا برای شما کمتر از شکسپیر اهمیت داشته است؟ برای شکسپیر چند کتابخانه و چند صد سیدی هست؟ مشکل ما حجم این تولید فرهنگی نیست. مشکل تفهیم این ضرورت به دولتهای غیرفرهنگی و فرهنگیان ظاهرا غیردولتیست!
- انگیزهی شما برای بازتصحیح دیوان کبیر چیست؟ آیا نسخ چاپی موجود را معتبر ندانستهاید؟
- طبیعتا نسخههای چاپی در این قیاس از درجهی اعتباری اندک برخوردارند، نه تنها معتبر نیستند بلکه در یافتن اعتبار ادبی چوب لای چرخند. نسخههای چاپی فعلی را به دریا هم بریزی، دریا را آلوده میکنند. میبینید که از آنها به عنوان چرکنویس دیوان استفاده میکنم. قاطی کردن غزل ۱۵۷ و ۱۵۶، کاری که کدکنی انجام داده، هم دردی را دوا نمیکند. ایشان در گزیدهی غزلیات شمس «به یار ُ کان صفا می ِ صفا مدهید» را «به یارَکان صفا» (یعنی یاران کوچول موچولو) تفسیرش کردهاند، در حالی که «یار ِ کانِ صفا» به معنای «یارانِ اخوانالصفا» است. به نسخخطی موجود هم نمیتوان چندان اعتماد کرد، خط نویسان عموما معنا را فدای زیبایی قامت میم و جیم کردهاند و چندان لطف گوشی به زمزمهها و فریاد آزادیخواهی مولانا نداشتهاند. بیدلیل نبود که در حفره و چاه از نظر هواداران پنهان میشد تا دمی بیاساید و شعر بسراید.
برخی تذکرهنویسان مثل احمد افلاکی و این اواخر علامه همائی، شاعر قدرتستیز را تا مراتب اغراقآمیز خرافات بالا بردند و با تفسیرهای غلط و مندرآوردی معنای دیگرگونهای به جایگاه فرهنگی وی دادند. مثلا افلاکی در «مناقبالعارفین» که مرجع مولاناشناسان است، در رو به قبله کردن هویت مولانا بر محققین فراماسونر مثل فروزانفر و حجت الاسلام نیکلسون پیشدستی کردند و مانند زرینکوب حقایق را با رویا درآمیختند. مولانا در آن آثار مرده زنده میکند، روی آب راه میرود، از کف دستش آتش بر میخیزد و... مثلا اینکه شیخ را در غسالخانه میشستند، ناگاه دست غسال در حال صفا دادن ستر عورت به خایه و لولههنگ شیخ میخورد و مرده مچ دست غسال را چنان میفشارد که غسال از خجالت بر تخت دیگر مرده شور خانه دراز به دراز میشود. تا اینکه حضرت بهاءولد (پدر مولانا) که او نیز فوت شده بود، بیامد و میانجی بشد و در گوش شیخ بگفت: «غسال را ببخشایید، شما را به جا نیاورد!» و در دم دست غسال رها شد. مراجع معتبر ما از این دست درفشانیهاست.
- با توجه به گفتهی شما «بیاعتباری» نسخ چاپی، مخدوش بودن «عموم» نسخخطی پی کم مایگی برخی تذکرهنویسان و تفسیرهای غلطشان، چه راهها و امکاناتی برای تشخیص و تدوین یک نسخهی صحیح وجود دارد؟
- این کاری پیچیده است و شما هم قصد ندارید این مصاحبهی کوچک را به کلاس جزمی روش تحقیق تبدیل کنید. من گفتم چندان نمیشود اعتماد کرد. راهکارهای مختلفی برای این تشخیص وجود دارد اما اول باید پذیرفت حجم فعلی دیوان پر نخاله است و پرویزنی، یعنی نیاز دارد به غربال شدن.
- آیا در تصحیحهای موجود بنا بر ملاحظات سیاسی و عقیدتی در اشعار تغییراتی داده شده است؟
- اکثر آثار و ابیات و غزلهایی که فروزانفر آنها را حذف کرده، شاه ستیز بوده و بخشهایی نیز به صورت ناشیانه از جنبهی دین ستیزی خارج شده است! «لا» به «خدا» و «خدا» به «لا»، «مه» به «شه» و «شه» به «مه» تغییر کرده است. گفتم به صورت ناشیانه از جنبهی دین ستیزی خارج شده یعنی مخدوش کننده آمده لطف کند، لطفش مایهی معطلی شده، مثلا در غزل سه:
«گفتا که من خربندهام پس بایزیدش گفت رو
یارب خرش را مرگ ده تا او شود بنده خدا»
که در معنی بایزید از خداوند خواسته تا با کشتن قاطر (منبع درآمد قاطرچی) او را آدم عاقلی کند که دنبال نوالهی ناگزیر عمر تلف نکند، اما شیر پاک خوردهای با ظرافت، «بندهخدا» به معنای «مرد عاقل» را با سکون «ه»، ناگهان به لطف خداپرستانه به «بندهی خدا» تبدیل کرده و از مولانا مایه گذاشته تا راه رستگاری خود را تندتر بپیماید. یعنی قاطر که مرد، قاطرچی بندهی خدا میشود! همین شیرپاک خورده «نفخهخدا» با سکون «ها» به معنای «نفس عمیق» را به «نفخهی خدا» تغییر شکل داده است.
شاهستیزی غزل را ببینید فروزانفر درغزل ۴۸۰ چگونه به شاهستایی تبدیل کرده است:
«خراب باد وجودم اگر برای تو نیست» که در اصل «کدام شاه امیری که او گدای تو نیست» بوده است. همانجا «برو ملرز فدا کن چه شه خدای تو نیست» به «برو ملرز فدا کن چه شد خدای تو نیست» تبدیل شده است. ضمنا کوشش شده در بازخوانی نسخخطی چاشنی یهودستیزی و زنستیزی پُرملات شود. ممکن است در آینده هم اشعار خلقستیز و دموکراسیستیز از کل اثر حذف شود! برای همهی آنها مثالهایی داریم که به تفصیل در جای خود خواهیم آورد.
و اما چند نمونه:
نمونهی زن ستیز:
فروزانفر (غ ۳۳۹۰):
«گر تو به زنان گردی آخر چو زنان گردی»
(اگر با زنان بگردی شبیه زنان میشوی)
فخرالمولوی (همان غزل):
«گر تو به زنان گردی آخر چه زیان کردی»
(اگر بخشش طلب کنی چه ضرری دارد)
نمونهی یهود ستیز:
فروزانفر (سال ۳۶):
«گرنبودی جان احوال پس جهود
کی جدا کردی دو نیکوکار را»
نسخهی علیخان:
«گر نبودی جانِ احوالُُُِِِِِِ جنود
کی جدا کردی دو نیکوکار را»
نمونهی تغییر شاه ستیزی:
فروزانفر (غ ۴۸۰):
«برو ملرز فدا کن چه شد خدای تو نیست»
فخرالمولوی:
«برو ملرز فدا کن چه شه خدای تو نیست»
فروزانفر (غزل ۷۳):
«آمد بت میخانه...»
فخرالمولوی:
«آمد شَه می خواره...»
نمونهی خالی کردن دیوان از بار انقلابی و قدرت ستیزی:
فروزانفر (غزل ۲۵):
«برهنه کن به یک ساغر حریف امتحانی را»
التفرشی:
«برهنه کن به یک ساغر غریو امتحانی را»
که معلوم میشود استاد تصحیح کننده به جای تمرین فریاد در مستی و راستی، ترجیح داده کنکور برهنگان را برگزار کند!
نمونهی دینی کردن غزلهای کفرآمیز:
فروزانفر (۱۹۵):
«در رو به عشق دینی تا شاهدان ببینی»
فخرالمولوی و طبرسی:
«در رو ز عشق دنیا تا شاهدان ببینی»
و...
- موارد اختلاف، با توجه به حجم دیوان کبیر، اینقدر زاید هستند که بازچاپ تمام آن را ضروری میسازند؟ گمان نمیکنید توضیح این موارد در یک رساله همان اندازه موثر باشد و خوانندگان را بیشتر متوجه افکار مولانا و تصرفات مصححان در آثار او کند؟
- ضرورت بسنده کردن به یک رسالهی کوتاه برای چیست؟ نگرانی شما را درک نمیکنم. رسالهی کوتاه تاثیر اندک خواهد داشت. مگر اینکه تمایل داشته باشیم مردم همان نسخ پرغلط را مرجع قرار دهند؟ حجم دیوان کبیر تصحیح آن را غیر ضروری نمیکند، از آن گذشته موارد اختلاف همانطور که توضیحش رفت موارد صرفا دستوری نیست، بلکه مواردی عقیدتی است و چند جهانبینی را به تقابل میکشد. اما سوال این است که چرا برای نابودی کل این اثر در طول تاریخ باید آستینهای خرافات را بالا زد و کتابخانهها نوشت اما در تصحیح مدرن غزلها به یک رسالهی مرخم بسنده کرد؟
- آیا در کار بازتصحیح از آثار دیگر مولانا، به عنوان مثال از مثنوی هم کمک گرفتهاید؟
- این بحث تکنیکی و مفصل است. شما از آثار دیگری از مولانا نام بردهاید و من بنا به دلایلی تردید دارم که دیوان کبیر را بشود با اثر دیگری مقایسه کرد به خصوص مثنوی. امکان ندارد آدمی که ترک امت و منبر میگوید دوباره به گذشتهی اجتماعی برگردد. در تناوب و پلههای تجربه نیز همان گونه که مولانا میگوید «خام بودم، پخته شدم، سوختم»، مثنوی معنوی مربوط به دورهی پختهگی و دیوان کبیر، شوریدهگی و سوختن و خاکستر شدن در حقیقت زندگی است. به همین دلیل کسانی که به غلط و رفتهرفته در جامعه جا انداختند که مثنوی بعد از دیوان کبیر سروده شده، این توالی و تناوب را به صورت «خام بودم، سوختم، پخته شدم» عرضه میکنند! امکان ندارد مولانا پس از قتل شمس تبریزی دوباره به ارشاد جامعهی نخبهکش همت گماشته باشد. منطقی است که وی بعد از این حادثه اشعارش را در آسیابهای صدا گیر سروده باشد تا در گوش صوفیانی که صافی نبودند.
در دیوان کبیر با مولانای انکارگرِ تمایزها روبرو هستیم تا با مولانای تأسی کننده به نظامی جهانی که در آن، قوانین رؤیت از طریق دل را ممنوع کرده است «لیک کس را دید جان دستور نیست»، چه مولانا در راه خویش در مثنوی مصممتر شده، ولی در دیوان کبیر با رادیکالیزم هشداردهنده سر و کار داریم که خود را مرتبا به سکوت و خودداری دعوت میکند چون خطرشناس است. این حجاب در مثنوی مشهود نیست زیرا به نظر من مثنوی پیش از دیوان کبیر سروده شده و کمکم تجربههای حیات تلخ و شیرین او را از آسمان به زمین آورده و جاری کرده است. حلاوت شمس و تجلی غیبت او احساس گناه تجربهی این سفر اخیر است. تجربهای که کم کم از آموزههای کورکورانه به تحولی میرسد که از میراث پدری فاصله گرفته، در شورشگری بیبدیلی رخ مینماید. میبینید که نمیتوانیم در بازنگری دیوان کبیر هیچ اثر دیگری را مگر دیوان کبیر مورد استناد قرار دهیم. دیوان کبیر اثر خطرناکی است، منحصر به فرد است و مولانا در آن (آنارشیستی شایستهی آتش) است و نظریات شمس تبریزی نماد تحول آنارشیزم اورینتال. به همین دلیل نیز در هیبت شعلههای قرون وسطای جهان خاکستر شده، زیرا تعصب مرزی ندارد، پس مقاومت نیز عنصری فرامرز است.
- آیا بخشی از برداشتهای گوناگون و بعضا متضاد را نمیتوان به حساب فقدان سنت مستندسازی و واقع نگاری نزد ما ایرانیان گذاشت؟ شما که به درستی، تذکرهنویسان را غیر قابل اعتماد و افسانه پرداز میخوانید روایت آنها را در مورد قتل شمس تبریزی میپذیرید. در حالی که در اشعار مولانا اشارهی صریح و مستقیمی به واقعهای چنین مهم دیده نمی شود. به این ترتیب شما نیز برای توضیح استنباط خود بخشی از روایتهای تذکرهنویسان را میپذیرید. معیارهای سنجش درستی و نادرستی روایات مختلف کدام است؟
- فقدان واقع نگاری هدفی است که دیکتاتورهای پنهان و آشکار بدان خدمات خیرببینی کردهاند اما شما دیگر چرا انکار و دفعش می کنید؟
«تو مگو دفع که این دعوی ِخون کهن است
خون عشاق نخفتست و نخسبد به جهان
هم در این کوی کسی یافت ز ناگه اثرش
جامه پر خون شدهی اوست ببینید نشان» (غ ۱۹۹۴)
در مورد قتل شمس تبریزی تردیدی ندارم اگر به یکی از مقالههای این سازش ناپذیر گیرداده باشند. به همین گیر میتوانستند یک لشکر را سر ببرند، بدون اینکه آب از آب تکان بخورد. این اندیشهها هنوز هم در جهان آبستن خطرند. از آن گذشته دیوان کبیر با وجود تصرفها و تحریفها سندی زنده اما بحثی ناگشوده است. دیوان کبیری که با «بو بردن» یعنی از حاشیهی غزلهای دست خورده و نخورده، به متن فاجعهی عصر نزدیکی میکند، دورهی سیاهی است که خموشی راه چاره میجوید تا آن روز بزرگ آزادیِ گفتار طلوع کند.
«نیمهای گفتیم و باقی نیمه، یاران بو برند
یا برای روز ِپنهان نیمه را پنهان کنیم»
و بد نیست بدانید این بیت به «نیمهای گفتیم و باقی نیمه کاران بو برند» تبدیل شده است! (غ ۱۵۹۸) اما چه خوب شد مولانا اشارهی صریح و مستقیمی به واقعهای چنین مهم نکرد وگرنه تکهی بزرگش گوشش بود!
«ای بسا منصور پنهان ز اعتماد جان عشق
ترک منبرها بگفته بر شده بر دارها»
- به این ترتیب ترجمههای صورت گرفته از روی نسخ چاپی هم از درجهی اعتبار ساقط است؟
- باید معجزهای صورت گرفته باشد که ترجمهای صحیح از نسخهای غلط به دست آید.
مثلا نیکلسون «مرد خدا سیر بود بیکباب» را ترجمه کرده است:
«» یعنی «مرد خدا سیر بود بیگوشت»!
و انگلیسی زبانان مشتاق فکر میکنند مرد خدا گیاهخوار بوده است! یعنی نیکلسون نفهمیده که کباب را باید «سور و سات» ترجمه کند. حالا کسی که فرق کباب و سور و سات را نداند، همانجا «مرد خدا گنج بود رو و زیر» را
«» یعنی «مرد خدا گنج بود در خرابه» ترجمه میکند! نباید به این نکته انگشت نهاد که ایشان متوجه نشدهاند مراد از «رو و زیر» در این مصرع زندگی و مرگ بوده است. مراجعه کنید به.. / / /۱۲۷۰ ۱.
و خانم در سایت... «گر بوی نمیبری در این کوی میا» (گر درک نمیکنی به این وادی میا) را «» ترجمه کردهاند و توجه نکردهاند که بو نبردن نیست.
حال تصور بفرمایید چنین مترجم تیزهوشی رباعی تصحیح نشدهی زیر را جلوی رو داشته باشد:
«گویند که فردوس برین خواهد بود
آنجا می ناب و حورعین خواهد بود
پس ماهی و معشوق به کف میداریم
چون عاقبت کار همین خواهد بود»
حتما به بیت دوم که برسد بلافاصله به جای «ماهی» جاسازی خواهد کرد. از کجا بداند بر اساس بیت قبلی قرار شده «می ناب و حورعین» در بهشت باشد، پس «جامی و معشوق به کف میداریم» صحیح است. اگر روی ماهی «» پافشاری کنیم مجبوریم بجای می ِناب در بهشت، ماهیتابه جاسازی کنیم تا منطق شعر را رعایت کرده باشیم.
نیکلسون در مقدمهی مثنوی نوشته است: «در نسخههای شرقیان اغلب بیتوجهی و بیکمالی وجود دارد.» نیکلسون تصحیح را که در آتش سوزی از بین رفت نسخهی مطلوب دانسته اما همراه تصحیح چند نسخهی اصلی خطی (اوریجینال) هم در آتش سوخته و معلوم نیست چرا نیکلسون برای از بین رفتن نسخهی خطی فارسی ابراز تاسف نمیکند! و چرا نسخهی ندیده را کمال مطلوب ارزیابی میکند.
نیکلسون یکی از دلایل تصحیح نسخ خطی را نایاب بودن آن ذکر میکند که در این صورت میشد تنها نسخهی نایاب را تکثیر کرد و دلیل دیگر او برای تصحیح مثنوی نسخ گوناگون مثنوی و اختلاف فاحش میان آنهاست که در این صورت هم تصحیح نو میتوانست به این گوناگونی و اختلاف دامن بزند! دلیل دیگر وی عدم اصالت متنهاست که در این صورت نیز نیکلسون باید نسخهی اصیل را ذکر کند. در میان این دلایل اشارهای به مولویگریهایِ قشری و تحریفات آنان نشده است.
- با استدلالهای مشابه میتوان هر تلاش تازه برای تصحیح مجدد دیوان کبیر را نیز مورد تردید قرار داد. «اصالت» متن پیشنهادی شما بیشتر از روش تحقیق متفاوت منتج میشود یا از تکیه بر منابع قابل اعتمادتر؟
- موارد قابل اعتماد در منابع بسیار قلیل است. ضمن اینکه تضمین نمیکنم ذوق و سلیقه تا پایان کار، آدم را به حضور و دقت نظر یاری دهد. اگر هم به دنبال منابع تاریخی دیگری باشیم در تعریف نفسِ قدرت دچار تردید شدهایم. برای قدرتی که شاعر را در پوست خیس شده میپیچد و جلوی آفتاب درازش میکند و بعد تن خشکش را به آتش تذهیب میافکند و وکیل مدافعاش را زبان میبرد، گم و گور کردن سرنخها کار مشکلی نیست. اصالت متن پیشنهادی من در دیوان کبیریست که عشق جهانی را در مقابل قدرتهای جهانی چارهساز کند و گرنه راه بشر و بشریت را این قدرتها همواره به ترکستان ختم میکنند!
- نیکلسون برای تصحیح دیگری از مثنوی دلایل دیگری هم ارایه میکند؟
- دلیل دیگر تصحیح مکرر متن مثنوی ابهامات چاپهای شرقی ذکر شده است. معتقد است مثنویخواندن، فکر و هوش میخواهد و این هوش را تنها نسخهنویسان غربی داشتهاند!! بدک نیست خوانندهی فارسی به نوع تحریر نیکلسون دقت کند تا دریابد ایشان فرق «کاف» و «گاف» و کسرهی مستتر را نمیدانند چون «چشمی» میبینند و از حافظهی زبانی مدد نمیگیرند. به همین دلیل ساده نسخههای خطی را نمیتوانستهاند بخوانند. از مقدمهی مثنوی به قلم ایشان بخوانیم:
«در چاپهای شرقی حرف «کَه» به معنای «کاه»، «گَه» به معنای «گاه»، «که» به معنای «کوچک»، «که» به معنای «کوه» و «گه» به معنای «گاهی» ممکن است دو یا سه بار به معانی مختلف در یک بیت آمده باشند.»
«که» به عنوان «چه کسی» و «کسی که» یعنی به عنوانِ ضمیر استفاده میشود مثل
«از حلاوتها که دارد جور تو؟» این اشتباه خوانش مصوتها (بدون اعراب گذاری)، خاصهی خارجیانیست که با زبان به صورت خطی و سواد خواندن نوشتن آشنایی پیدا میکنند. آنکه با زبان به دنیا میآید به کمک حافظه زیر و زبر را حدس میزند. نیکلسون که مدعی هوش فرا شرقی است «که» را اینگونه به کار میبرد: «سعی من این بوده که متنی در اختیار محصلان قرار دهم که...» به کار بردن دو «که» ی موصولی در یک جمله نشانهی عدم درک صحیح و هوشمندانه از کاربرد حرف ربط است. این اتفاق در مقدمهی مثنوی غلطی چاپی نیست چون تکرار شده. مثلا صفحهی ۹ سطر دهم:
«و آن این است که همکاران من که... سالهاست که فکر انجام کارهای فوق را در سر دارم»
صفحه ۱۱ پاراگراف دوم:
«تاسفی که موسیو والنبورگ بر سر از دست دادن این استاد خورد بیش از آن بود که بر سر از دست دادن همهی اموال خود خورد»
نیکلسون نمیداند برای جلوگیری از تکرار موصول «که» و فعل «خوردن» باید جمله را اینطور بنویسید:
«تاسف موسیو والنبورگ بر سر از دست دادن این استاد بیش از آن بود که بر سر از دست دادن همهی اموالش خورد.»
صفحه ۱۲ سطر دوم:
«عدهای که تعدادشان کمک نیست اصرار دارند که محققان متون ادبیات فارسی به جای این که کتابهایی را تصحیح کنند که قبلا به چاپ رسیده است باید همت خود را صرف متونی کنند که...»
یا «خواننده حق دارد که انتظار داشته باشد مثنوییی که به دستش دادهاند...»
یا «اگر ثابت کنیم که در و قرائتهای بسیاری هست که پس از آن میتوان فرض کرد که در موارد دیگر نیز که جهت و منظور از این تغییرات معلوم نیست...»
با مراجعه به نوع تحریر نیکلسون در مییابیم این ادیب هوشمند کاربرد صحیح «که» حرف ربط را نمیدانند و از این هوشمندان زیاد از حد که داشتهایم! جالب آنکه نیکلسون مینویسد نسخهی خطی مثنوی متعلق به اوست (متعلق به خودم) در حالیکه برای رعایت ادب فرهنگستانی باید اعلام میکرد «نسخهی خطی کتابت ۱۴۲۹ میلادی به امانت نزد اوست» و این تنها از بیپروایی مستشرقین وزارت امور خارجه در کشورهای استعمارزده حکایت دارد. «در هر کنار و گوشهی این شورهزار یأس» استعمار چون هیولای عظیم و غیرقابل مقابلهای چنان تحقیرآمیز سربرآورده و دولتها و حکومتهای ایرانی چنان روسپیوار به پای اجنبی افتادهاند که مگر رسوایی از لابلای این سطور نمییابیم! همین سرنوشت زیرخاکیها و مینیاتورها، نسخ خطی، نقاشیها و سرنوشتهاست، سرنوشت میلیونها خانه به دوش فرهنگ گریز را میگویم. همین جا باید اعلام کرد که تصحیح نیکلسون از مثنوی چندان هم که ایشان ادعا میکنند از درجهی والای اصالت برخوردار نیست و نسخهی قونیه از نسخهی دانشگاه لوند معتبرتر است.
«بشنو این نی چوون (چگونه) شکایت میکند
از جدائیها حکایت میکند
کز نیستان چون (به خاطر اینکه) مرا بُبریدهاند
در نفیرم (همراه نالهی من) مرد و زن نالیدهاند
سینه خواهم شرحه شرحه از فراق
تا بگویم شرح، دردِ اشتیاق»
که مراد «شرحگفتن» است نه «شرح ِ گفتن»...
- برخی اختلافهای قرائت میتواند از برداشتها و سلیقههای گوناگون ناشی شود؛ مثلا آخرین بیتی را که نقل کردید بعضی «تا بگویم شرح ِ دردِ اشتیاق» میخوانند که اگر شرح را به معنای وصف بگیریم هم درست است و هم با معنای باقی ابیات تناقضی ندارد. آیا نمیتوان برخی اختلافهای قرائتها را به ویژه با توجه به کمبودهای شیوهی نگارش فارسی به عنوان وجوه محتمل پذیرفت و هر قرائتی را که از این نوع باشد (و نه تصرفات مصلحت جویانه را) به عنوان تأویل پذیری متن در نظر گرفت؟
- اختلافهای قرائت، به هیچ وجه! اختلاف منظرگاه، بله. همین «شرح ِ درد ِ اشتیاق» را در نظر بگیرید با آن کسرهی عمومیت یافتهاش. تصور عمومی بر آنست که «شرح دادن» همان «شرح گفتن» است درحالی که چنین نیست. «گفتن» از افعال کمکی نیست بلکه فعل مستقل است و «شرح» برای توصیفِ چگونگی «گفتن» به جای قید نشسته است و کسرهی موصوفی زاید است و معنا را تحت تاثیر قرار میدهد. میتوانیم در اینجور موارد از راهکاری ساده و مکتبی استفاده کنیم و آن طرح هموارهی این پرسشهاست:
۱- چه چیزی را؟
۲ - چه کارش می کنم؟
۳ - چگونه؟
در مورد «تا بگویم شرح، درد ِ اشتیاق» پاسخها اینگونه است:
۱- چه چیزی را بگویم؟ درد ِ اشتیاق را.
۲- چکارش کنم؟ بگویم.
۳- چگونه؟ دقیق و افشا و کامل و مشروح...
کسرههای نابجا معانی را به کلی تغییر میدهد. دکتر مولاشناسی در این حوالی «آب ِ روان در دل جوی» با سکون لام را «آب ِ روان در دل ِ جوی» تدریس میفرمود! در مصراع ِ «بگرفته ز جام ِ پادشاهی مائیم» به پرسش شماره ی ۱ پاسخی داده نمیشود. از جام ِ پادشاهی یک چیزی میگیریم که معلوم نیست چیست! مشکل ما اینجا هم همان کسرهی بیمسوولیتیست که زیر «جام» جاسازی کردهایم. در غیر اینصورت «بگرفته ز جام، پادشاهی مائیم» یعنی از سکر و مستی به تخت پادشاهی رسیده ایم، درست است. اما این ترکیب در «بنشسته به تخت ِ پادشاهی، ماییم» صدق نمی کند. اما در دنبالهی شعر «در دور سپهر و مهر ساقی مائیم» باید از بکار بردن کسره چشم پوشیم. ما اشعار شاعران معاصر را هم از طریق همین بی دقتیها رو به قبله میکنیم. عجیب است که از این غلط خوانی کیفور هم میشویم!
- تصحیح انتقادی متون کهن علمی است که در غرب پدید آمده و به همین علت شرقشناسان مولف و بانی انتشار اولین چاپهای انتقادی آثار کهن ما بودهاند و یکی از معتبرترین تاریخهای ادبیات کلاسیک ما را یکی از همینها نوشته است. آیا شما در کار تصحیح مجدد دیوان کبیر خود را از تلاشهای مستشرقان بی نیاز میبیند و راه تازهای در پیش گرفتهاید یا این که با بهره گیری از همان اصول نسخ منتشر شده را مورد نقد و بررسی قرار میدهید؟
- تصحیح انتقادی متون کهن در غرب آغاز شده اما در غرب به پایان نرسیده است! به این معنا هم نیست که شرقیها نمیتوانند نسخ خطی خودشان را به زبان مادریشان بخوانند! گویا مثالهایی که در مورد نیکلسون آوردم قابل درک نبوده است. مشکل این است که با دست خالی وارد معرکه میشویم، در امواج غوطه میخوریم چون ساختار اجتماعی نامنسجم در حوزهی نفتی هستیم! کارخانهی ویسکی را به خاطر اینکه زکریای رازی کاشف الکل بوده و علم تقطیر الکل را در شرق پدید آورده شماتت نمیکنند و به آن کارخانه پیشنهاد نمیکند تقطیر را به زکریا واگذار کند! در خواندن نسخ خطی بورس خداشناسی ِ کمبریج فقط آبها را گل آلود کرده. مستشرق محترم غزل ۴۳۶ را میگذارد روی میز تحریر و فکر میکند میتواند با داشتن یک دیکشنری و استفاده از اصول تحقیق یعنی استفاده از یک بومی ِ دست به سینهی خالیبند که سین را جیم باستحضار میرساند، اشعار را ترجمه کند. حاصل کار چنین معجونیست:
«گفتا چه کار داری گفتم مها سلامت»
قبول بفرمابید مستشرق ما نفهمیده «چه کار داری» همان «چه میخواهی» ست و به همین دلیل «چه حرفهای داری» برگردانش کرده!
«دست و کنار و نغمهی عثمانم آرزوست» (سایت ِ ترجمهی انگلیسی) «دست و کنار» را به جای «دست افشانی» ترجمه کرده «».
- عدهای از صاحبنظران مولانا را شاعری ملی میدانند، با توجه به نگرش تازهای که ارایه دادهاید، در این باره چه نظری دارید؟
- در کلِ دیوان شمس دو سه باری بیشتر از قوم مغول نام برده نشده اما از خونریزیِ قدرتهای ملیِ همشیرهای، لطف خلق و روشنفکران خاموشی و مرشدان رشد نیافته بسیار سخن گفته شده است.
«مردان رهت که سر ُِ معنی دانند
از دیدهی کوتهنظران پنهانند
آنطرفهتر آنکه هر که حق را بشناخت
مومن شد و خلق کافرش میخوانند»
ولی من واقعا این رسم و عادت را نمیفهمم که اول چرا طرف را به کوچ و مهاجرت وامیدارند و برسرش توطئه میکنند، سعی میکنند در گوشهای بنشانندش تا خفقان بگیرد، او را به جنون میکشند، خون دلبندانش را میریزند، ویرانش میکنند و در تلخی و تنهایی غوطهورش میسازند و بلافاصله بعد از مرگش به شاعر ملی تبدیلش میکنند!
همین سناریویِ شاعر ملی برای نیمای نوآوری که آقای فروزانفر به کوههای شمال تهران فراریش دادند و شاملویی که در نهانخانهی فردیس کرج چشم از جهان فروبست تکرار نشده است!! حتا فریاد نیما عنوان مجموعهای از شعر اوست (دنیا خانهی من است)
و سوال این است که چرا مردم باید از حضور زندهی یک شاعر جهانی در کشورشان شرمنده باشند، پس گارسیا لورکا شاعر اسپانیاییست و ما حق نداریم اشعارش را زمزمه کنیم!! باور کنید وقتی در مقام مولانا، لفظِ شاعر جهانی را به کار میبرم به خاطر محدود کردن گسترهی بیکران طلب او احساس مجابکنندهای ندارم. زیرا تک خالهای نادرٍ تجلی عشق، از شاهراهی ورا کهکشانی میگذرند.
«این جهان و آن جهان مرا مطلب
کین دو گم شد در آن جهان که منم»
- عروضشناشان معتقدند برخی اشعار مولانا خارج از اوزان شناخته شدهاند و بهطور کلی ریتم شناسی و ضربآهنگ در آثار مولوی همواره بحثانگیز است....
- اکثر کسانی که از نظر وزنشناسی آثار مولانا را تحلیل کردهاند، یک بار هم در زندگی سازِ دف و رباب را به دست نگرفتهاند و ضد ضربها را نمیشناسند و نمیدانند حتا طبل بزرگِ سربازخانه زیرپای چپ است. عروض و قافیه را هم تجربهی مستقیم موسیقی رایانهای که به میان بیاید سیلاب خواهد برد، چون نوشتن ضربها به صورت حروف، نت نویسی قرون وسطیای موسیقی است و دیگر مانند حساب کتاب چرتکه در مقابل ماشینهای حسابگر، از اعتباری برخوردار نخواهد بود. مولانا در برخی اشعار به جای ضرب یک بیت از جملههای ضربی (فرازهای ضرب) استفاده میکند، یعنی به جای ضرب ِ
۱-۲-۳-۴
۱-۲-۳-۴
که سادهترین و عامیانهترین تقسیم قابل فهم است به فرازهای
۱-۲-۳-۴
۱-۲-۳-۴
۱-۲-۳-۴۴۴
و
۱-۲-۳-۴
۱-۲-۳-۴
۱-۲-۳-۴۴۵
میرسد که هر بخش یک جملهی ضربی به حساب میآید و به وسیلهی پلی (پاساژ) به جملهی ریتمیک بعدی میچسبد. ضربهای ترکیبی و ضدضربها در قالب عروض نمیگنجد. از آن گذشته در اجرا از یک سوم مصرع اول به مصرع دوم میچسباند، مثل این بیت:
«گر دستبوس وصل تو یابد دلم* در جست و جو
بس بوسهها که دل دهد بر خاک پای آشتی» (غ ۴۹۵۱)
مصراع اول از جایی که علامت زده شده به مصرع بعدی میچسبد نه از انتهای مصراع.
معکوس خوانی و گارمانی، گسسته خوانی، محاوره خوانی نیز باید رعایت شود که مواردی است تخصصی.
- عدهای معتقدند که دیوان کبیر دیوانی یکدست نیست و اشعار شاعرانی چند در آن گرد آمده! این مطلب از دیدگاه شما تا چه اندازه صحت دارد؟
- مولانا به فرضیهی کپرنیک که کفر به حساب میآمده معتقد بوده و علمی که در دیوان کبیر بدان خصومت میورزیده، دانش نبوده بلکه علم فقه دوره بوده که در مکتبخانه توسط عالم تقلبی آموخته میشده است. اما برخی از فناتیکهای ما که علم را دشمن خرافات بیانتهای خویش میشناسند، علم را با دانش یکی دانستهاند و این تحقیق کودکانه را برای گرفتن سوبسید نفتی در مملکت باب کردهاند که برخی غزلهای دیوان کبیر متعلق به مولانا نیست. نمیدانم این تحقییق در یک مجموعهی پر از غلط و تحریف که دیوان کبیر فعلی باشد چه دردی را دوا خواهدکرد؟ گیرم برخی از غزلها را مولانا جلالالدین یلخی () گفته باشد، حالا اگر مولانا آن اشعار را سروده پس جزو سرودههای یلخی او به حساب خواهد آمد. اول باید سقف و دیوار و کف و پنجرهی خانه را به اثبات رساند، بعد برای آن مالک و موجر تعیین کرد. روشن است که قتل شمس تبریزی آنارشیست شوریده و اقتدار ستیز عصر، به دست انتگرالیستهای دوره در دایرهی قتلهای زنجیرهای تاریخ قرار میگیرد. درست است که جوردانو برونو (۱۶۰۰- ۵۴۸) در دورهی تفتیش عقاید کلیسا ۲۲۸ سال بعد از قتل شمس تبریزی (۲۷۰) سوزانده شد، ولی تاریخ انگیزسیون و تفتیش عقاید در اروپا نیز درست زمان جدال مولانا و شمس تبریزی با تعصب، یعنی از اواخر قرن دوازدهم و اوایل قرن سیزدهم اتفاق افتاده است و همهی کفار که از کتاب مقدس فراتر میرفتهاند و ایدهی کتاب مقدس را به فلسفه آغشته میکردهاند، پاکسازی میشدند. اندیشهی پلوتینوس و کپرنیک دربارهی اقالیم و مرکزیت خورشید و گرد بودن زمین و عدم تناهی عالم، وحدت وجود پارمندیس و اتمیسم دموکریتوس و تجانس تضادها و... در اقلام این کفران قرار میگیرد:
«آخر دور جهان با اولش یکسان شده
ابتدای ابتدا با انتها آمیخته»
مولانا با دقتی هنرمندانه و غریب مرکزیت خورشید منظومه شمسی را با نام شمس تبریزی ادغام کرده و مرکزیت عشق انسانی، تجلی این آفتاب در میان آفتابهای دور است.
میدانیم که حلاج، عین القضات همدانی، سهروردی، ابوجعفر شلمغانی، ابوعفک و بسیاری پیش از آنان نیز به دست فناتیکهای دوران پاکسازی شدند، خرمدینان و مزدکیان و دیوان به دست سلحشوران نظام کشتگری درو شدند. «اناالحقِ» حلاج در جایجای دیوان کبیر فریاد میکشد:
«اقتلونی فی ثقاتی...» (غزل ۲۸۱۳):
مرا بکشید یاران که چو کشتید به عشق زنده شوم
زیرا مرگ ذوب شدن تن است
و جامی است مرگ که هر کس را به در کشیدن آن سهمی است
قفس این زندگی را بشکن اگر نجات میطلبی!
اسارت در تن اساس بردگی در تاریخ است، به عکس آزادی روح شوریده میطلبد که در این لامجال نمیگنجد.
این گفتگو در زمستان ۱۳۸۲ به درخواست صاحب امتیاز ماهنامهی باران (چاپ آلمان) آماده شد اما سردبیر بار اول با حذف مواردی و طرح سوالهای جدیدی، آن را پس فرستاد! در تصحیح دوم هم از چاپ آن سر باز زد. دلایل سردبیر و پاسخ من به ایشان بر حجم این مطالب میافزود به همین دلیل در مجالی دیگر به دست علاقهمندان خواهماش رساند.
(سیروس شاملو)
انگار قرن بیستم در ایران سدهی فاصلههای بیست ساله بود. از کودتای رضاخان تا اشغال ایران، از به سلطنت رسیدن پادشاه ۲۰ ساله تا کودتای ۲۸ مرداد، از کودتا تا انقلاب، و از انقلاب تا دوم خرداد. همهی تحولات عظیم سیاسی-اجتماعی، کم و بیش در فاصلهی ۲۰ سال رخ دادهاند. اما این نظم نه تقدیر است (گرچه با دیدی فیلسوفانهتر میتواند تقدیر باشد)، نه تنظیمی حاصل از سیاستهای استعمارگران. بیست سال یعنی سه نسل -یعنی کمرنگ شدن آرمانهای نسل جوان سابق و تولد ارزشها و ایدهآلهای نسل نو. حالا که کمی از شور و حال آخرین تحول سیاسی (دوم خرداد) کاسته شده، میتوان با پرهیز از تندوریهای احساسی و قضاوتهای شتابزده، باری دیگر به دوم خرداد نگاهی معتدل کرد. کندی روند اصلاحات وابسته به عوامل سیاسی-اجتماعی وسیع و پیچیدهای است که این چند خط مجال بیان آنها را نمیدهد. بنابراین ترجیح میدهم با تمرکز روی یک عامل جزئی-ولی حائز اهمیت- به گفت و گو دربارهی اصلاحات بپردازم.
بر این باورم که نطفهی جنبش اصلاحات هنگامی بسته شد که اختلافهایی ظریف میان الیگارشی حکومت ایران پس از تثبیت جمهوری اسلامی و گذار از دوران بحرانی انقلاب و جنگ داخلی کردستان و جنگ با عراق به وجود آمد. این گسل عقیدتی که عمدتا حاصل نگرشهای گوناگون اقتصادی-سیاسی میان الیگارشی حکومت بود، در عمل با ظهور کارگزاران سازندگی و در نهایت با انتخاب خاتمی به ریاست جمهوری قابل رویت شد. روشنفکران مذهبی و طیف چپ حکومت با استفاده از این شرایط برنامهی سیاسی خود را به مردم ارایه دادند. نزدیک بودن مواضع این قشر از حکومت به خواستها -و نه آرمانهای- نسل سوم انقلاب، باعث پشتیبانی گستردهی این گروه از جامعه از اصلاحطلبان در دورهی انتخابات ریاست جمهوری، یک دورهی مجلس، و یک دورهی انتخابات شوراهای شهر شد. این پشتیبانی مردمی نه تنها از جنبش اصلاحات محافظت کرد، بلکه باعث بلوغ و رشد آن به عنوان اپوزوسیون داخلی شد. اما چه شد که این حرکت -با پایگاه مردمی به وسعت بیست و اندی میلیون شهروند- نتوانست محافظهکاران را وادار به عقب نشینی از آرمانهای انقلابی-مذهبی خویش در انتخابات هفتم مجلس بکند؟
۱- ضعف و کمرنگی جامعهی مدنی به هنگام ورود اصلاحطلبان به دولت:
فضای سیاسی حاکم بر ایران در دههی اول انقلاب (جنگ)، فضای لازم برای فعالیت نهادهای مدنی غیر دولتی را به شدت محدود کرد. به همین دلیل جامعهی مدنی ایران که در دوران پس از کودتای ۲۸ مرداد هم به ندرت فرصت رشد و ترقی پیدا کرده بود، در عمل این بار هم نه توسعه پیدا کرد و نه توانست با تودهی مردم ارتباطی مقید و سازنده برقرار کند. در شرایطی که تنها نهادهای مدنی فعال مانند مسجدها، بانکهای قرضالحسنه، و حسینیهها به طور مطلق به سود حکومت مذهبی عمل میکردند، بخش چشمگیری از جامعه نتوانست نیازها وخواستهای خود را در بستر نهادهای مدنی تعریف و تحلیل کند. در نتیجه خواستهای مردم در قالب شعارهای قدیمی و گنگی چون «آزادی»، «عدالت»، «آزادی بیان»، و «حکومت قانون» باقی ماند. هنگامی که اصلاحطلبان نهاد دولت را در اختیار گرفتند، نه جامعهی مدنیای وجود داشت که دولت جدید پایگاه سیاسی خود را بر اساس خواستهای تعریف شده و دقیق جامعهی مدنی بنا کند، نه جامعهی مدنیای وجود داشت که دولت بتواند به توسط آن تودهی مردم به صورت حرفهای و نه شعاری ارتباط برقرار سازد. پس دولت اصلاحطلب برای ادامهی محبوبیتاش میان پشتیبانان مجبور به تکیه بر شعارهای کلی و گنگ سیاسی به جای برنامهای واقعگرایانه میشود -طبیعی است که در شرایطی که قانونها متناقض، گنگ و چند پهلو هستند، شعار قانونگرایی به عنوان برنامهای سیاسی با شکستی نسبی مواجه میشود.
۲- عدم وجود احزاب ریشهدار با پایگاههای مردمی:
در نبود جامعهی مدنی با اقتدار، احزاب سیاسی نقش به سزایی در هماهنگ کردن نهادهای مدنی غیر دولتی و تودهی مردم برای گذار به دموکراسی دارند. بدیهی است که هنگام ورود اصلاحطلبان به دولت در سال ۷۶ احزاب سیاسی کارآمد حرفهای، با پایگاههای مردمی گسترده و حامیان اقتصادی، چه در درون ایران و چه در خارج از ایران وجود نداشتند. اما نبود احزاب سیاسی حرفهای را نباید مختص به فضای سیاسی ایران پس از انقلاب بدانیم. نگاهی گذرا به چند دههی گذشته تاریخ ایران آشکار میکند که احزاب سیاسی حرفهای با برنامهی مشخص عضوگیری و انتخابات درون حزبی منظم و حضور متداوم در سراسر کشور، پدیدهای کمیاب بودهاند. این جا این سوال پیش میآید که تکلیف احزابی که تحولات و وقایع سیاسی ایران به نامشان آغشته شده چه میشود؟ و پاسخ این است که احزاب ایران به دلیل حرفهای نبودن معمولا پیرو دگرگونیهای سیاسی و شخصیتهای کاریزماتیک بودهاند تا پرورندهی اینگونه دگرگونیها و شخصیتها. بد نیست برای روشن شدن این مدعا، ملی شدن صنعت نفت را به یاد آریم که گاه و بیگاه از آن به عنوان دستاورد حزبی با نام «جبهه ملی» یاد میشود. ابتدا باید یادآور شد که «جبهه ملی» یک حزب واحد و مستقل سیاسی نبود، بلکه ائتلافی از چندین محفل سیاسی با بینشهای سیاسی متفاوت بود که حول مسئلهی نفت و به واسطهی تلاش و تشویق دکتر مصدق گرد هم آمده بودند. حمایت گسترده ی مردمی از این ائتلاف در نخستین سال کارش مدیون شخصیت محبوب و کاریزماتیک دکتر مصدق، ارتباط و همکاری وی با آیتالله کاشانی و پشتیبانی تنها حزب سیاسی حرفهای آن زمان، «حزب توده» بود. احزاب عضو ائتلاف «جبهه ملی» به دلیل حرفهای نبودشان نه تنها دارای پایگاه های مردمی قابل ملاحظهای نبود، بلکه از نداشتن حامیان اقتصادیای که بتوانند برنامهی سیاسی دولت را تبلیغ و حمایت کنند، به شدت رنج میبرد. به همین دلیل دولت و شخص نخست وزیر ناگزیر شده بودند که پشتیبانی قشر عظیمی از جامعه را با توصل به مراکز سنتی قدرت در جامعه مانند روحانیون، به دست آورند. همین عدم توانایی در هماهنگ کردن بدون واسطهی مردم بود که سبب شکست دولت به هنگام بروز اختلافات آیتالله کاشانی و «حزب توده» با دولت دکتر مصدق شد. درسالهای نردیک به انقلاب ۱۳۷۵ هم اکثر احزاب سیاسی ما به خاطر اختناق سیاسی و ساختار انقلابیشان نتوانستند سوار بر انفجارهای اجتماعی-سیاسی شوند و در عمل همچون گذشته دنبالهروی شخصیتهای کاریزماتیک و تحولات اجتماعی شدند و به حدی آسیبپذیر گشتند که به واسطهی یک دورهی دیگر اختناق سیاسی به کلی از صحنهی سیاسی کشور حذف شدند.
به طور کلی احزاب سیاسی ایران را در گذر تاریخ به چند دسته می توان تقسیم کرد. دستهی اول «احزاب حکومتی» هستند که بهسان یک ارگان حکومتی عمل میکنند. این احزاب معمولا اساسنامههایی تبلیغاتی دارند و با پشتوانههای چشمگیر اقتصادی، عضوگیریهای تبلیغاتی و ساختارهای درون حزبی غیر دموکراتیک، در پی محدود کردن فضای سیاسی بین حکومت و مردم (جامعه مدنی) و مستحکم کردن پایه های حکومت بودهاند. «حزب رستاخیز» و «حزب جمهوری اسلامی» را به راحتی میتوان در این رده جای داد. دستهی دوم احزاب تاریخ ایران را میتوان «احزاب محفلی» نام گذارد. این گونه احزاب فاقد مرامنامهی حزبی هستند و در عضوگیری بسیار محافظهکارانه عمل میکنند. تازه واردین در احزاب محفلی قدرت تاثیر گذاری بر سیاست های محفل را به دلیل نبود ارزشهای دموکراتیک درون حزبی، ندارند و باید مراحل ترقی را با جلب اعتماد هیات حاکمهی حزب آرام آرام طی کنند تا نزدیک به قلهی ساختار طبقاتی حزب شوند. محفلها اصولا در پایتخت و شهرهای بزرگ مرکزیت دارند و به داشتن دفاتری در شهرهای کوچک برای هماهنگ کردن حامیان، بسنده می کنند. این گونه احزاب گرایش های سیاسیای همانند حکومت دارند و اصولا پس از دوران تثبیت حاکمیت رشد و نمو می کنند و هنگام بروز اختلافات داخلی میان الیگارشی حکومتی دارای «پتانسیل مخالفت» محدود با حکومت هستند. «کانون مترقی» در زمان شاه و «مجمع روحانیون مبارز» -که خاتمی نیز در آن عضویت دارد- را میتوان در این ردهبندی جای داد. دسته ی سوم «احزاب انقلابی» هستند که دربستر انفجارهای اجتماعی میرویند. این گونه احزاب از نظر ساختارهای درون حزبی شبیه احزاب محفلی هستند، با این تفاوت که با تثبیت حاکمیت به خاطر ساختار انقلابیشان، با حذف شدن هستهی مرکزی حزب از میان میروند. احزابی چون «فداییان خلق»، «مجاهدین خلق»، «پیکار» و «تلاش» در این دسته قرار میگیرند. احزابی مانند «نهضت آزادی» را می توان «احزاب نیمه حرفهای» نام گذارد که با اساسنامه و مرامنامهی حزبی، ارزش های دموکراتیک، برنامه ی سیاسی منسجم و واقع گرایانه عضوگیری و انتخابات درون حزبی مداوم عمل می کنند. تنها مشکل این احزاب نداشتن پایگاههای مستحکم مردمی و اقتصادی است. دستهی آخر «احزاب حرفهای» هستند که تمامی عناصر احزاب نیمه حرفهای را شامل میشوند به علاوهی آن که در سراسر کشور حضوری فعال دارند و از حمایت وسیع مردمی-اقتصادی سود میبرند. «حزب توده» در سالهای قبل از کودتا تا حدودی با معیارهای یک حزب حرفهای تطابق داشت. در حال حاضر نیز «جبههی مشارکت» در جهت نزدیکتر شدن به حزبی حرفهای پیش میرود و ادامهی کار آن میتواند تحولی اساسی در ساختار سیاسی ایران ایجاد کند. این تقسیمبندی که نمایانگر ضعف سیستم حزبی در ایران است، به همراه آنچه در رابطه با کمرنگ بودن جامعهی مدنی در ایران گفته شد، لزوم اتّکای دولت جدید را بر سیاستهای مردمی برای تداوم اصلاحات روشن میکند. دولتی که از پایگاههای حزبی و مدنی برخوردار نیست، برای باقی ماندن بر مسند قدرت، به ناگزیر دست به دامان پایگاه سیاسیای شعارـمحور میشود. در حقیقت دولت اصلاحات به سان عضوی از جامعهی مدنی عمل میکند تا جامعهی مدنی و احزاب سیاسی حقیقی مجال رشد و ترقی پیدا کنند. هر چه جامعهی مدنی و احزاب سیاسی ارتباط گستردهتری با تودهی مردم داشته باشند، مقابله با خواستهای مردم دشوارتر میشود. اگر در انتخابات مجلس هفتم شورای نگهبان زحمت پاسخگویی به اعتراضهای اصلاحطلبان را به خود میدهد، این ارتباطی مستقیم با رشد جامعهی مدنی و احزاب سیاسی ایران در چند سال اخیر دارد. ادامهی شورای نگهبان به تخلفات خود بیانگر راه درازی است که جامعهی مدنی و احزاب سیاسی ایران باید طی کنند تا ایران را از زیر سلطهی ارزشهای اقتدارگرایانه برهانند.
پاکت مستطیل شکل سفید درست وسط میز گرد چوبی افتاده بود. سیگارم را آتش زدم و به شعلهی کبریت آنقدر نگاه کردم که خاموش شد. عرق روی پیشانیام را با کف دست پاک کردم و دوباره بیحرکت به پاکت سفید باز نشده خیره شدم.
باید بازش میکردم. بالاخره باید بازش میکردم، حتی اگر تا صبح اینجا مینشستم و سیگار میکشیدم، باز باید یک وقتی بازش میکردم. همانطور که اینهمه سال، پاکتهایی که میرسیدند را باز کرده بودم: پول تلفن، مالیات، ریز نمرات و عید به عید کارت پستال. گوشهی پاکت را میگرفتم و در هوا چند بار تکانش میدادم تا نامهی درونش به سویی بلغزد. بعد طرف دیگر را با دو انگشت آرام آرام جر میدادم، طوری که به نامه صدمهای نرسد. آنوقت میتوانستم گوشهی نامه را با احتیاط بگیرم و از پاکت بیرون بکشم. همیشه دو تا خورده بود. راحت و سریع گشوده میشد و در یک نگاه همه چیز مشخص میشد: پول تلفن، مالیات، ریز نمرات یا عید به عید کارت پستال.
سیگار میان انگشتانم خاکستر میشد و میریخت. این یکی را نمیتوانستم باز کنم. این موجود مستطیل شکل دل پیچهام میانداخت. حق به جانب نشسته بود و حقیقتی را که در درونش داشت به رخم میکشید. فقط کافی بود کمی خم شوم، گوشهی سفیدش را بگیرم و در هوا چند بار تکانش دهم تا نامهی درونش به سویی بلغزد. بعد طرف دیگر را با دو انگشت آرام آرام جر دهم، طوری که به نامه صدمهای نرسد. آنوقت گوشهی نامه را با احتیاط بگیرم و از پاکت بیرون بکشم... چند ثانیه بیشتر طول نمیکشید... همه چیز مشخص میشد.
چشمم را به دیوار دوختم و با کف دست عرق پشت گردنم را پاک کردم. توجهام به تیک تیک ساعت دیواری جلب شد و ناخودآگاه دلم شور افتاد. همسایهی کناری از صبح درل میزد، درلاش ناله میکرد و حرص من را در میآورد. اولین پک را به سیگار زدم و توی استکان کنار دستم خفهاش کردم. اضطراب داشتم و عصبانی بودم. نمیفهمیدم چطور این مستطیل سفید از من قدرتمندتر شده بود. این مستطیل بیخاصیت چطور به خودش اجازه داده بود که برای زندگی من تعیین تکلیف کند؟ که موجودیت من را با یک کلمهی قبول یا رد قضاوت کند؟ حالا تمام معنی زندگی من در چهار سال گذشته بستگی به او داشت. به آن چند تکه کاغذ چسب خورده، با آن شکل بیمزهی چهارگوشش. با ضلعهای موازی و زاویههای دقیق ۹۰ درجه. در ذهنم میدیدمش: آنجا پشت میز خونسرد نشسته بود و میان هزاران ورق، ورق من را نگاه میکرد. ورق من را که مثل هر ورق دیگری بود: چند تکه کاغذ با ضلعهای موازی و زاویههای دقیق ۹۰ درجه و کلمات تایپ شده. تمام ورقها را میدیدم که روی هم انباشته شده بودند. او عینکاش را درآورده بود، روی صندلی فنر دارش لم داده بود و کاغذها را میشمرد: کاغذ یک، کاغذ دو،...، کاغذ سیصد،... من کاغذ صد و بیست و پنج بودم.
یک شب برفی کاغذ را نوشته بودم. پاهایم را که سردشان شده بود زیر پتو گذاشته بودم و شانههایم مثل همیشه از سنگینی کولهام خیلی درد میکردند. یکباره یک خط شعر به ذهنم رسیده بود و روی تکه کاغذی یادداشتاش کرده بودم. چای گذاشته بودم و مثل همیشه چند پر بهار نارنج رویش ریخته بودم. دور تا دور چرکنویسم را پر از نقاشیهای عجیب غریب کرده بودم و چند بار اسم خودم را با دستخطهای متفاوت نوشته بودم. به همه چیز بارها و بارها از نو فکر کرده بودم. چهار سال گذشته را بعد هر جمله مرور کرده بودم. به کتابهای خوانده نشدهی توی کتابخانهام فکر کرده بودم، به نوشتههای نیمه تمام توی کشو، به تمام روزهای آفتابی و برفی که از دست داده بودم، و موی سفیدی که تازه میان موهای سیاهم پیدا شده بود. همه به خاطر همین یک کاغذ. کمی عصبانی شده بودم و دلم با خواهش عجیبی برای کتابها و نوشتههای ناتمام تپیده بود. چند بار خواسته بودم که کاغذ را دور بیندازم ولی بعد به خودم گفته بودم که ارزشش را داشت. قبلا فکرهایم را کرده بودم. هدفم مشخص بود و جای خودم را پیدا کرده بودم، همانطور که طعم دقیق چای مورد علاقهام را: یک قاشق چایخوری چای سیاه و درست هشت پر بهار نارنج. فقط مانده بود اجازهی او که پشت میزش لم داده بود و کاغذ ۱۲۵ میان انبوه کاغذهای روی میزش بود، یک اندازه و یکقد، با ضلعهای موازی و زاویههای دقیق ۹۰ درجه، درست شبیه همهی هزار کاغذ دیگر.
سیگاری آتش زدم و به شعلهی کبریت آنقدر خیره شدم که خاموش شد. تیک تیک ساعت داشت دیوانهام میکرد. دیگر ناخودآگاه با هر ثانیه میشمردم: یک، دو، سه،... شصت، یک،... نمیتوانستم نشمرم. درل همسایه توی گوشت دیوار فرو رفته بود و به استخوانهای من میسایید. پاکت هنوز باز نشده درست وسط میز گرد چوبی نشسته بود. باید بازش میکردم. ساعت پنج بر و بچهها میآمدند که با هم گپی بزنیم. باید چای با طعم بهار نارنج درست میکردم، به گلدانهای پشت پنجره آب میدادم، به مادرم زنگ میزدم و شعرهای هفتگی روی دیوار را عوض میکردم...
اگر این پاکت میگذاشت. این پاکت لعنتی. باید بازش میکردم. بالاخره یک موقعی باید خم میشدم، گوشهی سفیدش را میگرفتم و در هوا چند بار تکانش میدادم تا نامهی درونش به سویی بلغزد. بعد طرف دیگر را با دو انگشت آرام آرام جر میدادم، طوری که به نامه صدمهای نرسد. آنوقت گوشهی نامه را با احتیاط میگرفتم و از پاکت بیرون میکشیدم... با عصبانیت به میز لگد زدم و سرم را محکم به دیوار کوبیدم. پاکت از جایش تکان نخورد. یک مستطیل لوس بیخاصیت بود. فریاد کشیدم: «مستطیل لوس بیخاصیت ننر...» و ناگهان از این که تمام زندگیام بسته به یک مستطیل لوس بیخاصیت بود، خندهام گرفت. سیگار خاکستر شده را توی استکان کنار دستم له کردم و پاهایم را روی میز گذاشتم و لم دادم. او که کاری از دستش بر نمیآمد. میتوانستم اصلا بازش نکنم. هرگز بازش نکنم. از این خیال تمام وجودم در آرامش کرختی فرو رفت.
میدیدمش که چیزی مینویسد. کچل است و پس گردنش مثل یک کاغذ سفید دست نخورده شده. کاغذ را توی پاکت میگذارد، درش را لیس میزند و میچسباند. پشت نامه آدرس من را نوشته. نفس راحتی میکشد که صد و بیست و پنجمین نامه را هم فرستاده و میرود سراغ کاغذ ۱۲۶...
و من پاکت را هرگز باز نمیکنم... از این خیالها لبخند دلنشینی روی لبهایم نشسته بود و سرم کمکم سرگیجهی سکرآوری میگرفت... درل همسایه آرام توی سوراخ دیوار میچرخید... پلکهایم روی هم افتادند... پاکت مستطیل شکل سفید درست وسط میز گرد چوبی افتاده بود... و من روی مبل خوابم برده بود...
- (۱۲۵، کاغذ ۱۲۵!)
- (قربان غایبند!)
- (۱۲۶، کاغذ ۱۲۶!)
بهتر است پیش از شنیدن بخوانید. (سیاوش) برای شنیدن صدا اینجا تقه بزنید (به معمار کوچکی که در تمام تعابیر من هماره کودکانه و شیطان میخندد.)
- «نوبت شماست بفرمایید»
پچپچه میکند مادر
نگران وضع من است
میترسد یکروز که نباشد
خلاص...
این شبها دیگر ثانیهای دلم تنگ میشود
با خودم راه میروم
راه میروم
مینویسم
خط میزنم
مینویسم
خط میزنم
ریسه میروم
عر میزنم
مادر! مادر! بیا
در اتاقش با خودش راه میرود
مینویسد
خط میزند
ریسه میرود
عر میزند
کاغذ مچاله شد
دیشب با یکی از آنها گلاویز شده بودم
آخر نام او را درشت روی خودش داشت
به کسی نگویی دکتر
من نوشته بودم
و زیر آن (کوچک)
«دوستت دارم»
دکتر چرا هر شب در کابوسهای من او را میبرد لولو؟!!
«بچهام از دست رفت»
بارها شنیدهام این را
شبها تا دیروقت در مورد من حرف میزنند
و من پاورچین، پاورچین
تلفن را برمیدارم
حرف میزنم
حرف میزنم
سوت میکشد
به کسی نگویی دکتر
کسی پشت خط نیست
یادم میرود
باور میکنی دکتر
گاهی وقتها ساتور که میبینم وسوسه میشوم!
حالم از دستهای خودم به هم میخورد
دستانی که برای او شعر میگویند
و او در پیچ آرنجهایشان خم میشود
حسد خفهام میکند
وقتی که میخندد
غنج میزند دلم
تمام وجودم ترس میشود و دلهره
ندزدنش دکتر؟
باور میکنی دکتر
گاهی وقتها به خودم هم حسودی میکنم!
آخر خیلی دوستم دارد
چرا؟
مگر من از من چه کم دارم
دیروز عاشق من دیروز بود و
فردا من فردا
مگر چقدر میتوان سخاوتمند بود
که من با همه تقسیمش کنم
حتی با خودم
کودکانه میخندد
کودکانه و شیطان
برادرانه گوش میدهی دکتر؟
دیگران را که میبینم
چشمان همهشان برای برهی من گرگ میشود
ساتور
ساتور که میبینم وسوسه میشوم
میبینی دکتر
آنجا زیر درخت بهارنارنج نشسته است و
شعر میخواند
(شعر مرا)
برادرانه میبینی دکتر؟
انسانهای خوب را دوست دارد
و من کلافه میشوم
وقتی میگوید انسان نازنین و شریفی است
میخواهم انسانهای شریف
ذره ذره
بمیرند
معماری
عاشق معماری است
بمب که میبینم وسوسه میشوم
میخواهم ساختمانها
همه ویران شوند
دکتر در قرن ۲۱ میتوان یک زن را زندانی کرد
تا نبینندش دیگر؟
چه مینویسی دکتر؟
وضعم که خراب نیست؟
یک کم عاشقم
عشقیزوفرنی
بیماری بدی نیست
درمان دارد
تجویز کردهاند
مرگ موش بخورم
دو قاشق
هر وعده بعد شعر
خوب میشوم دکتر؟
خوب میشوم؟
دوستش دارم دکتر
دوستش دارم
دکتر...
دکتر...
دکتر...
«آرام باش
آرام
بزنید»
آخ
دو دو دوس س...
دوستش داررم م
«بیمار بعد
نوبت شماست
بفرمایید...»
ترجمه: بهداد اسفهبد +
نمیدانم. ولی به نظر تنها کاری میرسید که در هفتهی اولِ ژانویهی ۱۹۶۴ میشد انجام داد، و دو نفر را هم پیدا کردم که همراهیَام کنند. یکی از آنها خواسته که نامش فاش نشود، که عیبی ندارد.
فکر میکنم سرمان هنوز داشت از ترورِ پرزیدنت کندی سوت میکشید. آره، احتمالاً این یک ربطی به همهی آن عکسهای درختهای کریسمس داشت. کریسمسِ ۱۹۶۳ افتضاح بود، که با آن همه پرچمهایی که تو آمریکا در امتدادِ تونلِ عزاداری از تیرکهای قد و نیمقد آویزان شده بودند نورانی شده بود.
من با خودم در یک آپارتمانِ خیلی عجیب زندگی میکردم که از قفسِ یک سری پرندههایی که مکزیکی بودند نیز نگهداری میکردم. هر روز به پرندهها غذا میدادم و آبِ پرندهها را عوض میکردم و یک جارویی هم اگر لازم بود به قفس میکشیدم که تمیز شود.
روزِ کریسمس با خودم شام خوردم. یککم هاتداگ و نخودسبز داشتم و یک شیشه رام با کوکاکولا نوشیدم. کریسمسِ غریبی بود و قتلِ پرزیدنت کندی هم تقریباً مثلِ یکی از آن پرندههایی بود که باید هر روز غذا میدادم.
تنها دلیلی که دارم اینها را مطرح میکنم این است که یکجوری از نظرِ روانشناسی پیشزمینه را برای ۳۹۰ عکسِ درختِ کریسمس آماده کنم. آدم بدونِ انگیزهی کافی از این جور کارها نمیکند.
یک بار آخرِ شب داشتم از خانهی چند نفر در نابهیل به خانه بر میگشتم. نشسته بودیم فنجان پشتِ فنجان قهوه خورده بودیم تا رفته بود روی اعصابمان. طرفهای نیمهشب بلند شدم و در یک خیابانِ ساکت و تاریک به سمتِ خانه راه افتادم، و یک درختِ کریسمس دیدم که کنارِ شیرِ آتشنشانی رها شده بود. درخت از تمامِ آذینش لخت شده بود و غمزده آنجا افتاده بود چون سربازِ مردهای پس از جنگی مغلوب. یک هفته قبل از این برای خودش قهرمانی بود. بعد درختِ کریسمسِ دیگری دیدم و ماشینی که تقریباً رویش پارک کرده بود. یک کسی درختَش را در خیابان گذاشته بود و ماشین تصادفاً رویَش رفته بود. درخت به وضوح از توجهِ مهربانِ یک کودک خیلی فاصله داشت. بعضی از شاخههایش از لای سپر زده بودند بیرون.
همان وقتی بود که مردم در سانفرانسیسکو از شرِ درختشان خلاص میشوند و میاندازندش توی خیابان یا یک تکه زمینِ خالی یا هر جای دیگری که بتوانند از شرش خلاص شوند. برای خود سفریست بعد از کریسمس. آن درختهای غمزده و رهاشده جدی وجدانم را به درد آوردند. تمامِ آن چه در توان داشتند برای آن کریسمسِ ترور شده انجام داده بودند و حالا راحت پرتشان میکردند بیرون تا توی خیابان بخوابند مثلِ ولگردها. دوجینشان را همینطور که سرِ سالِ نو به سمتِ خانه میرفتم دیدم. آدمهایی هستند که درختِ کریسمسشان را همینجوری از درِ خانه بیرون پرت میکنند. یکی از دوستانم تعریف میکرد که روزِ ۲۶ دسامبر همانطور که در خیابان راه میرفته، یک درختِ کریسمس از کنارِ گوشِ راستش سوتکشان رد میشود، و میشنود که در بسته میشود. ممکن بود بکشدَش. آدمهای دیگری هم هستند که از راهِ خفا و هنرمندی به انهدامِ درختِ کریسمسشان دست میزنند. آن شب تقریباً کسی را دیدم که یک درختِ کریسمس را بیرون میگذاشت، اما نه کاملاً. مثلِ اسکارلت پیمپِرنل نامرئی بودند. میتوانستم تقریباً صدای درختی را که میانداختند بیرون بشنوم.
سرِ پیچ که رسیدم آنجا وسطِ خیابان یک درخت افتاده بود، ولی کسی آن اطراف نبود. همیشه آدمهایی پیدا میشوند که کارشان را با مهارت انجام میدهند، حالا هر کاری میخواهد باشد.
وقتی به خانه رسیدم یکراست رفتم سراغِ تلفن و به یکی از دوستانم که عکاس است و به منابعِ انرژیِ عجیبِ قرنِ بیستمی دسترسی دارد، زنگ زدم. ساعت تقریباً یکِ صبح بود. از خواب بیدارَش کرده بودم و صدایش داد میزد که هنوز خواب است.
گفت: «کیه؟»
گفتم: «درختهای کریسمس.»
«چی؟»
«درختهای کریسمس.»
پرسید: «تویی ریچارد؟»
«آره.»
«چی شدهاند؟»
گفتم: «کریسمس از پوستِ آدم هم نازکتره. چرا چند صد تا عکس از درختهای کریسمس که تو خیابان رها شدهاند نمیگیریم؟ با این جوری که مردم درختهاشان را بیرون میاندازند، یأس و بیتفاوتیشان را نسبت به کریسمس نشان میدهیم.»
گفت: «میشود این کار را هم کرد. من فردا ساعتِ ناهار شروع میکنم.»
گفتم: «میخواهم ازشان مثلِ سربازهای مرده عکس بگیری. بهشان دست نزن و تنظیمشان نکن. فقط همانجوری که افتادهاند ازشان عکس بگیر.»
روزِ بعد در ساعتِ ناهارَش از درختهای کریسمس عکس گرفت. تو مِیسیز کار میکرد و از سربالاییهای نابهیل و چایناتاون بالا رفت و آنجا از درختهای کریسمس عکس گرفت.
۱، ۲، ۳، ۴، ۵، ۹، ۱۱، ۱۴، ۲۱، ۲۸، ۳۷، ۵۲، ۶۶.
شب بهش زنگ زدم.
«چطور پیش میرود؟»
گفت: «عالی.»
روزِ بعد باز هم ساعتِ ناهار از درختهای کریسمس عکس گرفت.
۷۲، ۸۵، ۱۱۷، ۱۲۸، ۱۳۷.
آن شب هم بهش زنگ زدم.
«چطور شد؟»
گفت: «بهتر از این نمیشود. تقریباً ۱۵۰تا گرفتم.»
گفتم: «ادامه بده.» داشتم برای آخرِ هفته یک ماشین جور میکردم که بتوانیم بیشتر حرکت کنیم و از درختهای کریسمس عکس بگیریم.
شخصی که روزِ بعد رانندهمان بود ترجیح میدهد که نامش فاش نشود. میترسد اگر بفهمند آن روز با ما همکاری کرده کارَش را از دست بدهد و با فشارهای اقتصادی و اجتماعی مواجه شود. صبحِ بعد شروع کردیم و دور تا دورِ سانفرانسیسکو رانندگی کردیم و از درختهای کریسمسِ رها شده عکس گرفتیم. پروژه را با هیجانِ یک حرکتِ انقلابیِ سه نفره ادامه دادیم.
۱۴۲، ۱۵۹، ۱۶۸، ۱۷۵، ۱۸۳.
همینطور میراندیم و یک درختِ کریسمس نشان میکردیم که احتمالاً در حیاطِ جلوی خانهی یکی تو پسیفیکهایتز یا کنارِ یک بقالیِ ایتالیایی تو نورثبیچ افتاده بود. یک دفعه میایستادیم و میپریدیم بیرون و به سمتِ درختِ کریسمس حملهور میشدیم و شروع میکردیم از هر زاویهای عکس گرفتن. مردمِ سادهی سانفرانسیسکو احتمالاً فکر میکردند هر سهمان پاک خل شدهایم: علافیم. از دید قدیمیترها، فقط ترافیک درست میکردیم.
۱۹۹، ۲۱۵، ۲۲۷، ۲۳۳، ۲۴۵.
لارنس فرلینگتیِ شاعر را دیدیم که با سگش در پاترِرو هیل راه میرفت. ما را دید که از ماشین بیرون پریدیم و فوری شروع کردیم به عکس گرفتن از درختِ کریسمسی که کنارِ پیادهرو افتاده بود.
۲۷۷، ۲۷۸، ۲۷۹، ۲۸۰، ۲۸۱.
همینطور که رد میشد گفت: «از درختهای کریسمس عکس میگیرید؟»
گفتیم: «تقریباً» و همهمان با بدگمانی اندیشیدیم: یعنی فهمیده چهکار داریم میکنیم؟ میخواستیم به صورتِ یک رازِ بزرگ نگهَش داریم. فکر میکردیم که کارِ خیلی بزرگی میکنیم و قبل از این که تمام شود باید به اندازهی کافی دقت کنیم.
آن روز به پایان رسید و تعدادِ کلِ عکسهای درختِ کریسمسمان از مرزِ ۳۰۰ بالا زد.
باب گفت: «فکر نمیکنی به اندازهی کافی گرفتهایم؟»
گفتم: «نه، فقط چندتا دیگر.»
۳۱۷، ۳۳۲، ۳۴۵، ۳۵۶، ۳۷۰.
باب گفت: «حالا؟»
کلِ سانفرانسیسکو را یک بارِ دیگر گشته بودیم و در تلگرافهیل بودیم. داشتیم از یک راهپلهی شکسته پایین میرفتیم که روی حصارِ سیمیاش یک نفر یک درختِ کریسمس انداخته بود. درخت همان معصومیتِ سنت سباستین را داشت با همان پیکانها و همه چیز.
گفتم: «نه، فقط چندتا دیگر.»
۳۸۶، ۳۸۷، ۳۸۸، ۳۸۹، ۳۹۰.
باب گفت: «باید کافی باشد دیگر،»
گفتم: «آره به نظرم.»
همهمان حسابی خوشحال بودیم. این هم از هفتهی اولِ ۱۹۶۴. وضعِ غریبی در آمریکا بود.
ترجمه: بهداد اسفهبد +
نفَست دلانگیز است
چشمانت چون دو جواهر در آسمان.
قامتت راست است، موهایت صاف
بر بالشی که میآرامی بر آن.
ولی مرا به تو مهری نیست
نه عشق و نه سپاس
وفاداریِ تو به من نیست
به ستارگان بالاست.
قهوهای دیگر برای راه،
قهوهای دیگر پیش از آن که بروم
به راهِ دور.
پدرت یاغیای بیش نیست
و آوارهی حقهبازی
به تو میآموزد که چگونه جیب بزنی
و چگونه تیزی بیاندازی.
او سلطهاش را میپاید
تا غریبهای داخل نیاید
صدایش میلرزد وقتی داد میزند
و باز غذا میخواهد.
قهوهای دیگر برای راه،
قهوهای دیگر پیش از آن که بروم
به راهِ دور.
خواهرت آینده را میبیند
چون مادرت و خودت.
هرگز نیاموختی که بخوانی و بنویسی
کتابی نیست بر طاقچهات.
و خواستنت حدی نمیشناسد
صدایت به بلبلی میماند
ولی قلبت چو اقیانوسیست
اسرارآمیز و سرد.
قهوهای دیگر برای راه،
قهوهای دیگر پیش از آن که بروم
به راهِ دور.
ترجمه: بهداد اسفهبد
این است آنچه باید انجام دهی:
زمین و خورشید و حیوانات را دوست بدار،
ثروتمندان را خوار شمار، به هر کس که درخواست کرد کمک کن،
برای احمق و دیوانه برخیز،
دسترنج و تلاشت را وقف دیگران کن،
از ستمگر نفرت داشته باش، در باب خدا مشاجره مکن،
نسبت به مردم صبر و بخشایش پیشه کن،
کلاهت را برای هیچ چیز از سر برمدار، دانسته،
یا نادانسته، یا برای کسی، یا گروهی،
با مردم نیرومند تحصیلنکرده راحت باش،
و با جوانان و با مادران خانوادهها،
این برگها را در هوای آزاد بخوان هر فصل هر سال از زندگیت،
هرآنچه در مدرسه یا در کلیسا یا در هر کتابی آموزیدهای
از نو بیاموز،
هرآنچه روح خودت را میآزارد کنار گذار،
و باشد که جسمت شعری بزرگ باشد...
و یک بار در کودکی،
در یک روز آفتابی،
در راه بازگشت از مدرسه به خانه،
در کوچهای خلوت، کشیک کشیدم،
و برادرم را از دیواری بالا فرستادم،
تا گلِ رزِ زردی بچیند.
= ۲. = ۲ = ۲!
قضیه: بدیهی است که = ۲.
اثبات: ابتدا ثابت میکنیم = ۲: برای مثال فرض کنید ۲، در این صورت شاید = ۳، یا = ۴، یا به طور کلی بدون کاهش از تمامیت مساله =. حال به استقرا ثابت مینماییم که، مگر و فقط مگر =۲.
پایهی استقرا، =۳: اگر = ۳ آنگاه به جای هیروشیما، کل کرهی خاکی ذوب شده بود. چون نشد، پس ۳، و در نتیجه ۳.
مرحلهی استقرایی،> ۳: با توجه به فرض استقرا میدانیم ۴، ۴،...، و -۱. در نتیجه <=۲ یا =.
به خواننده وامیگذاریم تا با تکنیک بالا (۶ آگوست ۱۹۴۵) ثابت کند که، به عبارتی فقط میماند <=۲.
حال نشان میدهیم ۱، ۰:
چون در دنیایی به حداقل سه بعد زندگی میکنیم، و امواج انرژی در هر سه بعد منتشر میشوند، پس هر موج به صورت یک رویهی دو بعدی است (که در ابتدا به شکل یک رویهی کروی ست). پس =۲. توجه کنید که در یک دنیای دوبعدی امواج انرژی به شکل دوایر متحدالمرکز منتشر میشوند که شکلی تکبعدی است و در آنجا =۱ [ر. ک.]. اگر برایتان سوال است که بعد امواج انرژی چه دخلی به دارد، این هم واضح است، چون امواج الکترومغناطیس با سرعت منتشر میشوند، پس یک رویهی بعدیی از آنها با سرعت بعدی منتشر میشود.
حال میرسیم به قسمت در = ۲، که یعنی چرا برای مثال نیست = ۲، یا = ۲، یا حتی = ۲، و تا آخر.... این هم واضح است: چون و و و... همگی وابسته به دستگاه مختصات ما میباشند، و با تغییر مبدا و دستگاه تغییر میکنند. این در حالیست که ماده مستقل از محورهای مختصات است و تنها مشخصهای که مستقل از محیط اطراف در تصاحب خود دارد جرم یا همان میباشد. پس وجود هم قطعی مینماید. حال میتوان به طریقی مشابه فوق نشان داد که توان باید و فقط باید ۱ باشد. اما من این جا از روش دیگری استفاده میکنم که نیاز به معلومات بیشتری دارد.
اگر قرار بود جسمی به جرم ۲، انرژیای بیش از ۲ برابر انرژی جسمی به جرم داشته باشد، آنزمان نامش نمیشد ۲، برای مثال میشد. ۴ ۲ به عبارتی جرم خطیست، یعنی اگر از دید اینرسی بررسی کنیم، هر جسمی به همان نسبت ناز دارد که انرژی در توان دارد (یاد بگیرند).
تنها عاملی که برای اثبات میماند ضریب ثابت معادله است. ضریب ثابت معمولا عدد کوچکیست که رسم است با نشان دهند، ولی در این معادله که نمایندهی ثابت بسیار مهمتر و بزرگتریست (۳*۱۰ ۸)، از ضرایب کوچک صرفنظر میکنند. برای مثال در معادلات سادهتر انرژی مانند =۱/۲ ۲ یا =۱/۲ ۲ یا =۱/۲ ۲ از این ثوابت (=۱/۲) صرفنظر نمیکنند.
اثبات تمام است.
به مناسبتِ حلولِ اعتدالِ فروردین و جشنهای باستانیِ ایرانیان در این دوره، در این کوته تنها قصدِ دارم اشارهای گذرا به انواعِ تقویم در تاریخِ این مملکت کرده باشم. تقویم خراجی:
قبل از حملهی اعراب ایرانیان از تقویم شمسی استفاده نمیکردند. با حملهی اعراب، ایرانیان کشاورز که باید به عربها خراج میدادند پس از چند سال متوجه شدند که تقویم عربی نسبت به دورهی کشت و برداشت حرکت میکند، و نمیتوانند خراج خود را در ماه خاصی از این تقویم بپردازند. در نتیجه تقویمی به نام تقویم خراجی به وجود آمد، که تقویمی شمسی بود و شروع آن نیز اول فروردین. سالها بعد در زمان خیام، گروهی از منجمین از جمله خیام جوان، اعتدال فروردین (نیکوست نگوییم اعتدال بهاری، چون آن زمان که در نیمکرهی شمالی بهار است، در نیمکرهی دیگر پائیز آغازیده است) را محاسبه میکنند، و متوجه میشوند که تقویم شمسیشان هجده روز میزند. در نتیجه ۱۸ روز به تقویم میافزایند و آن سال دو بار اول تا هجدهم فروردین دارد. در ضمن، تا اوایل حکومت پهلوی پدر، سال مملکت دوازده ماه سیروزه بود و در پایانِ سال پنج روز اضافه داشت.
تقویم فارسی:
رایجترین تقویم فارسی در جوامع بینالمللی تقویمی است که در سال ۱۹۲۵ به مجلس رضاخانی ارایه شد، که بر اساس تقویم قدیمی جلالی طراحی شده بود. تقویم جلالی توسط گروهی از اخترشناسان از جمله خیام در قرن ۱۲ میلادی طراحی شده است، که شامل ۱۲ ماه ۳۰ روزه و یک شبهماه ۵ روزه (در سالهای کبیسه، ۶ روزه) بوده است. این تقویم دارای دورههای ۳۳ سالهی کبیسهگیری است. تقویم دیگری که این روزها در کتابهای این رشته دیده میشود و از محبوبیت خاصی برخوردار است، تقویمیست که دکتر احمد بیرشک در دوران پیری ارایه کرد. تقویم دکتر بیرشک، بر خلاف باور عموم، از دورههای ۳۳ ساله (هفت دورهی ۴ ساله و یک دورهی ۵ ساله) تشکیل نشده است، بلکه از دورههای ۲۸۲۰ ساله تشکیل شده. هر دوره به زیردورههای ۱۲۸ یا ۱۳۲ ساله تقسیم میشود، که هرکدام از آنها نیز به زیرزیردورههای ۲۹، ۳۳، یا ۳۷ ساله تقسیم میشوند که در هرکدام سالهای مضرب ۴ غیر از آخرینشان کبیسه میباشد. هر سال ۱۲ ماه دارد که ششتای اول ۳۱، پنجتای بعد ۳۰، و ماه آخر بر حسب کبیسه بودن یا نبودن ۲۹ یا ۳۰ روز دارد.
تقویم فارسی در سال ۱۹۲۵ در ایران و ۱۹۵۷ در افغانستان شکل فعلی خود را پذیرفت که سال ۱ را با شروع اسلام همآهنگ میکند. اگرچه دورهی اسلامی از ۱۷ ژوئن ۶۲۲ جولائی آغازیدهاست اما تقویم فارسی فلسفهی اصلی خود را حفظ کرده و در اعتدال بهاری ۶۲۲ جولائی میآغازد. برخلاف تقویم اسلامی، تقویم فارسی خورشیدی است.
اما آنچه دردناک میباشد این است که تقویم ملی ما امروزه این تقویم نیست، بلکه تقویمی نجومی است، بدین معنی که دکتر ایرج ملکپور از موسسهی ژئوفیزیک دانشگاه تهران مختار است هر سالی را کبیسه یا غیر آن اعلام کند. ایشان گفتهاند کتابی منتشر کردهاند (یا در دست انتشار دارند) که وضعیت سالهای گذشته و آینده در جدولهای این کتاب معلوم شده است. این نظام به هیچ وجه برای پیادهسازی در رایانه مناسب نیست. خوشبختانه یا متاسفانه از تابستان ۱۳۸۱، دکتر ایرج ملکپور دیگر ولی تقویم ایران نیستند. این تغییر در پس تشکیل شورای تقویم در دانشگاه تهران رخ داد که دکتر ملکپور حتی در آن عضو نیستند. گفتنی است ایشان از ذکر این مطلب بسیار ناراحت میباشند. میتوان امیدوار بود که به علت ناشی بودن شورای جدید، به راحتی بتوان هر تغییری در سیستم تقویم را به مرحلهی تصویب رساند!
تقویمهای زرتشتی:
زرتشتیگری در دورهی ساسانی رواج یافت، وقتی که شاه شاپور اول (۲۵۰ ق. م.) آن را دین رسمی ایران کرد. پس از حملهی اعراب زرتشتیان در مناطق مختلف پخش شدند که باعث پیدایش گوناگونی در تقویم ایشان شد. نتیجه آن شد که سه تقویم زرتشتی مختلف امروزه موجود است. تقویم زرتشتی خورشیدی است و با زمان تاجگذاری آخرین پادشاه زرتشتی، یزدگرد سوم، شروع میشود. این تقویم برای روزهای هر ماه یک نام دارد که چنین میباشند: ۱. هرمز ۲. بهمن ۳. اریبهشت ۴. شهریور ۵. اسفندارمذ ۶. خرداذ ۷. مرداذ ۸. دیباذر ۹. آزر ۱۰. آبان ۱۱. خور ۱۲. ماه ۱۳. تیر ۱۴. گوش ۱۵. دیبمهر ۱۶. مهر ۱۷. سروش ۱۸. رشن ۱۹. فروردین ۲۰. بهرام ۲۱. رام ۲۲. باد ۲۳. دینبدین ۲۴. دین ۲۵. ارد ۲۶. اشتاذ ۲۷. آسمان ۲۸. زامیاد ۲۹. مارسفند ۳۰. انیران. و برای شبهماههای پنج روزه نیز: ۱. اهند ۲. اشند ۳. اسفندارمد ۴. اخشتر ۵. بهشت.
سه نوع تقویم زرتشتی امروزه اینگونهاند:
فصلی: این تقویم بیشترین تغییرات را داشته است. در سال ۱۹۰۶ این تقویم با تقویم گریگوری (میلادی) همآهنگ شد و از آن پس سال نو در ۲۱ مارس شروع میشود. سالهای کبیسه نیز با سالهای کبیسهی میلادی برابر میباشد. ۱۳ ماه دارد: ۱۲تای اول ۳۰ روز، و ماه آخر ۵ یا ۶ روز دارند.
شنشئی: این تقویم اغلب زرتشتیان ایران است. طرح اصلی چنین بود که هر ۱۲۰ سال یک ماه کبیسه درج میکرد، اما باور عموم بر این است که این ماه فقط یک بار و آن هم در هند درج شد. هر سال ۳۶۵ روز دارد و سال کبیسهای در کار نیست. سالها به همان ۱۳ ماه تقسیم میشوند. این گروه ایدهی سال کبیسه با ماه آخر ۶ روزه را رد کردند، زیرا که عدد ۶ را مغایر با تعلیمات زرتشت میدانند! با سالهای ۳۶۵روزه و عدم وجود هیچگونه تصحیح، این تقویم با گذشت زمان حرکت میکند و شروع سال دیگر در اعتدال بهاری قرار نخواهد داشت.
قدیمی: این تقویم بسیار مانند تقویم قبل است، با این تفاوت که یکماه جلوتر است (احتمالا به علت ماه درج شده در تقویم شنشئی).
ترجمه: بهداد اسفهبد +
به مناسبتِ حضورِ به یاد ماندنیِ باب دیلَن در تورنتو در نوروزِ سالِ جدید.
نامم مهم نیست
سنم چه اهمیت دارد
جایی که ازش میآیم
نافِ آمریکا نام دارد
آنجا درس خواندم و بزرگ شدم
و قوانینی که بر گردن میگذارد
و سرزمینی که در آن زندگی میکنم
خدا را طرفِ خود دارد.
کتابهای تاریخ تعریف میکنند
خوب تعریف میکنند
سوارهنظام حمله کرد
سرخپوستها شکست خوردند
سوارهنظام حمله کرد
سرخپوستها مردند
کشور هنوز جوان بود
خدا را طرفِ خود بردند.
جنگِ اسپانیا و آمریکا
زمانش سپری گشت
و جنگِ داخلی هم
زود به تاریخ پیوست
مجبور بودم حفظ کنم اما
نامِ قهرمانان را
با تفنگ در دستانشان
و خدا طرفِ آنها.
جنگِ جهانیِ اول، بچهها
آمد و رفت
علتِ جنگیدن را اما
نفهمیدم هیچوقت
اما یاد گرفتم که بپذیرمش
بپذیرم با افتخارِ بیانتها
چون مردهها را نمیشماری
وقتی با شماست خدا.
وقتی جنگِ جهانیِ دوم
پایان یافت هم
آلمانها را بخشیدیم
و دوست شدیم با هم
گرچه شش میلیون کشتند
در کورهها برشته کردند
آلمانها هم حالا
خدا را طرفِ خود داشتند.
در تمامِ طولِ عمرم آموختم
که متنفر باشم از روسها
اگر جنگِ دیگری بیاید
باید بجنگیم با آنها
ازشان متنفر باشم و بترسم
و فرار کنم و مخفی شوم
و همه را شجاعانه بپذیرم
که با من است خدایم.
ولی حالا سلاح داریم
سلاحِ شیمیایی
اگر مجبور به استفاده شویم
میکنیم بی هیچ پروایی
با یک فشارِ دکمه
و شلیک به آن سرِ دنیا
و هیچوقت سوال نمیپرسی
وقتی خداست با شما.
در ساعاتِ سیاهِ بسیار
فکر کردهام با خود
که عیسی مسیح
با یک بوسه فروخته شد
اما جای تو نمیتوانم فکر کنم
خودت باید تصمیم بگیری حالا
که آیا ایسکاریِتِ یهودا هم
طرفِ او بود خدا؟
حالا که دارم میروم
حاصلش خستگیست
احساسِ گیجیای که میکنم
زبان قادر به بیان نیست
سیلِ کلمات سرم را پر میکند
و به زمین میریزد
که اگر خدا طرفِ ماست
جنگِ بعدی را متوقف خواهد کرد.
بهار و سال جدید آمد و علاوه بر عمر ما نیم سالی هم از عمر قاصدک گذشت. سعی کردیم که در این شش شماره مجلهی دانشجویی ما هیچ گاه خالی نباشد، از شعر، داستان، مصاحبه،... و حتی از ضعفهای یک مجلهی دانشجویی!
نوروز برای ما ایرانیان صرفا اضافهی چرخش شمارندهی سال نیست. هر چند که اینجا در دیاری دور از وطن، نوروز تعطیلات در پی ندارد، دید و بازدیدهای خانوادگی، تعطیلات طولانی و همهی خاطرات خوشی که در ذهن ما جزیی از نوروز را تشکیل میدهند، متفاوت، بسی فشردهتر و کمرنگتر است. ولی باز هم نوروز مناسبت خود را از دست نداده است. حلول سال زنگ بیدار باش زندگیست که تلنگری به خاطراتمان میزند. نوروز برای تکتک ما معنایی متفاوت دارد که در تورنتو، برای ما دلتنگی دوری از زادگاه را نیز به همراه میکشد. اما قاصدک مانند دیگر گروهکهای کوچک دانشجویی تورنتو در تلاش بوده تا پلی باشد میان این سو و آن سوی اقیانوس و میان دو نیمهای که هویت نسل مهاجر را تعریف میکنند.
این ششمین شماره از قاصدک است، یعنی شش ماه یا نیم سال است که ما آغاز شدهایم. به این امید که صدای تورنتو باشیم. تورنتو شهر عجیبی است، پر از آدمهایی کاملا متفاوت از اقصی نقاط دنیا، با فرهنگها و عقاید مذهبی مختلف، که به طور مسالمتآمیز با هم زندگی میکنند. ایرانیها هم کم نیستند، گفته میشود حدود ۵۰ هزار نفر. دانشجویان ایرانی هم آن قدر هستند که وقتی در دانشگاه قدم میزنیم، صدایشان را بشنویم. فکر میکنیم زندگی در تورنتو به همهی ما قدرت همزیستی بالایی داده است. مثل هم نیستیم، ولی با هم کار میکنیم و میخواهیم صدای همه باشیم.
خواستهایم که تصویری از زندگی در تورنتو بسازیم. به همین جهت در بخش خبر، اخبار جالب برای ایرانیان مقیم تورنتو را یک جا منتشر میکنیم و آنها را از برنامههای آینده نیز مطلع میکنیم. بخش کنجکاوی، نگاه دقیقتری است به اتفاقات پیرامونمان، که در این شماره انتخابات حزب لیبرال کانادا را برگزیدهایم. بهانهمان نامزدی آقای علی احساسی در این انتخابات است، و سعی داریم با گزارشی از آن ایرانیان را با فضای سیاسی کانادا بیشتر آشنا کنیم.
اجتماع ایرانیهای تورنتو گهگاه میزبان شخصیتهای متفاوت ملی است، و ما قاصدکیها خیز برداشتهایم که در صورت امکان با آنها گفت و گو کنیم. در این شماره، بخش دوم گفت و گویمان با مسعود بهنود، که در هنگام سفرش به تورنتو حدود دو ماه پیش انجام شد را میخوانید. شخصیتهای جالب دیگری هم هستند که در تورنتو زندگی میکنند، و قصد داریم به مرور به سراغشان برویم. چشم شیشهایمان هم که همه جا سرک میکشد تا لحظات را ثبت کند. این شماره بدیهیست که چهارشنبهسوری و نوروز را پیدا کرده است.
در انتخاب مقالههای ارسالی تلاش کردهایم که به مقالاتی که نقطه نظرات شخصی دانشجویان را بیان میکنند، بها بدهیم. بازخوانی حماسهی رستم و اسفندیار، به عنوان مثال، نگاه شخصی دانشجویی است به اسطورهای از شاهنامه با این هدف که رمزهایی از تاریخ ایران را بگشاید. مقالهی دیگرمان مقدمهایست بر تاریخ تقویمهای ایرانی به بهانهی سال نو.، دیدگاه یک ایرانی است به اشغال عراق و جایگاه تلاشهای شهروندان خارج از یک کشور در این اقدام و سرانجام نگاهی است به تصور عامهی ما از اهمیت رشتههای مختلف دانشگاهی.
برای سر ذوق آوردن شعرا و نویسندگان گمناممان هم که در همهمهی زبان انگلیسی صدایشان دیگر به هیچکس نمیرسد، تریبون شعر و داستان و قلمک را گذاشتهایم. اگر چه همیشه هم نویسندههایمان از تورنتو نبودهاند. تا آنجا که بتوانیم، نوشتهها را مطابق با مناسبات روز انتخاب میکنیم و به همین دلیل در این شماره یک قلمک طنز به بهانهی سالروز تولد آلبرت انیشتن در روز ۱۴ مارس تقدیمتان میکنیم.
بخوانید تا رستگار شوید!
از چند ماه پیش شروع شد. بعد از انتخابات شهردار تورنتو. علی احساسی در ستاد انتخاباتی خانم باربارا هال در منطقه دان ولی ایست کار میکرد. برای این در این منطقه کار می کرد که کودکی اش را در این منطقه گذرانده بود. همان وقتی که به همراه خانوادهاش به عنوان مهاجرینی تازه وارد به این کشور آمده بودند. در همین منطقه هم به دبیرستان رفته بود و از همین منطقه به عضویت حزب لیبرال درآمده بود.
علی احساسی همانطور که در برگههای معرفیاش هم آمده و در مطبوعات فارسی زبان کانادا منتشر شده است، تحصیلاتش را در علوم سیاسی، اقتصاد و حقوق دنبال کرد و هم اکنون مشاور حقوقی-اقتصادی دولت انتاریوست.
اخیرأ پس از اطلاع از اینکه نمایندهی منطقه دان ولی ایست در مجلس قصد ترک پارلمان را دارد؛ علی احساسی، به تشویق گروهی از دوستان، تصمیم گرفت نامزد حزب لیبرال از آن منطقه شود که با توجه به سابقه وی دراین حزب منطقی مینمود.
علی میتوانست با توجه به تعداد بسیار زیاد ایرانیان ساکن منطقه؛ از حمایت هم وطنان خود استفاده کرده و به عنوان نمایندهی حزب لیبرال از منطقه دان ولی ایست تعیین شود. با توجه به اینکه دولت کانادا دولتی لیبرال است و اکثریت قریب به اتفاق سکنه دان ولی ایست هم لیبرال هستند برنده شدن کسی که به عنوان نماینده حزب لیبرال انتخاب شده، در انتخابات ملی، محرز مینماید.
اولین مشکل این بود که ایرانیان ساکن این منطقه (که تصور می کنم در مورد ایرانیان ساکن تمام مناطق هم صدق کند) هیچکدام عضو حزب لیبرال نبودند. نه که عضو حزب لیبرال نباشند عضو هیچ یک از احزاب کانادا نبودند و لزومش را نیز حس نمیکردند.
طبعأ اولین اقدام ستاد انتخاباتی علی احساسی از دری به در دیگر رفتن و ثبت نام ساکنین منطقه دان ولی ایست در حزب لیبرال بود٬ که بتوانند در انتخابات لیبرال حق رای داشته باشند. در این راه، مشکلات و مسایل فراوانی وجود داشت. یکی از مسالهسازان خود حزب لیبرال کانادا بود که در مراحل اولیه فرم را به آسانی در اختیار گروه قرار نمیداد. به این ترتیب که پنج فرم میداد و پر شدهاش را پس میگرفت تا پنج عدد فرم دیگر بدهد. همین شد که سرعت کار ستاد در ابتدا قادر به رقابت با لاکپشت هم نبود! هفتههای زیادی وقت اعضای گروه به پنج تا پنج تا فرم بردن و آوردن گذشت تا بالاخره فرم ها به تعداد مورد نیاز در اختیارگروه قرار گرفت.
مشکل بعدی که کلیدیترین و سختترین نیز بود، راضی کردن جمعیتی بود که از سیاست بد دیده و به همین خاطر از شهر و دیار خویش بریدهاند، به اینکه احزاب سیاسی در کانادا ربطی به روند سیاست در ایران ندارند. اکثر مردمی که به در خانههایشان میرفتیم، علاقهای به فعالیتهای سیاسی نداشتند چرا که به حق، «سیاست» در دایرهی لغاتشان شاید معنی سنگینتری داشت از آنچه هم اکنون در این جامعه به عنوان سیاست و فعالیت سیاسی شناخته میشود. شاید برای ما که در سابقه ذهنیمان طوماری از شهدای سیاسی ثبت شده است، کلمهی حزب خاطرات تلخی را زنده کند که هرگز خواهان تکرارش برای خود و یا فرزندانمان نباشیم. سنگینی و تلخی این خاطره حتی مانع مشاهده آزاد است. مشاهدهی این که آیا مشارکت سیاسی در جامعه ای که اکنون در آن زندگی می کنیم از مشارکت اجتماعی جداست؟ و آیا دولت از فعالیت سیاسی ما آن هم فقط در قالب یکی از میلیون اعضای لیبرال چنان متضرر می شود که پایه های قدرتش سست میشود و تصمیم می گیرد ما و تمامی خانواده مان را نابود کند!؟... به تصور من علت تاکید اعضای ستاد آقای علی احساسی بر حزب لیبرال تنها گرایش نسبی ایرانیان به لیبرال نبود و اگر تاکید بر این حزب خاص انجام میشد صرفأ به این علت بود که بعد از استعفای آقای دیوید کلنت، از آن منطقه گشایشی صورت گرفته بود و این امکان را میداد که جمع ایرانی به این بهانه نمایندهای راهی مراجع عالی قانونگزاری کانادا کنند.
به هر ترتیب داوطلبانِ ستاد انتخاباتی با سختیهای فراوانی برای قانع کردن مردم دست به گریبان شدند. این داوطلبان معمولا بعد از ظهرها ساعت ۵ در شیرینی فروشی و کافی شاپ «باگت» در فرویو مال جمع میشدند، با هم قهوهای میخوردند و در گروههای دو یا سه نفری به ساختمانهای مختلف میرفتند. چون هدف اصلی جلب حمایت ایرانیان منطقه بود، ساختمانهایی مورد نظر بود که سکنه ایرانی بیشتری داشته باشد.
روزهای شنبه و یکشنبه معمولا تعداد داوطلبان به کمک زیاد میشد و به ۱۰ تا ۱۵ نفر میرسید. هفتههای آخر نیز تا ۳۰ داوطلب روزهای آخر هفته خود را در اختیار ستاد گذاشتند.
داوطلبان معمولا از اسامی که روی زنگ خانهها نوشته شده بود ایرانیان را شناسایی کرده و زنگ آنها را میزدند. اوایل بسیار سخت بود بهطوری که که بچهها با فروشندههای دوره گرد اشتباه گرفته میشدند و مردم تنها از گوشی میگفتند که علاقهمند نیستند و وقت نمیگذاشتند که باقی قصه را گوش کنند. اما کمکم به کمک رسانههایی مثل رادیو صدای روز، تلویزیون شهر ما، روزنامه پیک روز و شهروند و... خبر به گوشها رسید و برخوردها تغییر کرد.
حتی تعدادی از کسانی که به عضویت در میآمدند اعلام آمادگی برای هرگونه کمک هم میکردند. عدهای بزرگوارانه وقت خود را در اختیار ستاد قرار دادند و وظیفهی در جریان قرار دادن دوستان نزدیک و افراد فامیل خود را خود به عهده گرفتند. اینان تعدادی فرم تحویل میگرفتند وبه دیدار آشنایان میرفتند و آنها را هم عضو میکردند و فرمها را امضا شده تحویل میدادند.
تازه داشت عضوگیری روی روال میافتاد که فرصت برای عضوگیری تمام شد! (فکر می کردم زندگی هم همین باشد، تا می آییم یاد بگیریم چه کنیم تمام میشود و همین جاست کع پای استفاده از تجربیات پیشین به میان می آید. به همین خاطر خوشحالم که فعالیت این ستاد تجربهای پربها در اختیار جمع تازه شکل گرفته ایرانیان کانادا قرار داده است.)
یکی دیگر از دلایل سختی کاردر آن منطقه برای داوطلبان این بود که ایرانیان ساکن آن منطقه اکثرأ ایرانیان تازه وارد به کانادا بودند. چرا که به تجربه دیده شد، خانوادههایی که زمان طولانیتری در کانادا زندگی میکردند، واهمهای از عضویت در حزب لیبرال یا حمایت از یک ایرانی نداشتند.
به هر ترتیب در پایان مهلت مقرر در حدود ۱۱۰۰ نفر از منطقه به عضویت حزب لیبرال در آمدند که به دلیل تمرکز خاص بر ایرانیان تعداد قابل توجهی ازاین افراد ایرانی بودند. ای کاش همگی در روز انتخابات حضور پیدا میکردند!
رقیب انتخاباتی علی احساسی که درنهایت با سرافرازی از صندوق انتخابات در آمد، خانم یاسمین رتانسی از اسماعیلیان جنوب آفریقاست. همان طور که روزنامه شهروند نیز بالای آگهی علی چاپ کرده بود، زن فعالی است. وی از حمایت کامل مساجد و مجامع اسماعیلی و انجمن زنان مسلمان کانادایی برخوردار بود. شاید قضیه ما همان قضیه مرغ و تخم مرغ است. مراکز اجتماعی (کامیونیتی سنتر) نداریم که متحدمان کند تا بتوانیم از بین خود نمایندهای روانهی مجلس کنیم و نمایندهای نداریم که به ایجاد مراکز اجتماعی ایرانی پافشاری کند.
مقابل در ورودی سالن انتخابات چند فارسی زبان ایستاده بودند که کاغذهای فارسی در حمایت از خانم رتانسی به مردم می دادند و فارسی زبانانی که به حمایت از علی آنجا آمده بودند با توجه به شباهت اسم کوچک این خانم با اسامی فارسی به طبع گیج میشدند و می گفتند چرا به ما نگفتید که یک ایرانی دیگر هم در از این منطقه کاندید است؟
البته داوطلبان ستاد علی احساسی سعی در دورهکردن آنها داشتند و آنها هم در رودربایستی، مقابل بچه ها می گفتند: لطفا رای دوم خود را به خانم رتانسی بدهید ولی وقتی تنها میشدند رای اول را برای او میخواستند.
روز رای گیری ۲۸ مارچ ۲۰۰۴ برای ما ایرانیان مهاجر روزی تاریخی بود. نه تنها مهاجرین به کانادا که به تصورم برای هر ایرانی که قصد اقامت در جایی دیگر به غیر از ایران را دارد، روزی ماندگار خواهد بود. هر چند موفقیت مطلق به همراه نداشت ولی تجربه ای در اختیارمان گذاشت که اطمینان دارم به همین زودیها به کار خواهد آمد.
سخنرانی علی احساسی در قیاس با سخنرانی سه کاندیدای دیگر بیاغراق تحسین برانگیز بود. وی با تسلط کامل و به روشنی خود را معرفی کرده برنامههای مورد نظرش را برای حضار تشریح کرد. یادم به سخنرانی نیاز سلیمی در اجلاس جمعآوری کمک به زلزله زدگان بم افتاد که در معرفی علی احساسی به عنوان سخنگوی ستاد همیاری برای کمک رسانی به بم رو به حضاری که شهردار تورنتو و رهبر حزب ن. د. پ را هم شامل میشد گفت: «مادر ایران به چنین فرزندی افتخار خواهد کرد.» تصور می کنم یکی از دلایلی که طرفداران خانم رتانسی بدون وجود هیچ قراردادی، رای دوم خود را به علی احساسی دادند تاثیر گزاری به سزای سخنرانی وی بود.
همکاری گروه نیز عالی و کم سابقه بود. میدانم که سالهای بعد همه با افتخار به یاد خواهند آورد.
تعداد زیادی از داوطلبان در گروههای مختلف درحالیکه تیشرتها و دگمههایی با اسم علی احساسی به تن داشتند مشغول به کار بودند. عدهای در پای هر صندوق رای ایستاده بودند که به عنوان «ناظر» از تقلب جلوگیری کنند و از طرفی اگر کسی مشکلی برای رای دادن دارد برایش رفع نمایند. این عده که در سالن ورزش مدرسه بودند، از ساعت ۲: ۳۰ که درهای حوزه باز شد تا ساعت ۷ که درها را بستند بی وقفه مشغول نظارت بر رایگیری بودند. عدهی دیگری تحت عنوان «مستقبل» با فلایر علی احساسی ایستاده بودند و به استقبال کسانی می رفتند که برای رایدادن به علی آمدهاند همچنین از باقی رایدهندهها میخواستند که لااقل رای دوم خود را به علی بدهند. عدهای تحت عنوان راننده کسانی را که به وسیله نقلیه دسترسی نداشتند، به حوزه رایگیری میرساندند و از حوزه به منازلشان برمی گرداندند و همچنین عدهای دردفتری که به محبت یکی از دوستان ایرانی در اختیار ستاد قرار گرفته بود، تمام روز نشسته بودند و به کسانی که هنوز برای رای گیری مراجعه نکرده بودند، تلفن میزدند و از ایشان درخواست می کردند که اگر وسیله ندارند، آماده باشند که کسی به دنبالشان برود.
گروه در آن روز به خصوص چنان یکپارچه و قوی عمل کرد که انگار سالهاست دراین زمینه فعالیت میکند.
نتیجه درست ۲ ساعت بعد از بسته شده درها یعنی ساعت ۹ شب اعلام شد. خانم یاسمین رتانسی با حدود ۸۰۰ رای انتخاب شد و ما هم موفق شده بودیم ۴۰۹ نفر را به پای صندوقها بکشانیم.
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